खण्ड-21
मैथिलीमे बहर
उपरमे हमरा लोकनि जतेक बहर देखलहुँ ताहिमेसँ किछु बहरक उपर मैथिलीमे
गजल कहल गेल। मुदा मैथिलीक किछु सम्पादक सभ गोलबंदी कए ई देखेबाक प्रयास केलक जे गजलमे
बहर होइते नै छै। अर्थात जीवन झासँ लए कए 2008 धरि मैथिलीमे बहर बला गजल रहितो देखार
नै छल। 2008क बाद गजेन्द्र ठाकुर उपरका बहरमे गजल तँ कहबे केलाह संगहि-संग मैथिली लेल
एकटा अन्य बहर सेहो तकलाह जकर नाम देल गेल वार्णिक बहर। एहि बहरक मतलब छैक मतलाक पहिल
पाँतिमे जतेक वर्ण छैक ओहि गजलक आन हरेक शेरक पाँतिमे ओतबए वर्ण हेबाक चाही। उदाहरण---
जहिआ धरि हमर श्वास रहत
तहिआ धरि हुनक आस रहत
आब एकरा गानू। एहि दूनू पाँतिमे 13-13 वर्ण अछि। ई भेल सरल वार्णिक
बहर। वर्ण कोना गानल जाए ताहि लेल धेआन राखू
हलंत बला अक्षरकेँ 0 मानू
संयुक्ताक्षरमे संयुक्त अक्षरके 1 मानू। जेना की “हरस्त” मे
स्त=1 भेल।
तकरा बाद सभ अक्षरकेँ 1 मानू चाहे ओकर मात्रा लघु हो की दीर्घ।
इरा मल्लिकजीक सरल वार्णिक बहरमे कहल एकटा गजल उदाहरण लेल ऐठाम
दऽ रहल छी ---
बाट जाम होय कि मगज विकास रुकबे करत
बेइमान हो नेता तँ देशक नैया डूबबे करत
पूँजीपति हो लालची चोर धनबटोर सूदखोर
विकराल मँहगाइ तँ आसमान छुबबे करत
भूखसँ बिलबिलाइत अछि बाल बच्चा वृध्दजन
अइ सरकार के थूका फजीहत करबे करत
बढ़ैत जनसँख्यासँ त्रस्त अछि सौँसेसँसार आइ
बेरोजगारीक मारिसँ लाचार तँ होबहे पड़त
जहि देशमे होय एकता अखँडताक दिव्यमंत्र
ओते सुख शांति समृध्दि के त्रिवेणी बहबे करत
वर्ण-19
वार्णिक बहर दू तरहक अछि--सरल वार्णिक बहर, आ वार्णिक---
1) सरल वार्णिक बहर उपरका सभ उदाहरण सरल वार्णिकक अछि।
2) वार्णिक एहिमे वर्णक संग-संग मात्राक सेहो धेआन राखए पड़ैत
छैक। मने वर्णक संख्या तँ निश्चित हेबाके चाही संगहि-संग ह्रस्वके निच्चा ह्रस्व आ
दीर्घ के निच्चा दीर्घ हेबाके चाही। उदाहरण लेल—
नचनी नाच नचा गेल प्रेम हुनकर
जिनगी बाँझ बना गेल प्रेम हुनकर
आब एहि शेरके देखू दूनू पाँतिमे 15 वर्ण तँ छैके संगे-संग पहिल
पाँतिमे जाहि ठाम जे मात्रा छैक वएह मात्रा दोसरो पाँतिमे ओही ठाम छैक। तँ ई भेल वार्णिक
बहर। जँ अहाँ एकरा मात्रा क्रम देबै तँ पता चलत जे एकर रुप एना छैक—2221-1222-2122
आब कने ई विचारी जे मैथिलीमे कोन बहरके प्रधानता दी। जेना की
हमरा लोकनि जनैत छी “सरल वार्णिक बहर” सभसँ
बेसी हल्लुक अछि तँए गजलगो (शाइर) शुरुआतमे एही बहरमे गजल लिखथि तँ नीक। तकरा बाद अभ्याससँ
दोसर बहर (वार्णिक बहर) पर आबथि आ तकरा बाद उर्दू बला बहरपर हाथ अजमाबथि। ऐठाँ ई कहब
विशेष रूपें जरूरी अछि जे सरल वार्णिक बहर मात्र शुरूआती अभ्यास लेल अछि। अंतिम लक्ष्य
छै वर्णवृत वा अरबी बहर (जे गजलक शुद्ध बहर छै)केँ प्रयोग। जेना बच्चाकेँ जखन चलल नै
होइ छै तखन ओकरा कटही गाड़ी पकड़ा चलेनाइ सिखाएल जाइत छै तेनाहिते सरल वार्णिक केर
प्रयोग करैत शाइर गजल कहनाइ सीखि सकैत छथि (जँ प्रतिभाशाली शाइर वर्णेवृत बहरसँ शुरू
करथि तँ नीक) । जेना आदमी जुआन भेलापर चलबा लेल कटही गाड़ीक प्रयोग करै छथि तँ समाजमे
हँसीक पात्र बनै छथि तेनाहिते सिखलाक बाद जँ शाइर सरल वार्णिक बहरक प्रयोग करै छथि
तँ हुनक ई लक्षण मेहनत नै करबाक अछि। अंतमे सबसँ खास गप्प गजल चाहे अहाँ कोनो बहर मे
किएक ने लिखब रदीफ आ काफियाक नियम सभ लेल एकै रंग रहत (शुरूआतमे सरल वार्णिक बला गजल
सभमे काफियाक विस्तृत प्रयोग नै भऽ सकल अछि जाहि लेल हमहीं दोषी छी)।
मैथिली गजलमे कोन बहर हेबाक चाही तै संबंधमे श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक
विचार देखू (हुनक ई विचार हुनके गजल संग्रह “धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ”
मे संकलित “मैथिली गजल शास्त्र” मे व्यक्त भेल अछि) --” कोनो गजलक पाँती (मिसरा)क वज्न/
वा शब्दक वज्न तीन तरहेँ निकालि सकै छी, सरल वार्णिक छन्दमे वर्ण गानि कऽ; वार्णिक
छन्दमे वर्णक संग ह्रस्व-दीर्घ (मात्रा) क क्रम देखि कऽ; आ मात्रिक छन्दमे ह्रस्व-दीर्घ (मात्रा) क क्रम देखि कऽ। जिनका गायनक
कनिकबो ज्ञान छन्हि ओ बुझि सकै छथि जे गजलक एक पाँतीमे शब्दक संख्या दोसर पाँतीक संख्यासँ
असमान रहि सकैए, मुदा जँ ऊपर तीन तरहमेसँ कोनो तरहेँ गणना कएल जाए तँ वज्न समान हएत।
मुदा आजाद गजल बे-बहर होइत अछि तेँ ओतऽ सभ
पाँती वा शब्दमे वज्न समान हेबाक तँ प्रश्ने नै अछि। ऐ तीनू विधिसँ लिखल गजलमे मिसरामे
समान वज्न एबे टा करत। ओना ई गजलकार आ गायक दुनूक सामर्थ्यपर निर्भर करैत अछि; गजलकार
लेल वार्णिक छन्द सभसँ कठिन, मात्रिक ओइसँ हल्लुक आ सरल वार्णिक सभसँ हल्लुक अछि, मुदा
गायक लेल वार्णिक छन्द सभसँ हल्लुक, मात्रिक ओइसँ कठिन, सरल वार्णिक ओहूसँ कठिन आ आजाद
गजल (बिनु बहरक) सभसँ कठिन अछि।”
श्री ठाकुरजीक मंतव्यक पुष्टि चैतन्य महाप्रभु द्वारा रचित “हरे
राम हरे कृष्ण” मंत्रसँ सेहो होइत अछि। ऐ मंत्रक पाठ वा गायन दू तरहें होइत छै। पहिल
भेल--
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
आब पहिल पाँतिक मात्रा क्रम देखू--1221—1221--21-21-12-12
फेर दोसर पाँतिक मात्राक्रम देखू--1221—1221--21-21-12-12
मने दूनू पाँतिक मात्राक्रम बराबर अछि।
आब एही मंत्रक दोसर रूप देखू--
हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे
आब ऐ दू पाँतिक मात्राक्रम देखू—1222-1222-22-22-12-12
दोसरो पाँतिक मात्राक्रम अछि --1222-1222-22-22-12-12
मने स्वरूप बदलि गेलै, शैली बदलि गेलै मुदा मात्राक्रम निर्धारण
नै बदलि सकलै। आ एही कारणसँ ई मंत्र जतबे पढ़ल-लिखलमे प्रचार पेलक ततबे अशिक्षितमे
सेहो। इस्काँन द्वारा एही मंत्रकेँ आगू बढ़ाएल गेलै मात्र एही लोचक कारणे आ विदेशी
सभ आब एकरा नीक जकाँ गाबै छथि। आब अहाँ सभ कहबे करब जे जँ सरल वार्णिक बहर गजल लेल
नै छै तखन अहाँ सभ एकरा प्रचारित किए केलहुँ। सही गप्प मुदा श्री गजेन्द्र ठाकुर जी
किछु फायदा सोचि एकरा विवेचित केलाह। टू टा जे तात्काल फायदा भेल से देखू
1) विलुप्त होइत वैदिक छन्दक पुर्नजागरण लेल। सभ वैदिक छन्द
सरल वार्णिक छन्द अछि। वर्तमानमे श्री गजेन्द्र ठाकुर जी एकरा विवेचित कए मात्र किछुए
समयमे आ सेहो सरल रूपें वेद-विज्ञानक परिचय करबौलथि। एखन जे गजल लिखै छथि वा जे गजेन्द्र
ठाकुर जीक पोथी वा अनचिन्हार आखर पढ़ताह हुनका स्वतः ई बुझा जेतन्हि जे गायत्री छन्द
की छै आ अनुष्टुप छन्द की ।
2) बहुत गजलकार (मैथिलीक) छन्दक दृष्टियें अनुशासनहीन गजलकार
छलाह। तँए सभकेँ अनुशासनमे अनबाक लेल पहिने सरल वार्णिक बहर देल गेल। ई साधारण नियम
छै जे जँ कोनो आदमी हल्लुक अनुशासन नै मानि सकैए ओ भारी अनुशासन कोना मानत। तँए सभहँक
शुरुआत हल्लुक बहरसँ भेल। एकटा खास गप्प-हिन्दीमे बहुतों गजलकार मात्रिक छन्दमे सेहो
गजल लिखै छथि मुदा एकर ई मतलब नै जे मात्रिक छन्द गजलक छन्द अछि। हिन्दी बला सभ मेहनति
नै करऽ चाहै छथि तँए मात्रिक छन्दमे लिखै छथि आ जखन मेहनति करबाके नै छै तखन तँ “सरल
वार्णिक बहर “सभसँ नीक। सभ झंझटि खत्म। सदिखन मोन राखू जे गजलक बहर वा छन्द वर्णवृत
थिक। मात्रिक वा सरल वार्णिक नै। बहुतों हिन्दी व्याकरण आ छन्दक पोथीमे वार्णिक वा
वर्णवृतक परिभाषा मात्रिक छन्द सन दऽ देल गेल छै वा जानि बूझि कऽ देल जा रहल छै आ मैथिल
तँ बस रातिदिन हिन्दीक नकलमे लागल रहै छथि तँए विशेष सावधानीक जरूरति अछि। मोन राखू—
1) हरेक पाँतिक वर्णकेँ गानि कऽ छन्द बनलापर सरल वार्णिक छन्द
वा बहर भेल।
2) हरेक पाँतिक मात्राक्रम ओ वर्ण संख्या समान रहलापर जे छन्द
वा बहर बनै छै से वार्णिक वा वर्णवृत भेल (गजलमे मात्राक्रम बराबर हेबाक चाही, जँ वर्ण
संख्या समान भेल तँ बहुत उत्तम)
3) हरेक पाँतिक मात्राक जोड़केँ बराबर राखि कऽ छन्द वा बहरक
निर्माण भेलापर ओ मात्रिक छन्द वा बहर भेल।
चूँकि गजलक हरेक पाँतिक मात्राक्रम बराबर होइत छै आ तँए मात्राक
जोड़ सेहो बराबर होइ छै आ साइत तँए लोक सभकेँ ई भ्रम होइ छै जे गजल मात्रिक छन्दपर
आधारित छै मुदा मोन राखू जे गजलमे सदिखन मात्रा क्रम बराबर हेबाक चाही। तेनाहिते हिन्दीक
विद्वान सभ बहर आ छन्दकेँ दू अलग-अलग वस्तु मानै छथि मुदा ई गलत थिक। वस्तुतः बहर आ
छन्द एकै छै। मात्र एकटा अंतर छै जे बहर अरबी शब्द छै आ छन्द संस्कृतक। ओना हिन्दीक
विद्वान सभ कविता आ पोयममे सेहो अंतर कहि सकै छथि भविष्यमे। मुदा जँ विशेष रूपें कही
तँ छन्द आ बहरमे मात्र भाषिक अंतर छै।
मैथिलीमे किछु गोटे मानै छथि जे गजलमे कोनो बहर, कोनो सीमा कोनो
बंदिश नै होइ छै आ ने कोनो व्याकरण नै होइ छै। ई हुनक सोच छनि मुदा हँसी तखन आबै छै
जखन की ओ लोक सभ उर्दू ओ किछु हिन्दीक शाइर सभहँक गजल उठा कऽ कहै छथि जे एहने गजल हेबाक
चाही। हेबाक तँ चाही मुदा तखन फेर व्याकरणोकेँ तँ हेबाक चाही। ऐ ठाम हम हिन्दी-उर्दूक
किछु गजलकारक गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी जे कोना हिनकर सभहँक गजल व्याकरण ओ बहरमे
अछि। मैथिलीक अराजक गजलकार सभ हिंदीक निराला, दुष्यंत कुमार आ उर्दूक फैज अहमद फैज
केर बहुत मानै छथि। एकर अतिरिक्तो ओ सभ अदम गोंडवी मुन्नवर राना आदिकेँ मानै छथि। मैथिलीक
अराजक गजलकार सभहँक हिसाबें निराला, दुष्यंत कुमार आ फैज अहमद फैज सभ गजलक व्याकरणकेँ
तोड़ि देलखिन मुदा ई भ्रम अछि। सच तँ ई अछि जे निराला मात्र विषय परिवर्तन केला आ उर्दू
शब्दक बदला गजलमे हिंदी शब्दक प्रयोग केला, तेनाहिते दुष्यंत कुमार इमरजेन्सीक विरुद्ध
गजल रचना क्रांतिकारी रूपें केलथि। फैजकेँ साम्यवादी विचारक गजल लेल जानल जाइत अछि।
मुदा ई गजलकार सभ विषय परिवर्तन केला आ समयानुसार शब्दक प्रयोग बेसी केला। हम ऐठाम
पहिने निराला आ शमशेर बहादुर सिंह केर गजलक व्याकरण देखा रहल छी आ तकर बाद जयशंकर प्रसाद सहित दुष्यंत कुमार, फैज
अहमद फैज, अदम गोंडवी, मुनव्वर राना सहित आन-आन गजलकारक गजलक व्याकरण देखा रहल छी।
तँ पहिने निराला आ शमशेर बहादुरक गजलकेँ देखू—
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है
मतला (मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि--2122+2122+2122+212 आब
सभ शेरक मात्राक्रम इएह रहत। एकरे बहर वा की वर्णवृत कहल जाइत छै। अरबीमे एकरा बहरे
रमल केर मुजाइफ बहर कहल जाइत छै। मौलाना हसरत मोहानीक गजल “चुपके चुपके रात दिन आँसू
बहाना याद है” अही बहरमे छै जकर विवरण आगू देल जाएत। ऐठाँ ई देखू जे निराला जी गजलक
विषय नव कऽ देलखिन प्रेमिकाक बदला विषय मिल आ पूँजी बनि गेलै मुदा व्याकरण वएह रहलै।
बाँचल शेर एना छै--
हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये,
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है
तरस है ये देर से आँखे गड़ी शृंगार में,
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है
पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली,
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है
ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें,
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है
शमशेर बहादुर सिंह
1
जहाँ में अब तो जितने रोज अपना जीना होना है,
तुम्हारी चोटें होनी हैं हमारा सीना होना है।
वो जल्वे लोटते फिरते है खाको-खूने-इंसाँ में :
'तुम्हारा तूर पर जाना मगर नाबीना होना है!
ऐ गजलक मतलाक मात्राक्रम अछि 1222-1222-1222-1222 आ एकर पालन
दोसर शेर सहित आन सभ शेरमे अछि।
जयशंकर प्रसाद
सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं
बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं
उन्हें अवकाश ही इतना कहां है मुझसे मिलने का
किसी से पूछ लेते हैं यही उपकार करते हैं
जो ऊंचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे देखते हरदम
प्रफ्फुलित वृक्ष की यह भूमि कुसुमगार करते हैं
न इतना फूलिए तरुवर सुफल कोरी कली लेकर
बिना मकरंद के मधुकर नहीं गुंजार करते हैं
'प्रसाद' उनको न भूलो तुम तुम्हारा जो भी प्रेमी हो
न सज्जन छोड़ते उसको जिसे स्वीकार करते हैं
पहिने आजुक समयक प्रसिद्ध शाइर आ फिल्मी गीतककार जावेद अख्तरजीक
ई गजल देखू जे की जगजीत सिंह गेने छथि---
तमन्ना
फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये
मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
1222122212221222
आब
पूरा गजल देखू--
तमन्ना
फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये
मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे
गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये
ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं
मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना
मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये
दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला
हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
आब
हसरत मोहानीक ई प्रसिद्ध गजल देखू---
2122+2122+2122+212
चुपकेचुपके
रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको
अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
आब
पूरा गजल देखू---
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
बाहज़ाराँ इज़्तराबओसद हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझसे वो पहले पहल दिल का लगाना याद है
तुझसे मिलते ही वो बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
खेंच लेना वोह मेरा परदे का कोना दफ़तन
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छुपाना याद है
जानकार सोता तुझे वो क़स्दे पाबोसी मेरा
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कराना याद है
तुझको जब तन्हा कभी पाना तो अज़ राहे लिहाज़
हाले दिल बातों ही बातों में जताना याद है
ग़ैर की नज़रों से बच कर सबकी मरज़ी के ख़िलाफ़
वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है
आ गया गर बस्ल की शब भी कहीं ज़िक्रे फ़िराक़
वो तेरा रोरो के मुझको भी रुलाना याद है
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
कबीर दासक एकट गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी---
बहर—ए—हजज केर ई गजल जकर लयखंड (अर्कान) (1222×4) अछि--
ह1 मन2 हैं2 इश्2, क़1 मस्2ता2ना2, ह1 मन2 को 2 हो 2, शि1 या2
री2 क्या2
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या?
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दरबदर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या?
खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या?
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या?
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या?
तेनाहिते आजुक प्रसिद्ध शाइर मुनव्वर राना केर ऐ गजलक तक्ती
देखू—
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है
नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है
मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ 37)
तक्तीअ
बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(नकाब उलटे के अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे 1222 मानल गेल अछि)
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
आब राहत इन्दौरी जीक ऐ गजलकेँ देखू—
गजल (1222 / 1222 / 122) (बहर-ए-हजज केर मुजाइफ)
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है
न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है
जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ 24)
तक्तीअ =
चरागों को / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
1222 / 1222 / 122
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी 222 गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
1222 / 1222 / 122
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
फेरसँ मुनव्वर रानाजीक एकटा आर गजलकेँ देखू—
हमारी ज़िंदगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है
सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर कटता है कभी बंगाल कटता है
(मुनव्वर राना)
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन)
हमारी ज़िं / दगी का इस / तरह हर सा / ल कटता है
कभी गाड़ी / पलटती है / कभी तिरपा / ल कटता है
सियासी वा/ र भी तलवा/ र से कुछ कम / नहीं होता
कभी कश्मी/ र कटता है / कभी बंगा / ल कटता है
आब दुष्यंत कुमारक ऐ गजलक तक्ती देखू---
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो गई है / पीर पर्वत /सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए।
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल
छी—
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
आब कने अदम गोंडवी जीक दू टा गजलक तक्ती देखू—
1222 / 1222 / 1222 / 1222
ग़ज़ल को ले / चलो अब गाँ / व के दिलकश /नज़ारों में
मुसल्सल
फ़न /
का दम घुटता / है इन अदबी / इदारों में
आब
अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी
ग़ज़ल
को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सल
फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में
न
इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे
फूल बेशक लॉन की लम्बी क़तारों में
अदीबों!
ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे
के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँदतारों में
रहे
मुफ़लिस गुज़रते बेयक़ीनी के तज़रबे से
बदल
देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में
कहीं
पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो
है संगीन के साये की चर्चा इश्तहारों में
फेर
गोंडवीजीक दोसर गजल लिअ—
2122
/ 2122 / 2122 / 212s
भूख
के एह / सास को शे / रोसुख़न तक /ले चलो
या
अदब को / मुफ़लिसों की / अंजुमन तक /ले चलो
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल
छी—
भूख के एहसास को शेरोसुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो
जो
ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको
अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
मुझको
नज़्मोज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले
अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो
गंगा
जल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी
को वोदका के आचरन तक ले चलो
ख़ुद
को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस
शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो
आब
आधुनिक उर्दूक प्राचीनतम गजलकार हरी चंद अख़्तरजीक ई गजल देखू--
सुना
कर हाल क़िस्मत आज़मा कर लौट आए हैं
उन्हें
कुछ और बेगाना बना कर लौट आए है
1222+1222+1222+1222
आब
पूरा गजल देखू----
सुना
कर हाल क़िस्मत आज़मा कर लौट आए हैं
उन्हें
कुछ और बेगाना बना कर लौट आए है
फिर
इक टूटा हुआ रिश्ता फिर इक उजड़ी हुई दुनिया
फिर
इक दिलचस्प अफ़्साना सुना कर लौट आए हैं
फ़रेबएआरज़ू
अब तो न दे ऐ मर्गएमायूसी
हम
उम्मीदों की इक दुनिया लुटा कर लौट आए हैं
ख़ुदा
शाहिद है अब तो उन सा भी कोई नहीं मिला
बज़ोमएख़ुवेश
इन का आज़मा कर लौट आए हैं
बिछ
जाते हैं या रब क्यूँ किसी काफ़िर के क़दमों में
वो
सज्दे जो दरएकाबा जा कर लौट आए हैं
(“फिर
इक” मे अलिफ-वस्ल छूट छै आ एकर उच्चारण “फिरिक” छै। तेनाहिते “हम उम्मीदों
“लेल तेहने सन बूझू।)
अंतमे एकटा ओहन गजलकारक गजल केत तक्ती देखा रहल छी जिनक नाम
लऽ सभ झुट्ठा प्रगतिशील सभ बहर ओ छंदक विरोध करैए ओ। तँ चलू फैज अहमद फैज जीक ई गजल
देखू--
शैख साहब से रस्मो-राह न की 2122-1212-112
शुक्र है ज़िन्दगी तबाह न की 2122-1212-112
तुझको देखा तो सैर-चश्म हुए 2122-1212-112
तुझको चाहा तो और चाह न की 2122-1212-112
तेरे दस्ते-सितम का इज्ज़ नहीं 2122-1212-112
दिल ही काफ़िर था जिसने आह न की 2122-1212-112
थे शबे-हिज़्र काम और बहुत 2122-1212-112
हमने फ़िक्रे-दिले-तबाह न की 2111-1212-112
कौन क़ातिल बचा है शहर में फ़ैज़ 2111-1212-112 (ऐ पाँतिमे अंतिम
लघु छूटक तौरपर अछि)
जिससे यारों ने रस्मो-राह न की 2122-1212-112
ई झुट्ठा प्रगतिशील सभ अपन अयोग्यता नुकेबाक लेल हल्ला करैए।
ई सच जे फैज जी बेसी गजल नै लिखला। ओ बेसी नज्म लिखला आ झुट्ठा क्रांतिकारी सभ नज्मे
पढ़ि कऽ कहऽ लागल जे गजलमे बहर नै होइत छै। कतेक नाम आ गजल दिअ ऐ ठाम। कहबाक मतलब जे
हरेक शाइर अपन गजलमे नव-नव काफिया-रदीफक सहायतासँ कथ्य आ तेवर बदलै छथि व्याकरण वएह
रहै छै। मुदा मैथिलीक विद्वान तँ बस विद्वान छथि हुनका के टोकत। ऐ ठाम ई लेख देबाक
मतलब मात्र सही पक्षकेँ उजागर करबाक अछि। ऐ उदाहरण सभसँ ई स्पष्ट होइत अछि जे व्याकरण
केखनो भाव या कथ्य लेल बाधक नै होइत छै।
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