गजल
अहाँ बैसला पर कि पाएब एतौ
रहब काजके
बिन कि खाएब एतौ
कतोऽ दुख कतोऽ सुख लिखल अछि तँ सबटा
कियै
हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत
हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव
विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ
मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~
~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
कियै हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
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