गजल-५१
एलै घोर कलयुग हरत अन्हार के
सभटा बदलि गेलै नियम संसारकें
पछ्बा रीत अबिते भेल सभकिछु खतम
चरित्र के हनन आ पतन संस्कारकें
साहित्येसँ छै शोभा समाजक अपन
साहित्यक त' काजे सृजन श्रृंगारकें
बिलटत सभ कला सेहो कलाकार सन
भेटत मान जाधरि नै कलाकारकें
मायसँ मोह आ ने मातृभूमिसँ मुदा
सभ बैसल करू गप अपन अधिकारकें
बाजब "नवल" हमहूँ बेर एतै जहन
सय सोनारकें आ एक लोहारकें
>बहरे कबीर/मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२२१२
(तिथि: ०२.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री
एलै घोर कलयुग हरत अन्हार के
सभटा बदलि गेलै नियम संसारकें
पछ्बा रीत अबिते भेल सभकिछु खतम
चरित्र के हनन आ पतन संस्कारकें
साहित्येसँ छै शोभा समाजक अपन
साहित्यक त' काजे सृजन श्रृंगारकें
बिलटत सभ कला सेहो कलाकार सन
भेटत मान जाधरि नै कलाकारकें
मायसँ मोह आ ने मातृभूमिसँ मुदा
सभ बैसल करू गप अपन अधिकारकें
बाजब "नवल" हमहूँ बेर एतै जहन
सय सोनारकें आ एक लोहारकें
>बहरे कबीर/मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२२१२
(तिथि: ०२.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री
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