राम जपैत छी रहम करू
कृष्ण सुमरि अहाँ करम करू
कष्ट अनकर बूझिकऽ सदिखन
धन्य कनी अपन जनम करू
कानि रहल बहिन-माय अपन
अंतरमे कनी शरम करू
पजरत आगि ठंढा हियमे
अपन विचारकेँ गरम करू
"ओम"क बात राजा सुनि लिअ
राजक आब किछु धरम करू
दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ(मुतफाइलुन), दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ
२-११२१२-२-११२ (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)
कृष्ण सुमरि अहाँ करम करू
कष्ट अनकर बूझिकऽ सदिखन
धन्य कनी अपन जनम करू
कानि रहल बहिन-माय अपन
अंतरमे कनी शरम करू
पजरत आगि ठंढा हियमे
अपन विचारकेँ गरम करू
"ओम"क बात राजा सुनि लिअ
राजक आब किछु धरम करू
दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ(मुतफाइलुन), दीर्घ, ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ
२-११२१२-२-११२ (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)
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