प्रस्तुत अछि जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई आलोचना
प्रतिबद्ध साहित्यकारक अप्रतिबद्ध गजल
‘थोडे आगि थोडे पानि’2008 मे प्रकाशित प्रसिद्ध गीतकार भाइ सियाराम झा ‘सरस’क 80 टा गजल संकलन थीक।सरसजी गजलक पोथीक भूमिकामे कविता,कथा,निबन्ध आदि विधामे आबि रहल रचना सभक स्तरपर सवाल उठौलनि अछि। लेखक,कवि,नाटककार कें की की पढबाक चाही,से सलाह देल गेल अछि.लेखक लोकनिमे प्रतिबद्धताक अभाव पर आक्रोश व्यक्त कएल गेल अछि।
अपन समाज,अपन भाषाक प्रति अपन लेखकीय प्रतिबद्धताक वर्णन सरसजी जाहि तरहें केलनि अछि से बेर-बेर पढबाक आ मोनहि मोन हुनक चरण स्पर्श करबाक लेल बाध्य क’ देत।
मुदा जँ अहाँ ताकब जे गजलकारकें की की पढबाक अथवा कथीक अभ्यास करबाक चाही से एहिमे नहि भेटत। गजलकार स्वयं गजलक सम्बन्धमे की-की पढने छथि तकर उल्लेख नहि कएल गेल अछि। गजलक व्याकरणक कतहु चर्च नहि अछि.गजलकारकें मोन पडैत छनि दक्षिण अफ्रीकाक कवि मोलाइशक क्रान्तिगीत आ फिलीस्तीनी कविक कविता,कोनो शायरक कोनो महत्वपूर्ण शेरक उल्लेख नहि केलनि अछि। एहिसँ गजल लेखनक लेल आवश्यक प्रतिबद्धताक आभास नहि होइत अछि।
पोथीक 80 टा गजलमे 62 टा गजलमे रदीफ आ काफियाक प्रयोग कएल गेल अछि जाहिमे 5 टा गजलमे रदीफ अथवा काफिया अथवा दूनूक निर्वाह सभ शेरमे नहि भ’ सकल अछि।16 टा गजलमे काफिया अछि, रदीफ नहि। 2टामे रदीफ अछि,काफिया नहि। अहूमे एकटामे सभ शेरमे रदीफक निर्वाह नहि भ’ सकल अछि। कोनो गजल एहन नहि अछि जकर सभ शेरमे वर्ण अथवा मात्राक एकरूपता हो।तें बहरमे त्रुटि साफ दृष्टिगोचर होइत अछि। एहि दिस गजलकारक ध्यान किएक नहि गेलनि से नहि जानि। सरसजीसँ लोककें बहुत अपेक्षा रहैत छैक, मुदा एहि सम्बन्धमे हुनक कोनहु स्पष्टीकरण सेहो कतहु नहि अछि। आशा अछि गजलकारक अगिला गजल-संग्रहमे आवश्यक औपचारिकताक निर्वाह होयत। ई पढि क’ नीक लगैत अछि जे ‘.....धीरू भाइ तं एते धरि कहने रहथि जे खैयाम कें मैथिलीमे सुनबाक हो तं सरस कें सूनल जा सकैछ...’ तें सरसजीसँ अपेक्षा आर बढि जाइत अछि।
सरसजी कहैत छथि,‘एहि संकलनक गजल सभ तं सहजहिं अपन लोकवेदक,माटि-पानिक,भाशा-साहित्यक आ संस्कार-संस्कृतिक प्रतिबिम्ब तं थिके,संगहि अनेक ठाम अनेक तरहें तकरा नब सं परिभाषित आ व्याख्यायित सेहो करैछ । नब-नब संस्कारक स्थापना सेहो करैछ ।.......’ सरसजीक उक्तिकें तकैत विभिन्न गजलक एहि शेर सभ पर विचार करू-
जै पाइने पैनछूआ कैरतै ने लोक, छीः छीः छीः
सेहो पाइन घटर-घटर घटघटा रहल,ई मैथिल छौ
जौं-जौं अहंक खसैए पिपनी,धप-धप तेना खसै छी हम
रसे-रसे उठबी तं सरिपहुं, होइए देव-उठान हमर
थप्पा समधिन देल समधि केर अंगा मे
उजरो मोंछ पिजाएल,फागुनक दिन आयल
अइ समुद्रक किन्हेरमे बड चक्रवातक जोर रहलै
बालु पर तैयो अपन हम नाम तकने जा रहल छी
बिज्झो कराओल बैसले रहि गेल नोथारी
गलियाक’ कियो खाइत आ उगलि रहल छलै
हम मरब,बेटा लडत,बेटा मरत-पोता लडत
कटब-काटब,जे बुझी-सदभावना-दुर्भावना
हवा-पानिक बिना एमहर भेलैए दूभि सब पीयर
ओम्हर बोडामे कसि-कसि,स्विस खातामे ढुकाबै छै
व्याकरण पक्षकें जँ उपेक्षित क’ देल जाए तँ कएटा गजलमे किछु शेर महत्वपूर्ण अछि जे पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत अछि किछु शेर जे पढबामे नीक नहि लगैत अछि, भ’ सकैए जे हुनका स्वरमे सुनबामे नीक लागय. मैथिली गजलक भण्डारकें भरबामे सरसजीक योगदानकें महत्वपूर्ण मानैत हम गीतकार सरसजीक प्रशंसक, मैथिलीक सुधी पाठक आ नव-पुरान गजलकार सभसँ अनुरोध करबनि जे कम-सँ-कम तीन बेर अवश्य पढि जाथि सरसजीक ‘थोडे आगि थोडे पानि’। नीक लगतनि।
प्रतिबद्ध साहित्यकारक अप्रतिबद्ध गजल
‘थोडे आगि थोडे पानि’2008 मे प्रकाशित प्रसिद्ध गीतकार भाइ सियाराम झा ‘सरस’क 80 टा गजल संकलन थीक।सरसजी गजलक पोथीक भूमिकामे कविता,कथा,निबन्ध आदि विधामे आबि रहल रचना सभक स्तरपर सवाल उठौलनि अछि। लेखक,कवि,नाटककार कें की की पढबाक चाही,से सलाह देल गेल अछि.लेखक लोकनिमे प्रतिबद्धताक अभाव पर आक्रोश व्यक्त कएल गेल अछि।
अपन समाज,अपन भाषाक प्रति अपन लेखकीय प्रतिबद्धताक वर्णन सरसजी जाहि तरहें केलनि अछि से बेर-बेर पढबाक आ मोनहि मोन हुनक चरण स्पर्श करबाक लेल बाध्य क’ देत।
मुदा जँ अहाँ ताकब जे गजलकारकें की की पढबाक अथवा कथीक अभ्यास करबाक चाही से एहिमे नहि भेटत। गजलकार स्वयं गजलक सम्बन्धमे की-की पढने छथि तकर उल्लेख नहि कएल गेल अछि। गजलक व्याकरणक कतहु चर्च नहि अछि.गजलकारकें मोन पडैत छनि दक्षिण अफ्रीकाक कवि मोलाइशक क्रान्तिगीत आ फिलीस्तीनी कविक कविता,कोनो शायरक कोनो महत्वपूर्ण शेरक उल्लेख नहि केलनि अछि। एहिसँ गजल लेखनक लेल आवश्यक प्रतिबद्धताक आभास नहि होइत अछि।
पोथीक 80 टा गजलमे 62 टा गजलमे रदीफ आ काफियाक प्रयोग कएल गेल अछि जाहिमे 5 टा गजलमे रदीफ अथवा काफिया अथवा दूनूक निर्वाह सभ शेरमे नहि भ’ सकल अछि।16 टा गजलमे काफिया अछि, रदीफ नहि। 2टामे रदीफ अछि,काफिया नहि। अहूमे एकटामे सभ शेरमे रदीफक निर्वाह नहि भ’ सकल अछि। कोनो गजल एहन नहि अछि जकर सभ शेरमे वर्ण अथवा मात्राक एकरूपता हो।तें बहरमे त्रुटि साफ दृष्टिगोचर होइत अछि। एहि दिस गजलकारक ध्यान किएक नहि गेलनि से नहि जानि। सरसजीसँ लोककें बहुत अपेक्षा रहैत छैक, मुदा एहि सम्बन्धमे हुनक कोनहु स्पष्टीकरण सेहो कतहु नहि अछि। आशा अछि गजलकारक अगिला गजल-संग्रहमे आवश्यक औपचारिकताक निर्वाह होयत। ई पढि क’ नीक लगैत अछि जे ‘.....धीरू भाइ तं एते धरि कहने रहथि जे खैयाम कें मैथिलीमे सुनबाक हो तं सरस कें सूनल जा सकैछ...’ तें सरसजीसँ अपेक्षा आर बढि जाइत अछि।
सरसजी कहैत छथि,‘एहि संकलनक गजल सभ तं सहजहिं अपन लोकवेदक,माटि-पानिक,भाशा-साहित्यक आ संस्कार-संस्कृतिक प्रतिबिम्ब तं थिके,संगहि अनेक ठाम अनेक तरहें तकरा नब सं परिभाषित आ व्याख्यायित सेहो करैछ । नब-नब संस्कारक स्थापना सेहो करैछ ।.......’ सरसजीक उक्तिकें तकैत विभिन्न गजलक एहि शेर सभ पर विचार करू-
जै पाइने पैनछूआ कैरतै ने लोक, छीः छीः छीः
सेहो पाइन घटर-घटर घटघटा रहल,ई मैथिल छौ
जौं-जौं अहंक खसैए पिपनी,धप-धप तेना खसै छी हम
रसे-रसे उठबी तं सरिपहुं, होइए देव-उठान हमर
थप्पा समधिन देल समधि केर अंगा मे
उजरो मोंछ पिजाएल,फागुनक दिन आयल
अइ समुद्रक किन्हेरमे बड चक्रवातक जोर रहलै
बालु पर तैयो अपन हम नाम तकने जा रहल छी
बिज्झो कराओल बैसले रहि गेल नोथारी
गलियाक’ कियो खाइत आ उगलि रहल छलै
हम मरब,बेटा लडत,बेटा मरत-पोता लडत
कटब-काटब,जे बुझी-सदभावना-दुर्भावना
हवा-पानिक बिना एमहर भेलैए दूभि सब पीयर
ओम्हर बोडामे कसि-कसि,स्विस खातामे ढुकाबै छै
व्याकरण पक्षकें जँ उपेक्षित क’ देल जाए तँ कएटा गजलमे किछु शेर महत्वपूर्ण अछि जे पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत अछि किछु शेर जे पढबामे नीक नहि लगैत अछि, भ’ सकैए जे हुनका स्वरमे सुनबामे नीक लागय. मैथिली गजलक भण्डारकें भरबामे सरसजीक योगदानकें महत्वपूर्ण मानैत हम गीतकार सरसजीक प्रशंसक, मैथिलीक सुधी पाठक आ नव-पुरान गजलकार सभसँ अनुरोध करबनि जे कम-सँ-कम तीन बेर अवश्य पढि जाथि सरसजीक ‘थोडे आगि थोडे पानि’। नीक लगतनि।
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