प्रस्तुत अछि जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई आलोचना
अरविन्दजीक आजाद गजल
मैथिलीयोमे गजल पर खूब काज भेल अछि आ एखनो भ’ रहल अछि। गजेन्द्र ठाकुर गजलक व्याकरण विस्तार सँ प्रस्तुत केलनि आ अपनो बहुत गजल लिखलनि. आशीष अनचिन्हार मैथिली गजल ले’ स्वतंत्र साइट बनाक’ व्याकरण कें स्थापित करबामे अपनो योगदान करैत अपनो बहुत गजल लिखलनि आ आओर बहुत गोटे सँ गजल लिखबौलनि आ से काज एखनो क’ रहल छथि हिनका दूनू गोटेक अतिरिक्त आर बहुत गोटे मैथिली गजलकें समृद्ध करबामे योगदान क’ रहल छथि।ई प्रसन्नताक बात थिक। हमरा जनैत गजलकारक मुख्य तीनटा वर्ग अछि। एक वर्ग ओ अछि जाहिमे रचनाकार पहिने गजलक व्याकरण पढलनि आ तकरा बाद ओही अनुसारे गजल लिख’ लगलाह. दोसर वर्गमे ओ गजलकार सभ छथि जे पहिने गजल लिख’ लगलाह , बादमे गजलक व्याकरण दिस घ्यान गेलनि आ ओहि अनुसारे लिखबाक प्रयास कर’ लगलाह. तेसर वर्गमे ओ लोकनि छथि जे गजल सूनि क’, पढि क’ लीख’ लगलाह आ लीखैत चल गेलाह, पाछां उनटि क’ नहि तकलनि.ओ मात्रा अथवा वर्ण गनि क’ षेर लिखबाक-कहबाक चक्करमे नहि पडि अपन बातकें केंन्द्रमे राखि धडाधड लिखैत चल गेलाह आ लिखैत जा रहल छथि।
‘बहुरूपिया प्रदेशमे’ मात्र 24 दिनमे लीखल गेल 66टा गजलक संग्रह थीक जाहिमे गजलकार अरविन्द ठाकुरजीक कथन पर ध्यान देल जाए: ‘हम जे कहय चाहैत छी से महत्वपूर्ण छैक,ताहि लेल व्याकरण टूटय कि विधा विशेषक मापदंड,तकर हमरा परवाहि नहि अछि। ओकरा भल चाही त’हमर सहायक हुअए,बाधा ठाढ नहि करए ।’ गजलकारक एहि कथनकें ध्यानमे राखि जँ हिनक गजल पढब त नीक लागत। 66 टा गजलमे 10टा गजल एहेन अछि जाहिमे रदीफ अछि,काफिया नहि. 16 टा एहेन अछि जाहिमे काफिया अछि,रदीफ नहि. 40 टा गजलमे रदीफ आ काफिया दूनू अछि. किछुए गजल एहेन हएत जाहिमे बहरसँ सम्बन्धित दोष नहि हो.मुदा,बहुत रास शेर सभमे जे बात कहल गेल अछि से व्याकरणक त्रुटिकें झांपन देबामे बहुत समर्थ लगैत अछि.सभ गजलक अंतिम शेरमे गजलकारक नामक प्रयोगक प्राचीन परंपराक निर्वाह नीक जकाँ कएल गेल अछि जे बहुत गजलकार नहि क’ पबैत छथि. गजलकारक समक्ष सामाजिक,राजनीतिक आ सांस्कृतिक चेतनाक अवमूल्यनक विषाल क्षेत्रक अनुभवक संपदा छनि जे जहां-तहां विभिन्न गजलक विभिन्न शेर सभमे प्रगट भेल छनि।एकर बानगीक रूपमे प्रस्तुत अछि निम्नलिखित किछु शेर:
दूध लेल नेना आ रोगी हाकरोस करत
नै जखन गाममे मालक बथान रहत
एहि समाजक रूढि भेल अछि घोडनक ओछाओन सन
प्रेममे भीजल बतहबा ताहिपर ओंघरा रहल अछि
गाममे डिबिया जरल अछि रातिसं लडबाक लेल
मेट्रोपॉलिटन टाउनमे अछि राति दुपहरिया बनल
पात बिछैबाक बेर लोकक करमान छल
यार सभ अलोपित भेल ऐंठ उठेबाक बेर
रातिक जे एकबाल बढल
दुर्लभ सगर इजोरिया भेल
संसद केर फोटोमे किछुओ नहि हेर-फेर
सांपनाथ, नागनाथ,इएह दुनू बेर-बेर
कार खोजै छै एम्हर फूटपाथ पर सूतल षिकार
यम अबै छथि एहि नगर विभिन्न वाहन पर सवार
संसदमे घुसिआयल जे
सात जनम लेल केलक जोगार
गजलकारक भयंकर आत्मविष्वास एहि षेर सभमे देखू:
धन्य ‘अरबिन’तों एलह गजलक जगतमे
फेर केओ ‘खुसरो’की तोहर बाद हेताह
नै पाठक के चिन्ता अरबिन
नीक गजल के पढबे करतै
एहने आर बहुत रास नीक-नीक शेर वला गजल पढबाक लेल देखू श्री अरविन्द ठाकुरक रचल आ ‘नवारंभ’ द्वारा 2011 मे प्रकाशित आ बहुत सुंदर कागतपर ‘प्रोग्रेसिव प्रिंटर्स’, नई दिल्ली द्वारा बहुत सुंदर मुद्रित गजल संग्रह ‘बहुरूपिया प्रदेशमे’। अन्तमे हम गजलकारक उक्तिक उल्लेख कर’ चाहब: ‘.......हाथक जेना सभ बान्ह टूटि गेल । एहन धारा-प्रवाह जे गजलक मिसरा,शेर,रदीफ,काफिया,बहर,गिरह सभकें सम्हारब कठिन....’ भरिसक, इएह कारण थीक जे गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा हिनक गजल सभकें आजाद गजल कहल गेल अछि। हम एहि विचारसँ सहमत छी।
अरविन्दजीक आजाद गजल
मैथिलीयोमे गजल पर खूब काज भेल अछि आ एखनो भ’ रहल अछि। गजेन्द्र ठाकुर गजलक व्याकरण विस्तार सँ प्रस्तुत केलनि आ अपनो बहुत गजल लिखलनि. आशीष अनचिन्हार मैथिली गजल ले’ स्वतंत्र साइट बनाक’ व्याकरण कें स्थापित करबामे अपनो योगदान करैत अपनो बहुत गजल लिखलनि आ आओर बहुत गोटे सँ गजल लिखबौलनि आ से काज एखनो क’ रहल छथि हिनका दूनू गोटेक अतिरिक्त आर बहुत गोटे मैथिली गजलकें समृद्ध करबामे योगदान क’ रहल छथि।ई प्रसन्नताक बात थिक। हमरा जनैत गजलकारक मुख्य तीनटा वर्ग अछि। एक वर्ग ओ अछि जाहिमे रचनाकार पहिने गजलक व्याकरण पढलनि आ तकरा बाद ओही अनुसारे गजल लिख’ लगलाह. दोसर वर्गमे ओ गजलकार सभ छथि जे पहिने गजल लिख’ लगलाह , बादमे गजलक व्याकरण दिस घ्यान गेलनि आ ओहि अनुसारे लिखबाक प्रयास कर’ लगलाह. तेसर वर्गमे ओ लोकनि छथि जे गजल सूनि क’, पढि क’ लीख’ लगलाह आ लीखैत चल गेलाह, पाछां उनटि क’ नहि तकलनि.ओ मात्रा अथवा वर्ण गनि क’ षेर लिखबाक-कहबाक चक्करमे नहि पडि अपन बातकें केंन्द्रमे राखि धडाधड लिखैत चल गेलाह आ लिखैत जा रहल छथि।
‘बहुरूपिया प्रदेशमे’ मात्र 24 दिनमे लीखल गेल 66टा गजलक संग्रह थीक जाहिमे गजलकार अरविन्द ठाकुरजीक कथन पर ध्यान देल जाए: ‘हम जे कहय चाहैत छी से महत्वपूर्ण छैक,ताहि लेल व्याकरण टूटय कि विधा विशेषक मापदंड,तकर हमरा परवाहि नहि अछि। ओकरा भल चाही त’हमर सहायक हुअए,बाधा ठाढ नहि करए ।’ गजलकारक एहि कथनकें ध्यानमे राखि जँ हिनक गजल पढब त नीक लागत। 66 टा गजलमे 10टा गजल एहेन अछि जाहिमे रदीफ अछि,काफिया नहि. 16 टा एहेन अछि जाहिमे काफिया अछि,रदीफ नहि. 40 टा गजलमे रदीफ आ काफिया दूनू अछि. किछुए गजल एहेन हएत जाहिमे बहरसँ सम्बन्धित दोष नहि हो.मुदा,बहुत रास शेर सभमे जे बात कहल गेल अछि से व्याकरणक त्रुटिकें झांपन देबामे बहुत समर्थ लगैत अछि.सभ गजलक अंतिम शेरमे गजलकारक नामक प्रयोगक प्राचीन परंपराक निर्वाह नीक जकाँ कएल गेल अछि जे बहुत गजलकार नहि क’ पबैत छथि. गजलकारक समक्ष सामाजिक,राजनीतिक आ सांस्कृतिक चेतनाक अवमूल्यनक विषाल क्षेत्रक अनुभवक संपदा छनि जे जहां-तहां विभिन्न गजलक विभिन्न शेर सभमे प्रगट भेल छनि।एकर बानगीक रूपमे प्रस्तुत अछि निम्नलिखित किछु शेर:
दूध लेल नेना आ रोगी हाकरोस करत
नै जखन गाममे मालक बथान रहत
एहि समाजक रूढि भेल अछि घोडनक ओछाओन सन
प्रेममे भीजल बतहबा ताहिपर ओंघरा रहल अछि
गाममे डिबिया जरल अछि रातिसं लडबाक लेल
मेट्रोपॉलिटन टाउनमे अछि राति दुपहरिया बनल
पात बिछैबाक बेर लोकक करमान छल
यार सभ अलोपित भेल ऐंठ उठेबाक बेर
रातिक जे एकबाल बढल
दुर्लभ सगर इजोरिया भेल
संसद केर फोटोमे किछुओ नहि हेर-फेर
सांपनाथ, नागनाथ,इएह दुनू बेर-बेर
कार खोजै छै एम्हर फूटपाथ पर सूतल षिकार
यम अबै छथि एहि नगर विभिन्न वाहन पर सवार
संसदमे घुसिआयल जे
सात जनम लेल केलक जोगार
गजलकारक भयंकर आत्मविष्वास एहि षेर सभमे देखू:
धन्य ‘अरबिन’तों एलह गजलक जगतमे
फेर केओ ‘खुसरो’की तोहर बाद हेताह
नै पाठक के चिन्ता अरबिन
नीक गजल के पढबे करतै
एहने आर बहुत रास नीक-नीक शेर वला गजल पढबाक लेल देखू श्री अरविन्द ठाकुरक रचल आ ‘नवारंभ’ द्वारा 2011 मे प्रकाशित आ बहुत सुंदर कागतपर ‘प्रोग्रेसिव प्रिंटर्स’, नई दिल्ली द्वारा बहुत सुंदर मुद्रित गजल संग्रह ‘बहुरूपिया प्रदेशमे’। अन्तमे हम गजलकारक उक्तिक उल्लेख कर’ चाहब: ‘.......हाथक जेना सभ बान्ह टूटि गेल । एहन धारा-प्रवाह जे गजलक मिसरा,शेर,रदीफ,काफिया,बहर,गिरह सभकें सम्हारब कठिन....’ भरिसक, इएह कारण थीक जे गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा हिनक गजल सभकें आजाद गजल कहल गेल अछि। हम एहि विचारसँ सहमत छी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें