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शनिवार, 30 अप्रैल 2011
रुबाइ
ओ मोन पड़ै छथि तँ निन्न ने अबैए
देह होइए सुन्न नीको ने लगैए
चाहै छी हम जे ओ हमरे लग रहथि
ओ तँ ओ हुनक इयादो ने अबैए
रुबाइ
खाड़ भए सपना नै देखबाक चाही
सुरज से आँखि नै मिलबाक चाही
टूटय ये भरम तs बड़ दरद होए ये
अहाँक एही बात बुझबाक चाही
सुरज से आँखि नै मिलबाक चाही
टूटय ये भरम तs बड़ दरद होए ये
अहाँक एही बात बुझबाक चाही
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
जखनो कियो एही काम करय छैक
बेटाक बजार में नीलाम करय छैक
कोनाक मारय ये आँखिक पानि
जखन ओ ई गन्दा काम करय छैक
बेटाक बजार में नीलाम करय छैक
कोनाक मारय ये आँखिक पानि
जखन ओ ई गन्दा काम करय छैक
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
गजल पुरस्कारक योजना
हमरा इ सूचित करैत अपार हर्ख भए रहल अछि जे मैथिलीक एक मात्र गजलक ब्लाग " अनचिन्हार आखर" नव शाइर के प्रोत्साहित आ पुरान शाइरक निन्न तोड़बाक लेल एकटा तुच्छ मुदा भावना सँ ओत-प्रोत पुरस्कार अहाँ लोकनिक माँझ लाबि रहल अछि जकर नाम "गजल कमला-कोशी-बागमती-महानंदा" रखबाक नेआर अछि।
इ पुरस्कार दू चरण मे पूरा कएल जाएत जकर विवरण एना अछि--------
पहिल चरण-----------हरेक मास मे प्रकाशित गजल, रुबाइ, कता, फर्द, समीक्षा, आलोचना, समालोचना, इतिहास ( गजल, रुबाइ, कता, फर्द आदिक) मे सँ एकटा रचना चूनल जाएत जे सालक बारहो मास चलत (साल मने १ जनवरी सँ ३१ दिसम्बर) ।
एहि तरहें चयन कर्ता लग अंतिम रूप सँ बारह रचना प्राप्त हेतन्हि।
दोसर चरण------ चयनकर्ता अंतिम रुप सँ मे प्राप्त रचना के ओकर भाव, व्याकरण आदिक आधार पर एकटा रचना चुनताह, जे अंतिम रुप सँ मान्य हएत आ ओकरे इ पुरस्कार देल जाएत।
रचना चुनबाक नियम-------------
१) रचना अनिवार्य रुपें "अनचिन्हार आखर" पर प्रकाशित होएबाक चाही। जँ कोनो रचनाकारक रचना अन्य द्वारा प्रस्तुत कएल गेल छैक सेहो मान्य हएत।
२) रचना मौलिक होएबाक चाही। जँ कोनो रचनाक अमौलिकता पुरस्कार प्राप्त भेलाक बाद प्रमाणित हएत तँ रचनाकार सँ अबिलंब पुरस्कार आपस लए लेल जाएत आ भविष्य मे एहन घटना के रोकबाक लेल " अनचिन्हार आखर" कानूनी कारवाइ सेहो कए सकैत अछि।
३) रचना चयन प्रकिया के चुनौती नहि देल जा सकैए।
४) एहन रचनाकार जे मैथिलीक रचना के अन्य भाषाक संग घोर-मठ्ठा कए लिखैत छथि से एहि पुरस्कारक लेल सवर्था अयोग्य छथि, हँ ओहन रचनाकार जे मैथिली आ अन्य भाषा मे फराक-फराक लिखैत छथि तिनकर रचना के पुरस्कार देल जा सकैए, बशर्ते कि ओ अन्य पात्रता रखैत होथि।
५) पहिल चरणक प्रकिया हरेक मासक ५ सँ १० तारीखके बीच आ दोसर चरण हरेक तिला-संक्रान्ति के पूरा कएल जाएत।
६) एहि पुरस्कारक चयन पूर्णतः आन-लाइन होएत ।
७) रचनाकार कोनो देशक नागरिक भए सकैत छथि।
८) " अनचिन्हार आखर"क संस्थापक एहि पुरस्कार मे भाग नहि लए सकैत छथि।
९) पुरस्कार राशिक घोषणा बाद मे कएल जाएत।
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रुबाइ
दिल के आगि के बुझायब कोना
आँखिक पानि से मिझायब कोना
मुखड़ा ये चाँद सन कहैत रहे ओ
चाँदौ में दाग अछि बतायब कोना
आँखिक पानि से मिझायब कोना
मुखड़ा ये चाँद सन कहैत रहे ओ
चाँदौ में दाग अछि बतायब कोना
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
हुनका सँ दूर करबा पर बिर्त लोक
अकास मे भूर करबा पर बिर्त लोक
हमही मरब हुनकर प्रेम मे या तँ
अपटी खेत मे मरबा पर बिर्त लोक
रुबाइ
शहर केर छोड़ी दिल देलक में चोट
अन्हरा बुझि के देखाs गेल कोर्ट
फसल रही पिआर में माँछ जेना जाल
भागि गेल सबटा समेटी के नोट
अन्हरा बुझि के देखाs गेल कोर्ट
फसल रही पिआर में माँछ जेना जाल
भागि गेल सबटा समेटी के नोट
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
शहर केर छोड़ी दिल देलक में चोट
अन्हरा बुझि के देखाs गेल कोर्ट
फसल रही पिआर में माँछ जेना जाल
भागि गेल सबटा समेटी के नोट
अन्हरा बुझि के देखाs गेल कोर्ट
फसल रही पिआर में माँछ जेना जाल
भागि गेल सबटा समेटी के नोट
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
एक तs अहाँक रंग इजोतो मs चमकै ये
दोसर अहाँक रूप अन्हारो मs दमकै ये
नै करू एतेक नीक साज आs श्रृंगार
देखि के अहाँक मोन हमर भटकै ये
दोसर अहाँक रूप अन्हारो मs दमकै ये
नै करू एतेक नीक साज आs श्रृंगार
देखि के अहाँक मोन हमर भटकै ये
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
गजल
अहाँक मोमक करेज ये बचाए कए राखु
हमर दिल में बड़ आगि ये बचाए कए राखु
चाँदौ के माति दए ये अहाँक एही रूप
करिया ठोप लगाए कए राखु
अन्हारो में चमकै ये भेपर जोंका
रूपक लाइट मिझाए कए राखु
आँखिक दुधारी मारैत ये जान
हमरा नजैर से बचाए कए राखु
आतुर ये 'सुनील' अहाँक प्रतीक्षा में
कनिकटा समय तेs बचाए कए राखु
हमर दिल में बड़ आगि ये बचाए कए राखु
चाँदौ के माति दए ये अहाँक एही रूप
करिया ठोप लगाए कए राखु
अन्हारो में चमकै ये भेपर जोंका
रूपक लाइट मिझाए कए राखु
आँखिक दुधारी मारैत ये जान
हमरा नजैर से बचाए कए राखु
आतुर ये 'सुनील' अहाँक प्रतीक्षा में
कनिकटा समय तेs बचाए कए राखु
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
सुनील कुमार झा
गजल
मोन मुंगबा फुटईया मीत हमर ,
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर !
सा- स्नेह
विकाश झा
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर !
सा- स्नेह
विकाश झा
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
विकाश झा "रंजन "
गजल
मोन मुंगबा फुटईया मीत हमर ,
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर !
सा- स्नेह
विकाश झा
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर !
सा- स्नेह
विकाश झा
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
विकाश झा "रंजन "
गजल
ककरा से कहब दुःख कहलेs नै जाय ये
मोने-मोन मरय छि कहलेs नै जाय ये
जूआन भेल बेटी गरीबक कपाड़ पे
दहेजक माँग ते कहलेs नै जाय ये
बेटीक बियाह में बिकल अंगा-नुआ
लड़का के सूट ते कहलेs नै जाय ये
झोपड़ी हमर बेची बनेलक ओ महल
अटारी के शान ते कहलेs नै जाय ये
बेचलों घोर-दालान, खेत आ पथारी
दहेज़क मुंह ते कहलेs नै जाय ये
तइयो जड़ल बेटी दहेजक आगि में
करेजक दरद ते कहलेs नै जाय ये
मोने-मोन मरय छि कहलेs नै जाय ये
जूआन भेल बेटी गरीबक कपाड़ पे
दहेजक माँग ते कहलेs नै जाय ये
बेटीक बियाह में बिकल अंगा-नुआ
लड़का के सूट ते कहलेs नै जाय ये
झोपड़ी हमर बेची बनेलक ओ महल
अटारी के शान ते कहलेs नै जाय ये
बेचलों घोर-दालान, खेत आ पथारी
दहेज़क मुंह ते कहलेs नै जाय ये
तइयो जड़ल बेटी दहेजक आगि में
करेजक दरद ते कहलेs नै जाय ये
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
एकटा हाथ बढ़लै हमरा दिस
एकटा डेग उठलै हमरा दिस
एतेक बड़का गप्प कोना कहू
एकटा नजरि उठलै हमरा दिस
रुबाइ
रस्ते में भक्क से भेंटाs गेल ओ
अन्हारे में चक्क से देखाs गेल ओ
कोनाक रोकने रहि आँखिक नोर
अन्झक्के में हमरा कनाs गेल ओ
अन्हारे में चक्क से देखाs गेल ओ
कोनाक रोकने रहि आँखिक नोर
अन्झक्के में हमरा कनाs गेल ओ
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
रुबाइ
रूपक रौद सँ जौबन पघलि जाएत
अहाँक श्वास सँ बसातो गमकि जाएत
अहाँक चलब करबैए मारि सगरो
ठमकब तँ मोन कने सम्हरि जाएत
रुबाइ
कतेक रास-बात हम हुनका बतेलों
कतेक सब्ज-बाग़ हम हुनका देखेलों
तब जाए के मानल ओ छौड़ी अभगली
कतरि के झाड़ि पे जे हुनका चढेलों
कतेक सब्ज-बाग़ हम हुनका देखेलों
तब जाए के मानल ओ छौड़ी अभगली
कतरि के झाड़ि पे जे हुनका चढेलों
खोजबीनक कूट-शब्द:
रुबाइ,
सुनील कुमार झा
मंगलवार, 26 अप्रैल 2011
रुबाइ
जहिआ हमर पिआर के जानब अहाँ
तहिआ ओकर तागति मानब अहाँ
आइ भने बिता लेब राति सूति कए
काल्हि सँ आँगुर पर दिन गानब अहाँ
सोमवार, 25 अप्रैल 2011
गजल (बहरे मुतकारिब)
उचरि नव रूप अपन लिखैब तखन किने
उतर दछिन डगहर बहैब तखन किने
कनकन करत बनत सदिखन तलिया यौ
सुअद पैब जौँ अहँ झखैब तखन किने
मनक भूख असगर नुकैब बुझल अछि
अपन बोल-वाणी घुरैब तखन किने
खधाइ गढ़ अछि भरल सभतरि दहारे
जलक धार बिच घर भरैब तखन किने
निमहतासँ निभता निभैब सिखल नहि
नव युग कनिक उगल बुझैब तखन किने
पड़ाइनपर कनैत अछि भाग जँ कतौ
गजेन्द्र मन बूझै हियैब तखन किने
बहरे मुतकारिब मुतकारिब आठ–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – चारि बेर
बहर आ छन्दक मिलानी
गजल कोनो ने कोनो बहर (छन्द) मे हेबाक चाही। वार्णिक छन्दमे सेहो ह्रस्व आ दीर्घक विचार राखल जा सकैत अछि, कारण वैदिक वर्णवृत्तमे बादमे वार्णिक छन्दमे ई विचार शुरू भऽ गेल छल:- जेना
तकैत रहैत छी ऐ मेघ दिस
तकैत (ह्रस्व+दीर्घ+दीर्घ)- वर्णक संख्या-तीन
रहैत (ह्रस्व+दीर्घ+ह्रस्व)- वर्णक संख्या-तीन
छी (दीर्घ) वर्णक संख्या-एक
ऐ (दीर्घ) वर्णक संख्या-एक
मेघ (दीर्घ+ह्रस्व) वर्णक संख्या-दू
दिस (ह्रस्व+ह्रस्व) वर्णक संख्या-दू
मात्रिक छन्दमे द्विकल, त्रिकल, चतुष्कल, पञ्चकल आ षटकल अन्तर्गत एक वर्ण (एकटा दीर्घ) सँ छह वर्ण (छहटा ह्रस्व) धरि भऽ सकैए।
द्विकलमे- कुल मात्रा दू हएत, से एकटा दीर्घ वा दूटा ह्रस्व हएत।
त्रिकलमे कुल मात्रा तीन हएत- ह्रस्व+दीर्घ, दीर्घ+ह्रस्व आ ह्रस्व+ह्रस्व+ह्रस्व; ऐ तीन क्रममे।
चतुष्कलमे कुल मात्रा चारि; पञ्चकलमे पाँच; षटकलमे छह मात्रा हएत।
वार्णिक छन्द तीन-तीन वर्णक आठ प्रकारक होइत अछि जे “यमाताराजसलगम्” सूत्रसँ मोन राखि सकै छी।
आब कतेक पाद आ कतऽ काफिया (यति,अन्त्यानुप्रास) देबाक अछि; कोन तरहेँ क्रम बनेबाक अछि से अहाँ स्वयं वार्णिक/ मात्रिक आधारपर कऽ सकै छी, आ विविधता आनि सकै छी।
वर्ण छन्दमे तीन-तीन अक्षरक समूहकेँ एक गण कहल जाइत अछि। ई आठ टा अछि-
यगण U।।
रगण ।U।
तगण ।। U
भगण । U U
जगण U। U
सगण U U ।
मगण ।।।
नगण U U U
एहि आठक अतिरिक्त दूटा आर गण अछि- ग / ल
ग- गण एकल दीर्घ ।
ल- गण एकल ह्रस्व U
एक सूत्र- आठो गणकेँ मोन रखबा लेल:-
यमाताराजभानसलगम्
आब एहि सूत्रकेँ तोड़ू-
यमाता U।। = यगण
मातारा ।।। = मगण
ताराज ।। U = तगण
राजभा ।U। = रगण
जभान U। U = जगण
भानस । U U = भगण
नसल U U U = नगण
सलगम् U U । = सगण
तेरह टा स्वर वर्णमे अ,इ,उ,ऋ,लृ - ह्र्स्व आर आ,ई,ऊ,ऋ,ए.ऐ,ओ,औ- दीर्घ स्वर अछि।
ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ ‘गुणिताक्षर’ बनैत अछि।
क्+अ= क,
क्+आ=का ।
एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक ‘अक्षर’ कहल जाइत अछि। कोनो व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना ‘अवाक्’ शब्दमे दू टा अक्षर अछि, अ, वा ।
१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर ‘लघु’ मानल जाइत अछि। एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।
२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर ‘गुरु’ मानल जाइत अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।
३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।
४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।
ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ ‘गुणिताक्षर’ बनैत अछि।
क्+अ= क,
क्+आ=का ।
एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक ‘अक्षर’ कहल जाइत अछि। कोनो व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना ‘अवाक्’ शब्दमे दू टा अक्षर अछि, अ, वा ।
१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर ‘लघु’ मानल जाइत अछि। एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।
२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर ‘गुरु’ मानल जाइत अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।
३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।
४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।
जेना कहल गेल अछि जे अनुस्वार आ विसर्गयुक्त भेलासँ दीर्घ होएत तहिना आब कहल जा रहल अछि जे चन्द्रबिन्दु आ ह्रस्वक मेल ह्रस्व होएत।
माने चन्द्रबिन्दु+ह्रस्व स्वर= एक मात्रा
संयुक्ताक्षर: एतए मात्रा गानल जाएत एहि तरहेँ:-
क्ति= क् + त् + इ = ०+०+१= १
क्ती= क् + त् + ई = ०+०+२= २
क्ष= क् + ष= ०+१
त्र= त् + र= ०+१
ज्ञ= ज् + ञ= ०+१
श्र= श् + र= ०+१
स्र= स् +र= ०+१
शृ =श् +ऋ= ०+१
त्व= त् +व= ०+१
त्त्व= त् + त् + व= ० + ० + १
ह्रस्व + ऽ = १ + ०
अ वा दीर्घक बाद बिकारीक प्रयोग नहि होइत अछि जेना दिअऽ आऽ ओऽ (दोषपूर्ण प्रयोग)। हँ व्यंजन+अ गुणिताक्षरक बाद बिकारी दऽ सकै छी।
ह्रस्व + चन्द्रबिन्दु= १+०
दीर्घ+ चन्द्रबिन्दु= २+०
जेना हँसल= १+१+१
साँस= २+१
बिकारी आ चन्द्रबिन्दुक गणना शून्य होएत।
जा कऽ = २+१
क् =०
क= क् +अ= ०+१
किएक तँ क केँ क् पढ़बाक प्रवृत्ति मैथिलीमे आबि गेल तेँ बिकारी देबाक आवश्यकता पड़ल, दीर्घ स्वरमे एहन आवश्यकता नहि अछि।
U- ह्रस्वक चेन्ह
।- दीर्घक चेन्ह
एक दीर्घ । =दूटा ह्रस्व U
हाइकूसँ विपरीत रुबाइमे वार्णिक नै मात्रिक गणना होएत (गजलमे मुदा दुनू विकल्प उपलब्ध छै): 20 वा 21 मात्रा सभ पाँतीमे हेबाक चाही आ गणना होएत- देखलों जे अहाँ के रूप गोरी(2+1+2/ 2/ 1+2/ 2/ 2+1/ 2+2= 19 एतए 2 मात्रा पहिल पाँती मे कम अछि. संगे पहिल शब्द दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ सँ वा २.दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व सँ शुरू हेबाक चाही, सभ पाँती मे- अलग-अलग क्रम भ' सकैए मुदा 21 मात्रा आ प्रारम्भ दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ सँ वा २.दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व सँ हेबाक चाही...
मुदा हाइकू लेल बिना कम्प्लेक्सिटीबला वार्णिक छन्दक मैथिलीमे प्रयोग करू जेना अहाँ क' रहल छी..
वार्णिक दृष्टिसँ गणना आ मात्रिक दृष्टिसँ गणना: तकैत= 1+2+1 ( एतए तीनटा वर्ण अछि त, कै, त जतए पहिल ह्रस्व , दोसर दीर्घ आ तेसर ह्रस्व अछि).. ई भेल वार्णिक दृष्टिसँ, मात्रिक दृष्टिसँ मुदा तकैत= ह्रस्व+दीर्घ+ह्रस्व= 4 मात्राक वर्ण ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्वक क्रममे...
हैकू १७ अक्षरमे लिखू, आ ई तीन पंक्त्तिमे लिखल जाइत अछि- ५ ७ आ ५ केर क्रममे। अक्षर गणना वार्णिक छन्दमे जेना कएल जाइत अछि तहिना करू।
वार्णिक छन्दक परिचय लिअ। एहिमे अक्षर गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ नहि गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि।द्विमानक कोनो अक्षर नहि होइछ।मुख्य तीनटा बिन्दु यादि राखू-
1.हलंतयुक्त्त अक्षर-0
2.संयुक्त अक्षर-1
3.अक्षर अ सँ ह -1 प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=1+5+2+2+3+3+3+1=20 मात्रा
आब दोसर उदाहरण देखू
पश्चात्=2 मात्रा
आब तेसर उदाहरण देखू
आब=2 मात्रा
आब चारिम उदाहरण देखू
स्क्रिप्ट=2 मात्रा
मुख्य वैदिक छन्द सात अछि-गायत्री,उष्णिक् ,अनुष्टुप् ,बृहती,पङ् क्त्ति,त्रिष्टुप् आ जगती। शेष ओकर भेद अछि अतिछन्द आ विच्छन्द। छन्दकेँ अक्षरसँ चिन्हल जाइत अछि। यदि अक्षर पूरा नहि भेलतँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादमे बढ़ा लेल जाइत अछि।य आ
व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कय अलग केल जाइत अछि।जेना-
वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः
गुण आ वृद्धिकेँ अलग कयकेँ सेहो अक्षर पूर कय सकैत छी।
ए= अ + इ
ओ= अ + उ
ऐ= अ/आ + ए
औ= अ/आ + ओ
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
गजेन्द्र ठाकुर
रुबाइ
सपना जखन केकरो टूटि जाइत छैक
मोनक बात मोने मे रहि जाइत छैक
विश्वास सँ बड़का धोखा कोनो ने
टूटल करेज इ बात कहि जाइत छैक
रविवार, 24 अप्रैल 2011
रुबाइ
हुनका देखने उमकैए मोन हमर
संग मे रहने रभसैए मोन हमर
ओ जखन अबै छथि हमरा सोझाँ मे
सभटा झंझटि बिसरैए मोन हमर
शनिवार, 23 अप्रैल 2011
रुबाइ
माटि मे पानि मे आगि आ बसात मे
दिन मे राति मे साँझ आ परात मे
देखाइ छी अहीं खाली चारु दिस
केहन तागति अछि अहाँक इयाद मे
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
रुबाइ
कहब कतेक बात अहाँ सँ हम सजनी
चलब कने दूर अहाँ संग हम सजनी
जँ पकड़बै अपन हाथ सँ हाथ हमर
जीबैत रहब बहुत दिन धरि हम सजनी
गुरुवार, 21 अप्रैल 2011
रुबाइ
बहुत बात रहि गेल घोलफच्चका मे
साँप-मगरमच्छ घूमि रहल चभच्चा मे
अहिंसा होइए सभ सँ नीक बुझलहुँ
राम-रज्यक कल्पना उठैए लुच्चा मे
बुधवार, 20 अप्रैल 2011
रुबाइ
देखलों जे अहाँ के रूप गोरी
मोन में उठैत ये हूक गोरी
शब्द नै बचल ये कहबाक लेल
भए गेलों ये हम मूक गोरी
मोन में उठैत ये हूक गोरी
शब्द नै बचल ये कहबाक लेल
भए गेलों ये हम मूक गोरी
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रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
देह मोन एकै मिलन के बेर मे
रूप-रंग एकै मिलन के बेर मे
अहाँ भने चल जाउ दूर हमरा सँ
प्रेमक दर्द एकै मिलन के बेर मे
मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
रुबाइ
देखलों जे अहाँक रूप चंद्रा चकोर
अन्हरियो में लागेत जेना इजोर
कतेक काल से रही दिनक इंतज़ार में
घुंघटा से उठेलो ते भए गेल भोर
अन्हरियो में लागेत जेना इजोर
कतेक काल से रही दिनक इंतज़ार में
घुंघटा से उठेलो ते भए गेल भोर
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रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
हुनका जँ देखितहुँ तरि जइतहुँ हम
ओकरा पछाति बरु मरि जइतहुँ हम
अहाँ केर आँखिक निशा एहन नीक
जँ पीबितहुँ तँ सम्हरि जइतहुँ हम
सोमवार, 18 अप्रैल 2011
रुबाइ
हम नै हँसब मुसकि के रहि जायब
हम नै कानब सिसकि के रहि जायब
नै ये जो लिखल विधना केर बरसनाय
भादो के मेघ छि गरजि के रहि जायब
हम नै कानब सिसकि के रहि जायब
नै ये जो लिखल विधना केर बरसनाय
भादो के मेघ छि गरजि के रहि जायब
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रुबाइ,
सुनील कुमार झा
रुबाइ
कारी अनहार मेघ आ नै होइए
कत्तौ बलुआ माटि खा नै होइए
दाहीजरती देखि हिलोरै-ए मेघ
भगजोगनी भकरार जा नै होइए
टिप्पणी: रुबाइ:
कत्तौ बलुआ माटि खा नै होइए
दाहीजरती देखि हिलोरै-ए मेघ
भगजोगनी भकरार जा नै होइए
टिप्पणी: रुबाइ:
रुबाइक चतुष्पदीमे पहिल दोसर आ चारिम पाँती काफिया युक्त होइत अछि; आ मात्रा २० वा २१ हेबाक चाही।
रुबाइमे मात्रा २० वा २१ राखू। रुबाइक सभ पाँतीक प्रारम्भ दू तरहे शुरू होइत अछि- १.दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ (मफ–ऊ–लु ।।U )सँ वा २.दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व (मफ–ऊ–लुन ।।।) सँ। ओना फारसी रुबाइमे पाँती सभ लेल प्रारम्भक आगाँक ह्रस्व-दीर्घ क्रम निर्धारित छै, मुदा मैथिली लेल अहाँ २०-२१ मात्राक कोनो छन्द जे १.दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ (मफ–ऊ–लु ।।U )सँ वा २.दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व (मफ–ऊ–लुन ।।।) सँ प्रारम्भ होइत हो, तकरा उठा सकै छी। पाँती २० वा २१ मात्राक हेबाक चाही, (मफ–ऊ–लु ।।U ) वा (मफ–ऊ–लुन ।।।) सँ प्रारम्भ हेबाक चाही।
मुदा एक रुबाइक वाक्य सभक बहर वा छन्द/ लय एकसँ बेशी तरहक भऽ सकैए।
आन चतुष्पदी जाइमे पहिल दोसर आ चारिम पाँती काफिया युक्त होइत अछि मुदा मात्रा २०-२१ नै हुअए आ पाँती (मफ–ऊ–लु ।।U ) वा (मफ–ऊ–लुन ।।।) सँ प्रारम्भ नै हुअए से रुबाइ नै मुदा "किता/कतआ"क परिभाषामे अबैत अछि।
रुबाइक चतुष्पदीक चारिम पाँती भावक चरम हेबाक चाही।
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गजल,
गजेन्द्र ठाकुर
रविवार, 17 अप्रैल 2011
रुबाइ
हुनका अबिते मोन हमर हरिआ गेल
आँखिक बात मोन मे फरिआ गेल
ओ केलथि केहन जादू हमरा पर
हुनक इयाद अबिते मोन भरिआ गेल
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
रुबाइ
देखलों जे हमरा किया मुह फेरि लेलों
उगैत चाँद के बादल में घेरि लेलों
कियाक रुसल छि अहाँ हमरा सों
कियाक चाँद पर परदा करि लेलों
उगैत चाँद के बादल में घेरि लेलों
कियाक रुसल छि अहाँ हमरा सों
कियाक चाँद पर परदा करि लेलों
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रुबाइ,
सुनील कुमार झा
गजल
एना जे धड़ के नेड़ा बैसल छी
जिनगीक अर्थ के हेड़ा बैसल छी
नहि होइन्ह अन्हार हुनक कोबर मे
तँए अपन करेज जरा बैसल छी
उराहल इनारक पानि सँ कब्ज होइए
गंगोजल के सड़ा बैसल छी
भेटबे करत केओ ने केओ कहिओ
एही उम्मेद पर अपना के जिया बैसल छी
करोट फेरब के परिवर्तन कहल जाइए
जखन की आत्मे के सुता बैसल छी
जिनगीक अर्थ के हेड़ा बैसल छी
नहि होइन्ह अन्हार हुनक कोबर मे
तँए अपन करेज जरा बैसल छी
उराहल इनारक पानि सँ कब्ज होइए
गंगोजल के सड़ा बैसल छी
भेटबे करत केओ ने केओ कहिओ
एही उम्मेद पर अपना के जिया बैसल छी
करोट फेरब के परिवर्तन कहल जाइए
जखन की आत्मे के सुता बैसल छी
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अनचिन्हार,
बिना छंद-बहरक
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
रुबाइ
इ जे अहाँक मूँह अछि गुलाब सन
आ आँखि जे लगैए शराब सन
सगरो दुनियाँ बताह भेल देखि कए
मोन हमरो लगैए बताह सन
गुरुवार, 14 अप्रैल 2011
रुबाइ
हमरा जीवन मे अहीं केर खगता
अहाँ बिना पड़लै करेज हमर परता
खेलाइत रहू अहाँ हमरा मोन मे
बनू अहाँ देवी हम बनब भगता
रुबाइ
हमरा जीवन मे अहीं केर खगता
अहाँ बिना पड़लै करेज हमर परता
खेलाइत रहू अहाँ हमरा मोन मे
बनू अहाँ देवी हम बनब भगता
बुधवार, 13 अप्रैल 2011
रुबाइ
हुनका लेल रूप सजा लेबाक चाही
आइ जबानी के लुटा देबाक चाही
काज नहि इजोत के हमरा-हुनका लग
इजोत लेल घोघ उठा लेबाक चाही
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
रुबाइ
जँ खोट ने रहतै सरकारक नेत मे
अनाज उपजबे करतै हमरो खेत मे
पसारए ने पड़तै हाथ दोसर ठाम
रहतै किछु कोठी आ किछु पेट मे
सोमवार, 11 अप्रैल 2011
कता
जकर अगैंठीमोड़ एतेक सुन्दर
तकर देहक हिलकोर केहन हेतैक
जकर आँखिक नोर एतेक सुन्दर
तकर हँसी भरल ठोर केहन हेतैक
रविवार, 10 अप्रैल 2011
रुबाइ
चाम जँ अहाँक चाम सँ भीरि जेतै
बूझू मरलो मुरदा जीबि जेतै
इ प्रेमक आगि बड्ड कड़गर आगि
बूझू पाकलो बाँस लीबि जेतै
बूझू मरलो मुरदा जीबि जेतै
इ प्रेमक आगि बड्ड कड़गर आगि
बूझू पाकलो बाँस लीबि जेतै
शनिवार, 9 अप्रैल 2011
रुबाइ
जखन हुनकर घोघ उठेलहुँ सच मानू
आँखिक निशा सँ मतेलहुँ सच मानू
हुनक रूप भमर जाल लगैए हमरा
तैओ हुनके सँ नेह लगेलहुँ सच मानू
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
रुबाइ
एहि पार हम ओहि पार अहाँ बैसल छी
मुदा एक दोसराक करेज मे पैसल छी
जहाँ धरि देखी अहीँ देखाइ छी हमरा
देखू हमरो दिस एना अहाँ किएक रूसल छी
गजल
धडकलै छाति राति, बहुत दिन बाद मिता
जरलैय दिया बाति, बहुत दिन बाद मिता
छलैया सुखल जडि जे परुका रौदीमे
फुल फुलैले साईद, बहुत दिन बाद मिता
आब पैर कहाँ धरती उरी आकाश जे हम
निशामे गेलियै माति, बहुत दिन बाद मिता
करै कोनो जोगार, तुही छैं आश हमर
देखहि कोनो साईत, बहुत दिन बाद मिता
देखिते ओकरा मुग्ध भेलै जे गृष्म रोशन
जुडिते गेलै पाँति, बहुत दिन बाद मिता
गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
गजल
बेमार छी मुदा बेमार नहि लगैत छी
दवाइ खाइ से कहिओ ने चाहैत छी
हमरा अहाँ नीक लगलहुँ सभ दिन सँ
मुदा प्रेम अछि से कहि नहि पबैत छी
विसर्जनक पछाति बला मूर्ति छी हम
भसा देल गेलहुँ मुदा नहि डुबैत छी
सभ दिन हमरा लेल मधुश्रावनिए थिक
टेमी दगेलाक पछातिओ नहि कुहरैत छी
दवाइ खाइ से कहिओ ने चाहैत छी
हमरा अहाँ नीक लगलहुँ सभ दिन सँ
मुदा प्रेम अछि से कहि नहि पबैत छी
विसर्जनक पछाति बला मूर्ति छी हम
भसा देल गेलहुँ मुदा नहि डुबैत छी
सभ दिन हमरा लेल मधुश्रावनिए थिक
टेमी दगेलाक पछातिओ नहि कुहरैत छी
खोजबीनक कूट-शब्द:
अनचिन्हार,
बिना छंद-बहरक
बुधवार, 6 अप्रैल 2011
कता
देखिते हुनका करेजक गाछ मजरि गेल
प्रेम गमकए लागल पहिल गोपी जकाँ
लगबिते चोभा गिनगी हमर सम्हरि गेल
बनि गेलहुँ हम कृष्ण अहाँ गोपी जकाँ
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
रुबाइ
कते दिन जिबैत रहब उधार के जिन्दगी
जिबैत रहू सदिखन पिआर के जिन्दगी
ने काज आएत समय पर ई धन-बीत
बिका जाएत पाइ-पाइ मे हजार के जिन्दगी
जिबैत रहू सदिखन पिआर के जिन्दगी
ने काज आएत समय पर ई धन-बीत
बिका जाएत पाइ-पाइ मे हजार के जिन्दगी
सोमवार, 4 अप्रैल 2011
रुबाइ
रूप देखा बताह बना देलक छौंड़ी
सूतल मोन के जगा देलक छौंड़ी
की कहू छल ओ केहन हरजाइ
अचके मे हमरा कना देलक छौंड़ी
सूतल मोन के जगा देलक छौंड़ी
की कहू छल ओ केहन हरजाइ
अचके मे हमरा कना देलक छौंड़ी
रविवार, 3 अप्रैल 2011
रुबाइ
अपन करेज अपने सँ डाहि लेब हम
प्रेमक महल अपने सँ ढ़ाहि लेब हम
अहाँ जा सकै छी हमरा जिनगी सँ
असगरे कत्तौ जिनगी काटि लेब हम
प्रेमक महल अपने सँ ढ़ाहि लेब हम
अहाँ जा सकै छी हमरा जिनगी सँ
असगरे कत्तौ जिनगी काटि लेब हम
शनिवार, 2 अप्रैल 2011
रुबाइ
इ जे अहाँक मूँह अछि गुलाब सन
आ आँखि लगैए अहाँक शराब सन
सगरो दुनियाँ बताह भेल देखि कए
मोन हमरो होइत रहैए खराब सन
आ आँखि लगैए अहाँक शराब सन
सगरो दुनियाँ बताह भेल देखि कए
मोन हमरो होइत रहैए खराब सन
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011
गजल
जादू-मंतर मारि देलकै ओ जाइत-जाइत
मोन केकरो हरि लेलकै ओ जाइत-जाइत
जकरा अबिते भोर आबि गेलैक ठोर पर
आँखि मे साँझ आनि देलकै ओ जाइत-जाइत
हाथ जकर थरथराइत छलैक फूलो तोड़बा सँ
कोमल-करेज तोड़ि देलकै ओ जाइत-जाइत
उखरल छलैक सुलबाइ मुदा तैओ
आँकर-पाथर पचा लेलकै ओ जाइत-जाइत
अनचिन्हारक ठोर मे सटलै अनचिन्हारक ठोर
मुदा मुँह घुमा लेलकै ओ जाइत-जाइत
मोन केकरो हरि लेलकै ओ जाइत-जाइत
जकरा अबिते भोर आबि गेलैक ठोर पर
आँखि मे साँझ आनि देलकै ओ जाइत-जाइत
हाथ जकर थरथराइत छलैक फूलो तोड़बा सँ
कोमल-करेज तोड़ि देलकै ओ जाइत-जाइत
उखरल छलैक सुलबाइ मुदा तैओ
आँकर-पाथर पचा लेलकै ओ जाइत-जाइत
अनचिन्हारक ठोर मे सटलै अनचिन्हारक ठोर
मुदा मुँह घुमा लेलकै ओ जाइत-जाइत
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