मोन मुंगबा फुटईया मीत हमर ,
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर !
सा- स्नेह
विकाश झा
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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
गजल
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विकाश झा "रंजन "
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