गजल-५०
जिनगी भरि बस व्यर्थक चिंता
मरितहुँ लागल स्वर्गक चिंता
अन्नक खगल छै निर्धन चिंतित
करए धनिकहो अर्थक चिंता
पहिलुक भेटिते दसकें ललसा
दस पुरिते शुरू शतकक चिंता
बहुअक छथि बिआहल सभ मारल
काँचकुमारकें घटकक चिंता
आशा फ'रक सभके छै लागल
ककरो "नवल" नै कर्मक चिंता
*मात्रा क्रम: २२२+१२२+२२२
(तिथि-३१.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
जिनगी भरि बस व्यर्थक चिंता
मरितहुँ लागल स्वर्गक चिंता
अन्नक खगल छै निर्धन चिंतित
करए धनिकहो अर्थक चिंता
पहिलुक भेटिते दसकें ललसा
दस पुरिते शुरू शतकक चिंता
बहुअक छथि बिआहल सभ मारल
काँचकुमारकें घटकक चिंता
आशा फ'रक सभके छै लागल
ककरो "नवल" नै कर्मक चिंता
*मात्रा क्रम: २२२+१२२+२२२
(तिथि-३१.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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