जाति- धर्मक जुन्नामें अँटियाइते रहलहुँ
छूत-अछुतक अदहनमें उधियाइते रहलहुँ
पेट कोना जड़लै
पतियौलक कियो कहिया
झूठ-साँचक भाषण धरि
पतियाइते रहलहुँ
राज-पाटक बखड़ामें बटलै अपन मानव
ऊँच-नीचक झगड़ामें लतियाइते
रहलहुँ
प्यास लगले रहलै गंगा धारमें तैयो
पाप-पुण्यक गंगामें भसियाइते रहलहुँ
‘राम’ मनुखक बूझत कहिया मोल ई दुनिया
कोण-साँन्हिक फ़ेकल धरि बसियाइते रहलहुँ
सभ पाँतिमे मात्राक्रम - 2122+222+2212+22
तिथि: २४.०२.२०१४
©राम कुमार
मिश्र
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