मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

गजल

गजल-1.75

भरि भरि दिन अपने सन नीक काम दऽ गेलौं
निज आँचरकेँ छाहरिमे अराम दऽ गेलौं

जाइत जाइत बडका टा इनाम दऽ गेलौं
हमर नाम संगे अपन नाम दऽ गेलौं

चोरायल बातक परतपर परत खुलै अछि
चुँकि भाषण दू बगली ठाम ठाम दऽ गेलौं

अपने गलतीपर हम आइ कानि रहल छी
छल नेहक जे जे चिट्ठी तमाम दऽ गेलौं

दू टा प्रेमक टोला आगिमे जरि जेतै
गप बढ़ितै ताहिसँ पहिने विराम दऽ गेलौं

2222-2221-2122-2
अमित मिश्र

गजल

गजल-1.74

घुरि गेल नव दिन घुरि कऽ तेँ गाम आबू
गामेक बाटक काँटकेँ मिल बहारू

छै स्वर्ण जिनगी मन मुदा कोइला छै
जे झोल अछि पसरल किओ आबि झारू

खुश छी जखन धरि तखन धरि मोन लागय
तेँ मोनकेँ दुख दिससँ सदिखन हटाबू

छै खूनमे गरमी मुदा डेरबुक मन
सूतल हियामे सूर्य सन आगि लेसू

धधकैछ जे क्रांती तखर बात कम हो
जे चुल्ही शीतल भेल तकरा पजारू

बड भूख रचि लेलौं सिनोहो बहुत अछि
साहित्य बड लिखलैछ, नव कलम आनू

मुस्तफाइलुन-मुस्तफाइलुन-फाइलातुन
2212-2212-2122
अमित मिश्र

गजल

गजल-1.73

अलच्छे चीज लेल दुनियाँ रकटल अछि देखू
मनुख खैरात केर जलमे भासल अछि देखू

कहै छथि हमर हमर ओ, सोचै नै छथि आनक
असलमे बाट हुनक मोनक महकल अछि देखू

कतौ छै बन्न महलमे इज्जत धरि छिड़िआयल
कतौ टाटोक कुटिरमे सब घेरल अछि देखू

कहै सब छोटकेक दुनियाँ उजड़ल अछि केवल
मुदा बड़कोक आरि धरि बड कपचल अछि देखू

"अमित" मारय किओ जँ पाथर, नै हिम्मत हारू
बुझू जे अपन सब सितारा चमकल अछि देखू

1222-2122-22222
अमित मिश्र

गजल

गजल-1.72

अहाँ आबि कऽ ने एलौं हमर आँगन
अहाँ घूरि कऽ ने गेलौं हमर आँगन

झरकि गेल कदीमा जरि गेल सजमनि
वियोगेक विहनि देलौं हमर आँगन

कहै छै जे जरि गेलै जातिक कनोजरि
मुदा फेर तँ ने खेलौं हमर आँगन

बिखिन-बिखिन कते देतै गारि जनता
जँ ने जीत कऽ बौएलौं हमर आँगन

फरकि रहल हमर वायाँ आँखि, शाइत
नजरि-गुजरि लगा देलौं हमर आँगन

खसल मोन भठल अछि आ नठल दुनियाँ
"अमित" चिन्ह तऽ ने पेलौं हमर आँगन

1221-1222-2122
अमित मिश्र

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

गजल

गजल-1.71

हँ सम्भव छै हमर आँखिमे मिसियो पानि नै होइ
असम्भव छै हुनक मोनमे कोनो आनि* नै होइ

सबूतो संग रखियौ बदलबै छै जखन दिल अपन
जखन धरि नजरिकेँ बातकेँ कोनो मानि नै होइ

हमर तोहर कथी छै जगतमे की ककर छै बाज
मरै धरि भोग पाछू धनक छप्पर तानि नै होइ

कुकुर सन जीव जिनगी महलमे बैसल तँ काटैछ
मरै छै वैह जै लोक लऽग कुकुकर बानि* नै होइ

जखन टूटैछ ककरो हिया छिड़िया जाइ छै सगर
हँसब लागैछ भारी "अमित" कनिको कानि नै होइ

*आनि= ईर्ष्या
*बानि= आदत
1222-122-1222-212-21
अमित मिश्र

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

गजल

तोरा लगसँ जखन आबी हम
जिवनक गीत सदति गाबी हम

बजलो गप्प बिसरि गेलै ओ
बर्खक बर्ख तँ मूँहे बाबी हम

प्रेमक फूल उधारे भेटल
खुब्बे लोढ़ि क' भरि लाबी हम

ओ हरजाइ छलै से कहि कहि
अपने नेत तँ देखाबी हम

नटुआ नाचि क' चलियो गेलै
शमियानाक गला दाबी हम

नोरक मोसि हँसी सन कागत
अगबे नीक गजल पाबी हम



सभ पाँतिमे 2221-1222-2 मात्राक्रम अछि

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

गजल

सौंसे सिरा हाटपर  खा तीमन घरक तीत लगलै
सुलबाइ बाबूक गप्पसँ ससुरक वचन हीत लगलै

अप्पन घरक खेत आँगनमे खटब बुड़िबक सनककेँ
परदेशमे नाक अप्पन रगड़ैत नव रीत लगलै

आदर्श काजक चलब गामे-गाम झंडा लऽ आगू
माँगेत घर भरि तिलक बेटा बेरमे जीत लगलै

प्रेम तँ बदलै सभक बुझि धन बल अमीरी गरीबी
निर्धन अछूते रहल धनिकाहा कते मीत  लगलै

माए बहिन केर बोलसँ सभकेँ लगै कानमे झ’र
सरहोजि साइरक गप ‘मनु’केँ मधुरगर गीत लगलै

(बहरे मुजस्सम वा मुजास, मात्रा क्रम – २२१२-२१२२/२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’ 

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

गजल

गजल-1.70

राति चन्ना उगल छलै की ने
घोघ हुनकर उठल छलै की ने

देश भरिमे सुखार पैसल छै
झील नैनक भरल छलै की ने

ने खसल तेल ने धुआँ उठलै
मोन ओकर जरल छलै की ने

साँझ धरि साँस उजरि गेलै यौ
प्रात नैना मिलल छलै की ने

जखन भेलै "अमित" घटे भेलै
लाभ अनकर जुटल छलै की ने

212-212-1222
फाइलुन-फाइलुन-मफाईलुन

अमित मिश्र

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

गजल

डूबने बिनु बुझब कोना निशा की छै
प्रेम बिनु केने कि जानब सजा की छै

बसि क’ धारक कात हेलब सिखब कोना
आउ देखी कूदि एकर मजा की छै

नोकरी कय नै कियो धन कमेलक बड़
अपन मालिक बनु तँ एहिसँ भला की छै

आइ अप्पन बलसँ पीएम बनतै ओ
हारि झूठ्ठे ढोल पीटब हबा की छै

रोडपर कोनो करेजक परल टुकड़ा
ओहि छनमे ‘मनु’सँ पुछबै दया की छै  

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम, २१२२-२१२२-१२२२)

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

गजल

हम ईर घाट
तों वीर घाट

चुभकू कनेक
मिठ खीर घाट

घूसक नदी तँ
जंजीर घाट

बंदूक संग
छै तीर घाट

देहात नग्र
बेपीर घाट

सभ पाँतिमे  2212+1 मात्राक्रम

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

गजल

दर्दसँ भरल गजल छी हम
शोकसँ सजल महल छी हम

सुख केर आशमे बैसल
दुखमे खिलल कमल छी हम

भितरी उदास रहितो बस
बाहरसँ बनि हजल छी हम

जिनगी कऽ बाटपर सदिखन
सहि चोट नित चलल छी हम

कुन्दन सुना रहल अछि ई
संघर्षमे अटल छी हम

मात्रा क्रम :२२१२+१२२२

© कुन्दन कुमार कर्ण


शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

गजल


आब चाही बस अहाँ केर मुस्कीटा
नै मरब पीने बिनु प्रेम चुस्कीटा

जे अहाँ बजलौं करू ओकरो पूरा
की अहूँ भेलौं खली बम्म फुस्कीटा

नै कटाबू नाक आबू सभक सोंझाँ
की तरे-तर रहब मारैत भुस्कीटा

डर लगैए भीड़मे नै निकलु बाहर
देख टीभी बसि घरे करब टुस्कीटा

मनु दखेलौं सभक अपनो कनी देखू
बिसरि अप्पन काज नै बनब घुस्कीटा

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम २१२२-२१२२-१२२२)

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

गजल

जय दुर्गा जय अम्बे जय काली मैया
जय भवतारणि नरकक भयहारी मैया

महिसासुरघाती सुर मुनि अर्चित पूजित
जय गौरी श्यामा जय दुखटारी मैया

टप टप शोणित लप लप जीहक संगम छै
नारी नै अबला सभपर भारी मैया

पापी पुण्यात्मा जोगी भोगी सभ ई
कहलक जे तों मुदमंगलकारी मैया

गे हम लिखबौ कोना तोरा बारेमे
हम छी बच्चा तों पालनकारी मैया

सभ पाँतिमे 222+222+222+22 मात्राक्रम अछि।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

गजल

हम रटै छी गोविन्द गिरधारीकेँ
हम तकै छी मुरली मनोहारीकेँ

देवकी वसुदेवक जशोदा नंदक
पूत गोपी वल्लभ जमुन तारीकेँ

जे उबारथि तारथि उठाबथि चाहथि
हम कहै छी तै कंस संहारीकेँ

पूजि ने थकलहुँ हम सुदामा मित्रक
द्रौपदी सत इज्जतक रखबारीकेँ

जै कहैए जमुना कदम्बक गाछो
रास रचि गीता कहि क' भयहारीकेँ


हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे


सभ पाँतिमे 2122+2212+222 मात्राक्रम अछि।अंतिम शेरक बाद पारम्परिक पदक प्रयोग अछि।


रविवार, 8 दिसंबर 2013

गजल

धमसँ टुटि गेल चार हम्मर
छै जरल ई कपार हम्मर

देश एना चलैत रहलै
दूध अनकर लथार हम्मर

मार्क्सवादीक ई नियम छै
खेत अनकर पथार हम्मर

देखिते ई हरियरका सभ
टपसँ चुबि गेल लार हम्मर

खीर ओक्कर सनेश ओक्कर
बासि तेबासि माँड़ हम्मर


सभ पाँतिमे 2122+12+122 मात्राक्रम अछि।

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

गजल

जे हमरा लेल विपदा अछि
से हुनका लेल सुविधा अछि

खसि पड़लै नोर ऐठाँ से
किनको सुख केर बखरा अछि

एहन जीवन तँ सभ चाहत
ऐ प्रेमक नाम झगड़ा अछि

नै ओसेबै तँ सर्वोत्तम
हम्मर जिनगी त खखरा अछि

उठलै अनघोल चारू दिस
सगरो घोघक तँ पहरा अछि

सभ पाँतिमे 2222+1222 मात्राक्रम।

रविवार, 1 दिसंबर 2013

अपने एना अपने मूँह-21

नवम्बर २०१३मे अनचिन्हार आखरपर कुल ९टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि---

अमित मिश्राक १टा पोस्टमे १टा गजल अछि।
आशीष अनचिन्हारक कुल ६टा पोस्टमे--- तीन टा गजल, एकटा पोस्टमे योगानंद हीरा जीक गजल प्रस्तुत भेल, एकटा पोस्टमे चंदन झा जीक १टा आलोचना प्रस्तुत भेल। १टा पोस्टमे अपने एना अपने मूँह आएल।
जगदानंद झा मनु जीक २टा पोस्टमे २टा गजल अछि।

ऐकेँ अलावे १५ नवम्बर २०१३केँ विदेहक १४२म अंक " गजल आलोचना-समालोचना-समीक्षा " विशेषांक छल। ऐ विशेषांकमे आन विधाक रचना ओ स्थायी स्तंभ छोड़ि गजलक आलोचना एना आएल---

१) अमित मिश्रा जीक २ आलेख अछि।
२) आशीष अनचिन्हारक १० टा आलेख अछि।
३) ओमप्रकाश जीक ६टा आलेख अछि।
४) गजेन्द्र ठाकुर जीक ४टा आलेख अछि ( संपादकीय सहित )
५) चंदन झा जीक १ टा आलेख अछि।
६) जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक २टा आलेख अछि।
७) जगदानंद झा मनु जीक १टा आलेख अछि।
८) धीरेन्द्र प्रेमर्षि जीक १टा आलेख अछि।
९) मुन्ना जीक १टा आलेख अछि।

मने कुल मिला क' ९टा आलोचक केर २८ टा आलेख अछि।



गजल

करेजामे अपन हम की बसेने छी
अहाँकेँ नामटा लिख-लिख नुकेने छी

बितैए राति नै  कनिको कटैए दिन
अहाँकेँ बाटमे     पपनी सजेने छी

हमर ठोरक हँसीकेँ    देख नै हँसियौ
अहाँ हँसि लिअ दरद तेँ हम दबेने छी

हमर जीवन अहाँ बिनु नै छलै जीवन
मनुक्खसँ देवता     हमरा बनेने छी

निसा ई गजलमे आँखिक अहीँकेँ ‘मनु’
बुझू नै हम  महग   ताड़ी चढ़ेने छी

(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२-१२२२)

जगदानन्द झा ‘मनु’                   

अरविन्दजीक आजाद गजल

प्रस्तुत अछि जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई आलोचना


अरविन्दजीक आजाद गजल

मैथिलीयोमे गजल पर खूब काज भेल अछि आ एखनो भ’ रहल अछि। गजेन्द्र ठाकुर गजलक व्याकरण  विस्तार सँ प्रस्तुत केलनि आ अपनो बहुत गजल लिखलनि. आशीष अनचिन्हार मैथिली गजल ले’ स्वतंत्र साइट बनाक’ व्याकरण कें स्थापित करबामे अपनो योगदान करैत अपनो बहुत गजल लिखलनि आ आओर बहुत गोटे सँ गजल लिखबौलनि आ से काज एखनो क’ रहल छथि हिनका दूनू गोटेक अतिरिक्त आर बहुत गोटे मैथिली गजलकें समृद्ध करबामे योगदान क’ रहल छथि।ई प्रसन्नताक बात थिक। हमरा जनैत गजलकारक  मुख्य तीनटा वर्ग अछि। एक वर्ग ओ अछि जाहिमे रचनाकार पहिने गजलक व्याकरण पढलनि आ तकरा बाद ओही अनुसारे गजल लिख’ लगलाह. दोसर वर्गमे ओ गजलकार सभ छथि जे पहिने गजल लिख’ लगलाह , बादमे गजलक व्याकरण दिस घ्यान गेलनि आ ओहि अनुसारे लिखबाक प्रयास कर’ लगलाह. तेसर वर्गमे ओ लोकनि छथि जे गजल सूनि क’, पढि क’ लीख’ लगलाह आ लीखैत चल गेलाह, पाछां उनटि क’ नहि तकलनि.ओ मात्रा अथवा वर्ण गनि क’ षेर  लिखबाक-कहबाक चक्करमे नहि पडि अपन बातकें केंन्द्रमे राखि धडाधड लिखैत चल गेलाह आ लिखैत जा रहल छथि।
‘बहुरूपिया प्रदेशमे’ मात्र 24 दिनमे लीखल गेल 66टा गजलक संग्रह थीक जाहिमे गजलकार अरविन्द ठाकुरजीक कथन पर ध्यान देल जाए: ‘हम जे कहय चाहैत छी से महत्वपूर्ण छैक,ताहि लेल व्याकरण टूटय कि विधा विशेषक मापदंड,तकर हमरा परवाहि नहि अछि। ओकरा भल चाही त’हमर सहायक हुअए,बाधा ठाढ नहि करए ।’ गजलकारक एहि कथनकें ध्यानमे राखि जँ हिनक गजल पढब त नीक लागत। 66 टा गजलमे 10टा गजल एहेन अछि जाहिमे रदीफ अछि,काफिया नहि. 16 टा एहेन अछि जाहिमे काफिया अछि,रदीफ नहि. 40 टा गजलमे रदीफ आ काफिया दूनू अछि. किछुए गजल एहेन हएत जाहिमे बहरसँ सम्बन्धित दोष नहि हो.मुदा,बहुत रास शेर सभमे जे बात कहल गेल अछि से व्याकरणक त्रुटिकें झांपन देबामे बहुत समर्थ लगैत अछि.सभ गजलक अंतिम शेरमे गजलकारक  नामक प्रयोगक प्राचीन परंपराक निर्वाह  नीक जकाँ कएल गेल अछि जे बहुत गजलकार नहि क’ पबैत छथि. गजलकारक  समक्ष  सामाजिक,राजनीतिक आ सांस्कृतिक चेतनाक अवमूल्यनक विषाल क्षेत्रक अनुभवक संपदा छनि जे जहां-तहां विभिन्न गजलक विभिन्न शेर सभमे प्रगट भेल छनि।एकर बानगीक रूपमे प्रस्तुत अछि निम्नलिखित  किछु  शेर:
दूध लेल नेना आ रोगी हाकरोस करत
नै जखन गाममे मालक बथान रहत

एहि समाजक रूढि भेल अछि घोडनक ओछाओन सन
प्रेममे भीजल बतहबा ताहिपर ओंघरा रहल अछि

गाममे डिबिया जरल अछि रातिसं लडबाक लेल
मेट्रोपॉलिटन टाउनमे अछि राति दुपहरिया बनल

पात बिछैबाक बेर लोकक करमान छल
यार सभ अलोपित भेल ऐंठ उठेबाक बेर

रातिक जे एकबाल बढल
दुर्लभ सगर इजोरिया भेल

संसद केर फोटोमे किछुओ नहि हेर-फेर
सांपनाथ, नागनाथ,इएह दुनू बेर-बेर

कार खोजै छै एम्हर फूटपाथ पर सूतल षिकार
यम अबै छथि एहि नगर विभिन्न वाहन पर सवार

संसदमे घुसिआयल जे
सात जनम लेल केलक जोगार

गजलकारक  भयंकर आत्मविष्वास एहि षेर सभमे देखू:

धन्य ‘अरबिन’तों एलह गजलक जगतमे
फेर केओ ‘खुसरो’की तोहर बाद हेताह

नै पाठक के चिन्ता अरबिन
नीक गजल के पढबे करतै

एहने आर बहुत रास नीक-नीक शेर वला  गजल पढबाक लेल देखू  श्री अरविन्द ठाकुरक रचल आ ‘नवारंभ’ द्वारा 2011 मे प्रकाशित  आ  बहुत सुंदर कागतपर ‘प्रोग्रेसिव प्रिंटर्स’, नई दिल्ली द्वारा बहुत सुंदर मुद्रित गजल संग्रह ‘बहुरूपिया प्रदेशमे’। अन्तमे हम गजलकारक उक्तिक उल्लेख कर’ चाहब: ‘.......हाथक जेना सभ बान्ह टूटि गेल । एहन धारा-प्रवाह जे गजलक मिसरा,शेर,रदीफ,काफिया,बहर,गिरह सभकें सम्हारब कठिन....’ भरिसक, इएह कारण थीक जे गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा हिनक गजल सभकें आजाद गजल कहल गेल अछि। हम एहि विचारसँ सहमत छी।

प्रतिबद्ध साहित्यकारक अप्रतिबद्ध गजल

प्रस्तुत अछि जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई आलोचना


प्रतिबद्ध साहित्यकारक अप्रतिबद्ध गजल

‘थोडे आगि थोडे पानि’2008 मे प्रकाशित प्रसिद्ध गीतकार भाइ सियाराम झा ‘सरस’क 80 टा गजल संकलन थीक।सरसजी गजलक पोथीक भूमिकामे कविता,कथा,निबन्ध आदि विधामे आबि रहल रचना सभक स्तरपर सवाल उठौलनि अछि। लेखक,कवि,नाटककार कें की की पढबाक चाही,से सलाह देल गेल अछि.लेखक लोकनिमे प्रतिबद्धताक अभाव पर आक्रोश व्यक्त कएल गेल अछि।
अपन समाज,अपन भाषाक प्रति अपन लेखकीय प्रतिबद्धताक वर्णन सरसजी जाहि तरहें केलनि अछि से बेर-बेर पढबाक आ मोनहि मोन हुनक चरण स्पर्श करबाक लेल बाध्य क’ देत।
मुदा जँ अहाँ ताकब जे गजलकारकें की की पढबाक अथवा कथीक अभ्यास करबाक चाही से एहिमे नहि भेटत। गजलकार स्वयं गजलक सम्बन्धमे की-की पढने छथि तकर उल्लेख नहि कएल गेल अछि। गजलक व्याकरणक कतहु चर्च नहि अछि.गजलकारकें मोन पडैत छनि दक्षिण अफ्रीकाक कवि मोलाइशक क्रान्तिगीत आ फिलीस्तीनी कविक कविता,कोनो शायरक कोनो महत्वपूर्ण शेरक उल्लेख नहि केलनि अछि। एहिसँ गजल लेखनक लेल आवश्यक प्रतिबद्धताक आभास नहि होइत अछि।
पोथीक 80 टा गजलमे 62 टा गजलमे रदीफ आ काफियाक प्रयोग कएल गेल अछि जाहिमे 5 टा गजलमे रदीफ अथवा काफिया अथवा दूनूक निर्वाह सभ शेरमे नहि भ’ सकल अछि।16 टा गजलमे काफिया अछि, रदीफ नहि। 2टामे रदीफ अछि,काफिया नहि। अहूमे एकटामे सभ शेरमे रदीफक निर्वाह नहि भ’ सकल अछि। कोनो गजल एहन नहि अछि जकर सभ शेरमे वर्ण अथवा मात्राक एकरूपता हो।तें बहरमे त्रुटि साफ दृष्टिगोचर होइत अछि। एहि दिस गजलकारक ध्यान किएक नहि गेलनि से नहि जानि। सरसजीसँ लोककें बहुत अपेक्षा रहैत छैक, मुदा एहि सम्बन्धमे हुनक कोनहु स्पष्टीकरण सेहो कतहु नहि अछि। आशा अछि गजलकारक अगिला गजल-संग्रहमे आवश्यक औपचारिकताक निर्वाह होयत। ई पढि क’ नीक लगैत अछि जे ‘.....धीरू भाइ तं एते धरि कहने रहथि जे खैयाम कें मैथिलीमे सुनबाक हो तं सरस कें सूनल जा सकैछ...’ तें सरसजीसँ अपेक्षा आर बढि जाइत अछि।
सरसजी कहैत छथि,‘एहि संकलनक गजल सभ तं सहजहिं अपन लोकवेदक,माटि-पानिक,भाशा-साहित्यक आ संस्कार-संस्कृतिक प्रतिबिम्ब तं थिके,संगहि अनेक ठाम अनेक तरहें तकरा नब सं परिभाषित आ व्याख्यायित सेहो करैछ । नब-नब संस्कारक स्थापना सेहो करैछ ।.......’ सरसजीक उक्तिकें तकैत विभिन्न गजलक एहि शेर सभ पर विचार करू-

जै पाइने पैनछूआ कैरतै ने लोक, छीः छीः छीः
सेहो पाइन घटर-घटर घटघटा रहल,ई मैथिल छौ

जौं-जौं अहंक खसैए पिपनी,धप-धप तेना खसै छी हम
रसे-रसे उठबी तं सरिपहुं, होइए देव-उठान हमर

थप्पा समधिन देल समधि केर अंगा मे
उजरो मोंछ पिजाएल,फागुनक दिन आयल


अइ समुद्रक किन्हेरमे बड चक्रवातक जोर रहलै
बालु पर तैयो अपन हम नाम तकने जा रहल छी

बिज्झो कराओल बैसले रहि गेल नोथारी
गलियाक’ कियो खाइत आ उगलि रहल छलै

हम मरब,बेटा लडत,बेटा मरत-पोता लडत
कटब-काटब,जे बुझी-सदभावना-दुर्भावना

हवा-पानिक बिना एमहर भेलैए दूभि सब पीयर
ओम्हर बोडामे कसि-कसि,स्विस खातामे ढुकाबै छै

व्याकरण पक्षकें जँ उपेक्षित क’ देल जाए तँ कएटा गजलमे किछु शेर महत्वपूर्ण अछि जे पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत अछि किछु शेर जे पढबामे नीक नहि लगैत अछि, भ’ सकैए जे हुनका स्वरमे सुनबामे नीक लागय. मैथिली गजलक भण्डारकें भरबामे सरसजीक योगदानकें महत्वपूर्ण मानैत हम गीतकार सरसजीक प्रशंसक, मैथिलीक सुधी पाठक आ नव-पुरान गजलकार सभसँ अनुरोध करबनि जे कम-सँ-कम तीन बेर अवश्य पढि जाथि सरसजीक ‘थोडे आगि थोडे पानि’। नीक लगतनि।



तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों