शुक्रवार, 28 जून 2013

गजल

गजल-४८

प्रीत बनि क' हियामे रहबे करब हम
बनि नेह शोणितमे बह्बे करब हम

वेग मोडू बसातक हमर पएर छोडू
बसातक संगे-संग बहबे करब हम

किए बिसरैमे लागल छी हमरा अनेरे
छाँह बनि अहाँ संग रहबे करब हम

नै बुझलहुँ अहीं त' दोख अनकर कथी
ई तिरस्कारक तीर सहबे करब हम
       
छै किछु दिन लेल जिनगी तकर मोहे की
रेतीक भवन बनि ढहबे करब हम
       
मिठ लागत की क'रू तकर परवाह नै
जे सच छै उचित छै कहबे करब हम

अहाँ घोंटी गरल बूझि की पीबी सुधा कहि
"नवल" नेह-छाल्ही त' मह्बे करब हम

*आखर-१६ (तिथि: २८.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों