रविवार, 23 जून 2013

गजल

गजल @ कुन्दन कुमार कर्ण
 

जीनगी एक वरदान छी
र्इश्वरक देलहा दान छी


सोच राखू नम्हर मोनमें
जीनगी सुनर सम्मान छी

हटिक नै, डटिक जियबै जखन
जीनगी तखन गूमान छी


खेल बूझब जखन एकरा
जीनगी तखन आसान छी

कर्म पथपर चलू नित समय
कर्म मानवक पहिचान छी

बाट बाटपर बूझी चलू
जीनगी एकटा ज्ञान छी

कथन 'कुन्दन' कहैछै अपन
जीनगी दू दिनक चान छी


२१२-२१२-२१२ (फाइलुन-तीन बेर)
बहरे-मुतदारिक
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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों