१
छोड़ि कऽ हमरा ई जे ओ जा रहल अछि
हृदैकेँ चीरैत जे सुनगा रहल अछि
नीक लगै छल ओकर बोलक संगोर
जाइए आइ हृदए कना रहल अछि
नै बुझलिऐ ई एते बढ़ल अछि बात
देखल आइ जे ओ भँसिया रहल अछि
हमरासँ कते की माँगै छल रहरहाँ
जे जुमल ओ बिनु लेने जा रहल अछि
ओकर हाक्रोस हमर चुप्पी सुनै छल
बाजब से बिनु सुनने जा रहल अछि
बात तँ छलै जड़िआएल तहिआयल
बीझ काटि बिनु पढ़ने जा रहल अछि
ककरा कहबै ई जे पतिआएत आइ
उपरागो बिनु सुनेने जा रहल अछि
घुरत नै देखैल अपनैती अपन ओ
आँखि शून्य हृदए हहारो देखाबै अछि
के टोकत एको बेर रुकि जाउ कहत
मुँह सीयल सभक शून्य बढ़ल अछि
२
की कहबै जे लुझतै ओ, कोना कहने बुझतै ओ
आँखिक नोर खसतै रूसतै आ फेर बजै ओ
चम्मन फूल भमरा गुम्म जब्बर छी सोझाँ ठाढ़
जलबाह सोझाँ माँछ बनल हमरा देखैए ओ
दाबी देखेतै जखन से देखबै नुका अँचरासँ
बहराइ छी हम मुदा घबरा कऽ, नै ताकै ओ
कोन बातपर तमसाइत अछि नै बुझलिऐ यौ
असोथकित आँखि लेने ओङठल पियासल ओ
सर्वज्ञानी बनल हम जाइ ऐ देशकेँ छोड़ने
छोड़ल गेल नै हएत बनल पाथर-मूर्ति ओ
उड़ै अछि अनेरे ई चिड़ै नील अकाशक बिच
हमर मोनो उड़ैए देखैए नै किअए अछि ओ
बनि माँछ आकुल छी बाझब ऐ जालमे कखन
फँसि त्राण पाएब आ आँखि बओने देखत की ओ
धानी रंगक ई आगि देखल हम पियासल छी
धाना ठाढ़ अछि शान्त निश्छल मुखाकृति लेने ओ
देशक धान अछि खखरी बनल, आगि धानी भेल
कखन जाइ ओइ देश जे पियासल, देखै नै ओ
धानी रंगक आगि आ पानि बनल ओकर संगी
धौरबी बनल हम आइ रूसत बुझत नै ओ
धुधुनमुहाँ बनल छी धोधराह गाछक सोझाँ
आगि जरबैत बनेलक फाहा बूझि देखल ओ
मिरदङियाक ध्वनि तरंग धारमे भँसियाइ
ओइ मोनिमे घुरमैत अकुलाइत देखै नै ओ
ऐ आँखिमे जे नोर एतै आ खसेतै आबि ओ सोझाँ
कहिया देखि हकासल हमरा जे दबाड़त ओ
देखितिऐ अँचरासँ आ बहरा जाइ दुअरासँ
चिड़ै उड़तै तँ उड़तै मोनसँ बेसी कोनो की ओ
सगुन बान्हसँ बान्हल ऐ मोनक उछाही बिच
सगुनियाँ छी बनल ठाढ़ कहिया देखत ई ओ
हरसट्ठे स्वयंसँ अपन चेन्हासी मेटा लेलक
माटिक मूरुत हम हरपटाहि बनेलक ओ
छरछर बहल धार मोनक कतऽ अछि गेल
बहि धेलक बाट आ उधोरनि बनल अछि ओ
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रविवार, 20 मार्च 2011
गजल
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गजेन्द्र ठाकुर
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