गजल-1.65
जगमे तँ सब दोषी मुदा दोष नै दी
नाँगर कहै आँगन बहुत टेढ़ छै जी
टूटल महल फाटल वसन सी सकब हम
कोना कऽ फाटल कोढ़ टूटल हिया सी
छै शहर भरिमे गजब डर आइ पसरल
कानै हवा लागैछ फेरो जरल धी
सबकेँ कहै छी चोर सब ठाम घपला
छथि चोर सजनी अपन बाजू करब की
ऐना सदति देखैत छी आ सजै छी
निज मोनमे यौ भाइ देखै कहाँ छी
टाका बनल छै काल सुखमे "अमित" के
छै रीत एहन पाइ खातिर मरै छी
2212-2212-2122
अमित मिश्र
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रविवार, 30 जून 2013
गजल
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amit mishra
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