शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-15

खण्ड-15

बहरसँ पहिने रुक्नकेँ बूझी। संस्कृतक गण जकाँ अरबी मे सेहो होइत छैक जकरा “रुक्न” कहल जाइत छैक। ई रुक्न आठ प्रकारके होइत अछि। जकर विवरण एना अछि--

रुक्नक स्वरूप
मात्रा
रुक्नक नाम
मात्रा क्रम

खमासी रुक्न
5
फऊलुन (फ/ऊ/लुन)
122 (1/2/2)


खमासी रुक्न
5
फाइलुन (फा/इ/लुन)
212 (2/1/2)

सुबाई रुक्न
7
फाइलातुन (फा/इ/ला/तुन)
2122 (2/1/2/2)

सुबाई रुक्न
7
मफाईलुन (म/फा/ई/लुन)
1222 (1/2/2/2)

सुबाई रुक्न
7
मुस्तफइलुन (मुस्/तफ/इ/लुन
2212 (2/2/1/2)

सुबाई रुक्न
7
मुफाइलतुन (मु/फा/इ/ल/तुन
12112 (1/2/1/1/2)

सुबाई रुक्न
7
मुतफाइलुन (मु/त/फा/इ/लुन
11212 (1/1/2/1/2)

सुबाई रुक्न
7
मफऊलातु (मफ/ऊ/ला/तु
2221 (2/2/2/1)

****** एहिठाम 1 मने 1 मने ह्रस्व आ 2 मने 2 मने दीर्घ भेल संगे-संग खमासी मने पाँच मात्राक आ सुबाई मने सात मात्राक रुक्न भेल (केओ-केओ दीर्घ लेल + आ लघु लेल   केर प्रयोग करै छथि। संस्कृतमे  I दीर्घ  लेल आ U लघु लेल चिन्ह अछि।) लघु= ह्रस्व, दीर्घ=गुरु । एहि रुक्न सभकेँ इयाद रखबाक लेल गणितीय रूपसँ एना बुझू--

a) एकटा लघुकेँ बाद जँ दूटा दीर्घ हो तँ ओकरा “फऊलुन” कहल जाइत छैक।

b) एकटा लघुकेँ बाद जँ तीनटा दीर्घ हो तँ ओकरा “मफाईलुन” कहल जाइत छैक।

c) जँ “मफाईलुन” केँ उल्टा करबै तँ “मफऊलात” बनि जाएत मने तीनटा दीर्घकेँ बाद एकटा लघु।

d) दूटा दीर्घकेँ बीचमे जँ एकटा लघु रहए तखन ओकरा “फाइलुन” कहल जाइत छैक।

e) “फाइलुन” केर अन्तमे जँ एकटा आर दीर्घ जोडबै तँ ओ “फाइलातुन” बनि जाएत।

f) “फाइलातुन” केर उल्टा रूप “मुस्तफइलुन” होइत छैक।

g) शुरुमे एकटा लघु तकरा बाद एकटा दीर्घ तकरा बाद फेर दूटा लघु आ तकरा अन्तमे एकटा दीर्घ हो तँ “मुफाइलतुन” कहल जाइत छैक।

h) “मुफाइलुन” केर अन्तसँ तेसर या दोसर लघु हटा कए पहिल लघु लग बैसा देबै तँ “मुतफाइलुन” बनि जाएत। मने शुरुमे दू टा लघु तकरा बाद एकटा दीर्घ तकरा बाद फेर एकटा लघु आ तकरा बाद अन्तमे एकटा दीर्घ।

कोनो गजलक नाम ओकर बहरसँ होइत छै तकर बाद ओहिमे रुक्नक संख्या जोड़ल जाइत छै आ तकर बाद ओहि रुक्नक प्रकृति सेहो उल्लेख कएल जाइत छै तखन ओहि कोनो गजल पूरा नाम बने छै। तँ आउ देखी किछु उदाहरण--
 1) मोसन्ना (मुसना) (एक) एहन गजल जकर हरेक शेरक पाँतिमे एकटा रुक्न हो (मने एकटा शेरमे 2 टा रुक्न) ओकरा मोसन्ना (मुसना) शेर कहल जाइत छै। ई संख्यावाची शब्द कोनो बहरमे आबि सकैए। मुसना शेरक एकटा उदाहरण देखू--

दाइ छी हम
माइ छी हम

ऐ शेरक पहिल पाँतिमे 2122 रुक्न मने फाइलातुन अछि आ एकैटा अछि सङ्गहि-सङ्ग सालिम प्रकृतिक अछि तेनाहिते दोसरे पाँतिमे सेहो 2122 रुक्न मने फाइलातुन अछि आ एकैटा अछि सङ्गहि-सङ्ग सालिम प्रकृतिक अछि फाइलातुन बहरे रमल केर मूल रुक्न अछि तँए एहन शेरसँ बनल गजलक नाम हएत बहरे रमल मोसन्ना (वा मुसना) सालिम। एकरा एनाहुतो कहि सकै छी बहरे रमल सालिम दू रुक्नी।
आब दोसर गजलमे बहरे रमलक बदला बहरे हजज वा बहरे रजज सेहो आबि सकैए आ एनाहिते नामकरण करऽ पड़त । आन संख्या लेल नाम आगू देल जा रहल अछि—
2) मोरब्बा (दू) एहन शेर जकर हरेक पाँतिमे दूटा रुक्न होइ मने पूरा शेरमे चारिटा । एकर नाम हेतै बहरे रमल मोरब्बा सालिम वा बहरे रमल सालिम चारि रुक्नी।
3) मोसद्दस (तीन) बहरे रमल मोसद्दस सामिल वा बहरे रमल सालिम छह रुक्नी।
4) मोसम्मन (चारि) बहरे रमल मोसम्मन सालिम वा बहरे रमल सालिम अठरुक्नी।
5) मोअश्शर (पाँच) बहरे रमल मोअश्शर सालिम वा बहरे रमल सालिम दसरुक्नी।

मुदा ई बहर सभकेँ देखबासँ पहिने ई देखू जे लघु ओ दीर्घ कोना होइत छै (लघु-दीर्घ लेल हम किछु एहनो नियम लेलहुँ जे कि वर्तमानमे प्रचलित नै अछि। हम कोन कारणसँ ई नियम लेलहुँ तकर खंडन-मंडन आगू भेटत) । मात्रा गनबाक लेल निच्चाक किछु नियम देखू--
1) वर्ण दू प्रकार होइत छै। स्वतंत्र रूपसँ बाजल जाए बला वर्ण 'स्वर' कहाइ छै आ जकरा स्वरक सहायतासँ बाजल जाइत हो ओकरा व्यंजन कहल जाइत छै। व्याकरणमे परम्परागत रूपसँ स्वरक संख्या 14 मानल गेल छै जकरा निच्चा देखाओल गेल अछि--
अ, आ, इ, ई उ, ऋ, ॠ, लृ,(आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ। जाहिमे “अ” तँ हरेक वर्णक (जाहिमे हलन्त् नहि लागल होइक)मे अंतमे अबिते छैक। अन्य चारि गोट स्वर (ऋ,ॠ, लृ आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) खाली तत्सम शब्दमे अबैत छैक। बचल दस गोट स्वर आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ (एकर लेख रूप क्रमशःा, ि, ी, ु, ू, े, ै, ो एवं ौ अछि)। चंद्रबिंदुकेँ स्वरक विकारमात्र बूझल जाइत छै कारण ई स्वतंत्र स्वर नै अछि तेनाहिते अनुस्वार ओ विसर्ग स्वतंत्र रूपसँ दीर्घ व्यंजन अछि।
स्वर दू तरहँक होइत छै- पहिल ह्रस्व स्वर आ दोसर दीर्घ स्वर। अ, इ, उ, ऋ, लृ आदि ह्रस्व स्वर भेल तँ आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ. अं. अः आदि दीर्घ स्वर। दूनू स्वरक मात्रा सेहो छै (ा (आ केर मात्रा), ि (इ केर मात्रा), ी (ई केर मात्रा), ु (उ केर मात्रा), ू (ऊ केर मात्रा), ृ (ॠ केर मात्रा), े (ए केर मात्रा), ै (ऐ केर मात्रा), ो (ओ केर मात्रा), ौ (औ केर मात्रा) ं (अनुस्वा केर मात्रा), ः (विसर्ग केर मात्रा)। ह्रस्व स्वरकेँ बाजएमे कम समय लागै छै तँ दीर्घ स्वरकेँ बाजएमे बेसी। स्वरक अतिरिक्त आन वर्ण सभ एना अछि--
कवर्ग--क्, ख्, ग्....
चवर्ग--च्, छ्, ज्.....
...........आब एही वर्णमे जँ “अ” स्वर जोड़बै तँ ओ व्यंजन बनि जाएत। बिना स्वरक वर्ण आधा होइत छै आ ओकरा हलंत चिन्हसँ देखाएल जाइत छै। व्यंजनमे ह्रस्व-दीर्घ मात्रा कि अनुस्वार-विसर्ग लगा कऽ आन वर्ण बनाएल जाइत छै। उदाहरण देखू--
क्+अ= क
ख्+अ+आ= खा
ग्+अ+इ= गि
च्+अ+ई= ची
छ्+अ+उ= छु
ज्+अ+ऊ= जू
झ्+अ+ए= झे
ट्+अ+ऐ= टै
ठ्+अ+ओ= ठो
ड्+अ+औ=डौ
क्+अ+ं= कं
त्+अ+ः= तः
मने “क” लघु भेल, “का” दीर्घ भेल, “कि” लघु भेल, “की” दीर्घ भेल, “कु” लघु भेल, 'कू” दीर्घ भेल, “के” दीर्घ भेल, “कै” दीर्घ भेल, “को” दीर्घ भेल, “कौ” दीर्घ भेल “कं” दीर्घ भेल, “कः” दीर्घ भेल।

2) अनुस्वार तँ दीर्घ अछि मुदा चन्द्रबिन्दु लघु। चन्द्रबिन्दु जँ लघु अक्षरपर रहतै तँ लघु मानल जेतै आ जँ दीर्घ अक्षरपर रहतै तँ दीर्घ मानल जाएत। मुदा अनुस्वार लघु केर उपर हो कि दीर्घक उपर अनुस्वार सदिखन दीर्घे होइत छै।

3) जँ कोनो शब्दमे संयुक्ताक्षर हुअए तँ ताहिसँ पहिलेक अक्षर दीर्घ भए जाइत छैक चाहे ओ लघु किएक ने हुअए। उदाहरण लेल--प्रत्यक्ष शब्दमे दूटा संयुक्ताक्षर अछि पहिल त्य एवं क्ष। आब एहिमे देखू “त्य”सँ पहिने “प्र” अछि तँए ई दीर्घ भेल आ “क्ष”सँ पहिने “त्य” अछि तँए इहो दीर्घ भेल। ई नियम जँ दू टा अलग-अलग शब्द हो तैयो लागू हएत जेना उदाहरण लेल--हमर प्रेम छी अहाँ... ऐमे “प्रे” संयुक्ताक्षर भेल आ ताहिसँ पहिने बला शब्द “र” दीर्घ भए जाएत। मतलब जे “हमर” शब्दक अंतिम अक्षर “र” दीर्घ भए जाएत । सङ्गे-सङ्ग मोन राखू “न्ह” आ “म्ह” संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला शब्दमे लघु दीर्घ सेहो हएत। जेना की “कुम्हार” मे “म्ह”सँ पहिने “कु” दीर्घ भेल तेनाहिते “कन्हाइ” शब्दमे सेहो “न्ह”सँ पहिने “क” वर्ण दीर्घ भेल। क्ष, त्र आ ज्ञ संयुक्ताक्षर अछि। तेनाहिते.... प्र, र्व, आदि सेहो संयुक्ताक्षर अछि। मुदा “मृत” शब्दमे “मृ” संयुक्ताक्षर नै अछि कारण ॠ लघु स्वर छै आब अहाँ सभ पूछि सकै छी जे “मृत” मे “मृ” संयुक्ताक्षर किएक नै भेल। तँ हम कहब जे संयुक्ताक्षर लेल ओहि वर्णकेँ आधा होमए पड़ैत छै जैमे कोनो दोसर वर्ण संयुक्त हेतै। जेना--
“प्रेम” = प्+र+ए+म=प्रेम
अर्थात “प” वर्ण आधा भेलै तँए ई संयुक्ताक्षर अछि। मुदा
“मृत” = मऋत=मृत
तँए मृत शब्दमे मृ संयुक्ताक्षर नै भेल। ऋ मात्रा भेल। ऐठाँ ई मोन राखब बड़ बेसी आवश्यक अछि जे “ऋ” आ “ॠ” केर उच्चारण एखन गलत अछि। जेना की पता अछि जे “इ” एवं “ई” स्वर जकाँ “ऋ” आ “ॠ”  सेहो स्वर अछि, एकरा ह्रस्व “ऋ” आ दीर्घ “ॠ” कहल जाइत छै। वर्तमान समयमे दीर्घ “ॠ” केर प्रचलन नै अछि आ  ह्रस्व “ऋ” केर गलत उचचारण प्रचलित अछि। जेना “कृष्ण” एकर उच्चारण एखन “क्रिष्ण” अछि। शुद्ध उच्चारण सुनबा लेल अरविंद आश्रम वा गुजरात समेत दक्षिण भारतक कोनो संस्कृत शिक्षणशालामे अध्ययन  कएल जा सकैए)।
नोट--पुरान व्याकरणशास्त्री हिंदी-उर्दूक प्रभावें दू अलग-अलग शब्दक संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षरकेँ दीर्घ नै मानै छथि। तेनाहिते ओ सभ न्ह आ म्हसँ पहिने बला लघुकेँ दीर्घ नै मानै छथि। मुदा हम एकर खंडन कऽ चुकल छी जे आगू देल जा रहल अछि। संयुक्ताक्षर लेल एकै रंगक नियमक पालन करी। एहन नै जे किछु गजलमे एकै शब्दक संयुक्त बलाकेँ दीर्घ मानलहुँ आ किछु गजलमे बहर पुरेबाक लेल दूटा संयुक्त बलाकेँ दीर्घ। व्यक्तिगत रूपसँ हम अलग संयुकक्ताक्षर रहितों लघुकेँ दीर्घ मानै छी आ जँ बचबाक रहैए तँ तत्सम शब्दकेँ तद्भवमे बदलि दै छियै।

4) विसर्ग युक्त लघु वर्ण सेहो दीर्घ होइत अछि।

5) जेना कि पहिने कहि चुकल छी जे गजलमे दूटा लघुकेँ एकटा दीर्घ सेहो मानल जाइत छै मुदा कोन दू लघुकेँ दीर्घ मानल जाए ताहि लेल हम आघात बला प्रकरणमे स्पष्ट केने छी तथापि फेर एक बेर हम दऽ रहल छी--
A) दू वर्णसँ बनल शब्दक दोसर वर्णपर आघात रहै छै तँइ एकरा दीर्घ मानू मने “घर” =दीर्घ (संस्कृतमे लघु-लघु)

B) तीन वर्णसँ बनल शब्दपर जाएसँ पहिने लेखक अपन निर्णय लेथि जे ओ पारंपरिक रूपें आघात मानै छथि वा वर्तमान उच्चारण मानै छथि (बिना आघातक)। जँ कियो शाइर आघात मानै छथि तँ अनिवार्य रूपें ओ अपन सभ गजलमे आघातक पालन करथि। एहन नै जे कोनो गजलमे मात्रा पुरेबा लेल आघात मानि लेलहुँ आ कोनोमे नै मानलहुँ। जे कियो एना करता तँ हुनकर काव्य दोषसँ ग्रसित बूझल जाएत। जे आघात नै मानै छथि तिनकोसँ आग्रह जे ओ अपन गजलमे उच्चारणक एकरूपता राखथि। मने तीन वर्णसँ बनल शब्द लेल दू टा ग्रुप भेल--पहिल जे आघात मानै छथि, दोसर जे आघात नै मानै छथि। तँ आब आउ तीन वर्णसँ बनल शब्दपर---

“पहिल” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हेतै पहि-ल मने दीर्घ-लघु मने 2-1। जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल उच्चारण प-हिल मने लघु-दीर्घ 1-2
“तखन” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हेतै तख-न मने दीर्घ-लघु मने 2-1। जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल उच्चारण त-खन मने लघु-दीर्घ 1-2
“बिगड़ि” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हेतै बिग-ड़ि मने दीर्घ-लघु मने 2-1। जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल उच्चारण बि-गड़ि मने लघु-दीर्घ 1-2
आन शब्द लेल एहने सन बुझू।

आब आउ चारि लघु वर्णसँ बनल शब्दपर --
“भिनसर” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हएत भिनस-र मने दीर्घ-लघु-लघु मने 2-1-1। जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल भिन-सर मने दीर्घ-दीर्घ मने 2-2
“कबकब” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हएत कबक-ब मने दीर्घ-लघु-लघु मने 2-1-1। जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल कब-कब मने दीर्घ-दीर्घ मने 2-2
आन शब्द लेल एहने सन बुझू।

आब आउ पाँच लघु वर्णसँ बनल शब्दपर--
“चहटगर” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हएत चहटग-र मने लघु-दीर्घ-लघु-लघु मने 1-2-1-1 । जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल चहट-गर मने लघु-दीर्घ-दीर्घ मने 1-2-2
आन शब्द लेल एहने सन बुझू।
आब आउ छह लघु वर्णसँ बनल शब्दपर--

“चपलचरण” जे आघात मानै छथि तिनका लेल उच्चारण हएत चप-ल-चर-ण मने दीर्घ-लघु-दीर्घ-लघु मने 2-1-2-1। जे आघात नै मानै छथि तिनका लेल च-पल-च-रण मने लघु-दीर्घ-लघु-दीर्घ मने1- 2-1-2

6) प्लुत----” दूराह्वाने च गाने च रोदने च प्लु तो मतः॥” इति च दुर्गादासधृतवचनम्॥ मने दूर लोककेँ बजबए लेल, गेबाक कालमे वा कनबा कालमे किछु शब्दकेँ रेघा कऽ उच्चरित कएल जाइ छै आ तँइसँ ओकर मात्रा दीर्घसँ बेसी बऽ जाइत छै मने तीनमात्रिक। मुदा ई प्लुत वर्तमान सभ भारतीय भाषासँ हटि गेल अछि। मुदा उर्दूमे ई एखनो पालन कएल जाइत छै जेना उर्दू बला सभ "रास्ता" केर बहर दीर्घ लघु दीर्घ मानै छथि। तेनाहिते दोस्ती एवं एहने सन शब्द लेल मानू।
आन शब्द लेल एहने सन बुझू। विभक्ति जुटलाक बाद मात्राक्रम सेहो बदलऽ लागै छै। जेना “इज्जत” ई 22 अछि। “इज्जतक” आब एकरा 221 सेहो मानल जा सकैए मुदा 212 बेसी उचित कारण विभक्ति सटलाक बाद “इज्” लेल 2 फेर “ज” लेल 1 “तक” लेल 2 मने 212 बेसी उचित अछि। तखन हम फेर कहब जे शाइर ई अपने देखथि जे कोन मात्राक्रम लेलासँ बेसी प्रवाह आबि रहल छै। विभक्तिए जकाँ उपसर्ग वा प्रत्ययसँ सेहो मात्राक्रम बदलल सन लागऽ लागै छै। जेना कुशल मूल शब्दमे स उपसर्ग लगलासँ सकुशल शब्द बनै छै। आब जँ सकुशल शब्दक उच्चारणपर धेआन देबै तँ स केर उच्चारण अलग आ कुशल केर उच्चारण अलग होइ छै। एहन स्थितिमे सकुशल केर मात्रा 112 मानब बेसी उचित। आन एहन शब्द सभ लेल इएह बुझू। वर्तमानमे किछु मैथिली शब्दक दू तरहें वर्तनी अछि जेना---
1) केओ-कियो 2) एम्हर-इम्हर- इमहर, 3) देयाद-दियाद 4) एखन-अखन, 5) एते-अते 6) कोनो-कुनो अइ उदाहरणसँ बुझना जाइत अछि जे अधिकांशतः शुरूआतक “ए” “इ” वा “अ” मे बदलि जाइत छै (सभ शब्दमे नै)। पं.गोविन्द झा ओ आन पुरान व्याकरणशास्त्री सभ कियो, इम्हर, दियाद, अखन सभकेँ अशुद्ध वर्तनी मानने छथि मुदा उच्चारणमे सभसँ बेसी प्रचलित इएह रूप अछि। ऐ संदर्भमे हमर मानब अछि जे जेना उर्दू अपन भाषाक लोच बचबऽ लेल “मुहब्बत” आ मोहब्बत” दूनू वर्तनी लेने अछि (ऐठाम ई जानब जरूरी जे मुहब्बत शुद्ध रूप छै) तेनाहिते “केओ-कियो” दूनू तरहँक वर्तनी सही रहत। जखन 12 जरूरत हो तखन “कियो” शब्दक प्रयोग करू आ जखन 22 केर जरूरत हो तखन “केओ” केर प्रयोग करू। “केओ” या “कोनो” लीखि कऽ ओकर मात्रा लघु-दीर्घ मानब हमरा हिसाबें गलत। जे कियो कहै छथि जे शुरूआतक या बीचक दीर्घकेँ सेहो लघु मानबाक चाही। तँ प्रश्न उठैए जे कोन-कोन दीर्घकेँ लघु मानबक चाही आ कोन-कोनकेँ नै मानबाक चाही। किछु लोकक किछु मत हेतनि आ किछु लोकक किछु। तँइ जँ कियो ई बात तार्किक रूपसँ कहि देथि जे “अइ कारणसँ अमुक शब्दक ओइ ठाम शुरूआतक आ ओइ ठामक बीच बला लघु हेतै” तँ हमरा मानबामे कोनो आपत्ति नै कारण बात तर्कसँ संचालित रहतै। आ जँ बिना तर्कक अपना मोने मानि लेबै तखन गजल फेरसँ आजाद भऽ जाएत। आ जखन गजलकेँ आजादे हेबाक छै तखन वार्णिक बहर किए सरल वार्णिकमे गजल लीखू। सरलो वार्णिकमे गजल नियमबद्ध तँ रहबे करतै। ओना हमरा लग किछु एहनो उदहारण अछि जइमे बहुतो शाइर शुरू कि बीच बला दीर्घकेँ लघु रूपमे लीखि काज चलाबै छथि आ एहन रूपसँ किछु हद धरि हमहूँ सहमत छी मुदा एहन तखने भऽ सकैए जखन कि ओ उच्चारण दृष्टिसँ ठीक हो जेना “कानून” लेल “कानुन”, “फूल” लेल “फुल” आदि। आ तकरा ओहने लिखल सेहो जेबाक चाही। मने जँ कानून केँ कानुन मानै छी तँ लिखबो कानुन करू। किछु उदाहरण नियम शैथिल्य बला प्रकरणमे सेहो भेटत। मुदा फेर दोहराबी जे शुरू कि बीच बलाकेँ दीर्घ रूपमे लीखि तखन ओकरा लघु मानब हमरा हिसाबें गलत हएत।

जेना विकारी वा एफास्ट्राफी लगा कऽ बहुत रास शब्दकेँ छोट बना देल जाइत छै तेनाहिते जै शब्दक अंतमे “म” हो तकरा हटा कऽ ओसँ पहिने बला शब्दपर चंद्रबिंदु लगा देलासँ वएह अर्थ अबैत छै जेना
नाम= नाँ
गाम=गाँ
ठाम=ठाँ
मुदा ई नियम संज्ञा, तत्सम शब्द ओ रूढ़ अर्थ देबऽ बला शब्दमे नै लागत। जेना--
धाम केर बदला धाँ नै हएत।
दाम केर बदला दाँ नै हएत।
संगे-संग ऐ संक्षिप्त रूपमे “ओं” लगा कऽ एकरा विस्तार सेहो कऽ सकै छी जेना नाँओँ, दाँओँ, गाँओँ आदि-आदि। आ एनाहिते सभ लेल बूझू। मुदा प्रयोगक हिसाबसँ “नाँ” आ “नाँओँ” दूनूमे भिन्नता आबि जाइत छै जेना--
“किदन सन तँ नाँ कहने रहै”
“श्रीमान् अपनेक नाँओँ की भेलै”
आब गजलमे मात्राक्रम आ विषयक हिसाबसँ जे उचित बूझि पड़ए तै हिसाबसँ शब्द चयन कऽ लिअ।
वाव-ए-अत्फ अरबी भाषाक एकटा महत्वपूर्ण नियम अछि जे की फारसी आ उर्दूमे सेहो मान्य अछि। ऐ नियमक हिसाबें जँ दू शब्दक बीच “व” आबै तँ ओकर उच्चारण “ओ” भऽ जाइत छै आ पहिल शब्दक अंतिम अक्षरमे जुटि जाइत छै। जेना--
दैर-व-हरम = दैर-ओ-हरम = दैरो-हरम (दैर मने मंदिर, हरम मने मस्जिद)
सुब्ह-व-शाम = सुब्ह-ओ-शाम = सुब्हो-शाम, आदि-आदि
मुदा मैथिलीमे ई नियम पूरा-पूरी नै लागत। मैथिलीमे एहन शब्द जे की अरबी-फारसी-उर्दूक अछि आ जकर अंतमे “व” छै तखन एकरा “ओ” बना सकै छी जेना--
चुनाव = चुनाओ
लगाव = लगाओ
दाव = दाओ
उपरका नियम हिसाबें गजलमे जतऽ जेहन मात्राक्रमक जरूरति बुझि पड़ैत हो तेहन शब्द बना लिअ।
एकर अतिरिक्त मैथिलीक संज्ञा आ सर्वनाममे सेहो “ओ” एवं “ऊ” केर प्रयोग होइत छै आ एकर अर्थ उर्दूक “भी” केर बराबर होइत छै। जेना--

रामो गेलथि (उर्दूमे राम भी गये)
हमहूँ गेलहुँ (उर्दूमे मैं भी गया)
ओहो गेलथि (उर्दूमे वह भी गये)

आब कने देखू प्राचीन व्याकरणशास्त्री सभहँक मतक  खंडन
1) पं.गोविन्द झा अपन पोथी “मैथिली छंद शास्त्र” (मिथिला पुस्तक केन्द्र दरभंगासँ प्रकाशित, द्वितीय संस्करण 1987)मे पृष्ठ 13 मे लिखैत छथि जे “सँ, जँ, तँ, हँ आदि गुरू अछि” मने चंद्रबिंदुकेँ पं.गोविन्द झा जी दीर्घ मानने छथि (प. दीनबन्धु झा रचित मिथिला भाषा विद्योतनमे एहने लिखल अछि।) मुदा फेर पं.गोविन्द झा जी शेखर प्रकाशनसँ 2006मे प्रकाशित अपन पोथी “मैथिली परिचायिका” केर पृष्ठ 20पर लिखै छथि जे “अनुस्वार भारी होइत अछि आ चंद्रबिंदु भारहीन” मने ऐ पोथीमे पं. जी चंद्रबिंदुकेँ लघु मानने छथि आ एहने सन विचार ओ मैथिली अकादेमीसँ 2007मे प्रकाशित अपन पोथी “मैथिली परिशीलन” क पृष्ट 35पर देने छथि। आब हमरा एहन पाठक लेल ई बड़का प्रश्न अछि जे चंद्रबिंदुकेँ लघु मानल जाए की दीर्घ, कारण एकै पं.गोविन्द झा जी अपन भिन्न-भिन्न पोथीमे भिन्न विचार देने छथि आ ई प्रचारित करबाक उपक्रम करै छथि जे जाहि पोथीमे हम जे लीखि देलहुँ से सही अछि। जँ पं.गोविन्द झा जी बाद बला पोथीमे लीखि देने रहितथिन्ह जे “मैथिली छंद शास्त्रमे चंद्रबिंदु केर सम्बन्धमे हम जे लिखने छी से गलत थिक आब आब हम ऐ पोथीमे एकरा सुधारि रहल छी” तखन हमरा जनैत भ्रम नै पसरितै आ ऐसँ हुनक महानता सेहो सिद्ध होइत। मुदा से नै भेल। कोनो भाषाक वैयाकरणक उपर ओहि भाषाक हरेक लोककेँ विश्वास होइत छै। मैथिल सेहो पं. जीपर विश्वास करैत छथि (हमरा सहित) आ तँए बहुत मैथिल लोकनि चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि बैसल छथि। एकर सभसँ बड़का उदाहरण श्री रमण झा सन अलंकार शास्त्री अपन पोथी “भिन्न-अभिन्न” क पृष्ठ 67-73 मे देने छथि जतए श्री रमण जी पं.गोविन्द झा जीक संदर्भ दैत चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने छथि। अस्तु ई गप्प फरिछाएल अछि जे चंद्रबिंदु लघु होइत अछि आ अनुस्वार दीर्घ।
2)  मैथिली छन्द शास्त्रक पृष्ठ 14पर पं.गोविन्द झा जी लिखै छथि जे “न्ह आ म्ह संयुक्ताक्षरसँ पूर्व लघु वर्ण गुरू नै होइत अछि, कन्हाइ, कुम्हार, एहिठाम क ओ कु गुरू नहि थिक।” मुदा जँ अहाँ मैथिली उच्चारणकेँ अकानब तँ साफ-साफ सुनबामे कन् + हाइ ध्वनि आएत तेनाहिते कुम् + हार ध्वनि सुनबामे आएत। मैथिलीमे क + न्हाइ वा कु + म्हार ध्वनि कदाचिते भेटत (किछु लोप छोड़ि जकर चर्च आगू भेटत) तँए गजलमे कन्हाइ लेल दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत आ कुम्हार सेहो दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। ओना गजलेमे किएक हरेक छन्द, हरेक पद्य उच्चारणपर अछि तँए हरेक छंदमे कुम्हार दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। आब कने आर विस्तारसँ चली। उर्दू भाषामे न्ह, म्ह आ ल्हसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ नै होइत छै मने जे जाहि सङ्गे ल्ह, म्ह वा न्ह रहैत अछि तकरे उपर ओ प्रभाव दै छै जेना “तुम्हारा “ऐ शब्दक उच्चारण उर्दूमे “तु + म्हारा” होइत छै तँए उर्दूमे “तुम्हारा लेल लघु + दीर्घ + दीर्घ प्रयोग होइत छै। ओना ऐठाम ई कहब बेजाए नै जे उर्दूमे न्ह, म्ह, ल्ह केर ध्वनि संस्कृतसँ आएल मुदा उर्दूक सचेष्ट विद्वान सभ उच्चारण अपने हिसाबसँ रखलथि। उर्दूक ई उच्चारण हिन्दीमे आएल (बजबा कालमे उर्दू आ हिन्दी एक समान होइत अछि)। मुदा जँ मैथिली उच्चारणकेँ देखबै तँ साफे-साफ अंतर बुझना जाएत। आ एही अन्तरक कारणें मैथिल हरेक आन राज्यमे जल्दिये पहिचानमे आबि जाइत छथि। मैथिलीमे आने संयुक्ताक्षर जकाँ म्ह,न्ह आ ल्ह केर प्रभाव होइत छै तँए कुम्हार आ कन्हाइ लेल दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। संस्कृतमे सेहो “म्ह, ल्ह आ न्ह “सँ पहिने केर लघु दीर्घ मानल जाइत छै। आब देखू तुलसी दास जी द्वारा लिखल ई स्त्रोत--

नमामी शमीशान निर्वाण रूपं
विभू व्यापकम् ब्रम्ह वेदः स्वरूपं

पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि --ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि--ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ । आब ऐ श्लोकक दोसर पाँतिक ब्रम्ह शब्दपर धेआन देबै सभ बुझबामे आबि जाएत। एहिठाम एक छन लेल ई मानि ली जे ध्वनिमे लोप होइत छै आ "कन्हाइ" शब्दक बदला "कनाइ" प्रचलित छै तखन नव शब्दक मात्रा नव ध्वनिक हिसाबें हेतै। नव शब्द "कनाइ" केर मात्राक्रम मूल शब्द "कन्हाइ" केर आधारपर करबै तँ ई युक्तिसंगत नै।

3) पं.गोविन्द झा जी मैथिली छंद शास्त्रक पृष्ठ 13मे संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ हएत की लघु तकर व्यवस्था देखेने छथि। हुनका मतें जँ एकैटा शब्दमे संयुक्ताक्षर हो तखने टा संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। सङ्गे-सङ्ग ईहो कहने छथि जे प्रचलित समासमे जँ अलगो-अलग अक्षर छै तखन संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। सङ्गे-सङ्ग ओ एकर सभहँक अपवाद सेहो देने छथि। लगभग इएह नियम मैथिलीक सभ लेखक अपनेने छथि। सङ्गे हम ईहो कहि दी जे हिन्दीयोमे एहने सन नियम छै (आन आधुनिक भारतीय भाषामे की छै से हमरा नै पता) मुदा ई नियम  संस्कृतमे नै छै। संस्कृतमे चाहे एकै शब्दमे संयुक्ताक्षर हो की अलग-अलग शब्दमे दूनू स्थितिमे संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। संस्कृत पद्यक किछु उदाहरण देखू--पहिने आदि शंकराचार्यक ई निर्वाण षट्कम देखू--

मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि--ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ । दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि--ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ । जँ अहाँ नीकसँ पढ़बै तँ पता लागत जे संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर जे अलग शब्दमे छै ओहो दीर्घ भए रहल छै।
ऐ के अलावे पूरा संस्कृत पद्ये एकर उदाहरण अछि (अहाँ सभ आन उदाहरण आन ठाम देखि सकै छी)। मुदा से देब ने हमरा अभीष्ट अछि आ ने उचित। मैथिलीमे ई नियम नै छै तकर कारण प्राकृत-अप्रभंश भाषाक प्रभाव छै। मैथिली सहित आन-आन आधुनिक उत्तर भारतीय भाषामे ई सेहो ई नियम नै मानल जाइत छै प्राकृत-अपभ्रंशक प्रभावें। आब ई देखू जे ई प्राकृत-अपभ्रंश कोन भाषा थिक। प्राकृतक सम्बन्धमे नाट्य शास्त्रक प्रणेता भरत मुनि कहै छथि जे--
एतदेव विपर्यस्तं संस्कार गुण वर्जितम्
विज्ञेयं प्राकृतं पाठ्यं नाना वस्थान्तरात्मकम्।

मने जे मूल शब्दक अक्षरकेँ आगू-पाछू कए वा सरलीकृत कए बाजब प्राकृत पाठ कहाइए। ऐठाम मूल शब्द कोनो भाषाक भए सकैए। तेनाहिते आचार्य भर्तृहरि जी प्राकृतक सम्बन्धमे कहै छथि जे--
दैवीवाक् व्यवकीर्णेयम शकतैरभि धातृभिः
मने जे दैवीवाक् अशक्त लोकक मूँहमे आबि भिन्न-भिन्न रूपमे आबि जाइ छै। मुदा महाभाष्यकार पतञ्जलि प्राकृतकेँ अपशब्दक रूपमे देखैत छथि आ हुनका मतें ऐ तरहक अपशब्दक प्रयोग चाहे ओ बाजल जाइ की सूनल जाइ दूनू रूपमे अधर्म थिक।
प्रायःप्रायः हरेक भाषाविज्ञानी प्राकृतक बाद बला रूपकेँ अपभ्रंशक नाम देने छथिन्ह। लगभग नवम आ दशम शताब्दी धरि प्राकृतक प्रयोग खत्म भए गेल छल आ अपभ्रंशक प्रयोग शुरू भए गेल छल। मुदा ऐ ठाम मोन राखू जे अधिकांश भाषाविज्ञानी अप्रभंशकेँ प्राकृतसँ अलग मानने छथि मुदा दूनूक प्रकृति एक समान हेबाक कारणें “प्राकृत-अपभ्रंश “नाम बेसी चलै छै। प्राकृतमे शब्दक निर्माण मुख्यतः लोक रूचिपर निर्धारित छै ने की व्याकरणपर। एकटा उदाहरण देखू--चन्द्र शब्दसँ चन्दा प्राकृत शब्द भेल मुदा इन्द्र शब्दसँ इन्दा शब्द नै बनल ब्लकि इन्दर शब्द बनल। तेनाहिते वधू शब्दसँ बहु बनि तँ गेल मुदा साधु शब्दसँ साहु नै बनल। साहु अलग शब्द अछि। आ लगभग एहने हालति अपभ्रंशक अछि। ई बात जननाइ महत्वपूर्ण अछि जे जेनाहिते प्राकृत लेल मूल शब्द संस्कृत छै तेनाहिते अपभ्रंश लेल मूल शब्द प्राकृत छै। आ बादमे एही अपभ्रंशसँ मैथिली आ आन आधुनिक भारतीय भाषा सभहँक जन्म भेल। ओना प्राकृतक बहुत रूप छै। तेनाहिते अपभ्रंशक सेहो अनेको रूप छै। मैथिलीमे अपभ्रंशकेँ अपभ्रष्ट वा अवहट्ट सेहो कहल जाइत छै। मुदा ई प्राकृत रूप हरेक समयमे होइत रहलैए। वेदक नाराशंसी एकर उदाहरण अछि । आ ऋगवेदमे ओहि समयक सामानान्तर भाषाक बहुत रास शब्द भेटत। तेनाहिते अशोक वाटिकामे हनुमान जीक ई चिन्ता जे हम सीता जीसँ देवभाषामे गप्प करी की मानुषी भाषामे सेहो ऐ गप्पक प्रमाण अछि जे ओहू समयमे संस्कृतक समानान्तर भाषा छलै आब ओकर नाम मानुषी होइ की वा अन्य कोनो। महत्वपूर्ण तँ ई छै जे वेदसँ लए कए एखन धरि संस्कृतक समानान्तर धारा बहैत रहल आब भले ही ओकर नाम जे रहल होइ।
संस्कृत शब्द जखन प्राकृत रूपमे आबए लगलै तखन संयुक्ताक्षर शब्दपर बहुत बेसी प्रभाव पड़लै। जँ गौरसँ देखबै तँ पता लागत जे प्राकृत बाजए बला सभ संयुक्ताक्षर शब्दकेँ अपन लक्ष्य बनेने छल ताहूमे एहन संयुक्ताक्षर बला शब्द जे शब्दक शुरूआतमे छल। एकर कारण छलै जे संयुक्ताक्षर बला शब्दकेँ बजबामे बहुत सावधानी आ शिक्षा चाही छल। संस्कृतक संयुक्ताक्षर बला शब्द प्राकृतमे दू रूपमे तोड़ल गेल--
1) जै संस्कृतक शब्दक शुरुआत संयुक्ताक्षरसँ भेल छै तकरा प्राकृतमे पूरा-पूरी लोप कए देल गेलै। केखनो-केखनो शुरूआतक संयुक्ताक्षरकेँ बादमे आनि देल गेलै जेना
“ग्रह” संस्कृत छै मुदा एकर प्राकृत “गिरहो” छै। तेनाहिते स्कन्द लेल खन्दो, क्षमा लेल खमा वा छमा, स्तम्भ लेल खम्भ, स्खलितं लेल खलिअं, क्लेश लेल किलेसो इत्यादि।
2) जँ शब्दक शुरुआत छोड़ि कतौ संयुक्ताक्षर छै तँ केखनो ओकर लोप भए गेल छै वा नव रूपमे संयुक्ताक्षर छै जेना--
चतुर्थी लेल चउत्थी, चैत्र लेल चइत्ता, चन्द्रिमा लेल चन्दिमा, क्षेत्रम् लेल छेतम् आदि-आदि। कुल मिला कए प्राकृत-अपभ्रंशमे एहन स्थिति बनल जे दूनू भाषामेसँ कोनो भाषामे एहन शब्द नै छलै जकर शुरूआत संयुक्ताक्षर शब्दसँ होइत हो।
एतेक विवेचनाक बाद हम अपन मूल उद्येश्य दिस चली। हमर मूल उद्येश्य छल जे मैथिलीमे संस्कृते जकाँ अलग-अलग शब्द रहितों संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ किएक नै होइए। आब जँ गौरसँ उपरका विवरण पढ़ने हएब आ जँ आर प्राकृत-अपभ्रंशक पोथी सभ पढ़ब तँ पता लागत जे प्राकृत-अप्रभंशमे तँ संयुक्ताक्षरसँ शुरूआत शब्द छैके नै। आ मैथिलीयो अपभ्रंशसँ निकलल अछि आ प्रारंभिक मैथिलीमे संयुक्ताक्षरसँ शुरूआत होइत कोनो शब्द नै अछि। आ तँए मैथिलीमे संस्कृतक ई नियम नै आएल। आ अहाँ अपने सोचियौ ने जे जै भाषामे संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत शब्द छैके नै से एहन तरहँक नियम किएक राखत। मुदा जँ नवीन मैथिली भाषाक किछु प्रतिष्ठित लेखकक रचनाकेँ देखी तँ ओ मात्र क्रियापदकेँ छोड़ि सभ संस्कृतक शब्द (तत्सम शब्द)केँ प्रयोग केने छथि। आन-आन कम प्रतिष्ठित लेखक अपन रचनामे तत्सम शब्दकेँ फिल्मी मसल्ला मानि जोरगर प्रयोग करै छथि। एतबा नै पं.गोविन्द झा जी अपन पोथी “मैथिली परिशीलन” क पृष्ठ 29-30 पर गौरव पूर्वक नवीन भारतीय भाषा (जैमे मैथिली सेहो अछि)केँ तत्सम निष्ठ हेबाक बहुत रास फायदा गनौने छथि। आब हमरा सन जिज्ञासु लग ई प्रश्न अपने-आप आबि जाइए जे जँ संस्कृतक शब्द लेलासँ बहुत रास फायदा भेलै (वा भए सकैत छै) तखन तँ संस्कृतक सम्बन्धित नियम लेलासँ सेहो फायदा भेल रहितै (वा भए सकैत छै)। ओनाहुतो मैथिलीमे वा अन्य कोनो आधुनिक भारतीय भाषाक पद्यमे संस्कृत शब्दक प्रयोग होइ छै तखन ओ नियम स्वतः पालन भए जाइत छै। अहाँ अपने मैथिली महँक एहन कोनो पद्य गाउ जाहिमे कोनो शब्दक लघुक बाद संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत कोनो संस्कृत शब्द हो स्वतः अहाँकेँ बुझा जाएत जे अलग शब्द रहितों संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ होमए लगैत छै।  ऐठाँ फेर मोन राखू जे प्राकृत-अपभ्रंश भाषामे एहन शब्द छलैहे नै जकर शुरूआत संयुक्ताक्षरसँ होइ तँए ओहि भाषामे ई नियम नै पालित भेल। आब एतेक विवेचनक बाद अहाँ सभकेँ मामिला बुझबामे आएल हएत। तँए हमर आग्रह जे जँ ऐ नियमसँ बचबाक हो तँ संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत शब्दक तद्भव रूप प्रयोग करू जेना “प्रकाश “लेल परकाश, “प्रयोग “लेल परियोग इत्यादि। हमर कहबाक मतलब जे जेना पुरना कालमे प्राकृत संयुक्ताक्षरकेँ हटा देलकै वा आधुनिक कालक किछु भाषामे संयुक्ताक्षर हटि गेलै तेनाहिते मैथिलीमेसँ संयुक्ताक्षर सेहो हटा दिऔ। आ जँ अहाँ संस्कृते शब्द लेब तखन पूरा नियम सहित लिअ। आब अहाँ जँ सकांक्ष पाठक हएब तँ हमरासँ पूछब जे जँ केओ संस्कृत छोड़ि आन भाषाक संयुक्ताक्षर शब्द लेत तखन की ओहि भाषाक नियमक पालन करत? ऐ लेल हमर उत्तर रहत जे नै कारण आन भाषाक शब्द तँ अहाँ देवनागरिए कि तिरहुतेमे लिखबै ने आ जँ देवनागरी या तिरहुतामे लिखबै तखने ओइमे मैथिलीक संयुक्ताक्षर बला नियमे अपने मोने पालन हेबे करतै। ई छल हमर पहिल तर्क। आब कने दोसर तर्क दिस चली--
पद्यमे एकटा पाँतिकेँ इकाइ मानल जाइत छै। आ जँ हम शब्दकेँ भिन्न-भिन्न करै छिऐ मने अलग-अलग शब्दक संयुक्ताक्षरसँ भेल दीर्घ नै मानै छिऐ तँ एकर मतलब जे हम पाँतिकेँ नै बल्कि शब्दकेँ इकाइ मानि रहल छिऐ आ हमरा जनैत पद्यमे शब्दकेँ इकाइ मानब उचित नै। पद्यमे इकाइ सदिखन पाँति होइ छै। एकटा विडंबना देखू जे मैथिलीक सभ व्याकरणशास्त्री आ कवि लोकनि शब्दकेँ इकाइ तँ मानै छथि मुदा जखन जगण-मगण केर गिनती करै छथि तखन पाँतिकेँ इकाइ मानि लै छथि। एकटा उदाहरण लिअ जे की वसन्त तिलका छन्दक अछि। ऐ छन्दक व्यवस्था एना अछि--
तगण+ मगण+जगण +जगण + गा + गा
मने की दीर्घ+दीर्घ+लघु + दीर्घ-लघु-लघु +लघु-दीर्घ-लघु +लघु-दीर्घ-लघु +दीर्घ+ दीर्घ 
आब एकर पद्य उदाहरण देखू--
“ई ने अहाँक सन वीरक काज थीकऽ”
(ई पाँति कविवर सीताराम झाक छनि जे की पं.गोविन्द झाजीक पोथी मैथिली छन्द शास्त्र, पृष्ठ--45सँ लेने छी हम)। ऐ एकटा पाँतिमे देखू जे “ई “आ “ने “दूटा अलग-अलग शब्द अछि सङ्गे-सङ्ग तेसर शब्द “अहाँक” केर पहिल अक्षर “अ “लए कए मात्र एकटा “तगण “बनल अछि। आब हमर कहब अछि जे जँ अहाँ पद्यमे शब्देकेँ इकाइ मानै छिऐ तखन दू-तीनटा अलग-अलग शब्दकेँ सानि एकटा जगण-मगण किएक बनबै छी। जँ केओ शब्देकेँ इकाइ मानै छथि तकर मतलब ई भेल जे ओ अपन पद्यमे एहन शब्दकेँ प्रयोग करथि जे हरेक जगण-मगण मने कोनो दशाक्षरी खण्ड लेल समान रूपसँ रहए। तँए हमर मानब जे संस्कृतक पद्ये जकाँ जँ अलग-अलग शब्द होइ तैयो संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक बला अक्षर दीर्घ हएत। ऐठाँ ई मोन राखू जे एकटा पाँति खत्म भेलै तँ ओ इकाइ खत्म भेलै। आब जँ दोसर पाँतिक शुरूआत संयुक्ताक्षरसँ भए रहल छै तकर प्रभाव पहिल पाँतिक अन्तिम शब्दक अन्तिम अक्षरपर नै पड़त। व्यक्तिगत रूपें हम अलग-अलग शब्द होइ तैयो संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक बला अक्षर दीर्घ मानै छी।

पं.गोविन्द झा जी अपन पोथी “मैथिली छन्द शास्त्र “क पृष्ठ 14पर लिखै छथि जे  ए,ऐ,ओ,औ कतहु लघु होइत अछि आ कतहु दीर्घ आ तकर बाद ओ समान्य नियम देखेने छथि। मुदा उदाहरणमे देल गेल जे-जे शब्द सभ लेने छथि से प्रयाः-प्रायः आइसँ 150 बर्ख पहिनुक अछि तथापि हम ओइ नियम सभहँक विवेचन आगू करब आ ईहो सिद्ध करब जे ए,ऐ,ओ,औ जतए रहत ततए दीर्घ रहत।  हँ, ओइसँ पहिने दूटा गप्प धेआन राखू पहिल जे बहुत काल ए,ऐ,ओ,औ आदिक उच्चारण कोमल भऽ जाइत छै मुदा कोमल उच्चारणक कारणें ओ लघु नै मानल जाएत। आ दोसर गप्प जे प्राकृतकालमे संस्कृतक विरोध स्वरूप लोक सभ अपना सुविधाक हिसाबसँ ए,ऐ,ओ,औ आदिकेँ कतौ लघु आ कतौ दीर्घ मानि लेला। शुरुआती प्राकृत कालमे उच्चारण मुख-सुखपर आधारित अछि मने एहन उच्चारण जकरा बाजएमे बेसी कठनाइ नै हो। मुदा जखन इएह प्राकृत संस्कारयुक्त बनि गेल तखन संस्कृते जकाँ एकरो विरोध भेलै आ अप्रभंश भाषा आएल आ अपभ्रंशो जखन संस्कारयुक्त बनि गेल तखन मैथिली, बंगला, असामी, उड़िया, अवधी सन भाषाक जन्म भेल। मुदा आइकेँ जुगमे जखन की मैथिली संस्कारयु्क्त बनि गेल अछि तखन प्राकृत-अप्रभंश नियमक कोन काज (आब अहाँ सभ ई डर नै देखाएब जे संस्कारयुक्त भेलासँ मैथिली मरि जाएत। जँ एतबे डर अछि तखन मैथिलीकेँ 1000 बर्ख पाछू लऽ जाउ आ तखन प्राकृत-अप्रभंश नियम लिअ। वस्तुतः भाषाकेँ मरब आ जन्मब प्रकिया मनुक्खे जकाँ छै जे की रोकल नै जा सकैए। हँ, किछु स्थान राखल जा सकैए जैसँ मूल भाषाक विशेषता नव भाषामे रहि जाए) तँए हमर ई स्पष्ट रूपें मानब अछि जे ए,ऐ,ओ, औ आदि जतए रहै ओकरा दीर्घ मानू (ओना छन्दमे केखनो काल अपवाद स्वरूप काज चलेबा लेल ए,ऐ,ओ, औ आदिकेँ लघु मानल जाएत रहलैए मुदा ई छूट जकाँ भेल नियम जकाँ नै आ अइ छूट सभहँक विवरण आगू भेटत) ।पं. जी एही पोथीक पन्ना 14हेपर एकटा नियम देलाह जे तद्भव शब्दमे अन्तसँ तेसर ओ चारिम स्थानपर पड़निहार ए,ऐ,ओ,औ सभ लघु थिक जेना--
तेल (21) तेलाह (121)
फैल (21) फैलगर (1111)
मुदा पं. जी ई नै स्पष्ट केलाह जे अन्तसँ तेसर ओ चारिम स्थानपर पड़निहार ए,ऐ,ओ,औ सभ लघु किएक होइत अछि। आब आउ चली प. गोविन्द झा जी द्वारा लिखित आ 1987मे प्रकाशित पोथी “मैथिली उद्गम ओ विकास “(पहिल संस्करण 1968मे मैथिली प्रकाशन समीतिसँ आ दोसर परिवर्धित संस्करण मैथिली अकादेमीसँ)क 19एम पन्नापर--
“11 (1)  वैदिक कालहिसँ ई नियम चल अबैत अछि जे एके पदमे एके स्वर उदात रहए, आन सभ अनुदात भए जाए। ई नियम शेष निघात कहबैत अछि। एहि प्राचीन नियमक परिणामस्वरूप मैथिलीमे एक बड़े महत्वपूर्ण नियम ई अछि जे अन्तसँ प्रथम ओ द्वितीय स्थानकेँ छोड़ि शेष जतेक ध्वनि अछि से लघु भए जाइत अछि। एहि नियमकेँ पण्डित ग्रिअर्सन साहेब Rule of ऽhort antepenultimate कहल अछि। मैथिलीमे एहि नियमक अनुसारें एक शब्दमे अधिकसँ अधिक दुइ गुरू रहि सकैत अछि, आ सेहो अन्तसँ प्रथम वा द्वितीय स्थानमे,ताहिसँ पूर्व सकल स्वर नियमतः लघु रहत, तथा प्रत्यादि जोड़लासँ जखनहि कोनो गुरू ध्वनि तृतीय वा ताहिसँ पूर्व पड़ि जाएत तखनहि ओ लघु भए जाएत। एकर उदाहरण ग्रंथमे वारंवार भेटत, एतए दुइ-चारि उदाहरण देखबैत छी पानि,पनिगर,काँट,कटाँह, बात, बताह, बतहा, बतहबा।
टि0 एहि नियमकेँ कने आर परिष्कृत करब आवश्यक। ग्रिअर्सन साहेबक कथानुसार यदि तृतीय वर्ण नियमतः लघु होइत अछि तँ “पाओल “, “आबए “इत्यादिमे “आ “लघु किएक नहि भेल? एकर समाधान ग्रिअर्सन साहेब ई देल अछि जे अन्तिम लघु स्वर वा लघुत्तम स्वरक लेखा नहि होइत अछि। परन्तु छन्दमे शतशः उदाहरणसँ आ उच्चारण पर्यवेक्षणसँ ई स्पष्ट अछि जे अन्तिम लघुत्तम स्वरो एक वर्ण एक ऽyliable गनल जाइत छल। तें उक्त नियमक स्वरूपएहन राखब समुचितः मैथिलीमे गुरू ध्वनि अन्तसँ चारि मात्राक भित्तरे रहि सकैत अछि, ताहिसँ पूर्व नहि। फलतः मैथिली शब्दक अवसान 22,112,211,121 एही चारि प्रकारक भए सकैत अछि ओ ताहिसँ पूर्व सकल ध्वनि बिनु अपवादेँ लघु रहत यथास0 आकाश, मै0 अकास इत्यादि।”
फेर पं. जी 1992मे प्रकाशित पोथी “उच्चतर मैथिली व्याकरण “द्वितीय संस्करणक पृष्ठ 19पर,  2006मे प्रकाशित पोथी “मैथिली परिचायिका “केर पृष्ठ 11पर आ 2007मे प्रकाशित पोथी “मैथिली परिशीलन “केर पृष्ठ 56-57पर इएह गप्प एक समान रूपसँ कहने-लिखने छथि।
तँ पं. जीक करीब पाँचटा पोथीमे ऐ विषयवस्तुकेँ पढ़लाक पछाति हम अपन किछु विचार राखए चाहब--
1) वैदिक कालमे छन्द निर्माण लेल लघु-गुरू प्रकिया नै छल। मात्र अक्षरकेँ गानि कऽ छन्द बनै छल जकरा गेबा लेल उदात, अनुदात एवं स्वरित रूपक सहायता लेल जाइत छलै। उदात मने कोनो अक्षरक स्वरकेँ उठा कऽ गाएब, अनुदात मने कोनो अक्षरक स्वरकेँ निच्चा खसा कऽ गाएब तथा स्वरित मने कोनो अक्षरक स्वरकेँ तुरंत उपर उठा कऽ तुरंत निच्चा खसा कऽ गाएब। वैदिक साहित्यमे जे अक्षर लघु अछि तकर उच्चारण उदात भऽ सकैए तेनाहिते जे अक्षर दीर्घ अछि तकर उच्चारण अनुदात भऽ सकै छल। सोझ रूपसँ कही तँ उदात,अनुदात-स्वरित कोनो अक्षरक मात्रापर निर्भर नै छल।
2) वैदिक साहित्य केर बाद लौकिक संस्कृतसँ लऽ कऽ  प्राकृत-अप्रभंश भाषा रूपमे मैथिली साहित्यमे वैदिक छन्द नै रहल मने या तँ लौकिक संस्कृतक वर्णवृत रहल या मात्रिक छन्द (अधिकांशतः मात्रिक)
3) पं. जी लघु-गुरू नियम आ उदात-अनुदात-स्वरित प्रकियाकेँ एकै मानि लेने छथि।
4) पं. जीक हिसाबें ग्रिअर्सन साहेब द्वारा देल गेल Rule of ऽhort antepenultimate बेसी ठीक नै अछि तँए पं. जी ओहिमे संशोधन केलाह। आब हमर प्रश्न ई अछि जे जँ उपरका नियम मैथिली लेल अनिवार्य अछि तखन ओहिमे संशोधन किएक?
5) पं. जीक पोथी सभ पढ़ि हमरा बहुत बेर ई अनुभव होइए जे पं. जी व्याकरण शास्त्र, छन्द शास्त्र आ ध्वनि विज्ञान तीनूक नियम एकैमे सानि देने छथिन्ह। हरेक भाषामे लघुतर आ अतिलघुतर ध्वनि होइ छै मुदा ओकर विवेचन व्याकरण आ छन्द शास्त्रमे नै भऽ ध्वनि शास्त्रमे होइत छै। जँ लेखककेँ एकै पोथीमे ध्वनि विज्ञान देबाक रहै छै तँ ओकर खण्ड अलग कऽ देल जाइत छै। ऐ लऽ कऽ पं. जीक पोथीमे बहुत ठाम संदेहात्मक स्थिति बनि जाइत छै।

हम उपरमे जे विचार रखलहुँ ताहि अधारपर अपन निष्कर्ष दऽ रहल छी—
6) ई नियम अनिवार्य नियम नै अछि कारण पं. जी स्वयं ऐ नियमक बहुत रास अपवाद देखेने छथि। कोनो अनिवार्य नियममे जँ एतेक अपवाद हो तँ निश्चित रूपसँ ओकर अनिवार्यतापर प्रश्नचिन्ह लागै छै।
7) ई नियम व्याकरणक ओ छन्दशास्त्रक नै बल्कि शब्दकोषीय अछि। मने ऐ नियमक सहायतासँ अहाँ संस्कृत वा अन्य भाषाक शब्दकेँ मैथिलीकरण कऽ सकै छी। मोन पाड़ू प्राकृत भाषा संस्कृतक शब्द सभकेँ (मने शब्दक शुरूसँ पहिल,दोसर वा तेसर दीर्घक उच्चारण गाएब कऽ देलक। आब आगू ऐ गाएब कएल दीर्घ लेल हम मात्र कोमल शब्दक प्रयोग करब) कोमलीकृत केलक जेना--आकाश केर बदला अकास, आत्मा केर बदला अत्मा आदि। बादमे एही नियमक अधारपर अंग्रेजी शब्दक इएह हाल भेलै जेना ड्राइवर केर बदला डरेबर, स्टेशन केर बदला टेशन (टीशन), आदि-आदि। मुदा ई नियम ओहने शब्दमे लागल जै शब्दमे विराम लेबाक सुविधा नै छलै। “परिशीलन” ई एकटा शब्द अछि मुदा एकर उच्चारण  “परि-शी-लन” होइत अछि मने एकै शब्दमे दू ठाम विराम अछि तँए ऐ शब्दकेँ कोमल करबाक जरूरति नै भेल। अरबी-फारसीक हजारों शब्द मूल रूपसँ मैथिलीमे चलि रहल अछि (मने बिना कोमल केने) कारण ओइ शब्द सभमे विराम छै वा रहल हेतै। जँ अहाँ “मैथिली “शब्दक उच्चारण करबै तँ “मै-थिली “उच्चारित हएत।  मुदा विरामक ई सुविधा आकाश, आत्मा, ड्राइवर आदि शब्दमे नै छलै तँए ओकरा कोमल बना प्रयोगमे लेल गेलै। स्वयं पं. जी अपवाद स्वरूप जै शब्दक उदाहरण देने छथि तकरा देखू—बासन केर उच्चारण बा-सन भेल। मानल केर उच्चारण मा-नल भेल। अनलहुँ केर उच्चारण अन-लहुँ भेल। मने एहू शब्द सभमे विराम छै तँए एहू शब्द सभकेँ कोमल करबाक जरूरति नै बुझाएल। जँ ऐ नियमक अधारपर देखी तँ आधुनिक मैथिली भाषाक कतेको शब्दकेँ ठीक करबाक जरूरति बुझाएत। हालेमे दरभंगासँ प्रकाशित मैथिली दैनिक “मिथिला आवाज “ऐ नियमक अधारपर गलत अछि। सही नाम हेतै “मिथिला अवाज “। तँ आब अहाँ सभ बूझि सकै छिऐ जे पं. जी जै नियमकेँ अनिवार्य मानै छथि से मात्र अन्य भाषाक शब्दकेँ मैथिलीकरण करबाक औजार थिक। उच्चारणक आग्रहसँ औजारक जरूरति भैयो सकैत छै आ नहियो भऽ सकै छै। ई शब्दकोषीय नियम आजुक कालमे ओतबे महत्वपूर्ण अछि जतेक की पहिने छल। लेखक सभसँ आग्रह जे ऐ नियमसँ अन्य भाषाक शब्दकेँ मैथिलीकरण करथि आ मैथिलीक निजताकेँ सुरक्षित राखथि।ऐ के विपरीत केखनो काल भाषाक निजता रखबाक लेल शब्दकेँ दीर्घ सेहो कएल जाइत छै जेना उर्दूमे उस्ताद मुदा मैथिलीमे ओस्ताद। वकील केर बदलामे ओकील आदि-आदि। तँ एतेक धरि एलाक पछाति हम कहि सकै छी जे ए,ऐ,ओ,औ आदि जै ठाम रहत दीर्घे रूपमे रहत खास कऽ शब्दक शुरुआत आ बीच बला दीर्घ। अकारण रूपसँ वा अपना मोने कोनो ए,ऐ,ओ,औ बला दीर्घकेँ लघु मानि लेबासँ नीक जे मैथिली भाषामेसँ लघु-गुरू हटा वैदिक छन्दक फेरसँ प्रचलन कएल जाए। ऐसँ अनावश्यक रूपसँ खर्च होइत उर्जा बचत आ भाषाक विकास सुनिश्चित हएत।
उपरक ऐ खंडनक अतिरिक्त हम फेसबुकपर एकटा बहस चलेलहुँ जे की पं.गोविन्द झाजीसँ संबंधित अछि आ एकरा ऐठाँ देल जा रहल अछि। ई पढ़लासँ पता चलि जाएत जे पं.जी कोना दुविधासँ ग्रस्त छथि---


पं.
गोविन्द झाजीक
Govind Jhaलिखल पोथी,
मैथिली परिचायिका पृष्ठ 36मे ई उल्लखित छै जे--” हरेक
शब्दमे एकटा गुरु रहब अनिवार्य अछि ।
जँ ई सत्य तखन गगन, चमन, बदन, कसि, रहि, बहि आदि सभ शब्द छै की नै।
हमर ई प्रश्न मात्र व्याकरणिक आ छंदशास्त्रीय दृष्टिकोणसँ अछि कारण
ध्वनिशास्त्रमे लघु-गुरूक निर्णय बाजहे कालमे संभव छै।
पं.जी फेसकबुकपर सशरीर उपल्बध छथि आशा अछि जे हमर शंकाकेँ ओ ध्वस्त करताह
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Ashish Anchinhar मैथिली परिचायिका पृष्ठ 36
Govind Jha अहाँक प्रश्नsक उत्तsर हमsर एही वाक्य मे भेटि जाएत। ई उच्चारणक विशेषता थिक लेख मे ई विशेषता प्रकट करबाक होइछ तँ अङरेजी एस अक्षर लगाओल जाइत अछि।
Ashish Anchinhar Govind Jha Ji---आदरणीय, अहाँक उत्तऽर पढ़ल। मतलब जे अहाँ जतऽ बलाघात पड़ि रहल छै तै ठाम विकारी लगा कऽ ओकरा “गुरु” घोषित कऽ रहल छिऐ। मुदा अहाँ अपने अपन पोथी “मैथिली परिशीलन” केर पृष्ठ 54पर लिखने छी जे-” तें ई नहि बूझल जाए जे आघातक कारणे लघु स्वर गुरु भ जाइछ......... आघातक कारणे ओकर प्रलम्बता बढ़ैत छै”

आब कहू सत्य की थिक।

ओनाहुतो हम पहिनेहें कहि चुकल छी जे उच्चारण विशिष्टता ध्वनिशास्त्रक विषय थिक व्याकरण ओ छंदशास्त्रक नै।

फेर मैथिली छंद शास्त्र नामक पोथीमे जे नगण (लघु-लघु-लघु) केर उदाहरण देने छिऐ से कोना संभव हेतै ।

आदरणीय आशा अछि जे आन विद्वान जकाँ अहाँ खिसिआएब नै बल्कि नीक जकाँ हमर शंकाक समाधान करब..
Gajendra Thakur मनोज् केँ मनोज बाजल जाए तइ लेल मनोजs लिखबाक आवश्यकता नै।
Ashish Anchinhar आदरणीय पं. Govind Jha जी हम अपनेक प्रतिक्रियाक आशामे छी। लोकक नै मात्र हम अपन जिज्ञासाक शांतिक लेल ई प्रश्न राखल अछि। उम्मेद अछि जे यथाशीघ्र हमर जिज्ञासा शांत हएत आ एकर संगे-संग भविष्यमे उठऽ बला प्रश्नक शमन सेहो हएत।
Gajendra Thakur एकटा गलतीकेँ सुधारनाइ ओइ लेल तर्क तकबासँ बेशी नीक
Ashish Anchinhar मैथिली परिशीलनक पृष्ठ 203पर पं.जी जलद बरिस केर मात्राक्रम लघु लघु लघु लघु लघु लघु लेने छथि। एहन विरोधाभास बहुत अछि
Ashish Anchinhar Govind Jha हम एखनो पं. .जीक उत्तऽरक प्रतीक्षामे छी। ओना आब हम ऐ पूरा बहसकेँ अपन गजल व्याकरणक पोथीमे दऽ रहल छी जैसँ भविष्यमे लोककेँ बुझबामे औतन्हि जे मैथिलीक व्याकरण कोन-कोन अवस्थासँ गुजरल अछि।

ओना हम सदिखन पं.जीक उत्तऽरक प्रतीक्षामे रहब।...

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गजलमे नियम शैथिल्य
नियम शैथिल्य मने ई भेल जे कोनो छंदक नियम तँ ओ छैहे मुदा कोनो कारणवश एक-दू शब्द या एक-दू मात्रा उपर निच्चा भऽ रहल छै। ओइ स्थितिकेँ “नियम शैथिल्य” कहल जाइत छै (एकरा गजलक नियममे छूट सेहो कहल जाइत छै) । प्रश्न उठै छै जे “नियम शैथिल्य केकरा लेल?” । कारण जे स्वच्छंद जँ कहथि जे हमरा अमुक छंद-बहरमे ई शैथिल्य भेटबाक चाही तँ अइसँ बड़का हँसीक बात कोन हएत? हमर कहबाक मतलब जे “अनुशासिते लोककेँ नियम शैथिल्य के लाभ भेटि सकैए” ।
गजल पूरा-पूरी वर्णवृत थिक मने गजलमे हरेक पाँतिक मात्राक्रम एक होइत छै। मुदा केखनो काल एहन स्थिति-परिस्थिति बनै छै जे लघुक स्थानपर दीर्घ आ दीर्घक स्थानपर लघु। एहन समयमे शाइरकेँ किछु छूट सेहो भेटै छै । ऐ छूटक विवरण आगू देल जाएत। संस्कृतमे मात्र एकटा छूटक उल्लेख अछि। संस्कृतमे पाँतिक अन्तिम लघुकेँ दीर्घ वा दीर्घकेँ लघु मानि लेल जाइत छै। प्राकृत-अप्रभंश अधारित भाषामे आर किछु छूट भेटल छै तकर विवरण आगू देल जा रहल अछि। प्राकृत भाषामे संस्कृतक सभ नियम टूटि गेल। अचार्य हेमचंद्र जखन अप्रभंश व्याकरण बनेलाह तखन ओहि समयक उच्चारणक हिसाबें “ए, ऐ, ओ, औ” केँ लघु सेहो मानबाक नियम बनेलाह। मने अप्रभंशमे “ए, ऐ, ओ, औ” आदि दीर्घ आ लघु दूनू रूपमे लेल गेल। आ तँए आधुनिक कालक मैथिलीक व्याकरणशास्त्री सभ अपन-अपन व्याकरणमे “ए, ऐ, ओ, औ” केँ अप्रभंशे जकाँ मानि लेने छथि वा मनाबाक ओकालति करै छथि। मुदा सभ आधुनिक व्याकरणशास्त्रीकेँ ई बूझए पड़तन्हि जे करीब 1200-1500 बर्ख पहिने अप्रभंश भाषाक प्रयोग बन्न भए गेलै आ आब मैथिलीमे स्थायित्व आबि गेल छै। सङ्गहि-सङ्ग आधुनिक मैथिली संस्कृतनिष्ठ सेहो भऽ चुकल अछि तँए अप्रभंश भाषाक नियमसँ आधुनिक मैथिलीकेँ हाँकब उचित नै। आ जँ हँकबे करब तँ हमर कहब जे तखन प्राचीन अप्रभंश भाषाक पूरा लक्षण लिअ आ उच्चारण पद्धति लिअ। तँए ऐ ठाम हम जे छूट लीखि रहल छी से वैदिक-लौकिक आ प्राकृत-अप्रभंशसँ तँ लेले गेल अछि सङ्गहि-सङ्ग अरबी-फारसी-उर्दूसँ सेहो लेल गेल अछि। गजलक मात्राक्रममे ई छूट सभ लैत कालमे शाइर निच्चा लिखल 7 टा गप्पकेँ नीक जकाँ मोन राखथि--
1) छूट सदिखन छूट जकाँ हेबाक चाही। मने एहन आ एते छूट नै लेल जाए जाहिसँ गजलक स्वरूपपर प्रश्न चिन्ह लागि जाए। जँ गजलमे एक-दू ठाम छूट लेल जाए तँ नीक।
 2) छूट सदिखन उच्चारण हिसाबसँ ली आ ओकर लिखित स्वरूप मानक रूपमे हेबाक चाही। मने लिखित वर्तनी मानक हेबाक चाही। अरूजी वा पाठक जखन मात्रा गनता तखन ओहि मानक वर्तनीकेँ लघु वा दीर्घ मानि लेता। ओना परंपरा तँ ई छै जे नागरी वा मिथिलाक्षरमे जे लिखिते स्वरूपकेँ उच्चारण कएल जाए। मुदा एना केलासँ या तँ छूट नै भेटत वा मानक भाषाक स्वरुप बिगड़ि जाएत। तँ हमरा विचारें लिखित स्वरूप मानक हेबाक चाही आ छूट उच्चारणक हिसाबसँ (किछु ओहन अपवाद छोड़ि जकर दू तरहँक वर्तनी मान्य अछि जेना -केओ-कियो, इम्हर-एम्हर, उम्हर-ओम्हर आदि)।
3) कोनो प्रकारक छूट रदीफ आ काफियामे मान्य नै हएत। ऐ प्रकारक छूट रदीफ आ काफियामे लेलासँ गजलक मूल स्वरूपे नष्ट हएत।
4) शाइर जेना बहरक नाम लिखै छथि तेनाहिते गजलमे लेल गेल छूट सेहो लिखथि।
5) मात्र आ, ई ए, ऐ, ओ, औ बला मात्रासँ बनल दीर्घकेँ या शब्दक अंत बला आ, ई ए, ऐ, ओ, औ या एक अक्षरीय आ, ई ए, ऐ, ओ, औ आदिकेँ लघु मानल जा सकैए। अनुस्वार, दूटा लघुकेँ मिला कऽ एकटा दीर्घ, संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला, विसर्ग बला दीर्घकेँ लघु मनबाक परंपरा नै अछि।
6) जँ दीर्घसँ पहिने लघु छै तँ ओहि दीर्घकेँ लघु मानि आ ओइसँ पहिने बला लघु मिला कऽ दीर्घ नै बना सकै छी। एहन स्थितिमे ओ दूटा लघु हएत। जेना “हटा “शब्दमे जँ केओ “टा” दीर्घकेँ लघु मानै छथि तँ एकर मात्राक्रम लघु-लघु हएत। दू टा लघुकेँ मिला कऽ एकटा दीर्घ बला नियम ऐठाँ नै लागत।
7) संज्ञा शब्द, तत्सम शब्द आ रूढ़ अर्थ देनिहारक शब्दमे छूट नै लेल जा सकैए। ओना एकर किछु अपवाद छै जे की निच्चा देखाओल जाएत। तँ चली आब छूटक सूची दिस---
                  
अ) दू टा अलग-अलग शब्दक वर्णकेँ मिला एकटा दीर्घ सेहो मानल जा सकैए बशर्ते की ओहि गजलक हरेक पाँतिमे दीर्घ हेबाक चाही। उदाहरण लेल जँ कोनो गजलक मतलाक पहिल पाँति एहन होइ ---

तोहर आँचर आब हमर जिनगी अछि
एकर मात्रा क्रम अछि 22-22-211-22-22
मुदा ऐमे छूट लेल जा सकैए आ एकरा 22-22-22-22-22 रूपमे सेहो लेल जा सकैए आ शाइर एकर निच्चा बला पाँति सभमे 22-22-22-22-22 लऽ गजल पूरा कऽ सकै छथि (उर्दूक बहुत रास शाइर ऐ बहरमे 121 के सेहो 22 मानै छथि आ हमरा हिसाबें ई आर बेसी सुविधा दै छै गजलमे कारण मैथिली बहुत रास शब्द लघु-दीर्घ-लघु केर आधारपर अछि जेना “उतान”, लगान” बथान” आदि तँइ ईहो छूट मैथिलीमे मान्य हएत। संगे-संग अइ छूटक ईहो लाभ जे दूटा अलग शब्दक कारण जँ लघु-दीर्घ-लघु बनि रहल हो तखनो ई छूट भेटत जेना “लोक छै बहुत”  2222 मानल जाएत। उर्दूमे बेसी दूर-दूर बलाकेँ लघुकेँ सेहो दीर्घ मानल जाइए आ कोनो दीर्घकेँ लघु मानि कऽ सेहो आन लघुमे जोड़ि देल जाइए मुदा हमर मानब जे दू टा लघुक बीच जतेक कम दूरी हो ततेक नीक। ऐ बहरकेँ बहरे-मीर सेहो कहल जाइत छै। उर्दूक महान शाइर मीर तकी मीर ऐ बहरक बहुत बेसी प्रयोग केने छथि। कहल जाइत छै जे अरबी बहर आ संस्कृतक प्रचलित छंदकेँ मिला कऽ ऐ बहरक निर्माण भेल छै। संस्कृतमे एहन प्रयोग जयदेव रचित “गीत गोविन्द” मे प्रचुरतासँ भेटैत अछि। प्रस्तुत अछि गीत गोविन्दक दूटा पद--

चंदन-चर्चित-नील-कलेवर-पीतवसन-वनमालिन् ।
केलि-चलन्मणि-कुंडल-मंडित-गंडयुग-स्मितशालीन् ।।

चंद्रक-चारु-मयूर-शिखंडक-मंडल-वलयित-केशम् ।
प्रचुर-पुरंदर-धनुरनुरंजित-मेदुर-मुदिर-सर्वेषम् ।।

आशा अछि जे बात स्पष्ट भेल हएत।

आ) संस्कृत परंपरानुसार मात्र पाँतिक अंतिम लघुकेँ दीर्घ मानल जा सकैए मुदा गजलमे ई छूट रदीफ या काफिया (बिना रदीफक गजलमे) मे नै हेबाक चाही। मने ई छूट मतलामे लागू नै हएत आ संगहि-संग आन शेरक रदीफ या काफियामे सेहो नै हएत।

इ) संस्कृत परंपरानुसार मात्र पाँतिक अंतिम दीर्घकेँ लघु मानल जा सकैए मुदा गजलमे ई छूट रदीफमे नै हेबाक चाही। मने ई छूट मतलामे लागू नै हएत आ संगहि-संग आन शेरक रदीफमे सेहो नै हएत। मने ई छूट समान्य शेरक पहिले पाँतिमे भेटि सकैए। प्राकृत-अप्रभंश भाषामे ऐ छूटमे विस्तार कएल गेलै जे पाँतिक कोनो शब्दक अंतिम दीर्घकेँ लघु मानल जा सकैए। आ तँए हमरा हिसाबें ई छूट पाँतिक कोनो शब्दक अंतिम दीर्घपर (काफिया-रदीफ छोड़ि) सेहो लागू हएत। जै शब्दमे विभक्ति लागल छै तै शब्द लेल विभक्तिए अंतिम शब्द मानल जाएत। मोन राखू शब्दक पहिल ओ बीच बला दीर्घकेँ लघु नै मानि सकै छी। सभ भाषाक गजलमे एहने नियम छै।

ई) मैथिलीमे एकटा बड़का विशेषता अछि जे तद्भव आ देशज शब्दमे ह्रस्व “इ “आ ह्रस्व “उ “केर उच्चारण पाछू घुसुकि जाइत अछि तँए मैथिली गजलमे आपत्तिकालमे ओकरा सेहो छूट मानल जा सकैए। उदहारण लेल--
राति (लिखित रूप 21)
राइत (उच्चारण रूप 22)
साधु (लिखित रूप 21)                                           
साउध (उच्चारण रूप 22)
अछि (उच्चारण रूप अइछ 12 वा 21)
एकटा पाँति देखू—

अजोह सन रातिमे
एकर मानक मात्राक्रम अछि 1212212 मुदा राति केर उच्चारणमे छूट लऽ एकरा अजोह सन राइतमे मने 1212222 सेहो मानल जा सकैए। ई छूट मैथिली भाषाक अपन छूट अछि। तेनाहिते औ लेल अउ भऽ सकैए। ऐ लेल अइ सेहो भऽ सकैए। ऐकेँ संगे बहुत रास तत्सम शब्दमे दीर्घ “इ” वा दीर्घ “उ” केर उच्चारण आबि जाइत अछि जेना “ऋषि” केर उच्चारण “ऋषी”, मुनि केर उच्चारण “मुनी”, “अनु” केर बदला “अनू” । एहन परिस्थितिमे मोन राखू जे ई सभ गलत उच्चारण छै आ केखनो काल कऽ गायनमे एना करऽ पड़ैत छै। लिखित रूपमे प्रयास राखी जे मानक हो। ओना विपत्तिकालमे “ऋषि” केर मात्राक्रम “ऋषी” जकाँ या मुनि केर मात्राक्रम “मुनी” जकाँ या, “अनु” केर बदला “अनू”  मानल जा सकैए। मुदा मात्र विपत्तिए कालमे। लिखित रूप मानक रहबे करत।

उ) मैथिलीमे निश्चित वा अनिश्चित वस्तु लेल मूल “ई “केर प्रयोग होइत अछि। जेना
ई के अछि?
ई हमर भाए अछि।
बहर वा छंदकेँ पुरेबाक लेल “ई “के सेहो लघु मानि सकै छी।

ऊ) “मे” विभक्ति बहुत काल “म” केर उच्चारण दैए। जेना “आइ हमर गाममे भोज छै” एकर उच्चारण अछि “आइ हमर गाम म भोज छै। तँए मे विभक्तिकेँ सेहो लघु मानि सकै छी। आन विभक्ति संदर्भमे एहने सन बुझू। ई छूट मैथिली भाषाक अपन छूट अछि।

ए) दीर्घक बाद बला मूल ए, ऐ, ओ, औ आदिकेँ लघु मानल जा सकैए। जेना “होएत” शब्दमे ए के लघु मानि सकै छी। आ एहन स्थितिमे एकर मात्राक्रम 22 भऽ जाएत। आन शब्द लेल एहने बूझू।

ऐ) मात्रा बला एक अक्षरीय दीर्घ शब्दकेँ (के, रे हे टा, जो, खो) सेहो आपत्तिकालमे लघु मानल जा सकैए।

ओ) जँ कोनो पाँतिक अंतमे एकटा लघु मात्रा बढ़ि रहल अछि तँ आपत्ति कालमे एकरो छूट मानल जा सकैए। ई छूट लेबा लेल दू टा स्थिति छै पहिल स्थितिक उदहारण लेल विजयनाथ झा जीक ई गजल देखू-

की कहब हम कहू के सुनत बात ई
कर्म फलहीन किछु गाछ बिन पात ई
ऐ मतलाक हिसाबसँ 212212212212 मात्राक्रम अछि। आब ऐ गजलक दोसर शेर देखू--

सृष्टिसँ पैघ आकार अछि आँखि केर
इष्ट ताकब कठिन शोध धरि माथ ई

जँ ऐ दूनू पाँतिक मात्राक्रम देखबै तँ एना हएत
2122122122121
212212212212
मने पहिल पाँतिक अंतमे एकटा लघु मात्रा अछि मुदा अर्थक संगतक हिसाबसँ एकरा छूट मानि पूरा गजल 212212212212 केर मात्राक्रमपर पूरा कएल जाएत। दोसर स्थिति एकर उल्टा छै जेना कि मानि लिअ कोनो गजलक मतला एना छै---
2122122122121
2122122122121

मने मतलाक दूनू पाँतिक अंतमे एकटा-एकटा लघु बढ़ल छै तँ एकर बाद बला शेरक पहिल पाँति 212212212212 मात्राक्रमपर पूरा कएल जा सकैए (मोन राखू रदीफ-काफियामे ई छूट नै भऽ सकैए)।

विशेष नोट--किछु एहन संज्ञा जे की नामवाची अर्थ छोड़ि आन अर्थ सेहो दैत हो तकरामे छूट लेल जा सकैए। मैथिली लोकगीतमे “आशीष” केर बदला “अशीष” शब्द बहुप्रचलित अछि। मुदा लोकगीतमे “आशीष” वा अशीष” केर मतलब “आशीर्वाद” होइत छै। आ एहि ठाम अहाँ सभ शब्दकेँ कोना खराजपर चढ़ेबाक चाही सेहो बुझि सकै छिऐ। समदाउनमे दूध केर उच्चारण “दुध” होइत छै तँइ गजलमे एहन भऽ सकैए। किछु कोबर गीतमे “फूल” केर उच्चारण “फुल” होइ छै। गजलमे एहन भऽ सकैए मुदा ओइ ठाम दूध बदला दुध या फूल बदला फुल लीखू।                                                                                                                                                   ऐ छूटक अलावे उर्दू वा हिन्दीमे अलिफ-वस्ल नामक छूट सेहो छै मुदा ओ मैथिलीमे लागू नै हएत कारण मैथिली बिलम्बित भाषा थिक मने एहन भाषा जे रेघा कऽ बाजल जाइत हो।

आशा अछि जे अहाँ सभ लघु-दीर्घ प्रकरण बुझि गेल हेबै। तँ आब ई देखी जे गजलक निर्माण कोना हो। ऐ प्रकरणकेँ फरिछेबाक लेल हम जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीसँ आग्रह केने रही तँ ओ एकटा लेखक माध्यमे एना देलाह। ऐ लेखमे ओ अपन एकटा गलत गजल लेलाह आ ओकरा पुनः संशोधित केलाह। गलतकेँ ठीक करबाक प्रकियासँ ई सहजे बुझा जाएत जे गजलकेँ बहरमे कोना आनी। तँ चलू “अनिल” जीक गजल रचना प्रकियापर। अनिलजी कहै छथि--
“हम पहिने एकटा गजल अहाँ सभकेँ सामनेमे राखि रहल छी तकर बाद ओकरा विवेचित करब--

गजल

टूटल छी ते गजल कहै छी
भूखल छी तें गजल कहै छी

आफिस आफिस गेलौ हमहूँ
लूटल छी तें गजल कहै छी

घरमे बैसल दुनियाँ देखू
गूगल छी तें गजल कहै छी

खूब जनै छी खापड़िकेँ हम
भूजल छी छी तें गजल कहै छी

उक्खरि और समाठ जनैत छी
कूटल छी तें गजल कहै छी

यात्रीजीकेँ अहाँ नवतुरिया
सूतल छी तें गजल कहै छी

हम खट्टर कक्काके तबला
फूटल छी तें गजल कहै छी

आब ऐ गजलक मतलाकेँ देखू

टूटल छी तें गजल कहै छी
भूखल छी तें गजल कहै छी

ऐमे जँ पहिल पाँतिक मात्रा क्रम लेबै तँ हेतै
टूटल=2
छी=2
तें=2
गजल=12 वा 21 मुदा उच्चारण हिसाबसँ 12 बेसी ठीक अछि तँए हम 12 लेलहुँ।
कहै=12
छी=2
मने पहिल पाँतिक मात्राक्रम भेल 222212122
आब दोसर पाँतिपर आउ—

भूखल छी तें गजल कहै छी
एकर मात्राक्रम भेल=
भूखल=22
छी=2
तें=2
गजल=12 वा 21 मुदा उच्चारण हिसाबसँ 12 बेसी ठीक अछि तँए हम 12 लेलहुँ।
कहै=12
छी=2
मने दोसरो पाँतिक मात्राक्रम भेल 222212122

मने पहिल दू पाँति अरबी हिसाबसँ बहरमे भेल। आब तेसर पाँति देखू

आफिस-आफिस गेलौं हमहूँ

एकर मात्राक्रम हेतै
आफिस=22
आफिस=22
गेलौं=22
हमहूँ=22
मने तेसर पाँतिक मात्राक्रम भेलऽ2222222
मने मतलाक दूनू पाँतिक मात्राक्रमसँ ई मात्राक्रम अलग अछि। एकरे लोक कहै छै बहरक टुटनाइ वा जे अहाँक गजल बहरमे नै अछि। हम एकरा सुधारबाक लेल अपना हिसाबसँ एना केलहुँ--

टेबुल तर जोर छै कहब हम

एकर मात्राक्रम हेतै
टेबुल=22
तर=2
जोर=21
छै=2
कहब=12
हम=2
मने ऐ पाँतिक मात्राक्रम छै 222212122। आब देखू जे मतलाक दूनूक पाँतिक मात्राक्रम संगे तेसरो पाँतिक मात्राक्रम बैसि रहल छै। मोन राखू मतलाक पहिल पाँतिमे जे मात्राक्रम छै ओइ गजलक सभ पाँतिमे ओएह मात्राक्रम रहबाक चाही। इएह भेल बहरक निर्वाहन।
चारिम पाँतिक मात्राक्रम ठीक अछि पाँचम पाँतिमे फेर गड़बड़ा गेल पाँचम पाँति अछि--

घरमे बैसल दुनियाँ देखू
मने 22222222,मुदा ई गलत अछि। हम एकरा एना लेलहुँ

बैसल बैसल तँ पाबि गेलहुँ
मने 222212122
छठम पाँति ठीक अछि। मुदा सातम पाँति फेर गड़बड़ा गेल
खूब जनै छी खापड़िकेँ हम
मने 211222222 हम एकरा सुधारि एना लिखलहुँ-

यारी छल बालु संग खुब्बे
मने 222212122
आठम पाँति ठीक अछि मुदा फेर नवम पाँतिमे वएह दिक्कत

उक्खरि और समाठ जनैत छी

एकर मात्राक्रम भेल
उक्खरि=22
और=21
समाठ121
जनैत=121
छी=2
मने 22211211212
हम एकरा सुधारि एना लिखलहुँ-

उक्खरि संगे समाठ एलै
मने
उक्खरि=22
संगे=22
समाठ=121
एलै=22

मात्राक्रम भेल- 22212122
दसम पाँति ठीक अछि। एगारहम पाँति फेर गलत अछि

यात्रीजीकेँ अहाँ नवतुरिया
यात्री=22
जी=2
केँ=2
अहाँ=12
नवतुरिया=222
एकर मात्राक्रम भेल
222212222
हम एकरा एना सुधारलहुँ

जागल लोकक तँ गीत अद्भुत

जागल=22
लोकक=22
तँ=1
गीत=21
अद्भुत=22

मने 222212122
बारहम पाँति ठीक अछि। तेरहम पाँति फेर गलत।

हम खट्टर कक्काकेँ तबला
22222222

हम एकरा एना देलहुँ
घैला छी हम सराध घाटक
मने 222212122
चौदहम आ अंतिम पाँति ठीक अछि। आब हम ऐ गजलकेँ पूरा दऽ रहल छी जे की ठीक भेल अछि (ऐ सुधरल गजलमे तें केर बदालमे हम तँइ लेलहुँ अछि। ऐसँ मात्राक्रममे कोनो फर्क नै हेतै)

गजल

टूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूखल छी तँइ गजल कहै छी

टेबुल तर जोर छै कहब हम
लूटल छी तँइ गजल कहै छी

बैसल बैसल तँ पाबि गेलहुँ
गूगल छी तँइ गजल कहै छी

यारी छल बालु संग खुब्बे
भूजल छी तँइ गजल कहै छी

उक्खरि संगे समाठ एलै
कूटल छी तँइ गजल कहै छी

जागल लोकक तँ गीत अद्भुत
सूतल छी तँइ गजल कहै छी

घैला छी हम सराध घाटक
फूटल छी तँइ गजल कहै छी

सभ पाँतिमे 222-212-122 मात्राक्रम अछि।
ई सुधार वा परिवर्तन मात्र बहरक निर्वहन देखेबाक लेल कएल गेल अछि। हमरा पूरा विश्वास अछि जे ऐसँ अहाँ सभ सेहो बुझि गेल हेबै जे बहरक निर्वाह कोना हो।”
ज.च.ठा.” अनिल”

तँ देखलहुँ जे अनिल जी कोना अपने एकटा बेबहर गजलकेँ कोना संशोधित कऽ बहरमे आनि देलाह। आब हमरा पूरा विश्वास अछि जे अहाँ सभ कहियो बेबहर गजल नै लीखि सकै छी।

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों