गजल-५३
जे बुड़िबक छल अलबत यौ
तकरे भेटल बहुमत यौ
जनता फेर ठकेलै सभ
गेलै व्यर्थहि जनमत यौ
धन जनताक लुटा रहलै
जनतो छै चुप सहमत यौ
शोषण पाँच बरख चलतै
जनता कानत कलपत यौ
धर्मक दैत दुहाई ओ
जे नहि धर्मसँ अवगत यौ
नेता बनल कतेको कहि
दुर्दिन देशक बदलत यौ
लागै गप्प "नवल" एहन
टिटही टेकल पर्वत यौ
*मफऊलातु + मफाईलुन / मात्राक्रम-२२२१+१२२२
(तिथि-१३.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
जे बुड़िबक छल अलबत यौ
तकरे भेटल बहुमत यौ
जनता फेर ठकेलै सभ
गेलै व्यर्थहि जनमत यौ
धन जनताक लुटा रहलै
जनतो छै चुप सहमत यौ
शोषण पाँच बरख चलतै
जनता कानत कलपत यौ
धर्मक दैत दुहाई ओ
जे नहि धर्मसँ अवगत यौ
नेता बनल कतेको कहि
दुर्दिन देशक बदलत यौ
लागै गप्प "नवल" एहन
टिटही टेकल पर्वत यौ
*मफऊलातु + मफाईलुन / मात्राक्रम-२२२१+१२२२
(तिथि-१३.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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