गजल-1.56
आउ बनबी घर एहन प्रिये
सदति बाजै जतऽ कंगन प्रिये
डरसँ भेले छै पात सब पियर
जखन एलै पतझड़ सन प्रिये
लोक चैनसँ नै बैस सकत जतऽ
बूझि लिअ ओतै बन्हन प्रिये
अपन लाजसँ सजबू अपन भवन
काटि लेबै मिल जीवन प्रिये
छूटि जेतै लाठी करसँ सगर
जोड़ जग भरिकें आँगन प्रिये
दावपर लागल अछि कलम "अमित"
द्रोह बनि आ तूँ सावन प्रिये
2122-2212-12
अमित मिश्र
आउ बनबी घर एहन प्रिये
सदति बाजै जतऽ कंगन प्रिये
डरसँ भेले छै पात सब पियर
जखन एलै पतझड़ सन प्रिये
लोक चैनसँ नै बैस सकत जतऽ
बूझि लिअ ओतै बन्हन प्रिये
अपन लाजसँ सजबू अपन भवन
काटि लेबै मिल जीवन प्रिये
छूटि जेतै लाठी करसँ सगर
जोड़ जग भरिकें आँगन प्रिये
दावपर लागल अछि कलम "अमित"
द्रोह बनि आ तूँ सावन प्रिये
2122-2212-12
अमित मिश्र
बहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
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