शनिवार, 3 सितंबर 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-10

खण्ड-10
आब कने “रेफ” बला काफिया पर बिचार करी। रेफ “र” वर्णक एकटा रूप अछि।जे “र्” मने आधा “र्” मानल जाइत अछि। मैथिलीमे रेफ आ ओकर पूर्ण रूप (र वर्ण) दूनू चलैत अछि । जेना
मर्द - मरद
बर्खा- बरखा
बर्ख- बरख
चर्चा- चरचा
उपरका चारिटा शब्द देखलासँ ई बुझाइत अछि जे रेफक पूर्ण रूप आ रेफ बला शब्दक उच्चारणमे कनेक अंतर भए जाइत छै। संगे-संग किछुए शब्द अपन रेफकेँ छोड़ि पूर्ण र केर स्वरूपमे अबैत अछि। तँए काफियाक संबंधमे हमर ई विचार अछि जे जँ शब्द रेफ युक्त हो मुदा बिना मात्राक हो तँ समान स्वर आ उच्चारणक प्रयोग करी। जेना मानि लिअ अहाँ मतलामे “सर्द “आ “पर्द” काफिया लेलहुँ आ तकरा बादक शेरमे “मरद” काफियाक प्रयोग हमरा हिसाबें गलत हएत कारण स्पष्ट रूपेँ “गर्द “आ “पर्द “शब्दक उच्चारण “मरद “शब्दसँ अलग अछि। तेनाहिते मतलामे “सर्द “आ “मरद” शब्दक काफिया गलत हएत। “मरद “शब्दक बाद “बड़द “, “शरद”, “दरद” आदि काफिया ठीक रहत। मुदा जँ कोनो एहन शब्द जकर अन्तमे रेफ हो आ संगे-संग ओ शब्द मात्रा बला हो तँ नियम बदलि जेतै। मतलब जे शाइर तखन बिना कोनो दिक्कतकेँ काफिया बना सकैत छथि। कहबाक मतलब जे जँ अहाँ मतलाक पहिल पाँतिमे काफिया “गर्दा” लेलहुँ आ तकरा बाद आन काफिया बर्खा या बरखा लेलहुँ तँ बिलकुल सही हएत। आब अहाँ सभ बुझि सकैत छिऐ जे कोनो मतलामे “बर्खी “आ “करची “बनि सकैत अछि। स्वरसाम्य, सिनाद दोष आ ईता दोष बला प्रसंग सभ आने काफिया जकाँ एहूमे लागू हएत। तेनाहिते ई मोन राखू जे जँ रेफ शब्दकेँ अन्त छोड़ि (शुरूमे वा बीचमे कतौ) छैक तँ संस्कृतक शब्दमे तँ रेफे रहत मुदा विदेशज खास कए अरबी-फारसी आ उर्दू बला शब्दमे “र” भए जाइत अछि। जेना की पर्वतकेँ “परवत” लिखब कने गलत सन लगैए मुदा शर्बतकेँ “शरबत” जरूर लीखि सकैत छी। एहिठाम ई मोन राखू पर्वत आ शरबत दूनू एक दोसराक काफिया भए सकैए।
काफियाक सम्बन्धमे महत्वपूर्ण गप्प ई जे संस्कृत परम्परा हिसाबें “स, श आ ष “केर उच्चारण अलग-अलग अछि। तेनाहिते “न “आ “ण “केर उच्चारण अलग अछि। “र” आ” ड़ “केर उच्चारण अलग अछि आ “ॠ” ओ “रि “केर उच्चारण सेहो अलग अछि। मुदा प्राकृत-अप्रभंश भाषामे ई नियम टूटल। ई नियम दूनू स्तर मने लिखित आ उच्चरितपर टूटल। संस्कृतमे लिखल जाइत अछि “गणेश “आ उच्चारणो होइत छै “गणेश “मुदा प्राकृत-अप्रभंशमे लिखल जाइत अछि “गनेस” आ बाजलो जाइत अछि “गनेस “। मुदा आधुनिक भारतीय भाषा (जे की प्राकृत-अप्रभंशसँ तँ निकलल अछि मुदा आब संस्कृतनिष्ठ भऽ चुकल अछि)मे विचित्र प्रचलन आबि गेल अछि। एखन अधिकांश लोक लिखैए “गणेश “मुदा उच्चारण करैए “गनेस “। जँ काफियाक नियमसँ देखी तँ “गणेश “केर काफिया “गनेस “नै भऽ सकैए। एहने गप्प “ष, न, ण, र,ड़ आ ॠ” लेल बूझल जाए। ढ आ ढ़ केर उच्चारण शब्दक पहिल स्थानपर ढ केर प्रयोग होइत छै मने निच्चामे बिंदु नै लागै छै। एकर उच्चारण शुद्ध होइत अछि उदाहरण लेल ढक्कन। शब्दक दोसर, तेसर, चारिम... अंतिम स्थानपर ढ केर निच्चा बिंदु लागै छै आ लोकमे एकर उच्चारण "र्" ओ "ह" मिला क' होइत छै उदाहरण लेल पढ़ाइ शब्दक उच्चारण प+र्+हा+इ होइत छै। शाइर गजलमे काफिया निर्धारण करैत काल एहू बातक धेआन रखता तँ गजल आरो नीक आर फलेक्सिबल हएत (जँ एहि पोथीमे कोनो शब्दक शुरूमे "ढ़" आएल अछि तँ ओकरा गलत मानू आ आग्रह जे ओकरा उजागर करू जाहिसँ हम ओकरा सुधारि सकी)। काफियाक एतेक चर्चाक पछाति आब अहाँ सभ अपने निर्णय कऽ सकै छी जे एहन काफिया लेल की कएल जाए। ओना किछु गोटें कहि सकै छथि (जेना उत्तर प्रदेश)क हिंदी बजनिहार सभ जे “र” आ” ड़  तेनाहिते “स, श” आदि-आदिक अलग-अलग उच्चारण अछि आ जे नै बाजि सकै छथि तिनका उच्चारण दोष छनि तँ हुनका कहिऔन जे सरकार उच्चारण दोषेकेँ कारण संस्कृतसँ प्राकृत आ प्राकृतसँ अप्रभंश आ अप्रभंशसँ आधुनिक मैथिली ओ आन भाषा निकलल छै।
आब कने हम अपन व्यक्तिगत विचार राखब--
कोनो भाषा लेल ध्वनि सभसँ बेसी महत्वपूर्ण छै। पहिने ध्वनि तकर बाद ओकर रैखिक रूप। हरेक भाषाक अपन-अपन ध्वनि विशेषता होइत छै जकरा एक सीमा धरि सुरक्षित रखबाक चाही एक सीमा धरि ऐ द्वारे जे बेसी ढ़ील देलासँ दोसर भाषाक ध्वनि ओकरा उपर चढ़ि जाएत आ आस्ते-आस्ते पहिल भाषा गाएब भऽ जाएत मने प्रचलनसँ बाहर भऽ जाएत। आ बेसी कठोर ध्वनि नियम बना देलासँ कतबो शक्तिशाली भाषा रहत ओ मरि जाएत। अपना देशमे संस्कृत एकर सभसँ बड़का उदाहरण अछि। कठोर ध्वनि नियम कारणें संस्कृतसँ प्राकृत आ प्राकृतसँ आधुनिक भारतीय भाषा सभ निकलल। ओना जँ  हमरासँ व्यक्तिगत रूपें पूछल जाए तँ हम उच्चारणक नियममे कठोरता नै चाहै छी आ हम ऐ विचारपर जोर देब जे भाषाक लिखित वा मानक रूप एक हो आ ओकर उच्चारण क्षेत्रक हिसाबसँ । वर्तमान समयमे अंग्रेजीक विस्तार एही कारणे भेलै जे हरेक क्षेत्रमे अंग्रेजीक उच्चारण बदलि गेलाक बादो ओकर लिखित रूप एकसमान होइत छै (अमेरिकी अंग्रेजी एकर अपवाद अछि)। तेनाहिते मैथिली लेल जँ एहने सुविधा रहै तँ भविष्यमे मैथिली आगू बढ़त से हमर विश्वास अछि। ऐ ठाम हम ई स्पष्ट रूपसँ कहि दी जे लिखित रूप वा मानक मैथिली मने ब्राह्मणवादी भाषा नै होइत छै। हरेक जातिमे प्रचलित शब्दक सङ्ग जे भाषा आएत सएह मानक वा लिखित भाषा बूझल जाएत।केखनो काल “त्र” केर लेख रूप “तर्” आ “क्ष” केर लेख रूप “च्छ” अबैत अछि। शाइर उपरकें नियमक हिसाबें एकर काफिया बनाबथि। आब कने एक बेर काफियामे ईता दोष देखल जाए--
ईता दोष काफियामे बहुत बड़का दोष मानल जाइत छै। ऐपर कने विचार कए ली। एकरा चारि भागमे देखू--
1) ईता दोष मात्र मतलामे होइत छै।
2) जँ मतलाक दूनू काफिया मात्रा युक्त हो, वा प्रत्ययसँ बनल हो वा सन्धि वा उपसर्गसँ बनल शब्द हो तँ दूनू काफियाक मात्रा हटा दिऔ, वा प्रत्यय हटा दिऔ वा सन्धि विच्छेद कए दिऔ। आब ई देखू जे मात्रा, प्रत्यय वा विच्छेदक बाद जे पहिल शब्द बचल शब्द छै से सार्थक छै की निरर्थक। जँ दूनूमेसँ एकौटा निरर्थक अछि तँ चिन्ता करबाक गप्प नै कारण एहन स्थितिमे ईता दोष नै रहत।
3) जँ दूनू शब्द (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) सार्थक छै आ ओहि बचल पहिल सार्थक शब्दक आपसमे तुकान्त बनि रहल छै तखन मात्रा वा प्रत्यय वा सन्धि बला शब्द सेहो काफिया बनत आ ऐमे ईता दोष नै हएत।
4) मुदा जँ दूनू शब्द (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) सार्थक छै आ ओहि बचल पहिल सार्थक शब्दक आपसमे तुकान्त नै बनि रहल छै तखन मात्रा वा प्रत्यय वा सन्धि बला शब्द सेहो काफिया नै बनत आ ऐमे ईता दोष हएत।
आब कने उदाहरणसँ देखी ऐ प्रकरणकेँ मानू जे मतलामे “बिमारी” आ “हरामी” काफिया छै। तँ आब जँ दूनूक मात्रा हटेबै तँ क्रमशः “बिमार “आ “हराम “शब्द बचै छै जे की सार्थक छै। मुदा “बिमार” आ “हराम” एक दोसराक तुकान्त नै बनि सकैए। तँए मतलामे “बिमारी” एवं “हरामी” काफिया नै बनत। उर्दूमे जँ केओ एहन काफिया बनबै छथि तँ ओकरा ईता दोषसँ ग्रस्त मानल जाइत छै। एकटा दोसर उदाहरण लिअ “दोस्ती” आ “दुश्मनी” मतलामे काफिया नै बनि सकैए। कारण वएह मात्रा हटेलाक बाद दोस्त आ दुश्मन शब्द बचै छै जे की दूनू सार्थक छै आ दूनू एक दोसराक तुकान्त नै बनै छै तँए दोस्ती आ दुश्मनी मतलामे काफिया नै बनि सकैए।
मैथिलीमे प्रत्यय बला शब्द संग सेहो एना कएल जा सकैत अछि। प्रत्यय बला शब्दक किछु उदाहरण देखू धान शब्दमे गर प्रत्यय लगेलासँ नव शब्द बनै छै “धनगर” । तेनाहिते मोन शब्दमे गर प्रत्यय लगेलासँ “मनगर “शब्द बनै छै (किछु गोटेँ मोनगर सेहो लिखै छथि)। एनाहिते आन प्रत्ययसँ बहुत रास नव शब्द बनै छै।
आब कने ऐ नव शब्दक काफियापर आउ जँ धनगर शब्दक काफिया मनगर बनेबै तँ ईता दोष नै रहतै। कारण जँ ऐ दूनू नव शब्दमेसँ गर प्रत्यय हटेबै तँ क्रमशः धन आ मन बचै छै आ दूनूमे तुकान्त सेहो बनि रहल छै (ऐठाम ई मोन राखू जे प्रत्यय हटलाक बाद धन शब्द मिलाएल जेतै ने की धान, तेनाहिते मन मिलाएल जेतै ने की मोन)।
आब जँ मतलामे धनगर संगे दुधगर आबै तँ देखू की हेतै। प्रत्यय हटलाक बाद क्रमशः धन आ दुध बचै छै मुदा दूनू एक-दोसराक तुकान्त नै बनि रहल छै तँए धनगर आ दुधगर एक-दोसराक काफिया नै हएत। आन-आन प्रत्यय वा सन्धि वा मात्रा लेल एहने सन बुझल जाए।
आब जँ बिमारी संग उधारी आबै तँ देखू की हेतै। बिमार एवं उधार दूनू शब्द (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) सार्थक छै आ संगे संग दूनू एक दोसरक तुकान्त बनि रहल छै तँए बिमारी आ उधारी सेहो एक दोसरक काफिया बनत आ ऐमे ईता दोष नै रहतै।
आब जँ बिमारी संग जिनगी लेबै तँ देखू की हेतै। बिमार एवं जिनग (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) बिमार शब्द सार्थक छै मुदा जिनग शब्द निरर्थक तँए बिमारी आ जिनगी सेहो एक दोसरक काफिया बनि सकैए।किछु शब्द एहन होइत छै जकरा पर मात्रा रहैत छै तखन अलग मतलब होइत छै आ मात्रा हटलाक बाद दोसर मतलब बनि जाइत छै जेना “कारी” तँ एकर मतलब भेलै रंग कारी। मुदा जँ एकर मात्रा हटा देबै तँ बचतै “कार “जे की गाड़ीक संदर्भमे सार्थक शब्द तँ छै मुदा मतलब दोसर छै। तँए अहूँ काफियामे ईता दोष नै रहत। आन शब्द एनाहिते ताकल जा सकैए। आब केओ कहि सकै छथि जे बिमार आ बिमारी शब्द अलग-अलग छै मुदा हमर कहब जे बिमार आ बिमारी दूनूक अर्थ एक-दोसरामे निहित छै मुदा कारी आ कार शब्दमे से नै छै।तेनाहिते व्याकरणिक भेद बला शब्दमे ईता दोष नै हएत। जेना पहिल काफिया हो संज्ञा आ दोसर काफिया हो विशेषण इत्यादि। अस्तु ई भेल ईता दोष प्रकारण।
हिन्दीमे बहुतों शाइर ईता दोषकेँ नै मानै छथि, मुदा ई मोन राखू जे मैथिली आ हिन्दी अलग-अलग भाषा छै। मैथिलीमे बहुत रास प्रत्यय गेना गर, आदि अरबी फारसीसँ आएल अछि तँए ईता दोष मैथिलीमे रहत।
ऐठाम हम किछु उर्दू आ अंग्रजीक प्रत्यय दऽ रहल छी सुविधा लेल (बहुत शब्द मैथिलीमे नहि अबैत अछि)--
उर्दूक किछु प्रत्यय--
आ          सफ़ेद                    सफेदा
आना        जुर्म, दस्त, मर्द            जुर्माना, दस्ताना, मर्दाना
आनी        जिस्म, बर्फ               जिस्मानी, बर्फानी
इयत        इंसान, खैर               इन्सानियत, खैरियत
कार         दस्त, सलाह              दस्तकार, सलाहकार
खोर         घूस, हराम                घूसखोर, हरामखोर
गर          धान, जादू               धनगर, जादूगर
गार         परहेज़, मदद              परहेज़गार, मददगार
गी          ज़िंदा, बंदा                ज़िंदगी, बंदगी
चा/ची       देग, संदूक                देगचा, संदूकची
ज़ाद/ ज़ादा   आदम, शाह               आदमज़ाद, शाहज़ादा
दां          उर्दू, कद्र                  उर्दूदां, कद्रदां
दान         इत्र, कलम                इत्रदान, कलमदान
दानी         चाय, गोंद                चायदानी, गोंददानी
दार         ईमान, माल               ईमानदार, मालदार
बाज़/बाज़ी    चाल, मुक़दमा             चालबाज़, मुक़दमेबाज़ी
बान         दर, बाग                 दरबान, बागबान
मंद         अक्ल, दौलत              अक्लमंद, दौलतमंद
साज        घड़ी                     घड़ीसाज
   
अंग्रेजीक किछु प्रत्यय--
इज्म        बुद्ध, सोशल               बुद्धिज्म, सोशलिज्म

इस्ट         बुद्ध, सोशल               बुद्धिस्ट, सोशलिस्ट

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