बुधवार, 7 सितंबर 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-13

खण्ड-13

मकता--गजलक ओहि अन्तिम शेरके कहल जाइत छैक जाहिमे शाइर अपन नाम-उपनाम (तख़ल्लुस)के प्रयोग करथि। जेना एकटा उदाहरण देखू--

चिन्हार अनचिन्हारक संग
गरदनि कटैए सपनामे

एहिमे हम अपन उपनाम अनचिन्हार के प्रयोग केने छिऐक आ ई शेर गजलक अन्तिम शेर छैक तँए ई शेर भेल “मकता” । बिना मकताक गजल सेहो होइत छैक। मकताक संबंधमे ई धेआन राखू जे शाइर अपन सभ गजलमे या तँ अपन नामके प्रयोग करथि वा अपन उपनामके। मने दूनूमेसँ कोनो एकैटा। एकर उदाहरण हम अपनेपर लैत छी। हम अपन गजलमे या तँ आशीष के प्रयोग करबै वा अनचिन्हार के। ई नहि जे किछु गजलमे आशीष आ किछुमे अनचिन्हार। जँ अन्तिम शेरमे नाम-उपनाम नै छै तँ ओकरा मकता नै कहल जाइत छै। ओ आने साधारण शेर भेल। तेनाहिते जँ केओ बीच बला शेरमे नाम-उपनाम देने छथि तँ ओहो मकता नै भेल। बहुत शाइर मकतामे अपन उपनाम उद्धरण चिन्ह लगा कऽ प्रस्तुत करै छथि। ओना ई गलत तँ नै छै मुदा एना केलासँ अर्थसंकोच भऽ जाइत छै। उदहारण लेल मानि लिअ जे हम “अनचिन्हार” लिखबै तँ ई व्यक्तिवाची बनि कऽ एकर अर्थ “आशीष अनचिन्हार” भऽ जेतै मुदा जखन हम सोझे अनचिन्हार लिखबै तँ ई शाइरक उपर सेहो लागू हेतै आ आन अपरिचित लोकक संदर्भमे सेहो। तँए हम अपन उपनाममे उद्धरण चिन्हक प्रयोग नै करै छिऐ। एकटा छोट सन अंतर देखाबए चाहब जे उर्दू-हिंदीमे विभक्ति एक छै तँइ ओइमे उपनामपर कोनो फर्क नै पड़ै छै उदहारण लेल--
नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना ग़ालिब
कि ये शीराज़ा है आ़लम के अज्जाए-परीशां
(गालिब)
था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज
(मीर तकी मीर)
जब मुझसे मिली फ़िराक वो आँख
हर बार इक बात गढ़ गयी है
(फिराक गोरखपुरी)
कहबाक मतल जे हिंदी उर्दूसँ अलग मैथिलीक संज्ञामे विभक्ति सेहो जुटि जाइत छै उदाहरण लेल--
“राजीवक नाम अमर छै”
“अमरक नाम”
एकरा संगे-संग संज्ञामे आनो परिवर्तन सेहो मकता कहल जेतै। जेना--
“ओमो जेतै”

तँइ हमर स्पष्ट मंतव्य अछि जे विभक्ति जुटल नाम-उपनाम आन परिवर्तन बला नाम-उपनाम मैथिलीमे मकता हएत।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों