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शुक्रवार, 18 मार्च 2011
ग़ज़ल
मोन प्रपंच पाप सँ दूषित, भाषण जन - समुदाय के
कोना एहन नायक समाज में, परचम बनता न्याय के
कथनी में आदर्श, कलंकित करनी सँ नफरत के पात्र,
कोना समाज एहन व्यक्ति के, शत्रु कहय अन्याय के
किछु दिन संभव अछि चालाकी किन्तु अंत नहिं नीक एकर,
सदा अंत में हारव निश्चित, दानव के पर्याय के
धर्म, सत्य और न्याय-मनुजता, नैं हारल, नैं हारि सकत,
झूठ नैं कखनों बना सकत क्यों, अपन सबहक ऐहि राय के
धर्म अपन अछि - अपना कारण अपन वंश के मान बढय,
कहि नैं पावय क्यो कपूत के जननी अपना माय के
आदर्शक पथ पकडि चलू और करैत रहू कर्त्तव्य अपन,
लक्ष्य इहय बस सर्वोत्तम अछि, बुझू हमर अभिप्राय के
रचनाकार - अभय दीपराज
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
Abhay Deep-Raaj
I have done B.Sc.[Biology]in 1982 and M.Sc.[Defence Science] from Government Science coleege Gwalior and thereafter I have done B.Ed.in 1986 from Government Education coleege Gwalior. After it I have done M.A.[History] in 1989. In 1989 I went to join the three year degree course of law. After the completing of my LL.B. in 1992 I have taken an M.A. degree in sociology in 1994.
Since childhood I like to read & write poems, articles & stories, which can be seen in my blogs....
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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों
वाह , वाह , उत्तम जे आशा हम केने छलहु से पूर्ण भेल
जवाब देंहटाएंवाह , नीक , मुदा ज हल्लुक शब्दक प्रयोग केला सं ग़ज़ल में रवानगी आओत |विशेष लिखब फुरसत में
जवाब देंहटाएंhilkor utha deliyai
जवाब देंहटाएंश्रीयुत प्रशांत जी, आशीष जी और गजेन्द्र जी अहाँ सब ग़ज़ल पढि कय हमरा प्रोत्साहित क्यलौं | ऐहि लेल धन्यवाद |
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