सोमवार, 19 सितंबर 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-23


खण्ड-23
गजलक गुण ओ दोष
गजलक गुण
गजलक किछु अपन विशेषता होइ छै जँ ई शेरमे सुरक्षित रहि गेल तँ वएह गजलक गुण कहबैत छै। तँ देखू किछु गुण---
1) संकेतिकता--जँ शेरक अर्थ संकेतसँ निकलैत होइ तँ ई बड़का गुण भेल। ओना कोनो समयमे एकटा गजलक सभ शेर एहन तँ नै भेलैए मुदा जँ एकटा गजलक एकौटा शेर एहन भऽ गेल तँ बुझू जे गजलकेँ ओ महान बना दै छै।
2) दार्शनिक ओ अध्यातमिक--जै गजलक शेर दार्शनिक ओ अध्यात्मिक रहै छै बेसी नीक। मुदा ऐ ठाम ईहो मोन राखू जे जँ गजलक शेर सभमे प्रेमक वर्णन छै तैयो ओहि प्रेमक वर्णन एना हेबाक चाही जैसँ लागै जे ई शेर आत्मा ओ परमात्माक बीच भेल हो।
3) कहबी ओ मोहावरा----जे शेर जतेक कहबी ओ मोहावरासँ सजल रहत ओइ शेरकेँ लोकप्रिय हेबाक बहुत संभवाना रहै छै।
4) संक्षिप्तता--जै शेरमे बहुत कम शब्दमे बहुत बेसी अर्थ निकलैत हो से शेर ततेक महान। एकरा एनाहुतों बूझि सकै छिऐ जे शेरकेँ बहुअर्थी हेबाक चाही। मने एकैटा शेर जेहन जगहपर कहल गेल ओकर अर्थ ओहि जगह केर हिसाबसँ निकलै। मिहिर झा जीक ई रुबाइ देखू--

शराब तँ पानि छै निसाँ एकर अहीँ तँ छी
सिनेह तँ ठाम छै दिशा एकर अहीँ तँ छी
छैक शराबी संग टूटल करेजक गाथा
शराब पीबै कोइ खिस्सा एकर अहीँ तँ छी

ऐ रुबाइकेँ पढ़ू। ऐ रुबाइमे प्रयुक्त भेल “अँहीं “केओ भऽ सकैए। जँ एकरा अपना माए-बाप लेल पढ़ल जाए तैयो सार्थक छै। जँ प्रेमिका लेल पढ़ल जाए जाए तैयो सार्थक छै। जँ गुरूजन लेल पढ़ल जाए जाए तैयो सार्थक छै। जँ पत्नी लेल पढ़ल जाए तैयो सार्थक छै। तड़िखानामे पढ़ल जाए जाए तैयो सार्थक छै। जँ मंदरि-मस्जिदमे पढ़ल जाए जाए तैयो सार्थक छै। मने जगह वा आदमीकेँ बदलिते ओही अनुरूपसँ अर्थ बदलि रहल छै। गजलक शेरकेँ एहने हेबाक चाही।
5) जँ गजलक शेर सभ समकालीन समस्या ओ वर्तमान विषयकेँ समेटने हो तँ लोकप्रिय होइ छै।
6) ओना तँ गजल अपन विरह-वेदना लेल जानल जाइत अछि मुदा जँ इएह वेदना आशा केर चद्दरिमे झाँपल हो तँ पढ़बा ओ सुनबामे नीक लगै छै।
7) ओना लगभग हरेक रचना लोकक अपन दुखसँ लिखैए (जे ई गप्प कहैए जे हम समाजक दुखसँ दुखी भऽ रचना केनाइ शुरू केलहुँ ओ फूसि बाजि रहल अछि)। मुदा जँ गजलक शेर सभ ऐ तरीका कहल गेल हो जैसँ पढ़ए वा सुनए बलाकेँ गजलकारक दुख अपन दुख सन लागै तँ बुझू जे ओ शेर कालजयी भऽ जाइत अछि।
8) रचना ओएह टा सर्वकालिक होइ छै जइपर भविष्योमे बहस होइत रहै। तँइ हमरा हिसाबें गजलक रचना ओइ तरहें हेबाक चाही जे वर्तमानक संगे भविष्यो लेल उपयोगी हो।


गजलक दोष

किछु एहनो तत्व छै जकरा रहने गजलक महत्व घटि जाइ छै आ एकरे गजलक दोष कहल जाइत छै। ऐ दोषक वर्णनमे हम पहिने रदीफक दोष तकर बाद काफियाक दोष तकर बाद बहरक दोष तकर बाद शेरक दोष आ अंतमे गजलक दोष कहब। तँ चलू पहिने रदीफक दोषपर--
1) जँ गजलमे रदीफ नै छै तँ ई कोनो दोष नै भेल मुदा ई अनुभवसिद्ध गप्प अछि जे रदीफ बला गजल पढ़बा ओ सुनबामे नीक लगै छै।
2) जँ कोनो शेरक रदीफ काफियासँ तालमेल नै बैसा सकल अछि तँ ई रदीफक बड़का दोष भेल। ऐ दोषकेँ पकड़बा लेल ई नियम मोन राखू---रदीफकेँ हटा कऽ बचल वाक्य खण्डकेँ देखू जँ ओहि वाक्य खण्डक कोनो अर्थ छै तँ मानल जाएत तँ रदीफ ओ काफियामे कोनो तालमेल नै अछि। आ जँ बचल वाक्य खण्क कोनो अर्थ नै छै तँ ई मानल जाएत जे रदीफ आ काफियामे तालमेल छै।   एकरा एनहुतो बुझू जे काफिया आ रदीफ देह ओ प्राण सन हेबाक चाही जेना प्राण बिना देह बेकार आ देह बिना प्राण बेकार बस तेनाहिते रदीफ आ काफियाक सम्बन्धमे बुझू।
3) मतलामे रदीफक निर्धारण भेलाक बाद आन शेर सभमे रदीफ बदलि नै सकै छी।
4) तकाबुले रदीफ नामक दोषक वर्णन रदीफक संगे कएल गेल अछि।
तँ आब आबी काफियाक दोषपर--
1) गजल लेल भाषा सापेक्ष काफिया अनिवार्य अछि। भाषा सापेक्ष काफियाक मतलब ई जे जै भाषामे गजल हो तै भाषाक अनुरूप हो। जँ भाषाक उच्चारण बदलि रहल छै ताहू स्थितिमे काफियाक नियममे बदलाव आएत। बिनु काफियाक गजल नै हएत।
2) ईता दोष पहिनेहें विस्तारपूर्वक देल जा चुकल अछि।
3) ऐ सभहँक अलावे इकवा दोष, इफ्का दोष,गुलू दोष आदि सभ सेहो छै मुदा जँ काफियाक नियमक हिसाबें बनेबै तँ ई दोष नै रहत। ओनाहुतो ऐ दोष सभमे बहुत दोष एहन अछि जे भारतीय भाषामे नै लागत।
आब आउ शेरक दोषपर--
1) जँ शेरक दूनू पाँतिक अलग-अलग अर्थ छै तँ ई शेरक दोष भेल। शेर लेल ई अनिवार्य अछि जे पहिल पाँतिक अर्थ दोसर पाँतिपर टिकल रहबाक चाही।
2)  जँ कोनो पाँतिमे एकौटा शब्द बेमतलब के छै (फाजिल भेलापर एहने बूझू) तँ ईहो शेरक दोष भेल। ऐ दोषकेँ एना चीन्हल जा सकैए--
“सुखाइत पोखरि तँ बाजल इनारसँ”
जँ ऐ पाँतिकेँ एना लिखबै
“सुखाइत पोखरि बाजल इनारसँ”
दूनू पाँतिक अर्थकेँ देखू। दूनू पाँतिक अर्थ एकै अछि। तँ ई मानल जाएत जे पहिल पाँतिमे “तँ “शब्दक बेमतलबक प्रयोग अछि ऐकेँ बिना सेहो अर्थ पूरा-पूरी छै। मुदा “तँ”  शब्द केर प्रयोग मैथिलीमे बातपर जोर देबाक लेल होइत छै। जेना “अँहीं तँ कहने रही “। एहन अवस्थामे ई दोष नै मानल जाएत।
3) जँ शेरक कोनो पाँतिमे आवश्यक शब्द छोड़ि देल गेल छै तैयो एकरा दोष मानल जाइए।
4) जँ कोनो शेरक पहिल पाँतिमे आदर सूचक शब्द छै मुदा दोसर पाँतिमे बराबरी वा अनादर सूचक शब्द छै (वा एकर उन्टा) तँ ई शेरक दोष भेल। संगे-संग ई गप्प काल मने भूतकाल, वर्तमान काल ओ भविष्यकाल लेल सेहो अछि।
5) जँ शेरक शब्द व्यवस्था चुस्त नै अछि तँ ई दोष भेल। उदाहरण देखू--
अ) पछाति अहाँक एलाक
आ) अहाँक एलाक पछाति
इ) एलाक पछाति अहाँक
ऐ तीनटा वाक्यकेँ देखबै तँ पता चलत जे दोसर वाक्य “अहाँक एलाक पछाति” चुस्त-दुरुस्त शब्द बला अछि आ सहज अर्थ सेहो दैए
6) शेरक कोनो पाँतिमे एहन शब्द वा शब्द समूह जकर अर्थसँ अश्लीलताक गंध निकलैत हो से दोष भेल। उदाहरण लेल ई पाँति देखू
“मारि लेलिऐ”
ऐ पाँतिक अर्थ अधिकत्तर अश्लीलताक गंध लेने रहैए तँए ई दोष भेल। ऐ ठाम ई मोन राखू जे ई दोष क्रियासँ संबंधित अछि। ऐ दोषकेँ दूर करबाक लेल क्रियासँ पहिने संज्ञाकेँ आनि दिऔ
“बाजी मारि लेलिऐ”
आब देखू दोसर पाँतिक अर्थ श्लील अछि।
7) जे गप्प पहिने कहल जेबाक चाही से गप्प जँ बादमे कहल गेल हो (मने शेरक दोसर पाँतिमे) तँ ई शेरक दोष भेल।
8) टंगट्विस्टर बला भाषा शेरमे नै एबाक चाही। जेना “कक्का काकीकेँ कटहर कीनि कऽ देलखिन्ह” ई पाँति वा एहन पाँति शेर लेल बेकार।
बहरक दोष बस एक मात्र छै। जँ कोनो गजल सभ शेर एकैटा बहरमे नै अछि तँ ई बहरक दोष भेल। बहर मने छंद। गजल लेल छंद वर्णवृत अछि।
तँ आब आउ अंतमे गजलक दोष देखी हम सभ--
1) जँ कोनो गजलक सभ शेर एकै बहरपर नै अछि तँ ई गजलक दोष भेल।
2) जँ कोनो गजलक सभ शेरमे एकै रदीफ नै अछि तँ ई गजलक दोष भेल।
3) जँ कोनो गजलक एकौटा शेरमे काफिया गलत अछि तँ ई गजलक दोष भेल।
संगे-संग उपरमे देल गेल दोषमेसँ कोनो दोष शेरमे अछि तँ ई गजलक दोष भेल किएक तँ अंततः गजल किछु शेरक संग्रह अछि।
की तुकान्त काव्य आ छन्दोबद्ध काव्य एकै होइत छै?
समान्यतः मध्यकालसँ लऽ कऽ मिथिलामे जेना-जेना शिक्षा घटैत गेल काव्य संबंधी परिभाषा ओझराइत गेल। उदाहरण लेल अधिकांश मैथिल मात्र तुकान्त काव्य के सूनि ओकरा छन्दबद्ध मानि लै छथि। दोष मात्र पाठक वा श्रोताक नै छै। अधिकांश काव्यकार अपनो इएह मानै छथि जे तुकान्ते काव्य छन्दबद्ध होइत छै।
वस्तुतः ई गलत अछि। ई कोनो जरूरी नै छै जे तुकान्त काव्य छन्दबद्ध हेबे करतै। तुकान्तक प्रयोग तँ लोक अनेरे करैत रहै छै जेना एकटा कहबीकेँ देखू –

ऐ नदियाक इएह बेबहार
खोलू धरिया उतरू पार

ई तुकान्त तँ अछि मुदा कोनो ज्ञात छन्दमे नै अछि से (ज्ञात छन्द मने ओहन छन्द जकर चर्चा पहिनुक आचार्य कऽ गेल होथि)। आ एहन-एहन उदाहरण बहुत भेटत। तँए ई मात्र भ्रम अछि जे तुकान्त काव्य छन्दबद्ध होइत छै।
गजलक समीक्षाशास्त्र
सभसँ पहिने हम ई स्पष्ट कए दी जे ई मात्र दिशा-निर्देश अछि आ सेहो जेना गजेन्द्र ठाकुर जी आन विधा सभ लेल देने छथिन्ह तेहने सन आ गजेन्द्रे ठाकुर जीक समीक्षा शास्त्र केर रूप अछि। आ एहिमे ओ दिशा निर्देश सभ अछि जे समय-समयपर गजेन्द्र ठाकुर जी गजल लेल फुटकर रूपें दैत रहलाह अछि एहिमे किछु शब्द हम अपनो दिसँ जोड़लहुँ अछि प्रसंगक हिसाबसँ------
1) सभसँ पहिने गजलक भाषा देखू। भाषा मने कहीँ एहन तँ नै छै की कोनो गजलकार स्वतंत्रता केर नामपर गजलमे हिन्दी भाषाक प्रयोग केने छथि। ऐठाम ई धेआन देबाक गप्प थिक जे जँ अपन भाषामे कोनो शब्द नै हो तँ ओकरा लेल जा सकैए।
2) भाषा देखलाक बाद व्याकरणपर आउ। व्याकरण मने रदीफ, काफिया आ बहर।
3) व्याकरण देखलाक बाद समान्य गजल दोष आ गजल विशेषताकेँ देखू।
4) गजल दोष आ गजल विशेषताकेँ देखला बाद भावनाकेँ देखू। ऐठाम हम ई मोन पाड़ए चाहब जे काव्य मात्र कागजपर लीखल शब्द नै हेबाक चाही बल्कि अपन जीवनक कर्मसँ अनुप्राणित हेबाक चाही। मने जँ केओ दलितकेँ सतबै छथि मुदा ओ अपन गजलमे दलितकेँ पूजा करै छथि तँ हमरा हिसाबेँ ई दूषित भावना भेल। ओना कहल जा सकैए जे आलोचक की समीक्षक तँ रचने पढ़ि कऽ समीक्षा करता ने। बात सही मुदा रचनाकारक सही-गलत कर्म नुकाएल नै रहै छै। तँए रचनाक संगे-संग कर्मक सेहो समीक्षा हेबाक चाही। एहिठाम मोन राखू जे हम एतए मात्र जीवन कर्म आ रचना कर्मक बीचक मात्र न्यूनतम फाँक दिस इशारा कऽ रहल छी। जखन कोनो लेखक अपन पहिल पत्नीकेँ त्यागि दोसर बियाह कऽ लैत अछि आ ओकर बाद स्त्रीक दुखपर रचना लिखैत अछि तखन लेखकक जीवनकर्म आ रचनाकर्मपर आलोचना करब आवश्यक भऽ जाइत अछि। आन विषय लेल एहने बूझू। लेखक लेल आवश्यक नहि जे ओ हाथमे बंदूक उठा बार्डरपर जा लड़ाइ कइए कऽ वीर रसक रचना करत वा वेश्यागामी भऽ कऽ वेश्यापर रचना लिखत। मुदा ई अपेक्षा तँ राखले जा सकैए जे ओ अपन जीवनमे इमानदारी रखैत हो। खास कऽ ओहन रचनाकार जे कथ्य की भाव लेल अनेरे परेशान रहै छथि तिनकर रचनामे कर्मक सेहो समीक्षा हेबाक चाही। आलोचक की समीक्षक जासूस नै छथि तँए हमरो बूझल अछि जे सभ समय लोक रचनेक समीक्षा करता। रचनाक संग कर्मक नै। ओना हमरा विश्वास अछि जे जहिया आलोचक रचनाक संगे-संग कर्मक आलोचना करता तहियासँ फेरो कविकर्म महान भऽ जाएत। किछु लोक विदेशी लेखकक जीवन केर उदाहरण दै छथि। मुदा धेआन देबाक गप्प ई जे भारत जकाँ विदेशमे लेखक अपनाकेँ खाली लिखबाक कारणे महान नै मानै छथि। ओ विदेशी लेखक सदिखन अपनाकेँ साधारण आदमी बूझि लिखैत अछि आ बेबहारो करैत अछि। मुदा भारतमे एकटा दुमसियो बच्चा एक पाँतिक कविता लीखत तँ ओ अपनाकेँ महान बूझए लागैए तखन तँ कर्म आ लेखन बीचक फाँक उघाड़ हेबे करत संगे-संग आलोचना सेहो हेबे करत। ईहो स्पष्ट करब जरूरी जे हिंदू धर्ममे कर्मकेँ मरलाक बादो प्रधानता देल गेल छै तँइ लेखककेँ मरलाक बादो हुनकर कर्मकेँ समीक्षा हेबाक चाही। आ गंभीर रूपसँ हेबाक चाही तखने दोसर लेखक सभहँक रचना ओ जीवन कर्मक बीच संतुलन एतै। जइ लेखक केर रचना ओ कर्मक बीच जते कम फाँक रहत ओ लेखक आ ओकर रचना ओतबे महान। किछु लोक कहि सकै छथि जे साहित्यिक लेखन आ धार्मिक लेखनमे अंतर होइत छै तँइ साहित्यिक लेखन लेल कर्मक संग ताल-मेल जरूरी नै मुदा हमरा हिसाबें ई कुतर्क थिक कारण कोनो प्रकारक लेखन कि कला समाजकेँ प्रभावित करै छै तँइ लेखक-कलाकारक जीवन-लेखन-कलामे ताल-मेल रहब जरूरी छै। एहिठाम फेर मोन राखू जे हम एतए मात्र जीवन कर्म आ रचना कर्मक बीचक मात्र न्यूनतम फाँक दिस इशारा कऽ रहल छी। एहिठाम ईहो प्रश्न उठि सकैए जे जखन साहित्यकार समाज अपन आलचोना बरदास्त नै करै छथि तखन आन प्रोफेशनक लोककेँ साहित्यकार किए आलोचना करै छै। भारतमे सभसँ बेसी काज पुलिस प्रोफेशन केर लोक करै छै मुदा साहित्यकार ओकरा सदा घूसखोर कहि आलोचना करै छै। तेनाहिते आनो प्रोफेशनक लोकपर साहित्यकारक नजरि रहै छै मुदा अपना बेरमे ओ सभ सुविधा चाहै छथि जे साहित्यकारक काज उपदेश बला नै छै। या तँ साहित्यकार अपन आलोचना लेल कृतिक संगे कर्मो राखथि या आन प्रोफेशन बला लोकक आलोचना छोड़ि देथि।
आब एक बेर गजल आलोचनाक भाषापर बात कऽ ली। देखल जाइए जे आलोचक आलोचनामे कोनो दोष वा कोनो गलत प्रवृति लीखै छथि तखन ओ “अन्य पुरुष” बला भाषामे आलोचना लिखै छथि मने बातकेँ एतेक घुमा-फिरा कऽ जइसँ ई पता नै चलै जे किनकर दोषक विवरण छै। ई खराप लक्षण। एहन भाषामे आलोचना करए बला या तँ साहसी नै छथि या कोनो लोभ-लाभसँ ग्रस्त छथि तँइ खुलि कऽ नाम सहित नै लीखि पाबै छथि। हमरा हिसाबें ई गलत परंपरा अछि। जँ कोनो रचनामे दोष छै तँ रचनाकारक नाम सहित ओइपर बहस हेबाक चाही। जँ नै तखन आलोचना-समीक्षा लिखबे नै करू। आजुक गजल तँ अपन कथ्यमे सपाट भेल जाइए मुदा आलोचना घुमावदार। जखन गजलक भाषाकेँ घुमादावर हेबाक चाही आ आलोचनाक भाषा सपाट। ऐ किछु समान्य निर्देशक संग हम एकरा विराम दए रहल छी। अहाँ सभ लग जँ कोनो आर गप्प हुअए सूचित कएल जाए।
गजलकारक व्यक्तित्व आ योग
चलू आब करी किछु गप्प गजलकरक व्यक्तित्वक बारेमे। पहिने फाटल-चीटल कपड़ा, दाढी बढ़ल आ बताह शराबी सनक व्यक्तित्व बूझल जाइत छलै गजलकार सभहँक। पहिने शाइरी फुल टाइमक काज छलै मुदा जुग बदलि गेल छै ओ आजुक संदर्भमे अपन राज-काज करैत खाली समयमे शाइरी कऽ रहल छथि तँए आजुक शाइरक व्यक्तित्व सेहो अलग अछि तँ देखी जे आजुक समयमे शाइर अपन व्यक्तित्वकेँ कोना नीक बना सकै छथि--
कोनो शाइरक व्यक्तित्वक दूटा पक्ष होइ छै शारिरिक आ मानसिक। किछु लोक कहि सकै छथि जे मानसिक व्यक्तित्व नीक तँ किछु कहता जे शारिरिक पक्ष नीक। मुदा हमरा जनैत पहिने शारिरिक पक्ष मजगूत हेबाक चाही तखन मानसिक पक्ष। हथियार बनेबा कालमे पहिने ओकर ढ़ाँचा बनै छै तखन ओकरा शानपर चढ़ा धार देल जाइ छै तँए पहिने शारिरिक तकर बाद मानसिक। तँ आउ देखी जे कोनो गजलकार अपन शारिरिक विकास कोना कऽ सकै छथि। शारिरिक विकास लेल आसन सभसँ बेसी कारगर अछि। एहि ठाम धेआन राखू जे आइ-काल्हि मात्र आसनकेँ योग बुझि लेल गेल अछि से गलत अछि। योग बहुत बड़का खंड छै जकर एकटा भाग आसन छै। आसनसँ पहिने यम-नियम साधए पड़ैत छै तखन आसन लेल योग्य मानल जाइत छै मुदा आइ-काल्हि आधा तीतर आधा बटेर बला हाल अछि टी.भी बाबा सभहँक कृपासँ। ओना बहुतों लोक कहै छथि जे आसनसँ शरीर पूर्णतः निरोग रहत। मुदा हमरा जते ज्ञान अछि तै हिसाबसँ ई गलत अछि। हँ, एते मानबामे हमरा कोनो दिक्कत नै जे योगाभ्याससँ बेमारी देरसँ अबै छै आ जल्दिये चलि जाइ छै। ओना टी.बी बला बाबा सभ कहै छथि जे आसनसँ पूर्णतः निरोग रहल जा सकैए। योगासन विज्ञान भगवान शंकरक देन अछि। भगवान शंकरक हिसाबें धरतीपर जते प्राणी अछि तते योगासन अछि। आ ओहि समयमे चौरासी लाख प्राणी छल। तँए भगवान शंकरक हिसाबें चौरासी लाख आसन भेल मुदा... कालक्रमे असुविधाकेँ देखैत चौरासी हजार आसनकेँ प्रमुख मानल गेल तकर बाद फेर चौरासी सए, फेर तकर बाद चौरासी, फेर तकर बाद बत्तिस आ अंतमे मात्र एग्यारह वा आठ टा आसनकेँ प्रमुख मानल गेल। एहू ग्यारह वा आठमे मात्र चारि टा आसन प्रमुख अछि सिद्धासन (वज्रासन), पद्मासन, सिंहासन एवं भद्रासन। एहू चारिटामे दूटा प्रमुख मानल गेल--सिद्धासन (वज्रासन ऐ वज्रासनक अलावे एकटा आर वज्रासन अछि।), एवं पद्मासन आ अंतमे एहू दू टामे सिद्धासन (वज्रासन)के सर्वप्रमुख मानल गेल मुदा ई सिद्धासन (वज्रासन) गृहस्थ लेल वर्जित सन अछि कारण एकर अभ्याससँ वीर्य ऊपर चलि अबै छै आ तैसँ लोकमे सेक्स इच्छा कम भऽ जाइत छै। हँ, अखण्ड ब्रम्हचारी लेल ई आसन सर्वोत्तम अछि। ओना हम टी.बी बाबा नै छी मुदा योगाभ्यास सभ दिनसँ करैत रहलहुँ अछि आ तँए हम अपने अनुभव कएल मात्र 12-13 टा आसन कहब जे की शाइरक संगे-संग सभ लोक लेल उपयोगी रहतआसन साधबाक लेल सभसँ नीक समय भोर थिक। लगभग चारिसँ छह बजे धरि। ओना बदलैत समयमे कोनो समय भऽ सकैए मुदा आसन खाली पेटमे कमाल देखबै छै तँए भोरक समय सभसँ नीक। आसन करबाक लेल साफ जगह ताकि ली आ सूती आसन ओछा कऽ चंचल मोनकेँ एकठाम आनी आ पद्मासन, वीरासन, धनुरासन, चक्रासन, उतानपादासन, गर्भासन (विदुषी मने शाइरा लेल विशेष उपयोगी), टिट्टिभासन, कोकिलासन, मत्येन्द्रासन, पश्चिमोत्तासन, तकरा बाद अंतमे श्वासन केर अभ्यास करी। सभ दिन रातिमे खेलाक बाद वज्रासन के अभ्यास करी। ऐ ठाम आसन करबाक विधि ओ लाभ नै देल जा रहल अछि कारण आसन सदिखन गुरुएसँ सिखबाक चाही। ओना हम जै ठाम व्यक्तिगत रूपें रहब आ तै ठामक शाइर चाहथि तँ ओ हमरासँ सीखि सकै छथि (हम मात्र अभ्यास करै छी योग्य नै छी)।
शारीरिक चर्चाक बाद चली आब किछु एहन गप्प दिस जैपर धेआन देलासँ कोनो शाइर मानसिक रूपें नीक बनि सकै छथि--
गजल सुनब-पढ़ब-कहब-लिखब सभकेँ नीक लगै छै। मुदा बहुत काल गजलकारमे किछु एहन दोख आबि जाइत छै जै कारण गजलकारक रचना उत्तम (उत्तम) रहितों लोक ओकरा नकारि दै छै। तँ देखी किछु एहन दोख जे की प्रायःप्रायः सभ गजलकारमे आबि जाइत छै चाहे ओ गजलकार हम रही की अहाँ—

1) प्रायः प्रायः सभ गजलकार अपन नव गजल पूर्ण होइते सामनेमे जे भेटलनि तिनका गजल सुनाबऽ लगै छथि। ने समयकेँ धेआन ने स्थानक आ ने सुनऽ बलाक मानसिक अवस्थाक धेआन। एकर परिणाम ई होइए जे सुनऽ बला लोक ओइ गजलकारसँ कनछीया काटऽ लागैए। ताहूसँ बढ़ि ई जे ओ सुनऽ बला लोक पूरा गजलेसँ कनछीया काटऽ लागैए। ओहि सुनऽ बला लोक के होइ छै जे सभ गजलकार एहने होइ छै। फलस्वरूप लोकक व्यक्तिगत संबंध अप्रत्यक्ष रूपसँ बिगड़िते छै गजलोकेँ नोकसान होइ छै। ओनाहुतो गजल एवं शेरो-शाइरी मूडपर निर्भर करै छै तएँ पहिने मूड देखू तखन सुनेबाक प्रयास करू।

2) प्रायः सभ गजलकार “हम” बला बेमारी पोसने छथि। हम ई केलहुँ तँ ओ केलहुँ। हमर गजल एहन तँ हमर शेर ओहन। मने अपनेसँ अपने बड़ाइ। सरकार जँ इएह बड़ाइ दोसर मूँहसँ आएत तखने लोक बूझत जे नीक।

3) मंचपर गजल प्रस्तुत करै कालमे बहुतों शाइर ओइ गजलक भूमिका बान्हऽ लगै छथि। ऐसँ श्रोता अनमना जाइ छथि। तँए गजल बिना भूमिकाक पढ़बाक चाही (जँ शेर कोनो खास घटनासँ जुड़ल हो तँ ओकर भूमिका फरिछाएल जा सकैए)। बहुतों बेर शाइर कोनो शेर लेल तते ने भूमिका बान्हि दै छथिन्ह जे श्रोताकेँ बुझाइ छै महान शेर आबि रहल अछि मुदा कनेको स्तरहीन भेलापर श्रोता निरास भऽ जाइ छथि। तँए गजल बिना भूमिकाकेँ प्रस्तुत करी।

4) जेना पाइ बिना मेहनतिकेँ नै अबै छै तेनाहिते विद्या बिना विनम्रताकेँ नै अबै छै। गजल लेल जते विन्रम रहब तते नीक। किछु लोक बुझै छथि जे लाठी बलें सेहो साहित्यकार बनल जा सकैए। ओना कने समय लेल तँ ई संभव छै मुदा भविष्य एहन लठिधर साहित्यकार सभकेँ उखाड़ि दै छै। तँए विनम्रता गजल लेल अत्यावश्यक अछि। मुदा विन्रमता मने कायरता, कथित गुट निरपेक्षता आ दब्बूपन नै होइत छै। किछु गोटे सच बाजबकेँ सेहो उडण्ताक रूपमे देखै छथि मुदा एहन लोक सभ वास्तविक शाइर नै भऽ सकै छथि। जँ सच बाजब उडण्ता छै तँ ऐ महान भारत देशमे भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस आदि सेहो उदण्ड छथि आ हम एकटा शाइर लेल एहन उदण्डता जरूरी मानै छिऐ।

5) आब एकटा एहन दोखपर चरचा करी जे सभसँ खराप अछि। सभ शाइर चाहै छथि जे लोक खाली ओकरे गजल सुनथि। मुदा वएह शाइर दोसरक गजल वा रचना सुनबाक लेल तैयार नै छथि। ई केना हतै। सरकार ई धरती गोल छै। जेहन व्यवहार करबै तहने भेटत। जँ अहाँ दोसरक रचना ने सुनबै आ पढ़बै तँ अहाँक के सुनत-पढ़त। गजलसँ हटि कने कथा साहित्यक महान कार्यक्रम “सगर राति” दिस चली। ई बेमारी स्पष्ट भऽ जाएत। 2012सँ पहिने गुटबंदी बला लेखक सभ पहिने अपन कथा पढ़ि अनका बेरमे सूति रहै छलाह। फलस्वरूप मैथिली कथा साहित्य अपन अंतिम अवस्थामे पहुँचि गेल छल। तँए दोसरक रचना सुनी-पढ़ी आ सुनि पढ़ि ओकरा प्रोत्साहन जरूर दी। चाहे ओ प्रोत्साहन गलतिए निकालि कऽ किएक ने हो। मोन राखू साहित्यमे प्रोत्साहन देनाइ बिआह करेबाक बराबर होइ छै। जेना संसारकेँ जीवित रखबाक लेल वांछित वंश वृद्धि आश्यक छै आ  वांछित वंश वृद्धि लेल बिआह जरूरी छै तेनाहिते साहित्यकेँ जीवित रखबाक लेल साहित्यकारक वृद्धि आवश्यक छै आ साहित्यकारक वृद्धि लेल प्रोत्साहन जरूरी छै (नव लेल बहुत बेसी)।

6) साहित्य लेल प्रतिभा चाही मुदा शुरूआती अवस्थामे, बादमे प्रतिभाक संग अध्ययन चाहबे करी। एकरा एना बुझू जेना की बाल्यकालमे जखन वंश वृद्धि जरूरी नै छै कोनो लड़का वा कोनो लड़की असगरें रहि सकैए। मुदा वंश चलेबाक लेल लड़का-लड़कीकेँ मिलब जरूरी छै तेनाहिते साहित्यमे शुरूआती दौरमे तँ केओ प्रतिभा वा केओ अध्ययन बलें आबि सकैए मुदा बादमे संपूर्ण बनबाक लेल प्रतिभा बलाकेँ अध्ययन वा अध्ययन बलाकेँ प्रतिभा चाहबे करी। मैथिलीमे आशर्चयजनक रूपसँ काव्यप्रतिभा सभकँ प्राप्त होइ छै मुदा अधिकांश लोक अध्ययनकेँ नकारि दै छथि तँए आगू आबि कऽ ओ सभ बिला जाइत छथि।

7) बहुत बेर एहन होइ छै जे कोनो लोक कहला जे ई गजलमे वा ऐ शेरमे दोख अछि आ बस गजलकार बहस करऽ लागै छथि। संगे-संग ओ शाइर सुझाव देबऽ बलाकेँ अपन दुश्मन मानि लै छथि। हुनका बुझाइ छनि जे ई सुझाव दऽ कऽ हमर अपमान कऽ देलक। आब जँ लोक खाली अपने लिखलकेँ शुद्ध आ सही मानि लेत तखन तँ मोश्किल। शाइर सिखबाक प्रकियाकेँ सदिखन जीवित राखथि। अपन लिखलकेँ केखनो अंतिम नै मानथि आ सही सुझावक हिसाबसँ संशोधन करबाक लेल तैयार रहथि।किछु आदमी साहित्यिक आलोचना आ सांसारिक खिद्धांशकेँ एकै मानि लै छथि से गलत।

8) जइ क्षेत्रमे कंपटीशन नै होइ छै तइ क्षेत्रक विकास असंभव भऽ जाइ छै। तँइ सभ गजलकारकेँ एक दोसरासँ कंपटीशन करबाक चाही। कंपटीशनसँ अपन आ आनक सामर्थ्यक पता चलै छै। कंपटीशन नै केनिहार कोनो विधाक होथि दोषग्रस्त भऽ जाइ छथि।

9) साहित्यमे ई कामना नै राखू जे हम ओकरा सन लिखबै। एहन कामना एक प्रकारक नकल थिक जाहिसँ लेखक केर अपन मौलिक चिंतन सोझाँ नहि आबि पबैत छै मुदा ई धेआन राखू जे मौलिक चिंतन मने व्याकरण तोड़ब नहि होइत छै। बहुत लेखक अपन कोनो अग्रजकेँ देवता समान मानि लै छथि ईहो गलत कारण एना केलासँ हुनकर दोषसँ अहूँ ग्रसित भऽ जाएब। तँइ सम्यक आकलन करैत नव चिंतन केलासँ लेखक अपन लेखनकेँ परिपक्व बना सकै छथि। ईहो मोन राखू जे अध्य्यन, व्याकरण, शब्द आदि लेल सभहँक लीक एकै रहै छै, खाली भाव ओ लेखन तरीका केर नवीनतासँ साहित्यकारकेँ मौलिक मानल जाइत छै।

10) जखन गजल कहल वा लिखल पूरा भ' जाए तखन कमसँ कम ओकरा अपने दस बेर आवृति करबाक चाही। एकर दू टा लाभ पहिल तँ ई पता चलि जाइत छै जे गजल उच्चारणपर सटीक छै वा नै (ओना बहरक कारण पहिनेहे लय आबि जाइत छै आ जे कनी मनी उच्चारणक कठिनता बाँकी रहै छै से आवृतिसँ पता चलि जाइत छै आ शाइर ओकरा प्रकाशित करबाकसँ पहिने सुधारि सकै छथि) आ दोसर जे जीहपर रचना बैसि गेलाक बाद मोशायरामे सेहो नीक जकाँ ओकरा सुना सकै छी।

जँ उपरमे देल गेल दोख सभकेँ गजलकार अपनामेसँ हटा सकथि तँ शुभे-शुभ, लाभे-लाभ।

1 टिप्पणी:

  1. पहले तो में आप से माफ़ी चाहता हु की में आप के ब्लॉग पे बहुत देरी से पंहुचा हु क्यूँ की कोई महताव्पूर्ण कार्य की वजह से आने में देरी हो गई
    आप मेरे ब्लॉग पे आये जिसका मुझे हर वक़त इंतजार भी रहता है उस के लिए आपका में बहुत बहुत आभारी हु क्यूँ की आप भाई बंधुओ के वजह से मुझे भी असा लगता है की में भी कुछ लिख सकता हु
    बात रही आपके पोस्ट की जिनके बारे में कहना ही मेरे बस की बात नहीं है क्यूँ की आप तो लेखन में मेरे से बहुत आगे है जिनका में शब्दों में बयां करना मेरे बस की बात नहीं है
    बस आप से में असा करता हु की आप असे ही मेरे उत्साह करते रहेंगे

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों