खण्ड-20
B) वार्णिक छन्दमे (वार्णिक छन्दमे हरेक पाँतिक मात्रा क्रम
आ शब्दक संख्या एक समान रहैत छै) तीन-तीन मात्रा खण्डक आठ विन्यास कएल जाइत अछि। एहि
तीन-तीन खण्डक गनणा “दशाक्षरी” पद्धतिसँ कएल जाइत अछि। इ एक प्रकारक सूत्र अछि। इ सूत्र
अछि” यमाताराजभानसलगा” । एहि दसो अक्षरमेसँ पहिल आठ अक्षर आठो गणक नामक पहिल अक्षर
थिक। आ ई आठ गण अछि---
य = यगण
मा = मगण
ता = तगण
रा = रगण
ज = जगण
भा = भगण
न = नगण
स = सगण
आ अन्तिम दूटा अक्षर “लगा” कोनो गण नहि अछि। कारण इ जे वार्णिक
छन्दमे तीन-तीन मात्रा होइत छैक। मुदा “लगा” केर बाद कोनो अक्षर नहि अछि। तँए “स” के
बाद कोनो गण नहि बनि सकैत अछि। आब गण बनेबाक तरीका देखू अहाँ जे गण बनबए चाहैत छी तकर
पहिल अक्षर आ तकरा बादक दू अक्षर आरो लिअ। जे अक्षर क्रम आएत तकर मात्रा गणक मात्रा
कहाएत। उदाहरण लेल मानू हमरा “मगण” बनेबाक अछि तँ सभसँ पहिने “मा” लिअ तकरा बादक दू
शब्द अछि “तारा” । आब एकरा एकठाम लेने “मातारा” बनत। आब एकर मात्रा अछि--222 । तँ ई
भेल “मगण” । एकटा आर उदाहरण लिअ मानू हमरा जगण बनेबाक अछि तँ ज लिअ आ तकरा बाद दू शब्द
अछि “भान” । तँ दूनू मिला कए “जभान” बनत मने “जगण” केर मात्रा क्रम 121अछि। एनाहिते
आठो गण बनैत अछि। आठो गणक रुप देल जा रहल अछि---
गणक नाम
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दशाक्षरी खंड
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मात्रा क्रम
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यगण
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यमाता
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122
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मगण
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मातारा
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222
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तगण
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ताराज
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221
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रगण
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राजभा
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212
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जगण
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जभान
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121
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भगण
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भानस
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211
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नगण
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नसल
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111
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सगण
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सलगा
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112
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वार्णिक छन्दकेँ वर्णवृत सेहो कहल जाइत छै। तँ चलू आब एहि आठो
गणसँ अरबी रुक्न बनाबी। ई अरबी रुक्न आठ अछि । तँ देखू एकर नियम--
1) यगण (122)सँ पहिने एकटा दीर्घ लगेने “फाइलातुन” बनत। मने
2 + यमाता = 2122 = फाइलातुन
(वैकल्पिक रुपें एनाहुतो कए सकैत छी रगण मने (212) केँ बाद एकटा
आर दीर्घ लगेने “फाइलातुन” बनत। मने 212 + 2 = 2122
2) रगण (212)सँ पहिने एकटा दीर्घ लगेने “मुस्तफइलुन “बनत। मने
2 + रगण = 2212 = मुस्तफइलुन
(वैकल्पिक रुपें एनाहुतो कए सकैत छी तगण मने (221) केँ बाद एकटा
आर दीर्घ लगेने “मुस्तफइलुन” बनत। मने 221 + 2 = 2212
3) यगण (122)केँ बाद एकटा दीर्घ लगेने “मफाईलुन” बनत। मने 122
+ यगण = 1222 = मफाईलुन
(वैकल्पिक रुपें एनाहुतो कए सकैत छी मगण मने (222)सँ पहिने एकटा
लघु लगेने “मफाईलुन” बनत। मने 1+222 = 1222
4) रगण (212)सँ पहिने दूटा लघु लगेने “मुतफाइलुन” बनत। मने 11
+ रगण = 11212 = मुतफाइलुन
(वैकल्पिक रुपें एनाहुतो कए सकैत छी सगण मने (112) केँ बाद एकटा
लघु आ तकरा बाद एकटा दीर्घ लगेने “मुतफाइलुन” बनत। मने 112 + 1 + 2 = 11212
5) जगण मने (121) केँ बाद एकटा लघु आ तकरा बाद एकटा दीर्घ लगेने
“मुफाइलतुन” बनत। मने 121 + 1 + 2 = 12112
6) मगण मने (222) के बाद एकटा लघु लगेने “मफऊलात” बनत। मने 222
+ 1 = 2221 = मफऊलात
(वैकल्पिक रुपें एनाहुतो कए सकैत छी तगण मने (221)सँ पहिने एकटा
दीर्घ लगेने “मफऊलात” बनत। मने 2 + 221 = 2221
7) यगण मने (122) पूरा-पूरी “फऊलुन” केँ बराबर अछि।
8) रगण मने (212) पूरा-पूरी “फाइलुन” केँ बराबर अछि।
तँ दूनू प्रकारक छन्द आ तकरा रुक्नमे बदलनाइ हमरा लोकनि सेहो
देखलहुँ। तँ आब चलू तैआर भए जाउ गजल लिखए आ पढ़ए लेल। एहि लेखक सहायतासँ खाली मैथिलीए
नहि कोनो आन भाषामे सेहो सही गजल लीखि सकैत छी, खाली काफियाकेँ नियम बदलि जेतै भाषाक
हिसाबें। ऐ ठाम ई स्पष्ट करब जरूरी जे अरबी बहर संस्कृतक वार्णिक छन्दक बराबर अछि।
गजल मात्रिक वा सरल वार्णिकमे नै हेबाक चाही (मैथिलीमे गजल लेल किएक सरल वार्णिक चलल से आगू देखा रहल छी)।
गजल कहलाक पछाति शाइर ओकर बहरक नाम, मात्रा क्रम सेहो लिखथि।
एकर सभसँ बड़का फायदा ई अछि जे पाठक सभ सेहो ई बुझैत चलताह जे कोन बहरक की लक्षण छै
आ हमरा हिसाबें ई गजल विधाक लेल खादक काज करत। किछु लोक बहरक नाम वा मात्रा क्रम लिखबाक
विरोध करै छथि। कहै छथि जे हिन्दी आ उर्दूमे बहरक नाम नै लिखल जाइ छै। मुदा ओहि लोककेँ
ई नै बूझल छै जे संस्कृत परंपरामे हमर ॠषि-मुनि सभ अपन श्लोक शुरु करऽसँ पहिनेहे छंदक
नाम लीखि दै छलाह। दुर्गा शप्तशती प्रायः सभ गोटें देखने-पढ़ने हेता। मार्कण्डेय ॠषि
ग्रंथक शुरूमे कहि दै छथि जे ई श्लोक सभ अनुष्टुप छंदमे अछि। जखन हमर पुरखा सभ बहुत
पहिनेसँ छाती ठोकि कऽ छंदक नाम लीखि सकै छलाह तखन ऐ अत्याधुनिक कालमे हम सभ किएक नै
लीखि सकै छी। की हमर सभहँक आत्मविश्वामे कमी अछि? हँ ओहन लोक सभ जे की छंदक रचनामे
अशक्त छथि ओ तँ बहर वा छंदक नामसँ डेरेबे करता।
संस्कृतक वार्णिक छंद आ अरबी
बहरक माँझ सम्बन्ध
संस्कृतक वार्णिक छंद आ अरबीक बहर दूनू मात्राक्रम अधारित अछि
तँए संबंध हएब स्वाभाविक छै मुदा ऐ संबंधक चर्च करैत काल प्रायः सभ विद्वान किछु तथ्य
बिसरि गेल छथि। हम कने ऐ तथ्य दिस अहाँ सभकेँ लऽ चलै छी--
1) संस्कृतमे मात्र अंतिम लघुकेँ दीर्घ वा अंतिम दीर्घकेँ लघु
मानबाक परम्परा अछि। मुदा उर्दू शाइरीमे शब्दक अंत महँक दीर्घ सेहो लघु होइत अछि।
2) संस्कृतक वर्णवृतमे दू टा लघुकेँ एकटा दीर्घ मानबाक परम्परा
वा नियम नै अछि। उर्दूमे दूटा लघु मीलि एकटा दीर्घ सेहो बनैत अछि।
3) संस्कृतक वार्णिक छन्दमे जतेक मात्राक्रम छै ततेक अक्षर भेनाइ
जरूरी अछि, तखने ओकरा वर्णवृत मानल जाइत अछि। मुदा ई उर्दूमे नै अछि। आब देखी किछु
उदाहरण--
1) संस्कृत नाम “समानिका” मात्रा क्रम 212+12+12
एकर अरबी नाम भेलै “बहरे रमल मुरब्बा मकफूफ महजूफ”
2) संस्कृत नाम बिद्दुन्माला। मात्रा क्रम 22222222
एकर अरबी नाम भेलै “बहरे गरीब मुसद्दस मजमून मुसक्किन”
3) संस्कृत नाम भुजंगप्रयात। मात्राक्रम 122+122+122+122
एकर अरबी नाम भेलै “बहरे मोतकारिब मोसम्मन सालिम”
4) संस्कृत नाम त्रोटक। मात्राक्रम 112+112+112+112
एकर अरबी नाम भेलै “बहरे मुतदारिक मुसम्मन मजनून”
5) संस्कृत नाम पंच चामर। मात्राक्रम 12+12+12+12+12+12+12+12
एकर अरबी नाम भेलै “बहरे मुतकारिब मुसम्मन महजूफ
छंद आ ओकर भेदकेँ हजारों तरीकासँ प्रयोगमे आनल जाइत रहलैए तँए
ई बहुत संभव जे सभ संस्कृतक छंद अरबी बहरक समान हुअए आ ई शोधक विषय अछि। मुदा हमर स्पष्ट
मानब अछि जे मैथिलीक वर्णवृत संस्कृत ओ अरबीसँ भिन्न ढ़ाँचा लेने हेतै। तँए संस्कृत
ओ अरबी ढ़ाँचाक सहायतासँ मैथिलीक ढ़ाँचा बनेबाक प्रयास रहत हमर आ ई काज तुरंत हेतै
से नै ऐमे करीब 100-150 बर्ख लगतै।
ओना ऐठाम ई धेआन राखब जरूरी जे 122+122+122+122 अरबीमे बहरे
मोतकारिब होइत छै बल्कि ओकरा बदलामे 122+122+122 करबै वा 122+122+122+122+122 करबै तैयो बहरे मोतकारिब हेतै
मने रुक्न वा गणकेँ घटेला-बढ़ेलासँ अरबी बहर प्रभावित नै होइ छै खाली बहरक नाममे संख्यावाची
शब्द बदलि जाइत छै। मुदा संस्कृतमे एहन गप्प नै छै जँ अहाँ 122+122+122+122 बदलामे
122+122+122 करबै वा 122+122+122+122+122 करबै
तखन ओ भुजंगप्रयात छंद नै रहत बल्कि ओ दोसर छंद भऽ जाएत।
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