गजल-12
नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी
भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी
आशा निराशासँ कठिन बाट अछि
समय छै लगाम सवार छै जिनगी
विधना खेलथि खेल मनुख संग
खन इजोर वा अन्हार छै जिनगी
चलत निरंतर कर्मक नाहपर
कल-कल बहैत धार छै जिनगी
लिए मजा जुनि भेंटत दोबारा
"सुमित" सुधाकें फुहाड़ छै जिनगी
वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी
भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी
आशा निराशासँ कठिन बाट अछि
समय छै लगाम सवार छै जिनगी
विधना खेलथि खेल मनुख संग
खन इजोर वा अन्हार छै जिनगी
चलत निरंतर कर्मक नाहपर
कल-कल बहैत धार छै जिनगी
लिए मजा जुनि भेंटत दोबारा
"सुमित" सुधाकें फुहाड़ छै जिनगी
वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें