मंगलवार, 23 अगस्त 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-6

खण्ड-6
पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि आ एकरा नासिक्य वर्ण कहल जाइत छै मने एहन वर्ण जकर उच्चारण नाकसँ होइत हो। संस्कृत भाषाक अनुसार नासिक्य शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओहिसँ पहिने ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे पहिने ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे पहिने ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे पहिने ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे पहिने न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे पहिने म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना अंक,पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। अनुस्वारक चिन्ह ं अछि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि। नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ। आब कने आबी काफिया पर जँ मतलाक कोनो काफिया मे पंचमाक्षर वा अनुस्वारक प्रयोग छैक तँ हरेक शेरक काफियामे अनुस्वार वा पंचमाक्षर हेबाक चाही ओहो ठीक ओही स्थान पर जाहि पर पहिल काफियामे छैक। जेना मानि लिअ कोनो मतलाक पहिल पाँतिक काफिया “बसंत” छैक, तँ आब अहाँके ओहन शब्द काफियामे देबए पड़त जकर अंतसँ दोसर वर्ण पर अनुस्वार वा पंचमाक्षर अबैत होइक जेना की “अनंत”, “दिगंत” इत्यादि। आ एहने सन नियम चंद्रबिंदु लेल सेहो छैक।एकटा बात आर जँ कोनो मतलाक दूनू पाँतिमे अनुस्वार बला काफिया छै तँ ओकर बाद बला शेरक काफिया लेल पंचमाक्षर बला शब्द सेहो लए सकैत छी जेना जँ मतलामे की “बसंत” आ “अनंत” छै तँ बाद बला शेरक काफिया लेल “दिगन्त” सेहो लए सकैत छी। आन सभ पंचमाक्षर लेल एहने नियम बुझू। मुदा एहन ठाम ई मोन राखू जे पंचमाक्षर अपने वर्गक हेबाक चाही ।हमर पोथी अनचिन्हार आखरमे ई नियम गलत रूपमे छल। ऐठाम ई सही रूपमे अछि। ऐठाँ ई मोन राखू जे काफियामे ईता दोष नै एबाक चाही। आब ई कोन दोष भेल तकर वर्णन मात्रा बला काफियाक संग कए जाएत।
नासिक्ये वर्णसँ अनुनासिक वर्ण बनाएल जाइत छै। जखन कोनो वर्णक उच्चारणमे मूँहक संगे नाक केर प्रयोग होइत छै तखन ओकरा अनुनासिक कहल जाइत छै (सानुनासिक सेहो कहल जाइत छै)। अनुनासिक केर चिन्ह ँ मने चंद्रबिंदु होइत छै। “न” आ “म” वर्ण अनुनासिक होइत छै तँए एकर उच्चारण बहुत बेर अनुनासिके सन सुनाइ पड़ै छै मुदा ओ लिखित रूपमे नै आबै छै। अनुनासिक शब्द दू तरहसँ होइत छै पहिल ओ जैमे खाली व्यंजन अनुनासिक होइत छै जेना-माला, माघ आदि, दोसर जैमे स्वर आ व्यंजन दूनू अनुनासिक होइत छै जेना-माँगब, नींद आदि। आन वर्ण आ पंचमाक्षरे जकाँ सेहो अनुनासिक केर काफिया हेतै।

नासिक्य आ अनुनासिक केर भेद बुझलाक बाद ईहो स्पष्ट करब जरूरी जे हिंदीमे “हंस” मने पक्षी आ “हँस” मने हँसनाइ दूनू एकै तरीकासँ लिखल जाइत अछि। हिंदीमे दूनू लेल “हंस” शब्द अछि जे की अनर्थकारी अछि कतेको हिंदीक विद्वान एकर विरोध केने छथि तँइ चंद्रबिंदु आ अनुस्वार केर सही प्रयोग हेबाक चाही। हमरा हिसाबें पंचमाक्षरक बदलामे अनुस्वार तँ प्रयोग कऽ सकै छी मुदा चंद्रबिंदु केर बदलामे हिंदी जकाँ अनुस्वार केर प्रयोग करब गलते नै अनर्थकारी सेहो अछि।

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों