गजल-५८
नव बरखमे नव प्रतिज्ञा हम करै छी अहूँ करू
देहक सभ दुर्गुणक ह्त्या हम करै छी अहूँ करू
लोभक लोमड़ि द्वेषक दैता चुगली निंदा रीत भेलै
सभ कुरीतिक शुरू अवज्ञा हम करै छी अहूँ करू
निर्धनता अज्ञानक पसरल कारी राति डेराओन
जान-दीपसँ दूर अन्हरिया हम करै छी अहूँ करू
मैथिल छी त' मैथिली बाजू लाज किए संकोच कथीक
माए मैथिलीक मानक रक्षा हम करै छी अहूँ करू
मिथिलाक ओ गौरव पुनि चलू "नवल" आपस आनी
वैदेहीक सभ पूड़ सेहन्ता हम करै छी अहूँ करू
>आखर - २० / (तिथि: १४.०४.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
नव बरखमे नव प्रतिज्ञा हम करै छी अहूँ करू
देहक सभ दुर्गुणक ह्त्या हम करै छी अहूँ करू
लोभक लोमड़ि द्वेषक दैता चुगली निंदा रीत भेलै
सभ कुरीतिक शुरू अवज्ञा हम करै छी अहूँ करू
निर्धनता अज्ञानक पसरल कारी राति डेराओन
जान-दीपसँ दूर अन्हरिया हम करै छी अहूँ करू
मैथिल छी त' मैथिली बाजू लाज किए संकोच कथीक
माए मैथिलीक मानक रक्षा हम करै छी अहूँ करू
मिथिलाक ओ गौरव पुनि चलू "नवल" आपस आनी
वैदेहीक सभ पूड़ सेहन्ता हम करै छी अहूँ करू
>आखर - २० / (तिथि: १४.०४.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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