जैह देखू सैह बाजू हम त यैह पढने छी॰।
राति के दिन कहैले हमरा केना कहै छी॥
चम्चागिरी चाटुकारिता नहिँ केलहुँ हम।
ताहि द्वारे फूसक घर मे हम रहि छीः।।
मिथिला देशक वासी छी हम मैथिली बाजब।
अपन इ पहचान नहि कहियो बिशरै छीः॥
सभ दिन एके रंग नहि होयत छै कान धरु ई।
कहियो नाह पर,कहियो गाङी पर नाह देखै छीः॥
सतयुग कलयुग मे नहि हम मोन के ओझराबी।
दुनिया त ठीके छै जौ हम ठीक रहै छीः॥
हँसऽ मे सभ हँसत कानऽ मे नहि कानत।
कानि के देखु तखन कहब जे ठीक कहै छीः॥
bah, bhai bahut neek.
जवाब देंहटाएंथोड़ी थोड़ी समझ में आ रही है और आपके ब्लॉग से जुड़ कर समझ ही लूंगी आभार.
जवाब देंहटाएंhttp://shalinikaushik2.blogspot.com
पूरी तो समझ नही आई पर हां थोड़ी जरूर समझ आई...
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी....
bahoot nik achhi sab gota mili ehina mithila ke culture ke bachene rahu jai mithila
जवाब देंहटाएंबाह, नीक सदर जी आब गदर मचि जैत
जवाब देंहटाएंशालिनी जी/ वीणाजी,
जवाब देंहटाएंमैथिली भाषाके इस गजल ब्लॉग पर दिखाई आपकी रुचि के लिए धन्यवाद। जहाँ कहीं अर्थ समझने में दिक्कत हो अवश्य सूचित करें, हमारे सदस्य तत्काल मदत करेंगे।