गजल-1.72
अहाँ आबि कऽ ने एलौं हमर आँगन
अहाँ घूरि कऽ ने गेलौं हमर आँगन
झरकि गेल कदीमा जरि गेल सजमनि
वियोगेक विहनि देलौं हमर आँगन
कहै छै जे जरि गेलै जातिक कनोजरि
मुदा फेर तँ ने खेलौं हमर आँगन
बिखिन-बिखिन कते देतै गारि जनता
जँ ने जीत कऽ बौएलौं हमर आँगन
फरकि रहल हमर वायाँ आँखि, शाइत
नजरि-गुजरि लगा देलौं हमर आँगन
खसल मोन भठल अछि आ नठल दुनियाँ
"अमित" चिन्ह तऽ ने पेलौं हमर आँगन
1221-1222-2122
अमित मिश्र
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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
गजल
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amit mishra
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