गजल-1.54
हम तँ हारब सब ठाम तूँ जीतैत जो
प्रेममे मोनक संग तन भीजैत जो
घर घरसँ उठलै लाश घर मरघट बनल
उड़ल लुत्ती स्वार्थक सगर मिझबैत जो
फँसल छै बड निर्दोष दोषी बचल छै
एहने अपराधक जहल तोड़ैत जो
चान उगलै दुपहर जखन सजलौं अहाँ
हम तँ रवि हेरा गेल तूँ चमकैत जो
हाथमे कुल्हरि "अमित" लेने तर्क सन
डोर सब फूँसिक आइ तूँ काटैत जो
फाइलातुन-मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन
2122-2212-2212
बहरे-हमीम
अमित मिश्र
हम तँ हारब सब ठाम तूँ जीतैत जो
प्रेममे मोनक संग तन भीजैत जो
घर घरसँ उठलै लाश घर मरघट बनल
उड़ल लुत्ती स्वार्थक सगर मिझबैत जो
फँसल छै बड निर्दोष दोषी बचल छै
एहने अपराधक जहल तोड़ैत जो
चान उगलै दुपहर जखन सजलौं अहाँ
हम तँ रवि हेरा गेल तूँ चमकैत जो
हाथमे कुल्हरि "अमित" लेने तर्क सन
डोर सब फूँसिक आइ तूँ काटैत जो
फाइलातुन-मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन
2122-2212-2212
बहरे-हमीम
अमित मिश्र
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