गजल-५४
अनकर कहल मानब कते
खा-खा ठेस कानब कते
बस किछु दिनक जिनगी त' नै
दिन जिनगीक गानब कते
छोडू पुरनका राग सभ
ऐ सिट्ठीसँ र'स छानब कते
बिनु साधनक की साधना
थूकसँ सातु सानब कते
चाही अपन अधिकार जे
माँगू "नवल' ठानब कते
>बहरे मुक्तबिज/मात्रा क्रम : २२२१-२२१२
(तिथि-१७.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
अनकर कहल मानब कते
खा-खा ठेस कानब कते
बस किछु दिनक जिनगी त' नै
दिन जिनगीक गानब कते
छोडू पुरनका राग सभ
ऐ सिट्ठीसँ र'स छानब कते
बिनु साधनक की साधना
थूकसँ सातु सानब कते
चाही अपन अधिकार जे
माँगू "नवल' ठानब कते
>बहरे मुक्तबिज/मात्रा क्रम : २२२१-२२१२
(तिथि-१७.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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