शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

गजलक संक्षिप्त परिचय भाग-1



मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास
आशीष अनचिन्हार








सूचना---

1) पाठक अइ पोथीकेँ पढ़बासँ पहिने गजल संबंधित प्रश्नक एकटा लिस्ट बना लेथि जइमे ओहन प्रश्न सभ राखथि जे ओ गजलक बारेमे बूझए चाहै छथि तकर बाद ओ अइ पोथीकेँ पढ़नाइ शुरू करथि। हमर विश्वास अछि जे एना केलासँ हुनका आनंद सेहो भेटतनि आ गजलकेँ बुझबाक लेल एकटा सरल मुदा ठोस प्रक्रिया सेहो।

2) ई पोथी किनका लेल नै अछि----
A) जे लोक बिना पढ़ने घोंघाउज करै छथि।
B) जिनका तर्क-वितर्कसँ परहेज छनि कारण अइ पोथीमे हरेक तथ्य लेल तर्क-वितर्क भेटत।
C) जे लोक कोनो तथ्यकेँ जाति-धर्म-उम्र-संबंध-पद आदि देखि कऽ मानै छथि। मने फल्लाँक उम्र एतेक बेसी छनि हुनक बात सही हेबे करतनि। फल्लाँ हमर संबंधी छथि हुनक बात केना काटल जाए। फल्लाँ अमुक जाति-धर्मक लोक छथि हुनक बात झूठ भैए ने सकैए। फल्लाँ अइ पोस्टपर छथि हुनक कमाइ एतेक छनि हुनक बात मानले जाए। एहन-एहन मानसिकता बला लेल ई पोथी उपयुक्त नै।
D) जे लोक कहियो भूतकालमे दू पन्नाक आलेख लीखि मानै छथि जे गजलपर आब काज नै हेबाक चाही। जे विद्वान तँ छथि कोनो आन विषयकेँ मुदा ओइ विषयक बलपर आन विषयक विद्वान बनबाक प्रयास करै छथि (मोन राखू ...ओइ विषयक बलपर...। जँ कियो एकै संगे आन-आन विषयमे प्रवीण छथि तँ स्वागतयोग्य गप्प)
साधारण पाठक लेल ई सूचना नै अछि। ई सूचना अइ दुआरे जे एहन-एहन मानसिकता बलाक समय आ पाइ दूनू बचतनि। हुनके लाभ लेल ई सूचना हम दऽ रहल छी सेहो दोसरे पन्नापर जइसँ सूचना जल्दी भेटनि आ हुनका निर्णय लेबएमे सुविधा होइन। साधारण पाठक हमरा माफ करथि मुदा ई सूचना देब जरूरी छल।















समर्पण
सिरजनहारकेँ




विषय सूची
खण्ड-1 मे गजलमे प्रयुक्त प्रतीक, गजलक परिभाषा, गजलक आरंभिक उद्गम ओ विकास।
खण्ड-2 मे गजलमे प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली ओ ओकर विवरण, शेरक परिभाषा।
खण्ड-3 मे मतला केर विवरण।
खण्ड-4 मे रदीफक विवरण।
खण्ड-5सँ 12 धरि काफियाक विवरण (साधारण काफिया, आघात बला काफिया, विसर्ग बला काफिया, मैथिली ओ उर्दू वर्णमालाक अंतर, गजल लेल काफिया किएक अनिवार्य अछि) आदि।
खण्ड-13 मे मकताक विवरण।
खण्ड-14सँ खंड -20 धरि बहरक विवरण ओ ओकर उदाहरण अछि (लघु-दीर्घ कोना गनती करी, संयुक्ताक्षर लेल पुरान व्याकरणशास्त्री सभहँक मतक खंडन, मैथिलीमे ए, ऐ, ओ, औ आदिक व्यवस्था, गजलक नियममे छूट, भिन्न-भिन्न अरबी बहरक मैथिली उदाहरण (गजल सहित), मैथिलीक विभिन्न प्रकारक आन गजल उदाहरण सहित जेना बाल गजल, भक्ति गजल, मुजाइफ बहरक नियम, अरबी बहरकेँ मैथिली हिसाबसँ निरूपण, संस्कृतक वार्णिक छंद आ अरबी बहरक माँझ सम्बन्ध।
खण्ड-21 मे मैथिली लेल कोन बहर नीक रहत तकर विवरण अछि संगे-संग किछु हिंदी-उर्दू गजलक तक्ती कए कऽ देखाओल गेल अछि।
खण्ड-22 मे मैथिली पत्रिकाक संपादक सभसँ आग्रह कएल गेल अछि जे गजलकेँ प्रकाशित करबा काल की -की धेआन राखथि, गजल भाषाक विवरण, गजलक भाव ओ कथ्य, गजलक संगीत, गजलक प्रभाग आदि अछि।
खण्ड-23 मे गजलक गुण ओ दोषक विवरण अछि, तुकांत ओ छन्दबद्ध काव्यक अंतर अछि, गजलक समीक्षाशास्त्र अछि, गजलकारक व्यक्तित्व आ योग अछि।
खण्ड-24 मे गजल छोड़ि शाइरीक आन विधाक विवरण अछि
खण्ड-25 मे मैथिली गजलक परंपरा ओ इतिहास।
अइ पचीस खंडक अलावा परिशिष्ट अछि जइमे अनचिन्हार आखर द्वारा देल जा रहल विभिन्न सम्मानक सर्टिफिकेटक छायाचित्र ओ विवरण अछि। संगे-संग मैथिली गजलकार द्वारा लिखल अंग्रेजी गजलक विवरण सेहो अछि।




अनचिन्हारक बात
कोनो पोथी लेल प्रकाशक दोसर माए-बाप दूनू होइत छै तँए ऐ पोथीक पहिल पाँति प्रकाशक केर सम्मानमे। आब ऐ पोथीकेँ पढ़बासँ पहिने हमर किछु व्यक्तिगत तथ्य पढ़ी से आग्रह (ई नितांत व्यक्तिगत अछि। बहुत लोक हमरा कहलाह जे पोथीमे ई व्यक्तिगत तथ्य देलासँ पोथी "हल्लुक" भऽ जाएत। मुदा विश्वास मानू जे जँ हम ई तथ्य सभ एहिठाम नै दितहुँ तँ ई सभ हमर मोनेमे रहि जाइत आ पाठक सभ मैथिलीक बहुत रास भितरिया बातसँ अनभिज्ञ रहि जइतथि। वस्तुतः ई कही जे एहिठाम ई व्यक्तिगत तथ्य देलासँ हमर मोन हल्लुक भऽ गेल आ हम अपनामे नव परिवर्तन पाबि रहल छी। उम्मेद अछि जे पाठक एहि सभ तथ्यकेँ पढ़ताह जाहिसँ हमरा बारेमे वा मैथिली गजलक बारेमे भितरिया बात सभ बुझताह) —

1) ई पोथी मैथिली गजलक व्याकरण थिक। मैथिली गजलक इतिहास थिक। चूँकि गजलक व्याकरण अरबी-फारसी-उर्दूसँ संचालित अछि भारतमे मुदा हम एहन बहुत रास नियम हटा देलहुँ जे की मैथिली भाषाक व्याकरण आ ओकर प्रकृतिसँ अलग छलै। जैठाम नियम हटाएल गेल छै तैठाम अरबी-फारसी-उर्दूक मूल नियम सेहो देल गेल छै आ कोन कारणसँ ओइ नियमकेँ हटाएल गेल छै सेहो कहल गेल छै। सामान्य पाठकसँ अध्येताक धरिक लेल ई तरीका उपयोगी हएत से हमरा विश्वास अछि। हमरा गजल तँ चाही मुदा मैथिलीमे चाही तँए हम प्रयास केलहुँ जे मैथिली गजल लेल अलगसँ पोथी हेबाक चाही आ ताही लेल एकर नाम भेल “मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास” । व्याकरण बहुत पहिनेसँ लिखल गेल छलै। अरबी-फारसी-उर्दूक सहित गजलक सेहो आ मैथिली भाषाक सेहो तँइ ऐ पोथी लेल हमरासँ बेसी मेहनति हमर पूर्वज केने छथि जे कोनो ने कोनो रूपें तथ्यकेँ उजागर कऽ गेलाह। व्याकरण केखनो मौलिक नै होइ छै मुदा ओकर प्रस्तुतिकरण ओ संकल्पना ओकरा मौलिक बना दै छै। प्रस्तुत पोथीक प्रस्तुतिकरण ओ संकल्पना केहन अछि से पाठके कहि सकै छथि। ऐ पोथीक सभ तथ्य आन-आन व्याकर्णाचार्य सभहँक छनि। हमर काज एतबे जे सभ अनुकूल तथ्यकेँ हम एक ठाम दऽ देलहुँ। हँ, कोनो तथ्यक समर्थन वा विरोधमे देल गेल तर्क हमर अपन मौलिक अछि। इतिहास लेखनक भाग मौलिक अछि। मैथिली आलोचना ओ साहित्यिक इतिहासक बहुत रास पोथीमे देखल जाइए जे आलोचक-इतिहासकार जै लेखककेँ पसंद नै करै छथि वा जिनकासँ हिनका मतांतर छनि तिनकर नामे नै लै छथि आ हुनकर काजक सम्यक मूल्यांकन नै करै छथि। प्रस्तुत पोथीक इतिहास खंडमे हम एहन दुर्भावनासँ बचलहुँ अछि। जिनकर काज हमरा पसंद नै पड़ल अछि तिनकर हम खुलि कऽ आलोचना केलहुँ मुदा हुनकर काजक उल्लेख जरूर अछि। हँ, एतेक हम स्वीकार करै छी जे एकेडमिक नै हेबाक कारणे किछु गजलकार हमरा नजरिसँ छुटि गेल छथि जे कि हमर अज्ञानताक सूचक अछि।

2) एहूसँ बेसी हरमादि करऽ बला काज छल मैथिली गजलक इतिहास। जै विधामे 100मेसँ 100 साहित्यकार ओहि विधाक मास्टर हो ताहूमे की तँ हाथमे क्रांतिक झंडा लेने, तै विधाक इतिहास लिखब चिकनी माटिक चुल्हामे मूड़ी घुसिआएब सन छल। मुदा हमरा ऐ गप्पक संतोष अछि जे हम मूड़ी घुसिएलहुँ, हमर मूँह झरकल मुदा ऐ क्रममे योगानंद हीरा, विजयनाथ झा, जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल, आदि सनक सदाबहार धधरासँ पाला पड़ल आ नकली आगिक चोला धारण करऽ  बला गजलकार सभहँक आँखि चोन्हरा गेलन्हि। मैथिली गजलक आसनपर नकली गजलकार सभहँक जे एकाधिकार छल से टूटल आ मैथिली गजल आमक पल्लव रूप सेहो धेलक आ बाँसक कोपड़िक रूप सेहो। ऐठाम ई कहब उचित रहत जे इतिहास बड़ निर्मम होइ छै, आइ जँ हम गलत करबै तँ काल्हि हमरो नाम / काज इतिहासमे गलत रूपमे दर्ज हएत आ आ एहने कानून सभहँक लेल छै।

3) मैथिली गजलमे हमरा बनल-बनाएल बाट नै भेटल (बहुत लोक अइ बातकेँ नै स्वीकार करता से हमरा बूझल अछि। किछु कहता हम नियारने छलहुँ जे एना लीखब। किछु कहता जे गजलक व्याकरणमे होइते की छै हम फल्लाँ पत्रिकाक ओइ आलेखमे गजलपर एतेक रास लिखने रही। हम हुनक सभ बात शिरोधार्य करब) आ जेना-जेना हमरा गजलक ज्ञान भेटैत गेल हम सभहँक संग ओकरा सभ संग शेयर करैत केलहुँ आ अपना संग सभकेँ सिखेलहुँ। आ एनाहिते सिखैत-सिखाबैत हम अइ ठाम ठाढ़ छी। अही दुआरे हमरापर हमर किछु संगतुरिया गजलकारकेँ तामस छनि जे हम हुनका एकै बेरमे गजल गाछक फुनगीपर किएक नै चढ़ा देलियनि। मुदा हम उपर अपन सीमा देखा देने छी। अइ ठाम पहुँचि हम अपन ओहन सभ संगतुरिया सभसँ माफी माँगै छियनि जिनका हम एकै बेरमे गजलक सभ नियम नै दऽ सकलहुँ। हँ किछु गजलकार जरूर भेटला जे हमर सीमाकेँ बुझैत हरेक समय अपनामे बदलाव केला आ ओकर परिणाम सामने अछि। एहन-एहन गजलकारक हम ॠणी छी। अइ ठाम हम किनको नाम नै लेबऽ चाहैत छी कारण फेसबुकक माध्यमसँ ई सभकेँ बूझल छै जे के एकै बेरमे फुनगी चाहै छलाह। हम अपना आदति केर हिसाबसँ बहुत लोककेँ गजल लिखबाक लेल कहलिअन्हि बहुत लोक लिखबो केला आ बहुत लोककेँ मोनमे ई भेलनि जे जरूर अनचिन्हारक खाना-खुराकी गजलेसँ चलै छै आ जँ हम गजल नै लिखबै तँ अनचिन्हार भुखले मरि जेतै, हम एहनो लोकक प्रति ॠणी छी। किछु लोक एहि उम्मेदपर गजल लिखनाइ शुरू केलथि जे जा धरि हम गजल लिखब ता धरि अनचिन्हार हमर अनुचितो बात मानैत रहत आ जँ नै मानत तँ हम गजल लिखनाइ छोड़ि देबै। दोसर शब्दमे कही तँ “इमोशनल ब्लैकमेल”  मुदा एहन तँ नै छै जे फल्लाँ बाबू गजल नै लिखता तँ गजलक विकास रुकि जेतै। गजल तँ विधा छै। आइ दू टा लोक लिखतै काल्हि पाँच टा तँ परसू पचास टा। भऽ सकैए जे पाँचम दिन एकैटा गजलकार होथि। तँइ हम एहन “ब्लैकमेलर”  सभकेँ कात करैत अपन काज करैत रहलहुँ। किछु ब्लैकमेलर तँ एहनो छथि जिनका गजलक नियममे अनुचित ढ़िलाइ चाहै छलाह आ नै भेलापर गजल छोड़ि देबाक धमकी दै छलाह। अंतमे हम हुनक गजल छोड़ि देबाक निवेदन स्वीकार कऽ अपनाकेँ धन्य मानि लेलहुँ। गजल ब्लैकमेलर सभसँ पहिनेहो छलै आ ओकरा बादो रहतै।

4) मैथिली भाषा ओ साहित्य केर विश्वविद्यालीय शोधसँ तुलना कऽ हम अपन ऐ प्रस्तुत शोधक महत्व घटबऽ नै चाहै छी। आइकेँ तारीखमे जँ हम विश्वविद्यालयक शोध निर्देशकक हाथमे प्रचुर टका दऽ दी तँ बैसले-बैसल शोध भेटि जाएत। मैथिली साहित्य केर अधिकांश शोध एहने अछि मने 100 मेसँ 97-98 टा (ओना ई प्रकिया एक तरहें झाँपल रहैत छै तँइ अइ आरोप लेल सबूतक कमी रहिते छै) । एहन स्थितिमे हमरा ई संतोष अछि जे मैथिलिए नै हम कोनो भाषा केर एकेडमिक नै छी। ने तँ विद्यार्थी तौरपर आ ने शोधार्थी तौरपर (जँ रहितहुँ तँ ई पोथी नै होइत से हमर विश्वास अछि)।

5) किछु तथ्य दोहराएल सन लागत। मुदा हमरा जनैत ई ऐ दुआरे भए रहल छै कारण व्याकरण ओ इतिहास लेल तथ्य मात्र एकै होइत छै तथापि ऐसँ बचबाक प्रयास कएल गेल छै।

6) जेना की आगू कहले गेल अछि जे ऐ पोथीमे भाषाक पूर्ण ओ अपूर्ण दूनू रूप प्रयोग भेल अछि। ऐ, अइ, एहि तीनू रूप भेटत आ आन शब्द लेल तेहने सन बूझू। गम्भीर पाठक सभकेँ मानक वर्तनी गड़बड़ बुझेतनि। मुदा हमरा जनैत गजल लेल अपूर्ण भाषा सभसँ बेसी उपयुक्त। आ ई पाठक, शाइरपर छोड़ल जाइए जे ओ अपनेसँ परीक्षण करथि जे कोन रूपक भाषासँ गजलमे तेजी आबि रहल छै। संगे ईहो कहब बेजाए नै जे संयुक्त शब्द लेल पंचमाक्षर बला नियम सही अछि तथापि अभ्यास जनित दोषक कारणे ऐ पोथीमे आरंभ ओ आरम्भ दूनू वर्तनी भेटत मने अनुस्वारयुक्त सेहो आ पंचमाक्षर युक्त सेहो। । जँ-जँ अभ्यास बढ़ैत जाएत हमर आन पोथीमे “आरम्भ” वर्तनी भेटत मने पंचमाक्षरयुक्त। “य” लेल “अ” केर ठीम-ठाम प्रयोग सेहो भेटत। ऐ पोथीमे देल गेल सभ उदाहरणक (गजल ओ उद्धरण) वर्तनी लेखक-शाइर विशेषक अछि। अन्तिम खंडक भाषामे किछु भिन्नता भेटत कारण अधिकांश तथ्य फेसबुक परहँक अछि आ भिन्न-भिन्न लोकक अछि जे की मैथिली प्रेमी छथि आ समय-कुसमय मैथिलीमे लिखै छथि। ओना जखन की मैथिलीक प्रोफेसर सभहँक वर्तनी गलत रहै छै तखन तँ हमरा लोकनि अदना आदमी छी। शुरूआती दौरमे हमरा लोकनि गलतीसँ एक अक्षरीय “ई” बदलामे “इ” लिखैत रही आ बहुत रास गजलमे “इ” आएल अछि। आब जँ वर्तनी सही करबै तँ मात्राक्रम गड़बड़ भऽ जेतै। आबक गजलमे एहन गड़बड़ी नै अछि। आब एकटा शब्द लिअ  छठि। एकर उच्चारण बहुत प्रकारसँ होइत छै जेना “छठि, छइठ, छैठ, छैइठ “आदि-आदि बहुत संभव जे छऐठ उच्चारण सेहो हो। जँ ध्वनिशास्त्रक हिसाबसँ देखबै तँ ई सभ उच्चारण सही छै। कारण ध्वनिशास्त्रक स्पष्ट मान्यता छैक जे ध्वनि निर्धारण मात्र उच्चारणे कालमे संभव छै आ सभहँक उच्चारण अलग-अलग भऽ सकैए। आब प्रश्न छै जे जँ कोनो भाषा बाजऽ बलाक संख्या एक लाख छै तँ ओकर उच्चारण पद्धति एक लाख हेतै? उत्तर छै, हँ। मुदा आब ऐठाम ई प्रश्न उठलै जे तखन व्याकरणमे एक लाख नियम बनाएल जाए? ऐ प्रश्नक उत्तरमे ई निष्कर्ष निकलल जे भाषाक बहुसंख्यक ध्वनिकेँ आधार मानि व्याकरण बनाएल जाए। दोसर शब्दमे कही तँ ध्वनिशास्त्रक “सामान्यीकृत”  शास्त्र व्याकरण भेल। तँए हमर स्पष्ट मान्यता अछि जे भने किनको उच्चारण कोनो होइन मुदा लिखित रूप व्याकरणक हिसाबसँ हेबाक चाही। ऐ ठाम ईहो धेआन देब जे मैथिलीमे दलित शब्दावली ओ वर्तनीक अभाव अछि आ हमरा आशा अछि जे गजलकार सभ ऐ शब्दावलीक पूरा सदुपयोग करता। किछु लोक ई मानै छथि जे हमर दाइ-बाबा, फँल्ला-फँल्ली एना बाजै छला / छली तँ व्याकरणोमे एनाहिते हेतै मुदा एहन परिकल्पना कोनो विषयकेँ समाजिकसँ व्यक्तिगत बना दै छै। हमरा जनैत व्याकरणकेँ व्यक्तिगत नै हेबाक चाही। अइ पोथीक सभ अक्षर-संयोजन भिन्न-भिन्न कंप्यूटरपर भेल अछि। आ फोंटक विभिन्नताक कारणें कतहुँ-कतहुँ संयुक्ताक्षर मूल रूपमे भेटत (जेना शुरू आ बीच वर्णमे हलंत लगले रहि जाएब)।

7) गजलक किछु नियम भाषा सापेक्ष अछि। भाषा सापेक्ष मतलब जेना-जेना भाषाक नियम बदलतै तेना-तेना गजलक नियम सेहो बदलत खाली रदीफ आ वर्णवृत मने बहरकेँ छोड़ि कऽ। हँ, एक वर्णवृतक बदला आन दोसर वर्णवृत लऽ सकै छी। काफियाक नियम भाषाक उच्चारण बदलिते बदलि जाएत।

8) ऐ पोथीकेँ हम शब्द-तर्पण मानि लेने छी। पं. जीवन झा, कविवर सीताराम झा, आनंद झा न्यायाचार्य, मधुप जी सन गजल-पितर तृप्त भेल हेता से विश्वास अछि।

9) आजुक समयमे जखन की लोक अपन माए-बाप केर बात नै मानैए (हमरा सहित) तखन ई व्याकरणक नियम किएक मानत? तँए हम ई पोथी विवरणात्मक रुपमे लिखने छी मने इजोतक काज जकाँ, इजोत बाटपर पड़ै छै आ लोककेँ चारू दिसक बाट देखाइ पड़ै छै मुदा ओ इजोत बटोहीसँ केखनो नै कहै छै जे ऐ बाटपर वा ओइ बाटपर चल।। जँ व्याकरणयुक्त लिखब तँ बाह-बाह नै तँ चलंत। मानू वा नै मानू ई अहाँक काज अछि हमर काज छल नियम सिखेनाइ। ओनाहुतो जँ अनुशासन देशकेँ महान बना सकैए तँ काव्यकेँ किएक नै? मोटा-मोटी ई मानू जे गजलक ई नियम सभ मुख्यतः हम  अपन गजलकेँ नीक बनेबाक लेल मैथिलीमे अनने छी। जँ कियो ऐ पोथीसँ गजलक व्याकरण सीखि कऽ नीक गजल लीखि सकथि तँ ई एहि पोथीक सौभाग्य मुदा ई पोथी हम अपने गजलक अनुशासन लेल लिखने छी। ऐ पोथीक लिखबाक तीनटा आर उद्देश्य छल। पहिल जे मैथिलीक पाठक पहिने किछु दिनक लेल भ्रमकार सभहँक भ्रममे फँसि गेल छलाह। ओ भ्रमकार सभ कहै छलखिन्ह जे गजलक कोनो नियम नै होइ छै। दोसर जे किछु लठैत गजलकार लाठी लऽ कऽ कहैत छलाह जे इएह गजल अछि। ई पोथी हुनकर लाठीकेँ तोड़त से आशा अछि। आ तेसर उद्देश्य जे पहिने आलोचक सभ गजलक आलोचनासँ डेराइत छलाह कारण हुनका लग गजलक कोनो अधार नै छल आशा अछि जे ऐ पोथीसँ हुनका गजल आलोचना लेल अधार भेटतनि।

10) बहुत संभव जे हमर पोथीमे मुद्रण ओ तथ्यगत दोष रहि गेल हएत। पाठक सभसँ निवेदन जे एकरा देखार करथि । ईहो बहुत संभव जे हमरा नजरिसँ बहुत रास व्याकरणयुक्त गजलकार ओ हुनक गजल छुटि गेल हएत फेर पाठक सभसँ आग्रह जे एकरा देखार करथि। सभ प्रकारक आलोचनाकेँ स्वागत अछि मुदा आलोचक महोदय केर आलोचना तखने सशक्त हएत जखन की ओ मैथिली व्याकरणक संग उर्दू व्याकरणक जानकार होथि। देखल जाइए जे किछु आलोचक हिन्दीसँ संक्रमित तथ्य आनै छथि आ तै बलपर कहै छथि जे गजलक नियम एहन नै ओहन हेबाक चाही। मुदा ई कते हास्यास्पद छै से अहूँ सभ बुझि सकै छिऐ। तँए, तथ्यक मूल प्रारूप आनू आ तकर बाद बहस शुरू करू। हिंदी गजलक अपन समस्या छै जे कि मैथिली गजलक समस्या सेहो बना देल गेल अछि नकलची मैथिली गजलकार सभ द्वारा। जँ गौरसँ देखबै तँ हिंदी गजलक सभसँ बड़का समस्या छै उर्दू शब्दक हिंदी उच्चारणक हिसाबसँ प्रयोग। उदहारण लेल "शहर" शब्दक उच्चारण उर्दूमे "शह्र" होइत छै मने 21 जखन कि हिंदीमे एकर उच्चारण लिखित रूपमे होइत छै मने 12, एही आधारपर दुष्यंत कुमारजीक गजलक आलोचना कएल जाइत छै। हिंदी गजल एखनो "जियादा" आ "जाय्दा" आदिमे फँसल अछि। हिंदीमे देवेन्द्र आर्यजी द्वारा लिखल लेख "हिन्दी ग़ज़ल आलोचना की दिक्कतें" मे एहि समस्याकेँ नीक जकाँ कहल गेल छै। एकर अतिरिक्त हिंदीक आरो आलोचकक आलोचना-लेख सभ देखल जा सकैए। हिंदीमे जँ कोनो आलोचक गजलक शास्त्रीय रूपसँ निकलबाक ओकालति करै छै तकर 90 प्रतिशत मतलब उर्दू-फारसी शब्दक हिंदी उच्चारण बला समस्या होइत छै। नकलची मैथिली गजलकार सभ एकरा बहरक विरोध मानि लै छथि आ प्रलाप शुरू कऽ दै छथि। मैथिलीमे ई समस्या नै छै। मैथिलीमे तँ एकै शब्दक दू-तीन वर्तनी अछि आ सोझ नियम अछि जे जे वर्तनी हो तकर मात्राक्रम लिखलाहा हिसाबसँ गिनती हएत। उदाहरण लेल "केयो" आ "कियो" एकै शब्दक दू टा वर्तनी अछि मुदा "केयो" केर मात्राक्रम 22 अछि तँ "कियो" केर मात्राक्रम 12 तँइ एक अर्थमे ईहो कहल जा सकैए जे मैथिली गजलकार सभ नीक जकाँ ने हिंदी गजलसँ परिचित छथि आ ने मैथिलीक व्याकरणसँ तँइ एहि प्रकारक ओझरीमे अपनो फँसैत छथि आ मैथिली गजलकेँ सेहो फँसाबैत छथि। मैथिलक सभसँ बड़का अवगुण छै जे पोथी पढ़ि लेत वा रचना सुनि लेत आ कहत जे बहुत नीक अछि मुदा आर जँ सुधार भऽ जाए आ कने आर जँ मेहनति कऽ लेबै तँ बेसी नीक हएत। मुदा ओ लोक ई नै कहता जे कोन ठाम गलत अछि आ तकर सुधार कोना कएल जाए। हमर आग्रह जे ईहो कहल जाए जे ऐ पोथीमे कतऽ गलती छै आ ओकरा कोना दूर कएल जा सकैए। ऐ पोथीमे बहुत ठाम बहुत लोक, मत ओ विचारक आलोचना कएल गेल छै। मुदा आलोचनाक मतलब खारिज केनाइ नै होइ छै। आलोचनाक मतलब छै जे एकटा निश्चित विचार, रचना वा पोथी (जकर आलोचना भऽ रहल हो) तकर विकास भऽ रहल छै। ऐ दुनियाँक हरेक विषय विज्ञान छै। ई फराक गप्प जे आधुनिक शिक्षामे ओइ विज्ञानकेँ तीन खंडमे बाँटि देल गेलै  विज्ञान, आर्टस आ कामर्स। मुदा मूल रूपसँ सभ विषय विज्ञान अछि। आ विज्ञान केकरो खारिज नै करै छै। कारण विज्ञानक नजरिमे हरेक वस्तु, विचार ओ रचनाक उपयोगिता छै। विज्ञानक जन्म दर्शनसँ मानल जाइत अछि आ दर्शनक पहिल सिद्धांत छै जे हरेक वस्तुक दू पक्ष होइ छै। तँए हम फेर कहब जे आलोचनाक मतलब केकरो खारिज केनाइ नै छै आ हम ओहि दिनक बाटक जोहब जहिया हमर आलोचना हएत। ऐठाम ई स्पष्ट करब जरूरी जे शुरूआतमे किछु दुराग्रहवश हम अपन किछु आलेखमे खारिज करए बला काज केने छी मुदा आबक समयमे जखन की किछु दृष्टि फड़िच्छ भेल अछि हम ओइ बाटसँ हटि चुकल छी।

11) हम अपन जीवनमे सभसँ सिखैत रहलहुँ तँए सभ हमर गुरू छथि। मने हमरा लग साहित्यमे केओ स्थायी गुरू नै भेला। मुदा जँ ई प्रकिया आवश्यक छै तँ ई बूझू जे हमर ग्रामीण स्व. परमानंद लाल (जे की एकतारा हाइ स्कूलक हेडमास्टर छलाह आ हमर औपचारिक एकेडमिक गुरू सेहो), संतोष कुमार राय (बादक एकेडमिक गुरू) आ कलकत्तामे श्री रामलोचन ठाकुर जी हमर साहित्यिक गुरू छथि। ओना ई कहब जरूरी जे गजल लेल हमर एकमात्र गुरू पोथी सभ अछि। सभसँ पहिने कुँअर बैचेनजीक पोथी पढ़ि गजलक अ-आ सिखलहुँ तकर बादे आन-आन पोथी आ लोक सभसँ किछु-किछु गजलक चर्चा भेल।

12) हमर हरेक तरहँक गतिविधिकेँ इंटरनेट पसारलक अछि। आइ गजल जे अपन नव स्वरूपमे अछि
तैमे इंटरनेट केर महत्वपूर्ण योगदान छै। जँ ई इंटरनेट नै रहितै तँ “अनचिन्हार “नै रहितै (गजल पहिनेहेसँ छलै आ बादोमे रहितै)। तँए इंटरनेट हमरा लेल दैवी रूपमे अछि। ऐ पोथीमे देल गेल अधिकांश बहस, चर्चा, परिचर्चा फेसबुकपर भेल अछि। ऐठाम ईहो कहब बेजाए नै जे बहुत लोक हमर गजल ओ ऐ किताबमे आएल विचार सभकेँ फेसबुक आ आन सोशल मीडियापर जत्र-कुत्र बिना हमर नाम देने रेफरेन्सक रूपमे प्रयोग केला।

13) वर्तमान समयमे गजलक दू युग निर्धारित भेल (देखू गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा लिखल गेल गजलशास्त्र भाग-14 http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/2011/10/blogpo2t_6385.html पहिल “जीवन युग”  मने 1905सँ लऽ कऽ 2007 धरि (आधुनिक मैथिलीक पहिल गजलकार पं. जीवन झा जीक नामपर) आ, दोसर “अनचिन्हार युग”  मने 2008सँ लऽ कऽ वर्तमान समय धरि (अनचिन्हार आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.in  केर नामपर)। ई गप्प हमरा लेल नोबलो पुरस्कारसँ बढ़ि कऽ अछि। बादमे ई आलेख (1सँ 14 धरि) हुनक गजल संग्रह “धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ” मे सेहो आएल।

14) हम अपन ब्लाग अनचिन्हार आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.in
 पर 25 खंडमे “गजलक संक्षिप्त परिचय “नामसँ लेख माला शुरू केने रही रहए (ई आलेख ब्लागपर 22 जुलाइ 2011सँ शुरू भेल आ 21 सितम्बर 2011केँ 25 खंडमे समाप्त भेल)। प्रस्तुत पोथी ओकरे संशोधित रूप अछि। आ तँए ईहो पोथी 25 खंडमे बाँटल गेल अछि। खण्ड 1सँ खण्ड 24 धरि गजलक व्याकरण अछि आ 25म खण्ड इतिहास। हमर पहिल प्रकाशित पोथी “अनचिन्हार आखर” 2011मे प्रकाशित भेल आ ताहूमे ई “गजलक संक्षिप्त परिचय “नामसँ लेख छल  मुदा आब ओहि पोथीक किछु नियम बेकाजक भऽ चुकल अछि आ ओकर सुधार ऐ पोथीमे कएल गेल अछि। संगे-संग किछु तथ्यात्मक गलती सेहो छल जकरा ऐ पोथीमे दूर कऽ देल गेल अछि। बात हमर पहिल पोथीक चलि रहल अछि तँ एकटा आर गलती हम स्वीकार करऽ चाहैत छी जे ओइ पोथिक गजल 67क दोसर शेर--
“लोक फेकैत रहल पाथरपर पाथर
तकरे बीछि बीछि एकटा घर बना लेलहुँ”

ई शेर डा.कुँअर बैचेन जीक शेरसँ पूर्णतः मेल खाइत अछि। मेल की अनुवाद कहनाइ सही हेतै। हमरा जनैत ई असावधानी वश भेल अछि। तथापि ई गलत छै आ हम एकरा स्वीकार करैत छी। डा. कुँअर बैचेन जीक मूल शेर एना अछि—
दुनिया ने मुझपे फेंके थे पत्थर जो बेहिसाब
मैंने उन्हीं को जोड़ के कुछ घर बना लिए

जै कारणसँ हो मुदा हम अपन गलती स्वीकार करै  छी। एही पोथीसँ संबंधित एकटा आर गप्प जे एहि पोथीक कभर-लेखनमे गजेन्द्र ठाकुरजी एहि पोथीकेँ मैथिली गजलक पहिल बहर अधारित संग्रह कहने छथि। निश्चित तौरपर सुनएमे नीक लागै छै मुदा जेना-जेना गजल संबंधित काज होइत गेल तेना-तेना स्पष्ट होइत गेल जे मैथिलीमे बहर अधारित गजल संग्रह पहिनेसँ छल मुदा मैथिलीक किछु अतार्किक गजलकार—संपादक सभ ओकरा दबने छल। तँइ एकटा जिम्मेदार लेखक केर धर्म निमाहैत हम स्पष्ट करी जे “अनचिन्हार आखर”  मैथिलीक पहिल बहर अधारित गजल संग्रह नै अछि। ओइसँ पहिने विजयनाथ झाजीक गजल संग्रह आबि चुकल छलनि 2008 मे। हमर पोथी सरल वार्णिक बहरमे कहल गजलक पहिल पोथी जरूर अछि।

15) आइसँ किछु दिन पहिने हमरा एकटा एहन लोक भेटला जे की गजलक नामे सुनि तामसमे आबि जाइ छथि। हुनका मतें मैथिलीमे गजलक नाम बदलबाक चाही कारण ई उर्दू शब्द थिक आ ऐसँ मैथिली भ्रष्ट भऽ जाएत। ओ छलाह तँ गजलक विरोधी मुदा हमरा अपना घर लऽ गेलथि। खूब सत्कार भेल। सत्कारक क्रममे ओ अपन कनियाँकेँ सोर पाड़लखिन्ह “खुश्बू, कने एम्हर आउ” । खएर हम पहिने सत्कार लेलहुँ मने भरिपेट नाश्ता केलहुँ आ गरम चाह पीलहुँ आ ताही क्रममे हुनकासँ पुछलिअन्हि जे श्रीमान अपने गजलक नाम किए बदलऽ चाहै छिऐ। ओ नाना तरहँक समस्या देखेला, मैथिलीक गरिमामयी बात सुनौला। अंतमे हम अपन चप्पल कसि कऽ बन्हलहुँ कहलिअन्हि जे सरकार अहाँ अपन कनियाँक नाम बदलि लिअ कारण “खुश्बू”  सेहो उर्दू शब्द छै आ जखन अहाँक परिवारे भ्रष्ट अछि तखन मैथिलीक चिन्ता बेकार। तकर बाद की भेलै पता नै। हरेक दोसर भाषाक ओ ओकर शब्दक मैथिलीकरण हेबाक चाही मुदा  “संघी”  ओ “इस्लामिक” भावनाके हटा कऽ। तेनाहिते आर एक गोटेकेँ ऐ दुआरे तामस छलनि जे मुसलमान कवि सभ अपन नामक आगू अपन गाम वा शहरकेँ जोड़ि दैत छै। हुनका मोताबिक ई बेकार। ओहि श्रीमानकेँ हम कहलिअन्हि जे सरकार तखन तँ अहाँक पूर्वजे बेकार छल हेता। ओ खिसिआ कऽ पुछला जे कोना, हम जबाब देलिअन्हि जे अहाँ अपन या अन्य कोनो मैथिल ब्राह्मणसँ मूल पूछि लिअ। ई गाम वा शहरक नाम मुसलमान कवि लेल मूले सन छै। कमसँ कम मुसलमान शाइर सभ एकैटा गाम या शहरक नाम जोड़ै छथि। मैथिल ब्राह्मणक मूलमे तँ दू-दू टा गामक नाम जुटल रहै छै।

16) किछु कथित प्रगतिशील साहित्यकार-चिंतक सभ भाव ओ कथ्य लेल अनेरे परेशान रहै छथि। भाव या कथ्य की थिक तकरा विस्तारपूर्वक पढ़बाक लेल 22म खंडक “गजलक भाव ओ कथ्य” बला प्रभाग देखू।

17) ऐ पोथीकेँ लऽ कऽ कोनो घमंड करऽ बला गप्प नै छै। मुदा जँ कनियोँ-मनी घमंडक गप्प छै तँ ई जरूर टूटत। आ हमर ई घमंड तखन टूटत जखन की भविष्यमे एहू पोथीसँ नीक पोथी गजलपर एतै। ओना हमर घमंड टुटनाइ ओतेक महत्व नै राखै छै जतेक महत्व ई राखै छै जे आर नीक पोथी एलासँ मैथिली गजल दू डेग आर आगू बढ़त।

18) 10 मार्च 2001 हमरा जीवन लेल बहुत महत्वपूर्ण अछि। कारण जे 10 मार्च 2001केँ दिन कलकत्ताक एकटा पार्क (सेंट्रल पार्कमे) हमरा बुझाएल जे मैथिलीमे शेरो-शाइरीक बेसी जरुरति छै आ हम निश्चय सेहो केलहुँ आ ओही ठामसँ हमर ई शेरो-शाइरी निकलल। आइ हम धन्यवाद देबए चाहबन्हि ओहि अनाम युवक-युवतीकेँ जे 10 मार्च 2001केँ अपन समस्त क्रियाकलाप मैथिलीमे केलाह मुदा प्रेमक स्वीकारोक्ति उर्दू शाइरीसँ। हम ओही ठामसँ अपन शेरो-शाइरी लेखनक जन्म मानैत छी। हमरा ओही दिनसँ गजलक भूत सवार भेल।

19) किछु गबैया सभ कविता गाबि कऽ कविते अथवा गीतकेँ गजल घोषित कऽ दै छथि। एकरो विस्तृत विवरण 22म खंडक “गजलक संगीत” बला प्रभागमे भेटत।

20) ऐ पोथीकेँ उचित सम्मान तखने भेटतै जखन की एक काल खंडमे कम 75-100 टा बहर युक्त गजलकार सक्रिय रहथि। आ हम मात्र कर्म करैत इच्छा कऽ सकै छी।

21) किछु लोक, किछु लेखक-साहित्यकारक ई विचार छनि जे ज्ञानकेँ रहस्यमय बना देलासँ। दस-बीस बर्खमे किछु ज्ञान बाँटि देलासँ ओहि लेखक-साहित्यकारक मान-सम्मान बढ़ैत छै आ पूरा-पूरी ज्ञान दऽ देलासँ बादमे कियो नै पूछै छै। हम व्यक्तिगत तौरपर मानै छी जे एहन मानसिकता छै लोकमे मुदा तकर चिन्ता छोड़ि हम गजलक पूरा-पूरी ज्ञान इंटरनेट आ ऐ पोथीमे देलहुँ। भऽ सकैए जे भविष्यमे हमरो कियो नै पूछए  मुदा जेना हवा-पानि सभ फ्री आ सर्वसुलभ रहितों अपन उपयोगिता बनेने रहै छै तेनाहिते हमरो विशवास अछि जे हमर ई गजलक ज्ञान फ्री आ सर्वसुलभ रहियो कऽ जनमानस लेल उपयोगी बनल रहत।

22) हम अपन प्रस्तुत ऐ पोथीकेँ तैयार करबासँ पहिने आ ओइ समयमे निम्नलिखित पोथी, पत्र-पत्रिका सभहँक अध्ययन केलहुँ जे की हमरा लेल संदर्भ ग्रंथक काज केलक। संगे-संग बहुतों लोक, इंटरनेटपर उपस्थित बेवसाइट आ स्थान सभसँ सहायता भेटल। पोथी, पत्र-पत्रिका, इंटरनेटपर उपस्थित बेवसाइट, स्थान आ व्यक्तिक नाम भाषाक हिसाबें बाँटि कऽ देल जा रहल अछि—

मैथिली
a) मिथिला भाषा विद्योतन (महावैयाकरण पं. दीनबन्धु झा, संपादक एवं प्रकाशक-गोविन्द झा, द्वितीय संस्करण-1993)
b) मैथिली छन्द शास्त्र (पं.गोविन्द झा, प्रकाशक- मिथिला पुस्तक केन्द्र, दरभंगा, द्वितीय संस्करण-1987)
c) मैथिलीक उद्गम ओ विकास (पं.गोविन्द झा, प्रकाशक- मैथिली अकादेमी, पटना, संस्करण-1987)
d) उच्चतर मैथिली व्याकरण (पं.गोविन्द झा, प्रकाशक- मैथिली अकादेमी, पटना,द्वितीय संस्करण- फरवरी 1992)
e) मैथिली परिचायिका (पं.गोविन्द झा, शेखर प्रकाशन, पटना-प्रथम संस्करण-2006)
f) मैथिली परिशीलन (पं.गोविन्द झा, प्रकाशक- मैथिली अकादेमी, पटना, प्रथम संस्करण-2007)
g) आधुनिक मैथिली व्याकरण ओ रचना (डा. बालगोविन्द झा व्यथित, ई पोथी हमरा लग खंडित रूपमे अछि)
h) कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक (श्री गजेन्द्र ठाकुर, श्रुति प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण)
i) श्री गजेन्द्र ठाकुर। कलकत्ताक बाद हमर साहित्यिक उत्थानमे दिल्लीक मुख्य भूमिका अछि आ हमरा लेल दिल्ली आ श्री गजेन्द्र ठाकुरमे अंतर नै अछि। दोसर शब्दमे कही तँ जतेक ई पोथी हमर अछि ततेक श्री ठाकुरोजीक छनि।
j) विदेह (www.videha.co.in)
k) गाम भटरा घाट (बिस्फी), कलकत्ता, दिल्ली आ गौहाटी।
l) कलकत्ताक ओ संस्था सभ जे हमरा सार्वजनिक पाठ करबाक अवसर देलक से मोन पड़ि रहल अछि। ओना “मिथिला विकास परिषद्” पहिल संस्था अछि जकर मंचपर पहिल बेर हम सार्वजनिक पाठ केने रही आ तइ लेल श्री कृष्णमोहन झा आ विनोद ठाकुर जे की हमर सहपाठी छलथि हुनक (दूनू दुलहा गामक) बेसी जोर छलनि। आ ऐ गोष्ठीक बादें हम बहुत लोकसँ परिचित भेलहुँ। कलकत्तासँ संचालित संपर्क नामक मासिक बैसार ओ ओइमे उपस्थित सभ गोटाक सेहो ॠणी छी हम ।
m) गूगल आ ओकर ब्लाग सेवा (www.blogger.com)
n) फेसबुक (www.facebook.com)
o) गजलक विरोधी ओ समर्थक लोकनि।
p) ऐकेँ अलावे सौंसे छीटल संस्कृत काव्य ओ धर्मग्रंथ सभ सेहो हमर संदर्भमे काज आएल।
q) मैथिलीक मौखिक लोकगीत जे की आइ-माइ-दाइ सभहँक कंठसँ सुनलहुँ।
r) “मैथिलीमे गजल” डा. रामदेव झा, रचना जून 1984मे प्रकाशित
s) मैथिली व्याकरण आओर रचना (युगेश्वर झा)
t) मैथिली संस्कार गीत--उमेश मंडल
u) उपरमे जतेक नाम देल गेल अछि ताहूसँ बेसी महत्वपूर्ण छथि हमर जन्मदाता, घर-परिवारक लोक, गामक लोक, खेत-पथार, हीत-मीत, पहिल किलाससँ लऽ कऽ एखन धरिक शिक्षक महोदय सभ। संगे-संग “बाली” केर चर्च सेहो आवश्यक। लखनपुर बाली। जन्मक बादसँ हुनको देखैत रहलिऐक आँगनमे। पाबनि-तिहार बला काज, मूड़न-उपनयन बला काज, साँझ-भोर पानि भरऽ बला काजक संग बहुत दिन धरि देखिते रहिलिऐ। तँए बाली केर चर्च छोड़ि किछु ने भेटत।

English
1) Meters and Formulas: The case of ancient Arabic poetry. By Bruno Paoli
2) The phonology of classic Arabic meter. By Chirs Golston & Tomas Riad.
3) Poetries in contact: Arabic, Persian & Urdu. By Ashwini Deo & Paulki Parsky
4) Meters of Classic Arabic poetry. By Pegs, Cords & Ghuls
चारू पोथी गूगलपर उपल्बध अछि।

हिन्दी-उर्दू
1) गजल का व्याकरण (डा. कुअँर बैचेन, प्रकाशक-अयन प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-1996)
2) गजल लेखन कला (आर.पी.शर्मा महर्षि, मीनाक्षी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2005)
3) गजल और गजल की तकनीक (आर.पी.शर्मा महर्षि, प्रकाशक- जवाहर पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2009)
4) आसान अरूज (डा. मोहम्मद आजम, शिवना प्रकाशन, सीहोर, प्रथम संस्करण-2012)
5) नया ज्ञानोदय गजल विशेषांक जनवरी 2013
6) सुबीर संवाद सेवा (http://subeerin.blogspot.in)
7) ओपन बुक्स आनलाइन (http://www.openbooksonline.com)
8) श्री वीनस केसरी, श्री सौरभ पाण्डेय, तिलकराज कपूर
9) गज़ल़ की बाबत (वीनस केसरी, प्रकाशक-अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण- Oct. 2015)
10) मात्रिक छंदो का विकास (डा. शिवनन्दन प्रसाद, प्रकाशक- बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, प्रथम संस्करण-1964)
11) अप्रभंश व्याकरण (आचार्य हेमचंद्र, अनुवादक शालिग्राम उपाध्याय, प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, संस्करण-1958)
12) प्राकृत भाषाओं का रूप दर्शन (आचार्य नरेन्द्र नाथ, प्रकाशक-रामा प्रकाशन, लखनऊ, संस्करण-1963)
13) लफ्ज ग्रुप https://lafzgroup.wordpress.com/
14) रेख्ता (https://rekhta.org)
बहुत रास फोटो गूगल इमेजसँ लेल गेल अछि।

23) गजल विधापर लगातार काज करबाक पुरस्कार स्वरूप हमरा किछु आन नाम सभ सेहो भेटल जे एना अछि--गजल गोहि, गजल कुत्था, गजल हगना, गजल पदना, गजल मुतना, गजल छेड़ना, गजली, गजल गिजना, गजाली बाबू, बहर बताह.. आदि। मैथिली साहित्यमे शाइदे एतेक नाम किनको नसीब भेल हेतनि। एकरा हम अपन सौभाग्य बूझै छी। हम ऐ ठाम पोथी, व्यक्ति, स्थान, नेट आदिक उल्लेख तँ केलहुँ मुदा हुनका सभकेँ हम धन्यवाद नहि देबन्हि। कारण लोक धन्यवाद दए कए अपन कर्जा उतारि लैत अछि। मुदा हमरा ई कर्जा उतरबाक इच्छा नहि अछि। हम जीवन भरि आभारी रहए चाहैत छी हुनका सभहँक प्रति। हम अपन पहिल पोथीमे बिना नाम देने धन्यवाद देने रहिअन्हि सभकेँ (हँ, रेफरेन्स बलाकेँ मेलसँ अनुमति लेने रहिअन्हि) तँ किछु लोक पूछि सकैए छथि पहिल पोथीमे नाम सार्वजनिक कऽ धन्यवाद किएक नै देलियै? आ एकर उत्तरमे हम मात्र एतबे कहि सकै छी जे ऐ पोथीमे जतेक मेहनति हम केलहुँ ततेक मेहनति हम आन कोनो किताबमे चाहियो कऽ नै कऽ सकै छी। तँइ एक्ट्ठे अइ पोथीमे सभहँक नाम देल गेल। एहि पोथीमे जतेक संदर्भ ग्रंथ देल गेल अछि तकरा पाठक पढ़थि कारण किछु पुरान गजलकार सभ इएह सोचि रहल छथि जे आशीष अनचिन्हार अपना मोनसँ ई नियम सभ बना रहल छै।  अंतमे अति महत्वपूर्ण गप्प मैथिलीमे एकेडमिक साहित्यिक चोर आ नकलबाज सभ बहुत छथि। हमरा बूझल अछि जे ओ एकेडमिकिया सभ हमर पोथीक अंश सभ बिना अनुमति ओ बिना नाम देने अपन पोथीमे देता आ दऽ कऽ पुरस्कार,सम्मान ओ PHDक उपाधि लेता। ओना ऐ तरहँक चोरीक शुरूआत भऽ चुकल अछि। दीपनारायण विद्यार्थी अपन गजल संग्रहमे अनचिन्हार आखरक पूरा लेख उतारि गेला मुदा कोनो रेफरेन्स नै देल गेल। बादमे विदेह पत्रिका द्वारा ई मामिला उठेलापर ओ संपादक महोदयकेँ मेल दए अपन गलती मानलथि। एहन-एहन घृणित उदाहरण आर बेसी भेटत से हमरा विश्वास अछि।  किछु लोक आपत्ति सेहो कऽ सकै छथि जे दीपनारायण गलती मानि लेलथि तँ फेर ई बात उखाड़बाक को जरूरति? मुदा कहि दी जे ई पोथी व्याकरणक संग-संग इतिहासक सेहो छै आ इतिहासमे नीक-बेजाए दूनू तथ्य रहै छै। ऐ प्रकरणपर भेल सभ कार्यवाहीकेँ ऐ लिंकपर देखल जा सकैए - http://www.videha.co.in/videhablog.html
हम प्रिंटमे ओतेक विश्वास नै राखै छी तँइ एहनो हएत जे हमरासँ पहिने कियो मैथिली गजलक व्याकरण लीखि प्रकाशित करबा लेथि तकरो स्वागत मुदा हुनकासँ आग्रह जे कमसँ कम ओ जाहिठामसँ तथ्य लेथि ओकरा क्रेडिट देबामे बैमानी नै करथि।

आशीष अनचिन्हार




खण्ड-1
आइ हमरा लोकनि बैसल छी अरबी-फारसी-उर्दूक लोकप्रिय शाइरी विधा गजलपर चर्चा करबाक लेल। मुदा गजलपर चर्चा करबासँ पहिने दू टा गप्प जानि लेब जरूरी पहिल ई जे मैथिलीमे “ग” आ “ज”  आदिमे नुक्ता नै लागै छै तँइ मैथिलीमे “ग़ज़ल” शब्द गलत अछि आ “गजल” शब्द सही दोसर गप्प ई जे गजल लेल सही काफिया, एक समान बहर आ दमदार कहन मूल तत्व होइत छै आ एकर सभहँक वर्णन आगू कएल गेल अछि। आब अरबी-फारसी-उर्दूक किछु एहन प्रतीक आ शब्दावलीक चर्चा करब जे की मैथिलीमे भ्रमपूर्ण तरीकासँ पसरल अछि (अर्थक संदर्भमे) तकरा बाद गजलक। प्रतीक मने एहन इशारा जे की कोनो निश्चित वस्तुक बोध कराबैत हो। लक्षणा आ व्यंजनाक द्वारा काव्य वा शाइरीमे एकै प्रतीकक एकटासँ बेसी अर्थ भए जाइत छै आ पाठक वा श्रोता ओकरा अपन-अपन बुद्धिक हिसाबें ओकर अर्थ लगबैत छथि। तँ आउ देखी अरबी-फारसी-उर्दूक किछु शब्दावली---

1) मए (हिन्दीमे मय वा हाला) मने शराब। मैथिलीमे शराब बदला जँ ताड़ी शब्दक उपयोग करी तँ नीक। भाँग आदि परंपरागत निशासँ गजलमे जान ने आएत। कारण भाँग अपने पीसू आ पीबू। जखन की ताड़ी आन हाथसँ (अरबीमे साकी केर हाथसँ) । ओना जँ शाइर भाँगसँ गजलमे चमत्कार आनि सकथि तँ ई स्वागत योग्य गप्प हएत।

2) मीना एकरा मैथिल सभ नीक जकाँ चिन्है छथि। मीना बदने जकाँ होइत छै। बदना घर-आँगनक काज लेल होइत छै तँ मीना शराब वा बेसी मात्रामे पानि भरबाक लेल। मीना लेल सुराही शब्दक प्रयोग सेहो अछि अरबीमे। सुबू सेहो कहल जाइत छै मीनाकेँ। मैथिलीमे “कटिया “, “लबनी” वा “डाबा” शब्द नीक रहत। मीना वा मीने सन आकार-प्रकारक बरतनकेँ रंगसँ सजेबाक कलाकेँ “मीनाकारी” कहल जाइत छै।
ई भेल मीना
मैना पक्षीकेँ अरबी मे “मीना” सेहो कहल जाइत छै आ अरब केर एकटा भागक नाम सेहो “मीना” छै। डाबा, कटिया आ लबनी प्रायः एकै होइत अछि। ई घैलक छोट आकार भेल। आ घैले जकाँ एकर अंत चौड़ा आ मूँह छोट होइत छै। किछु आकार-प्रकारमे भेद भऽ जाइत छै से हम जरूर मानब। मुदा बहुत बेसी भेद नै छै। 
ताड़ीसँ भरल  लबनी आ गिलास
ताड़क गाछमे लगाएल लबनी
विभिन्न प्रकारक डाबा, कटिया लबनी आदि।

3) सागर मने पेआला। उत्थर बाटी सनक होइ छै ई। बादमे स्टैण्ड बला गिलास सभ सेहो एहि श्रेणीमे आबि गेल। फारसीमे एहि लेल “जाम” शब्द प्रचलित छै। उर्दूमे पैमाना सेहो कहल जाइत छै। पैमानाक शाब्दिक अर्थ छै “नपना” जाहिमे कोनो तरल पदार्थ नापि कऽ देल जाए। बहुत संभव जे मयखानामे शराब नापि कऽ देल जाइत रहल हो तँइ सागर कि जाम कि गिलासकेँ पैमाना सेहो कहल गेल हेतै। भारतमे तीनू शब्द प्रचलित छै। एखनुक समयक हिसाबसँ गिलास सेहो “सागर” कि “पेआला” भऽ सकैए।
ई भेल सागर।

4) पैग—गिलास वा पेआलामे निश्चित मात्रामे देल गेल शराब वा ताड़ीकेँ “पैग” कहल जाइत छै। भारतमे पटियाला पैग बहुत प्रसिद्ध अछि। मैथिलीमे शराब शब्दक संगे ताड़ी प्रयोग कएल जेबाक चाही। जँ ताड़िएक प्रयोग हो तँ अतिउत्तम। पैग लेल मैथिली शब्दक निर्माण जरूरी अछि। मैथिलीमे “चिखना”  शब्द पहिनेहेसँ अछि। चिखना मने एहन नमकीन जे कि शराब वा ताड़ीक संगे नीक लगैत हो। पारंपरिक रूपसँ भूजल चना, माछ आदि चिखना भेल मुदा आइ-काल्हि बड़का होटल सभहँक कृपासँ “स्टार्टर” (starter) शब्द सेहो बेसी प्रचलित अछि। “स्टार्टर” मने शुरू करए बला। होटल सभमे खेनाइसँ पहिने सलाद, पियाज केर भितरका गुद्दा आदि देल जाइत छै। ई “स्टार्टर”  चिखनाक आधुनिक रूप भेल।

5) साकी--अरब देशमे शराब परसए बला पुरुषकेँ “साकी “कहल जाइत छै। हिन्दी बला सभ साकी शब्दकेँ स्त्रीलिंग मानि ई बुझै छथि जे साकी स्त्री वा जुआन छौंड़ी होइ छै। चूँकि हिन्दीमे “ई “मात्रा लागल शब्द स्त्रीलिंग होइ छै तँ ओ सभ साकीकेँ सेहो स्त्रीलिंग मानै छथि, मुदा ई भ्रम अछि। साकी वास्तविक रूपमे पुरुष होइ छै। मैथिलीमे हमरा हिसाबें “पासी “शब्द सही रहत साकी लेल । मात्रासँ लऽ कऽ लय धरि मिलैत छै। पासी एकटा मैथिल जाति अछि जकर काज छै ताड़क गाछसँ ताड़ी उतारि बेचब। मुदा आजुक राजनीतिमे पासी शब्द खराप नै लागै ताहि लेल “पासी भाइ “कहि प्रयोग करी तँ बेसी नीक। जखन एक बेर नीक जकाँ मैथिली गजलमे पासी शब्दक प्रयोग आबि जाएत तँ फेर कोनो दिक्कत नै। ओनाहुतो अरबी-फारसी-उर्दूमे साकी केर बहुत इज्जत छै।

6) मएखाना --ओ जगह जै ठाम शराब भेटैत हो। एकरा मएकदा (मैकदा) सेहो कहल जाइत छै। हमरा हिसाबें मैथिलीमे “तड़िखाना “वा "पसिखाना" शब्द सर्वोत्तम रहत। संक्षेपमे एना बुझू---Wine (शराब), Tavern (मएखाना), Wine-flask (मीना), Wine-cup (सागर), Peg (पैग), आ Wine-provider (साकी)।

7) वफा--ऐ शब्दक अर्थ छै “केकरो प्रेमभाव” मे स्थिर भेनाइ। मने कोनो एक दोसर लेल स्थिर रूपसँ प्रेमभाव राखै। फेसबुकपर हम एकरा लेल सुझाव मँगने रही आ उत्तरमे बहुत रास शब्द जेना नेह-निष्ठा, निष्ठा, निष्ठावान, एकनिष्ठ आदि भेटल। शाइर उपयुक्त शब्दक चयन कऽ सकै छथि। सुझाव देनिहार सभगोटाकेँ धन्यवाद। एकटा गप्प मोन राखब बेसी उचित जे मैथिलीमे “वफादार” शब्द प्रचलित तँ अछि मुदा “वफा” नै। एहन परिस्थितिमे हम कोनो आर कोमल आर मधुर शब्दक प्रतीक्षामे छी।

8) बेवफा--जे एक दोसर लेल स्थिर रूपसँ प्रेमभाव नै राखि सकए तकरा बेवफा कहल जाइत छै। एकरा लेल मैथिली शब्द हरजाइ अछि। ओना हरजाइ शब्द सेहो फारसिए-उर्दूक थिक मुदा मैथिलीमे प्राचीन कालसँ प्रयोग होइत रहल अछि। अंग्रेजीमे एकरा Unfaithful कहल जाइत छै। एकर अतिरिक्त Untrustworthy शब्दक सेहो प्रयोग हरजाइ लेल कऽ सकैत छी। कविवर सीताराम झा स्त्री लक्षणमे एकरा चंचला स्त्री लेल लेने छथि। ई शब्द गजलमे पुरूष ओ स्त्री दूनू लेल अछि। मैथिल एकरा मात्र ओहन स्त्री लेल मानै छथि जे कि अपन बियाह पूर्व प्रेमकेँ नै निबाहि सकल। ई अवधारणा गलत अछि। आधुनिक उर्दूक प्रारंभिक गजलकार “हरी चंद अख़्तर” जीक ई शेर देखू--

हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया

स्पष्ट अछि जे “बेवफा” कोनो प्रेम नै निमाहि सकलापर कहल जाइ छै (फेसबुकपर हम एकरा लेल सुझाव मँगने रही आ उत्तरमे बहुत रास शब्द जेना निष्ठाहीन, छलिया, कपटी आदि भेटल। शाइर उपयुक्त शब्दक चयन कऽ सकै छथि। सुझाव देनिहार सभ गोटाकेँ धन्यवाद। मुदा हमरा जनैत हरजाइ नीक रहत)।

9) बेवफाई--बेवफा के भाववाची बेवफाई भेल। एकर अर्थ होइ छै “अमुक हमरा संग प्रेमभाव स्थिर नै रखलक” । एकरा लेल मैथिली शब्द “हरजइपन”, “हरजाइपन”, “कपटपन” नीक रहत ओना आनो शब्द सभहँकेँ ऐ लेल आनल जाए।

10) एकतरफा प्रेम--एकर मैथिली “एकभगाह प्रेम” वा “एकदिसाह प्रेम” बेसी नीक।

11) हुस्न---हुस्न केर अर्थ छै सौन्दर्य आ सौन्दर्य किच्छो केर भऽ सकै छै। सजीवसँ निर्जीव वस्तु धरिक अपन-अपन सौन्दर्य होइ छै मुदा मैथिलीमे हुस्न की सौन्दर्य केर मतलब लड़की केर सुन्दरता मानल जाइत छै जे कि अनर्थकारी ओ भ्रामक अछि। एकर मैथिली रूप लेल “सुनरताइ” नीक विकल्प भऽ सकैए।

12) इश्क---प्रेमकेँ इश्क कहल जाइत छै आ इश्क केकरोसँ किछुसँ भऽ सकै छै। मैथिल सभ इश्क मने मात्र लड़का-लड़कीक प्रेम बूझै छथि जे कि भ्रामक आ गलत अछि। मैथिलीमे इश्क लेल “प्रेम”, “नेह” आदि शब्द अछि। इस्लाममे इश्क वा प्रेमक सात स्तर होइत छै आ अही सात स्तरसँ गुजरि कऽ कियो महान आशिक वा प्रेमी कहबैत छै। ई सातो स्तर एना अछि--
1. हब (Attraction) एकर मतलब भेल आकर्षण, केकरो देखि कऽ मोहित भऽ जाएब।
2. उन्स (Infatuation) एकर मतलब भेल जकरा देखि मोहित भेलहुँ तकरा प्रति आसक्त भऽ जाएब।
3. इश्क (Love) एकर मतलब जे जकरा प्रति अहाँ आसक्त छी तकरा प्रति एकनिष्ठ भऽ जाएब।
4. अकीदत (Reverence) एकर मतलब जे जकरा प्रति अहाँ एकनिष्ठ छी तकर इज्जत करब, ओकर मान-सम्मानक देखभाल करब।
5. इबादत (Worship) एकर मतलब जे जकरा प्रति अहाँ एकनिष्ठ छी जकर अहाँ इज्जत करै छी, ओकरा प्रति सदिखन श्रद्धा भाव राखब।
6. जुनून (Obsession) एकर मतलब जे जकरा प्रति अहाँ एकनिष्ठ छी जकर अहाँ इज्जत करै छी, जकरा प्रति अहाँ सदिखन श्रद्धा भाव राखै छी तकरा लेल कोनो तरहँक साध्य-असाध्य काज कऽ सकब।
7. मौत (Death) एकर मतलब जे जकरा प्रति अहाँ एकनिष्ठ छी जकर अहाँ इज्जत करै छी, जकरा प्रति अहाँ सदिखन श्रद्धा भाव राखै छी, जकरा लेल कोनो तरहँक साध्य-असाध्य काज कऽ सकै छी तकरा लेल मरियो जाएब। आध्यत्मिकतामे मौतकेँ “फना” कहल जाइत छै। फना मने विलीन भऽ, मीलि जाएब, नष्ट भऽ जाएब आदि छै।
जँ भारतीय संदर्भमे कहल जाए तँ एहू ठाम प्रेमक स्तर बाँटल गेल छै। महान वैष्णव भक्त एवं रसिक शिरोमणि श्री रूप गोस्वामी (1493-1564) अपन महान कृति “भक्तिरसामृतसिन्धु” मे प्रेमक स्तरक वर्णन केने छथि जे एना अछि (ई विकीपीडिया सूचना आधारित अछि) --------
1) स्नेह----हृद्य द्रवित भेनाइ स्नेहक लक्षण थिक। प्रेमक शुरूआतमे एकर रूप अस्थायी होइत छै।
2) मान---स्नेहक कारणे अपना भीतर उदासीनता अनुभव करब मान कहबै छै। स्नेहकेँ पुष्ट आ बढ़ेबाक लेल जखन रूसब सन क्रिया होइत छै तखन ओकरा मान कहल जाइत छै (मान केर ई दोसर व्याख्या छै मुदा हमरा जनैत पहिल ठीक अछि)
3) प्रणय---जखन प्रेमी-प्रेमिका एक दोसराक संग तादात्म्य अनुभव करैत छै तखन ओकरा प्रणय कहल जाइत छै।
4) राग---जखन प्रेमी-प्रमिका अपन प्रेमक लेल सांसारिक दुख ओ यातना बरदास्त करए लागै छथि आ ओहि यातनामे सेहो आनंद पाबै छथि तखन ओकरा राग कहल जाइत छै।
5) अनुराग---जखन प्रेमी अपन प्रिय केर हरेक काजसँ आनंदित हो, अपन प्रिय केर हरेक आचरणमे ओकरा मधुरता भेटैत हो तखन ओहि वृतिकेँ अनुराग कहल जाइत छै।
6) भाव---अपन हृद्यक बाँचल कठोरताकेँ समाप्त क' देनाइ भाव कहाइत छै। एकर दोसर नाम रति सेहो छैक।
7) महाभाव---जखन प्रेमी-प्रेमिका दूनू समपर्ण क' एक दोसरमे मीलि जाइत छै तखन महाभाव केर स्थिति होइत छै। एकर दोसर नाम प्रेमा सेहो छै। हमरा जनैत अर्धनारीश्वर महाभाव केर सभसँ नीक उदाहरण अछि।

रूप गोस्वामी जीक बाद आनो टीकाकार सभ आन-आन भेद सभ देने छथि मुदा सभहँक मूल रूपे गोस्वामी जीक पोथी अछि। एहिठाम रूप गोस्वामी जीक उदाहरण एहि लेल देलहुँ जे संत हेबासँ पहिने गोस्वामीजी बंगालक राजा हुसैन शाहक मंत्री छलाह आ फारसीक महान विद्वान सेहो। आश्चर्य नहि जे गोस्वामी जी इस्लामक छाया ग्रहण केने होथि प्रेमक स्तर निर्धारणमे।

13) आशिक---इश्क वा प्रेमक सातो स्तरकेँ जे पारक केलक सएह टा आध्यात्मिक रूपसँ आशिक कहबैत छै। सांसारिक रूपसँ छह स्तरकेँ पार करए बलाकेँ सेहो आशिक कहल जाइत छै। मने जे प्रेम करै छै तकरा आशिक कहल जाइत छै आ जकरासँ प्रेम कएल जाइ छै तकरा माशूक कहल जाइत छै। आशिक आ माशूक दूनू उभयलिंगी शब्द छै। एकटा उदाहरण लिअ मानू जे अनचिन्हार साधनासँ प्रेम करै छै तँ अनचिन्हार “आशिक”  भेलै आ “साधना”  माशूक भेलै। तेनाहिते “साधना”  अपने आशिक हेतै आ अनचिन्हार साधना लेल माशूक बनि जेतै (जँ एकतराफ प्रेम छै तखन एकै पक्षक बूझू मने अनचिन्हार साधनासँ प्रेम करै छै मुदा साधना नै तखन अनचिन्हार आशिक हेतै आ साधना माशूक मुदा साधना ने तँ आशिक हेतै ने अनचिन्हार माशूक)। उम्मेद अछि जे ई बुझबामे आएल हएत। एहि प्रसंगकेँ बुझबा लेल बेसीसँ बेसी निर्गुण आ सूफी संगीत सुनबाक चाही (साधना पराभौतिक अर्थमे अछि)। एहि ठाम मोन राखू जे माशूका शब्द भारतमे गढ़ल गेल छै।

14) हसीना--सुंदर स्त्रीकेँ “हसीना” कहल जाइत छै। फेसबुकपर माँगल सुझावमेसँ सभसँ नीक हमरा “सुंदरि”, “सुनरकी”, “सुरतिगर”, “ललमुनियाँ” आदि नीक लागल। सुझाव देनिहार सभ गोटाकेँ धन्यवाद।

15) दीवाना--ओना तँ दीवाना मने कोनो काजक प्रति जकरा उन्माद रहै तकरा कहल जाइ छै मने उन्मादी। कोनो काजक प्रति समर्पित लोक वा कोनो काजकेँ सीमासँ बाहरसँ जा कऽ करऽ बलाकँ सेहो दीवाना कहल जाइत छै मुदा मैथिलीमे खाली लड़कीक प्रेममे पागल लेल दीवाना बूझल जाइ छै से गलत अछि। मैथिलीमे हमरा हिसाबें दीवाना लेल उन्मादी शब्द नीक रहत।

16) उर्दूमे “खुमार”  आ “सुरूर” दुन्नू नशा लेल प्रयोग होइत छै मुदा “खुमार” प्रायः ओहन नशाकेँ कहल जाइत छै जे कि उतरैत हो (मने शराब पीलाक बाद किछु घंटाक बाद बला नशा) जखन कि “सुरूर” चढैत नशाकेँ कहल जाइत छै। एक अर्थमे खुमार नकारात्मक छै (किछु संदर्भमे “खुमार” चढ़ैत निशाकेँ सेहो कहल जाइत छै)। उर्दूक प्रसिद्ध शाइर खुमार बाराबंकवीकेँ बेर-बेर कहल जाइत छलनि जे अहाँक नाम अहाँक शाइरीक मुकाबले नकारात्मक अछि कारण अहाँक शेर सभमे सुरूर अछि मुदा अहाँ अपन नाम खुमार रखने छी।

17) रकीब शब्द केर अर्थ वर्तमान समयमे "दुश्मन" छै मुदा एकर मूल अर्थ छै "माशूककेँ चाहए बला कियो दोसर आदमी"। उपरमे अनचिन्हारक माशूक साधना छै आ मानि लिअ आशीष नामक कियो आन आदमी सेहो साधनासँ प्रेम कर लागए तखन अनचिन्हार लेल आशीष रकीब हेतै आ आशीष लेल अनचिन्हार।

आब कने ऐ प्रतीक सभहँक अर्थपर आबी। केकरो लेल खाली पेआला मने “शराब नै छै “सेहो हेतै आ केओ पेआलाकेँ जीवन मानि दुखसँ भरल (वा असगर जिबैत जीबन) सेहो लगाएत। तेनाहिते मीना संसारक प्रतीक सेहो भए सकैत अछि। अधिकतर शाइरीमे मे साकी परमात्माक अर्थमे आएल छथि आ शराब सुखक अर्थमे (ऐठाम ई मोन राखब जरूरी जे लोक सभ वेदमे वर्णित पवित्र “सोमरस” केँ शराब कहै, बूझै छथि तखन ओ लोक सभ गजलमे प्रयुक्त शराबकेँ “शराब” बूझथि तँ कोन गलती। ईहो जानि लेब जरूरी जे मैथिल सभ विद्यापतिक लिखल “कुच-पयोधर” आदि-आदिमे राधा कृष्णकेँ ताकि लै छथि मुदा गजलमे आएल हुस्न-इश्कककेँ सांसारिक मानि अपनाकेँ नीक आ आन भाषाक विधाकेँ खराप मानै छथि भऽ सकैए जे हिनका सभहँक मोनमे हिंदू-मुसलमान सन तुच्छ बात रहैत हेतनि)। चिखना साधनक प्रतीक हएत तँ शराब वा ताड़ी साध्यक। साकी शब्द जकाँ महबूब, सनम (मूलतः सनम केर मतलब देवी-देवताक प्रतिमा होइ छै मुदा आब प्रियतम आ प्रियतमा लेल सेहो प्रचलित अछि) आदि शब्द सभ सेहो उभयलिंगी अछि। भारतीयकरण हिसाबें महबूबा आदि शब्द बनल छै मुदा मैथिलीमे ई शब्द सभ बेसी प्रचलित नै अछि तथापि परम्परा दृष्टिएँ हम एकरा लिखलहुँ। ई तँ श्रोता वा पाठकक उपर छै जे ओ कोन अर्थ लगबै छै। शाइरक काज छै रचब आ मात्र रचब। उर्दूमे सय्याद आ बुलबुल केर प्रतीक बहुत प्रसिद्ध छै। बुलबुल एकटा चिड़ैया भेल तँ सय्याद मने बहेलिया। बहेलिया ओ जाति भेल जे कि चिड़ैयाकेँ बझा कऽ बेचैए वा ओकरा मारि कऽ ओकर माउस बेचैए। आधुनिक संदर्भमे सय्याद पूँजीपतिक प्रतीक अछि तँ बुलबुल मजदूरक। प्रसंगवश ईहो जानि लेब जरूरी जे “शम्मा”  मने “दीपक”  प्रेमिकाक प्रतीक छै तँ “परवाना” मने “फतिंगा”  प्रेमीक। एकर अतिरिक्त अरबी-फारसी-उर्दूमे बहुत रास प्रतीक छै। मुदा ओ सभ मूल रूपसँ मैथिलीमे नै आएल अछि। जेना कि उपरे कहलहुँ महबूब उभयलिंगी शब्द छै आ तँइ केकरो लेल कियो महबूब भऽ सकै छै। महबूब केर अर्थ छै “प्रिय” मुदा वर्तमान समयमे महबूब केर अर्थ मात्र प्रेमिका-पत्नी लेल भऽ गेल छै। ओना हमरा हिसाबें माए लेल बेटा महबूब भऽ सकै छै तँ बाप लेल बेटी सेहो (छोट बच्चाकेँ लोक तँ कहिते छै)। कोनो किच्छो महबूब भऽ सकै छै तँइ मुनव्वर राणा “माए” पर शाइरी रचलथि। बात प्रतीकक चलि रहल अछि तँ ई स्पष्ट करब जरूरी जे उपरक सभ प्रतीक पुरान अछि आ वर्तमानक गजल वा शेरो-शाइरीमे ओतेक नै चलि रहल छै। वर्तमान गजल वा शेरो-शाइरीमे नव-नव प्रतीक आबि रहल छै। भविष्योमे ई प्रतीक सभ बदलैत रहतै कारण प्रतीक, बिंब आदिक प्रयोग देश-काल-परिस्थितिपर निर्भर करै छै।

गजलक  परिभाषा
गजल मने प्रेमिकाक आँचर सेहो होइत छैक,गजल मने हिरणीक दर्द भरल आवाज सेहो होइत छैक, गजल मने प्रेमी-प्रेमीकाक गप्प सेहो होइत छैक। कहबाक तात्पर्य जे जतेक विद्वान ततेक परिभाषा। तथापि जँ गजलक सर्वमान्य परिभाषा चुनबाक हएत तँ हमरा हिसाबें अरबी भाषामे जे पहिल अर्थ धूनब (जेना रूइ धूनब) आ दोसर प्रेमालाप होइत छैक आ हमरा हिसाबें ई दूनू अर्थ ठीक छैक। जँ पहिल अर्थ धूनब लेबै तँ जहिना रूइ के धुनलासँ शुद्ध रूइ बहराइ छैक आ थोड़बे रूइ बेसी भए जाइत छैक तहिना आखर(word)के अनुभवसँ धूनि थोड़बे आखरसँ भावनाक रंगबिरही महलके ठाढ़ करब गजल भेल। आ जँ दोसर अर्थ प्रेमालाप लेबै तँ कने सूक्ष्म रुपमे जाए पड़त। स्थूल रुपें देखलासँ गजल समान्य प्रेमी-प्रेमिकाक बचन लागत मुदा वस्तुतः गजलमे आत्मा प्रेमिका आ परमात्मा प्रेमीक रुपमे अबैत अछि (शृंगार केर दू पक्ष होइ छै सांसारिक ओ अध्यात्म)।
गजल मूलतः अरबी शब्द छैक तँए ई बुझबामे कोनो भाँगठ नहि जे गजल नामक काव्य सर्वप्रथम अरबी भाषा कहल गेल। एहिठाम ई कहब उचित जे शाइरी केखनो लिखल नहि वरन कहल जाइत छैक कारण ई व्याकरण सम्मत उच्चारणपर निर्भर छै (उच्चारण मने ई नै जे अपने मोने जेना बाजी तेहने नियम हेतै)। एहिठाम शाइरी मने गजल समेत सभ काव्य विधा भेल। गजलक जन्म आ विकासके जनबासँ पहिने अरब देशक ऐतिहासिकताके जानब बेसी जरुरी अछि। इस्लाम धर्मक जन्मसँ पहिनेके समयके जमानःएजाहिलियः कहल जाइत छैक, जकर मतलब अछि “अन्हार युग” । अन्हार युगमे जाहि तरहक काव्य रचल गेल ओ मूलतः अपन-अपन कबीलाके प्रशंशा आ विपक्षी कबीलाक खिद्धाशंसँ भरल अछि आ एहि काव्य शैलीके कसीदा कहल जाइत छैक। एहि युगमे मुतनब्बी नामक शाइर महत्वपूर्ण छथि।
कसीदामे जखन प्रेमक प्रवेश भेल तखनेसँ गजलक जन्म हेबाक संभावना अछि। आ एहि प्रयोगक श्रेय इमरउल कैस (539 इ.)के जाइत छन्हि। अरबी साहित्य विशेषज्ञ सभके मानब छन्हि जे इमरउल कैस अन्हार युगक पहिल शाइर छथि जे गजल कहब शुरु केलथि। संगहि-संग कैसे एहन पहिल शाइर छथि जे अपन प्रियतमकेँ खसल दयार (दयारक मतलब स्थान होइत छै, चाहे ओ स्थान घर होइ कि डीह कि प्रदेश कि देश कि आन कोनो इलाका) पर कानि कए गजल कहबाक परंपरा शुरु केलथि। कैसक अलावे अरबीमे अन्तर-ह्बिनशद्दाह-अल-अबसी (525-615 इ.) अपन गजल-उल-अजरी मने पवित्र प्रेमक गजल लेल प्रसिद्ध भेलाह। अरबीक शाइर अहदे-उमवीक (661-749 इ.) योगदान गजलमे सर्वाधिक अछि। तँए विद्वान लोकनि एहि युगके उमवी युग कहैत छथि। उमवी समयमे मक्का आ मदीना शाइर आ कलाकारक केन्द्र छल। जाहि कबीला (खानदान)मे पैगम्बर हजरत मोहम्मदक जन्म भेलन्हि ओही कबीलामे शाइर उमर-बिन-अबी -रबीय (643-711 इ.)क जन्म सेहो भेलन्हि। इ. 701 जन्मल जमील बुसीन विशुद्ध गजलगो शाइर छलाह। बुसीन वस्तुतः जमीलक प्रेमिकाक नाम छल जकरा जमील अपन तखल्लुस (उपनाम) के रुपमे प्रयोग करैत छलाह। आब एहि समय धरि गजलक विषय मात्र शारीरिक नहि रहि भावनात्मक भए गेलैक। प्रसिद्ध शाइर उमरु-बिन-कुलसूम अत़गलबी अपन गजलक शुरुआत प्रेमिकाक देहसँ नहि वरन जाम-ओ-मीनासँ करैत छथि।
इस्लामक जन्म पछाति अरबी शाइरीके विषय तँ बदलबे केलै संगहि-संग इस्लाम जखन इरान-इराक पहुँचल तँ गजल सेहो पहुँचि गेलै। आ एहि तरहें आब फारसीमे सेहो गजल कहनाइ शुरु भेल। फारसीमे गजलगोइ नवम शताब्दीक अंतसँ शुरु भेल। मुदा एहिठाम ई कहबामे कोनो संकोच नहि जे फारसीमे कहल गजल अरबी गजलसँ बेसी नीक, समृद्ध, उदार आ भावनासँ परिपूर्ण अछि। एकर कारण ई जे अरब के तुलनामे इरान सभ्यता-संस्कृतिके मामलेमे बेसी विकसित छल। फारसीमे संभवतः रुदकी समरकन्दी पहिल शाइर छथि जे गजल कहलथि। रुदकी गजलक अलावे कसीदा, रुबाइ, मनसवी आदि सेहो कहलथि।
फारसीक लगभग सभ महत्वपूर्ण शाइर गजल कहलथि जेना श़ेख सादी, रुमी, ख्वाजू किरमानी, हाफ़िज, शिराजी इत्यादि। फारसी गजलमे कमाल ख़जन्दी महत्वपूर्ण हस्ताक्षर छलाह। एहि सभहँक अलावे ओहि समयमे उ़र्फी, मजीरी, तालिब, कलीम आ सायब सभ सेहो गजलक विकास अपना-अपना तरीकासँ केलथि। एकटा आर गप्प फारसी गजलमे सायबके तमसील (मने दृष्टान्त)क बादशाह मानल जाइत अछि, मुदा ओ स्वयं एहि कलाके उस्ताद गनी काश्मीरीके बुझैत छलाह। आ हुनकासँ भेंट करबाक लेल भारत (फारसी इतिहासमे हिन्दोस्तान) सेहो आएल छलाह। फारसी गजलके संबंधमे दूटा गप्प आर । पहिल जे अमीर खुसरो “अमीर खुसरो देहलवी” क नामेँ भारतसँ बेसी इरानमे प्रसिद्ध छलाह। आ दोसर गप्प जे स़फवी युगमे इरान शासक सभँहक अकृपाक कारणे बहुत शाइर सभ भारत आबि बसि गेलाह। एहने क्रममे शाइर शैख अलीहर्फीइस्फाहानी जे बनारस आबि गेलाह। सन 1765 इ.मे हुनक मृत्यु भेलन्हि । आ एहने समयमे भारतक माटि पर गजल अपन गमक पसारि देलक। एहिठाम ई मोन राखब उचित जे भारतमे अमीर खुसरोके पहिल गजलगो सेहो मानल जाइत अछि। आ एहि गमकक किछु कण मीर, गालिब जेहन शाइरके जन्म देलक। आ तकरा बाद धीरे-धीरे उर्दू शाइरीक जन्म भेल। मोहम्मद कुली कुतुबशाह उर्दूक ओ पहिल शाइर छथि जनिकर दीवान (गजल संकलन) प्रकाशित भेलन्हि। कुतुबशाहक बाद जे शाइर भेलाह ओ छथि-ग़व्वासी, वज़ही, बह़री इत्यादि। आ उर्दूक संग-संग गजल मैथिलीक माटि पर सेहो पसरल जकर पहिल उदाहरण 1905 मे कविवर जीवन झाक नाटक सुन्दर-संयोगमे भेटैत अछि।

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