गजल
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें