रुबाइ-164
सोचैत सोचैत किओ देह गलबै छै
बिनु सोचने किओ सब टा काज करै छै
सूरज जकाँ अपन मरजीसँ आबै सोच
ककरो अधिकारमे तँ नै रहि सकै छै
सोचैत सोचैत किओ देह गलबै छै
बिनु सोचने किओ सब टा काज करै छै
सूरज जकाँ अपन मरजीसँ आबै सोच
ककरो अधिकारमे तँ नै रहि सकै छै
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