सोमवार, 29 दिसंबर 2014

गजल

(मिथिला आन्दोलन विशेष)


बहराउ यौ मैथिल घरसँ मोनमे ई ठानि कऽ
लेबे करब मिथिलाराज्य आब छाती तानि कऽ

हे वीर मैथिल देखाक वीरता अभिमानसँ
आजाद मिथिलाकेँ लेल सब लडू समधानि कऽ

हो गाम या शहर छी कतहुँ मुदा सब ठामसँ
आबू करू आन्दोलन रहब जँ मिथिला आनि कऽ

मेटा रहल अछि पहचान देखिते भूगोलसँ
अस्तित्व ई धरतीकेँ बचाउ माए जानि कऽ

इतिहास मिथिलाकेँ दैत अछि गवाही कुन्दन
ई भूमि छी विद्वानक सदति चलल सब मानि कऽ


मात्राक्रम : 2212-2221-2122-211

© कुन्दन कुमार कर्ण

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

गजल

गजल
हरियर कचोर​
पटुआक झोर

छुटलइ कतेक​
पेटक ​मड़ोर​

रोपल जजात​
भेटल चिचोर

मनसा बिदेश
पहिरब पटोर​

प्रेमक सनेश​
चकबा चकोर​

लागल बकोर
पाकल परोर​

फ़ेकू निहूँछि
तामस अघोर​

बातक​  नछोर
जिनगी कठोर​

रामक भरोस​
भेटत इजोर

सभ पाँतिमे मात्राक्रम - 22121

©राम कुमार मिश्र

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

गजल

गालपर तिलबा कते शान मारैए
निकलु नै बाहर सभक जान मारैए

जतअ देखलौं अहीँपर नजरि सबहक
सभ तरे तर नजरिकेँ वाण मारैए

तिर्थमे पंडित तँ मुल्ला मदीनामे
सभ अहीँकेँ राति दिन तान मारैए

अछि अहीँकेँ मोहमे बूढ़ नव डूबल
देखिते मुँह फारि मुस्कान मारैए

काज कोनो नै बनेए जँ जीवनमे
'मनु' अहीँ लग फूल आ पान मारैए

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम : २१२२-२१२२-१२२२)

© जगदानन्द झा 'मनु'

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

गजल

बाल गजल


खेने रहियै आमक कुच्चा
चिनियो लागै खट्टे खट्टा

हमरा नामे कोड़ो बाती
हमरे नामे खुट्टा खुट्टा

हमरा सन के छै उकपाती
सभके मारी घुस्से घुस्सा

छै झिल्ली कचरी आलूचप
मुरही फाँकी फक्के फक्का

नै नीक लगैए मस्टरबा
नीक लगैए अट्टा पट्टा


सभ पाँतिमे 22+22+22+22 मात्राक्रम अछि।

अंतिम शेरक दूनू पाँतिमे अलग-अलग लगूकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि

सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

गजल

शिव केर महिमा के नै जनैत अछि
सबहक मनोरथ  पूरा करैत अछि

दिन राति भोला पीबैत भांग छथि
हुनकर चरणकेँ के नै गहैत अछि

पति ओ उमाकेँ सबहक पतित हरन
भोला हमर सबकेँ दुख हरैत अछि

बसहा सवारी बघछाल अंगपर
शमशानमे रहि दुनियाँ हँकैत अछि

नै मूँगबा खाजा चाहिएनि जल
मनुआक धथुरसँ हिनका पबैत अछि

(मात्रा क्रम : २२१२-२२२१-२१२)

© जगदानन्द झा 'मनु'

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

गजल

सपना हमर हम वीर बनी
करतब करी आ धीर बनी

जे देशकेँ अपमान करै
ओकर करेजक तीर बनी

सबहक सिनेहक मीत रही
ककरो मनक नै पीर बनी

आबी समाजक काज सदति
धरतीक नै हम भीर बनी

किछु काज ‘मनु’ एहन तँ करी
मरियो क आँखिक नीर बनी
(
मत्रा क्रम : २२१२-२२१-१२)
© जगदानन्द झा 'मनु'

नवगछुलीक प्रांजल सरस रसाल: नव अंशु

नवगछुलीक प्रांजल सरस रसाल : नव अंशु




भावक स्पष्ट प्रवाहक बहन्ने साहित्यमे पद्य विधा अतुकांत रूपेँ पसरि रहल अछि ।पद्य विधाक विकास हेतु एकर अनिवार्यता भने देखऽमे आबय मुदा वर्तमान पद्य चिरकालिक आ कतिपय लोकप्रिय रहत, ई भविष्यक गर्तमे, मुदा प्रश्न-चिन्ह धरि अवश्य अछि ।

एहि परिपेक्ष्यमे मैथिली साहित्यमे किछु काँच वयसक गीत-गजलकारक प्रवेश भेल छन्हि जे लय, राग, गतिक संग साहित्य आड़िमे बान्हल छथि, ओहिमे 21 वर्षक गजलकार अमित मिश्रक नाओं महत्वपूर्ण अछि । ओना तँ साहित्यक सब सरल विधा यथा- गीत, गजल, कथा, लघुकथा, नाटक, एकांकी, कविता, बाल-साहित्य आदिमे हिनक लेखनी गत किछु वर्खसँ प्रवाहमय अछि मुदा हिनक लोकप्रियताक पहिलुक प्रस्तुति गजल संकलन "नव अंशु"सँ भेल ।नव अंशु मने नव किरण, मने नव भोर, मने नीक दिनक पहिल आभास, मने नव ऊर्जाक संपूर्ण संसारमे पहिल संचरण ।एहि पोथीक नाओंक पाछु गजलकारक एहने सन भाव रहल हेतनि ।

अनचिन्हार आखरसँ प्रेरित भऽ कऽ लिखल गेल एहि गजल, हजल आ रुबाइ संकलनमे प्रेमी-प्रेयसीसँ आगाँ बढ़ि कऽ जीवन आयामक बहुत रास अवस्थाकेँ विविध रूपेँ प्रदर्शन कएल गेल जे निश्चय द्रव्यमूलकसँ बेसी विचारमूलक  अछि । गजल लेखनक मौलिक सीमा एकर व्याकरणक संग-संग सरल वार्णिक बहरसँ लऽ कऽ अरबी बहरमे लिखल गेल गजल मानक आ पूर्ण मानल जाए । सबटा गजलमे शेर, रदीफ, काफिया, मकता आ मतलाकेँ सरस बनयबासँ बेसी बीजगणितीय आ अंकगणितीय बनाओल गेल जे जनप्रियतासँ ऊपर उठि कऽ एहि विधाक मैथिलीमे विकासक लेल उचित आ अनुकरणीय प्रयोग मानल जाए ।

व्याकरण गजलक मौलिक मानकतासँ बान्हल अछि , कुश ठामक काससँ उखाड़ल अछि  मुदा शब्द-शब्दक प्रवाह तँ शायरक स्वत: स्फूर्त प्रतिभाक प्रदर्शन अछि -

" चान देखलौं तँ सितारा की देखब
अन्हारक रूपकेँ दोबारा की देखब "

पहिल गजल सरल वार्णिक बहरमे छन्हि, मुदा मकताक प्रयोग नहि, ओना मकता गजलक कोनो अनिवार्य अंश सेहो नहि अछि ।

कतहु-कतहु गजलकार अपन वयसे जकाँ काँच लगैत छथि तँ कतहु-कतहुँ परिपक्व प्रेमी सन झंकारयुक्त उदवोधन हिनक नैसर्गित नहि तँ आशुत्व भरल दैहिक गुणक अनुलोम जकाँ लगैत अछि-

" जे किछु कहब हँसि क ऽ कहू
प्रेमक जालमे फँसि कऽ कहू

खसा दिअ आइ बिजुरी अहाँ
रूपक चानन घसि कऽ कहू "

लयात्मक गजलमे ई भाव आ बान्ह मैथिलीमे बहुत अल्प ठाम भेटल अछि ।एहि रूपेँ शायर अभिवादन आ धन्यवादक पात्र छथि मुदा व्याकरणकेँ क्रमवद्ध आ अनुशासित करबाक क्रममे कतहु-कतहु भाव झुझुआन सेहो भऽ गेल छन्हि जेना-

" बना लेब दुलहिन अपन
अमित कने खखसि कऽ कहू"

ई तँ मात्र एकटा उदाहरण परञ्च जौं सम्पूर्ण संकलनक मनोवाचन कएल जाए तँ एतबा धरि कहल जा सकैछ जे शायर गजल विधाक भविष्यक अपन जनमाषामे एकटा अंश धरि अवश्य छथि ।एहि संकलनक पश्चात बहुत रास परिपक्व आ अरबी बहरयुक्त गजल मैथिलीमे लिखने छथि जे अप्रकाशित छन्हि ।

अरबी बहरमे लिखल एकटा गजल विविध रूपक जीवनान्दकेँ सिनेहक आवरणसँ संघोरि कऽ कऽ प्रदर्शित कएल गेल जे अनुखन आ रोचक मानल जाए-

" गजल नै, नै गीत लिखलौं
जँ लिखलौं तँ प्रीत लिखलौं

बरसबै नै मेघ बनबै
ढहल आँगन भीत लिखलौं"

एकटा रुबाइ जे समर्पण आ प्रेमक अद्भुद छटा देखबैत अछि-

"अहाँ सन मीतसँ एतबे प्रीत चाही
जे नै बिसरि सकी एहन अतीत चाही
हारब हम मजा हमर आएत मुदा
सदिखन अहाँक सब मोड़पर जीत चाही "

संपूर्ण संग्रहकेँ देखलाक बाद एकटा बात अनसोहाँत लगैत अछि जे गजलकारक पूर्ण परिचय कतौ नै देल अछि, पोथीसँ गजलकारक बारेमे नामक अलावे और कोनो जानकारी नै भेटैत अछि जे प्रकाशनक कमी/गलती वा मुद्रणक कमी लगैत अछि ।

बहरे तबील, बहरे मुतकारिब, बहरे जदीद, बहरे मुजास, बहरे काफिर आदि बहरमे संजोगल संकलन आकर्षक छन्हि ।पाठक प्रभावित हेताह ई विश्वास कएल जा सकैछ मुदा जाहि सरल पाठककेँ आनंदक अनुभूति कम ओ एकरा घृत मानि सुआद लऽ सकैत अछि, किएक तँ मंचक लेल लिखल गेल चालू पद्यसँ ई ईतर एकटा साहित्यिक कृति अछि ।
एहिमे भावक संग संग व्याकरणक बान्ह बहुत दृढ़ अछि मुदा सब गजल गेय तेँ मंचक लेल सेहो अनुगामिनी आ प्रयुक्तक संग-संग उपयुक्त मानल जाए ।व्याकरणक ज्ञान छन्हि, भावक आत्मस्फूर्त प्रतिभा छन्हि आवश्यकता छन्हि तँ मात्र परिपक्व संयोजनक जे भविष्य निर्धारण करतनि आ ओहिपर विशेष ध्यान दैत अगिला संकलनकेँ प्रदर्शित करताह, एहि विश्वासक संग युवा प्रतिभाकेँ साधुवाद ।

पोथी- नव अंशु
विधा- गजल, हजल, रुबाइ
गजलकार- अमित मिश्र
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन,  दिल्ली
संस्करण- 2012
दाम- 200 टाका

समीक्षक- शिव कुमार झा"टिल्लू"





सोमवार, 15 दिसंबर 2014

गजल

गजल-2.51

अहीँ कलम अहीँ कगज हमर गजल छी अहीँ
अहीँ मिजाज हमर भावमे बसल छी अहीँ

धसय धरा खसय गगन कतौ वा अन्हर उठय
हियाक घरक बीच लोह बनि गचल छी अहीँ

चलय बसात सगर गाममे गमक बोरि तेँ
कहय गुलाब सब परागमे रमल छी अहीँ

उठैत अछि हमर कलम मुदा लिखा नै रहल
सबसँ सुनर सबसँ अलग निशा चढ़ल छी अहीँ

जरैत तेल अछि मुदा जरा कऽ बाती "अमित"
उठय दरद तँ लगय चोट सहि चुकल छी अहीँ

1212-1212-1212-212

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

गजल

हमरो मोन पियासले रहि गेलै
हुनको मोन पियासले रहि गेलै

चुप्पेचाप बहुत पिया देलक ओ
तैयो मोन पियासले रहि गेलै

तोरा देखि कऽ धन्य बुझलक जे जे
तकरो मोन पियासले रहि गेलै

अप्पन लोक तँ सहजें अगियासल छै
अनको मोन पियासले रहि गेलै

ठोपे ठोप चुबै छलै रस तैयो
सगरो मोन पियासले रहि गेलै

चारिम शेरमे एकटा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सभ पाँतिमे 2221+12+12222 मात्राक्रम अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

गजल




उज्जर धरती पीयर रौद
हरियर गाछी सुन्दर रौद

नँहिए एलै खिड़की फानि
हुनके सन छै पाथर रौद

भुतला गेलै बाँटल घरमे
लागै बड़का भुच्चर रौद

जे देबै से लैए लेत
पसरल सौंसे आँचर रौद

अजगर गहुमन धामन संग
डँसने घूमै साँखर रौद

सभ पाँतिमे 22+22+22+21 मात्राक्रम अछि।
तेसर शेरक पहिल पाँतिक अंतिम दीर्घकेँ लघुमानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 7 दिसंबर 2014

गजल

दुख केर मारल छी ककरा कहू
केहन अभागल छी ककरा कहू

हम आन आ अप्पनकेँ बीचमे
सगरो उजारल छी ककरा कहू

नै जीत सकलहुँ आगू नियतिकेँ
जिनगीसँ हारल छी ककरा कहू

बनि पैघ किछु नव करऽकेँ चाहमे
दुनियाँसँ बारल छी ककरा कहू

कुन्दन पुछू संघर्षक बात नै
दिन राति जागल छी ककरा कहू

मात्राक्रम : 221-222-2212

© कुन्दन कुमार कर्ण

बुधवार, 3 दिसंबर 2014

गजल



छोट्टे सनकेँ हम्मर बौआ
नमहर नमहर ता ता थैया

उज्जर बगुला हरियर सुग्गा
ललका मैना कारी कौआ

थारी बाटी भरले सनकेँ
खत्मे छै तिलकोरक तरुआ

दूधक पौडर तोरे लेल
चिन्नी खेतै पौआ पौआ

हम्मर बौआ बेली सनकेँ
सुंदर सुंदर गेंदा गेंदा

सभ पाँतिमे आठ टा दीर्घ मात्राक्रम अछि
चारिम शेरक पाहिल पाँतिक अंतिम लघुकेँ संस्कृत काव्यशास्त्रानुसार दीर्घ मानल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

अपने एना अपने मूँह-32


अनचिन्हार आखरपर http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/ नवम्बरमे कुल १९ टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--

कुंदन कुमार कर्णजीक ५टा पोस्टमे कुल ५टा गजल अछि।
जगदानंद झा मनुजीक १टा पोस्टमे १टा गजल अछि।
ओमप्रकाशजीक २टा पोस्टमे २टा गजल अछि।
अमित मिश्रजीक १टा पोस्टमे १टा गजल अछि।
आशीष अनचिन्हारक कुल १०टा पोस्टमे ७टा गजल, १टा दू गजला, १टा बाल गजल, १टा अपने एना अपने मूँह, अछि।

सोमवार, 1 दिसंबर 2014

गजल

अहाँ बिनु नै सुतै नै जागैत छी हम
कही की राति कोना काटैत छी हम

अहाँक प्रेम नै बुझलहुँ संग रहितो
परोक्षमे कते छुपि कानैत छी हम

करेजा केर भीतर छबि दाबि रखने
अहीँकेँ प्राण अप्पन मानैत छी हम

बुझू नै हम खिलाड़ी एतेक कचिया
अहाँ जीती सखी तेँ हारैत  छी हम

अहाँ जगमे रही खुश जतए कतौ 'मनु'
दुआ ई मनसँ सदिखन मांगैत छी हम

(बहरे करीब, मात्रा क्रम : 1222- 1222- 2122)
जगदानन्द झा ‘मनु’

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

गजल



टूटल फूटल चेहरा छै
हारल थाकल चेहरा छै

झड़कल सनकेँ कर्म हेतै
झाँपल झाँपल चेहरा छै

कनियेँ छूलहुँ ठोर ओकर
गमकल गमकल चेहरा छै

पाथर फेकू सभ विचारक
जमकल जमकल चेहरा छै

खुब्बे पड़लै मोन हमरा
बिसरल बिसरल चेहरा छै

सभ पाँतिमे 2222+2122 मात्राक्रम अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 24 नवंबर 2014

गजल



अगम अथाह छथि नेताजी
विकट बताह छथि नेताजी

बचा बचा कऽ जानो लेलथि
असल बिखाह छथि नेताजी

दवाइ संग टीका राखब
कने कटाह छथि नेताजी

अहाँ कनी किए चाहै छी
सुलभ सलाह छथि नेता जी

विकास लेल अपने देखथि
लगै कनाह छथि नेताजी

सभ पाँतिमे 12+12+12222 मात्राक्रम अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 23 नवंबर 2014

गजल

की जिनगीमे आउ की दूर जाउ
बिनु मतलबकेँ राति दिन नै सताउ

बोली मिठगर सन अहाँ बाजि फेर
हमरा प्रेमक जालमे नै फँसाउ

आगूमे देखाक मुस्की अपार
पाछूमे सदिखन छुरा नै चलाउ

सुच्चा अछि जँ प्रेम साँचे अहाँक
सब किछु बुझि हमरे हियामे सजाउ

राखू नित कुन्दन जँका शुद्ध मोन
बस झूठक कखनो हँसी नै हँसाउ

मात्राक्रम : 2222-21-221-21

© कुन्दन कुमार कर्ण

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

गजल

पहिल बेर दू गजला कहबाक प्रयास केलहुँ अछि। देखल जाए--



कुरता सौंसे पसरल छै
झगड़ा सौंसे पसरल छै

गाछक पातक आ फूलक
चरचा सौंसे पसरल छै

जीबछ कोशी बागमती
कमला सौंसे पसरल छै

मंदिर मस्जिद गिरजा हो
भगता सौंसे पसरल छै

दिल्ली भेटत बाटेपर
पटना सौंसे पसरल छै

खादी भागल काते कात
चरखा सौंसे पसरल छै

बेंगक टर टर सुनि सुनि कऽ
बरखा सौंसे पसरल छै

पानिसँ बेसी मटिया तेल
धधरा सौंसे पसरल छै

मंझा चाहै गुड्डी तँइ
धागा सौंसे पसरल छै

ताड़ी लबनी पासी भाइ
चिखना सौंसे पसरल छै

सीता जनमै एकै गो
रामा सौंसे पसरल छै

पाचक भागै दूरे दूर
कर्ता सौंसे पसरल छै

चोरी लूट डकैतीके
खतरा सौंसे पसरल छै

छिटलहुँ खाद मुदा तैयो
खखरा सौंसे पसरल छै

लोटा थारी बाटी चुप्प
तसला सौंसे पसरल छै

सूदिक सुख मूरे जानै
कर्जा सौंसे पसरल छै

अनचिन्हारक संगे संग
फकड़ा सौंसे पसरल छै


जकरा मारल मरलहुँ से
पुछलक तोरा मारल के

मूनल रहतौ आँखि हमर
तइ के बदला हमरो दे

देलक चिन्हासी प्रेमक
कहबे करबे खिस्सा गे

श्वासक आसक विश्वासक
टूटल अत्मा तोंहू ले

बाड़ी झाड़ी छोड़ल हम
उर्सी कुर्सी भेटल जे


सभ पाँतिमे 222+222+2 मात्राक्रम अछि
दूटा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल छै। किछु शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु सेहो छूटक तौरपर अछि। किछु शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघुकेँ संस्कृत व्याकरणानुसार दीर्घ मानल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि। 

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

अपने एना अपने मूँह-31

अनचिन्हार आखरपर http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/  अक्टूबरमे कुल 18 टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--
कुन्दन कुमारक कर्णजीक कुल 4टा पोस्टमे 3टा गजल ओ 1टा भक्ति गजल अछि।
अमित मिश्र ओ जगदानंद झा मनुजीक 2-2टा पोस्टमे 2--2टा गजल आएल।
आशीष अनचिन्हारक कुल 10 टा पोस्टमे 6टा गजल, 1टा अपने एना अपने मूँह, 1टा हजल, 1-1टा बाल ओ भक्ति गजल अछि।

बुधवार, 19 नवंबर 2014

गजल


देह धधकि धधकि जाइ छै
मोन बहकि बहकि जाइ छै

बोल गमकि गमकि जाइ छै
नेत महकि महकि जाइ छै

भात रमकि रमकि जाइ छै
दालि लहकि लहकि जाइ छै

गाछ छमकि छमकि जाइ छै
पात चहकि चहकि जाइ छै

खेत लसकि लसकि जाइ छै
पेट सनकि सनकि जाइ छै


सभ पाँतिमे 21+12+12+212 मात्राक्रम आ 11 वर्ण अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 16 नवंबर 2014

गजल

गजल-2.50

हम रही अहाँ रही आर किछु नव बात हो
हम कही अहाँ सुनी आर किछु नब बात हो

जे कहब कहू मुदा तौल लिअ निज बोलकेँ
जे कहब, कहब सही आर किछु नव बात हो

भेद-भाव आइ तजि ठाढ़ एकहिँ मंचपर
प्रीतकेँ बहै नदी आर किछु नव बात हो

सफ हो सभक हिया साफ हो छवि लोककेँ
फड़य गाछ जनु कली आर किछु नव बात हो

बात बातपर हँसय सब हँसय धरती सगर
हो दरद सगर कमी आर किछु नव बात हो

2121-21-2212-2212

शनिवार, 15 नवंबर 2014

गजल


हमरा शराब चाही मुदा आँखिसँ
कनियें हिसाब चाही मुदा आँखिसँ

गेंदा बहुत चमेली बहुत हमरा लग
तैयो गुलाब चाही मुदा आँखिसँ

बाजल बिला कऽ चलि जाइ छै अन्तह
तँइ सभ जबाब चाही मुदा आँखिसँ

मानल गजल पसरि गेल छै तैयो
गजलक किताब चाही मुदा आँखिसँ

हारल छलहुँ तँए मानि लेबै सभ
हमरा हियाब चाही मुदा आँखिसँ

सभ पाँतिमे 2212+122+1222 मात्राक्रम अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

गजल

अपन मोनक कहल मारि बैसल छी
छलै खिस्सा लिखल फाडि बैसल छी

हँसी हुनकर हमर मोनमे गाडल
करेजा अपन हम हारि बैसल छी

पढू भाषा नजरि बाजि रहलै जे
किए हमरा अहाँ बारि बैसल छी

सिनेहक बूझलौं मोल नै कहियो
अहाँ गर्दा जकाँ झारि बैसल छी

जमाना कहल मानैत छी सदिखन
कहल "ओम"क अहाँ टारि बैसल छी
- ओम प्रकाश
मफाईलुन-फऊलुन-मफाईलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

गजल

कानैत आँखिक आगिमे जरल आकाशक शान छै
बेथा करेजक लहकि गेलै, सभक झरकल मान छै

बैसल रहै छी प्रभुक दरबारमे न्यायक आसमे
हम बूझलौं नै बात, भगवान ऐ नगरक आन छै

सदिखन रहैए मगन अपने बुनल ऐ संसारमे
चमकैत मोनक गगनमे जे विचारक ई चान छै

आसक दुआरिक माटि कोडैत रहलौं आठो पहर
सुनगैत मोनक साज पर नेहमे गुंजित गान छै

सूखल मुँहक खेती सगर की कहू धरती मौन छै
मुस्की सभक ठोरक रहै यैह "ओम"क अभिमान छै
- ओम प्रकाश
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ,
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

गजल

छूटल हाथ
फूटल माथ

अपने संग
करबै लाथ

बहसल मोन
आबू नाथ

पेटक लेल
गोबर पाथ

छथि बकलेल
भूपतिनाथ

सभ पाँतिमे 2221 मात्राक्रम अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

गजल

ओकरा देखिते देह अपने सिहरि जाइ छै
आगि नेहक हियामे तखन यौ पजरि जाइ छै

मारि कनखी दए छै जखन ताकि अनचोकमे
डेग अपने हमर ओकरा दिस ससरि जाइ छै

ओ हँसै छै त एना बुझाइत रहल बागमे
फूल जेना गुलाबक लजाइत झहरि जाइ छै

चानकेँ देखिते रातिमे चेहरा ओकरे
झिलमिलाइत हमर आँखिमे सजि उतरि जाइ छै

लाख लड़की करै छै हमर आब पाछू मुदा
छोडि सभकेँ बहकि ओकरेपर नजरि जाइ छै

प्रेम कुन्दन हए छै अहीना बुझा से रहल
एहने जालमे मोन सुधि बुधि बिसरि जाइ छै

बहरे-मुतदारिक

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

मनक भीतर माटिक प्रेम काबा सन
लगैए ई दूर भय गर्म आबा सन

दियावाती भेल नै चौरचन भेलै
मनोरथ भसि गेल ताड़ीक डाबा सन

अपन अँगने छोरि एलहुँ सगर हित हम
फरल दुश्मन एतए बड्ड झाबा सन

करेजामे दर्द गामक बसल एना
बिलोका बनि ओ तँ चमकैत लाबा सन

पिया बैसल  दूर परदेशमे  'मनु' छथि
विरहमे हम छी हुनक बनल बाबा सन

(मात्रा क्रम : १२२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 9 नवंबर 2014

गजल



कमसँ कम एकौटा फूल दे गे मलिनियाँ
नीक नै अपने समतूल दे गे मलिनियाँ

राखि ले गेंदा बेली चमेली गुलाबो
बस हमर कोंढ़ी अड़हूल दे गे मलिनियाँ

घाटपर बैसल हम बाट जोहै छी तोहर
थरथराइत देहक पूल दे गे मलिनियाँ

राहु शनि मंगल बुध केतु वशमे मुदा तों
प्रेम सनकेँ ग्रह अनुकूल दे गे मलिनियाँ

आम संगे महुआ महुआ संग आमे टा झूलै
एहने सन झूलाझूल दे गे मलिनियाँ

सभ पाँतिमे 2122+222+122+122 मात्राक्रम अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

गजल

बाल गजल

गेलै उक्पाती बुढ़िया बाड़ीमे
लगले रहलै तेल हुनक लाठीमे

हमरा लोकनि फैलसँ कड़ुगर झँसगर
बड़ सनगर भक्का खेलहुँ गाछीमे

चोरक हल्ला सुनलहुँ सभहँक मूँहे
ताला आनि लगा देलहुँ काँपीमे

बथुआ खुब्बे नीक लगैए तैयो
धेआन हमर बसिया खेसारीमे

हमरा हेलब चुभकब नीक लगैए
पोखरिमे नालामे की नालीमे

सभ पाँतिमे 222+222+222+2 मात्राक्रम अछि
दूटा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

गजल



करेज बेचै छी राति भरि
पिआर देखै छी राति भरि

मिटा कऽ चलि गेलै रंग रूप
निशान हेरै छी राति भरि

इयाद हुनकर बस सोन सन
करोट फेरै छी राति भरि

बसात पसरल चारू दिसा
सुगंध घेरै छी राति भरि

सिनेह हुनकर भेटल जते
तते उकेरै छी राति भरि

सभ पाँतिमे 12-122-2212 मात्रक्रम अछि
दोसर शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु अतिरिक्त छूटक तौरपर अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 3 नवंबर 2014

गजल

एहि हारल आदमीकेँ हालचाल नै पुछू
दर्द सुनिते जाइ बढि तेहन सवाल नै पुछू

मारि किस्मत गेल कखनो खेल खेलमे लटा
घर घरायल नित बिपतिमे कोन काल नै पुछू

संग अपनो नै जरूरतिकेँ समय कतहुँ रहल
केलकै कोना कखन के आल टाल नै पुछू

बाट जिनगीकेँ रहल जे डेग डेगपर दुखद
बीत कोना गेल ई पच्चीस साल नै पुछू

के मरै छै एत यौ कुन्दन ककर इयादमे
लोक लोकक खीच रहलै आब खाल नै पुछू

मात्राक्रम: 2122-2122-2121-212

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

दीयावातीकेँ हम दए छी विशेष शुभकामना
स्वीकारू सभ केओ हमर ई सनेश शुभकामना

माए बाबू संगी बहिन भाइ जे कतहुँ रहल अछि
चाहे केओ परदेश या दूर देश शुभकामना

घरमे लक्ष्मीकेँ आगमन होइ सुखसँ जिनगी सजै
प्रेमक सौगातसँ जन समर्पित अशेष शुभकामना

वैभवमे नित होइत रहै वृद्धि शान्ति घर-घर रहै
मठ मन्दिरमे हम दैत छी दीप लेश शुभकामना

पावन अवसरपर आइ कुन्दन हृदयसँ दैत सभकेँ
शुभ संध्यामे पूजैत लक्ष्मी गणेश शुभकामना

मात्राक्रम: 22222-2122-121-2212

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

हमरासँ प्रिय नै रूसल करू
बेगरता मोनक बूझल करू

बनि नेहक सुन्नर सन फूल नित
मोनक बगियामे फूलल करू

जखने देखै छी हमरा कतहुँ
तखने हँसि लगमे रूकल करू

जीवन संगी हमरे मानि जुनि
आत्मामे बैसा पूजल करू

काइल की हेतै मालूम नै
एखन कुन्दनमे डूबल करू

मात्राक्रम : 2222-22212

© कुन्दन कुमार कर्ण

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2014

गजल

भक्ति गजल

बितलै खरना एलै साँझक बेरा उठलै ढ़ाकी गे
माथे सोभै सूपक संगे सुंदर पथिया मौनी गे

पबनैतिन सभ चलली घाटक दिस नहुँ नहुँ सम्हर सम्हरि
साँझक बेरा झलफल कनकन हहरै सभहँक छाती गे

हाथे हाथ सजल अरघक नरियर तैपर राखल दीपो
घाटे घाट सजल केरा भुसबा संगे तरकारी गे

कोशी साजल हाथी मातल छै तैपर ठकुआ राखल
सभ घूमै चारू दिस गीतो गाबथि बहिना काकी गे

भेलै भिनसरबा सिहकै पछबा बड़ सोचथि पबनैतिन
नै देलथि दरशनमा राना मैया हम बड़ पापी गे

आबो तँ उगह हो आदित भेलै बड़ देर अबेर कुबेर
नाम उचारथि अरघी हाथ अरघ लेने सभ साँती गे

करिते गोहारि किरिन फुटलै उठलै लाली पुरुबक दिस
माँगै पबनैतिन सुख नैहर सासुर बेटा बेटी गे

भेलै परना गेलै सभ घाटो लागै सून उदासल
घाटक दूभि कहै अबिअह परुकाँ रहतौ खुशहाली गे

सभ पाँतिमे 222+222+222+222+222 अछि
दूटा अलग-अलग लघुकेँ एकटा दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।
छठम शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु फाजिल लेबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

गजल



उधारक बेर हमहीं रहबै
हिसाबक बेर हमहीं रहबै

रहै जजमान कतबो किनको
प्रसादक बेर हमहीं रहबै

सबूतक ढेरपर नाचत सभ
फसादक बेर हमहीं रहबै

पिया देतै भने अमरित ओ
पियासक बेर हमहीं रहबै

कियो बनबे करत सिंदूर
पिठारक बेर हमहीं रहबै

सभ पाँतिमे 1222+122+22 मात्राक्रम अछि।

अंतिम शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघुकेँ संस्कृत हिसाबें दीर्घ मानल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

गजल

बाल गजल

दिवाली एलै धम धम धम
फटक्का फूटै बम बम बम

जरै डिबिया सभहँक आँगन
करै दरबज्जा चम चम चम

खतम भेलै फुलझरियो से
बहन्ना करही कम कम कम

किनेबै चकरी जेबी भरि
जरेबै खाली हम हम हम

सभ पाँतिे 1222-2222 मात्राक्रम अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

गजल



जाल झटपट खसैए पानिमे
माछ छटपट करैए पानिमे

हाथमे हाथ लागै नीक बड़
हाथ लटपट लगैए पानिमे

माटिपर जे सिनेहक धार छै
तकरे खटपट कहैए पानिमे

आम छै काँच पाकल डम्हरस
टूटि भटभट खसैए पानिमे

बोल जक्कर बिकेलै घाटपर
आब पटपट बजैए पानिमे

सभपाँतिमे 2122+122+212 मात्राक्रम अछि
तेसर शेरक दोसर पाँतिमे एकटा दीर्घकेँ लघु मानल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

गजल

दुदुसिया आ सूपक भाँटा सन लोकक लेल ई हजल अछि।--


हजल

हमरो कहने जे हम तोरे संग छियौ
हुनको कहने जे हम तोरे संग छियौ

हुनका दमपर जे केलक किछु से बुझलक
सगरो कहने जे हम तोरे संग छियौ

देखि रहल छी हुनक बदलब भोरे भोर
साँझो कहने जे हम तोरे संग छियौ

छथि एहन परतापी जे घर एलनि चोर
तकरो कहने जे हम तोरे संग छियौ

ठकलक अनका संगे अपनो अत्माकेँ
अपनो कहने जे हम तोरे संग छियौ

सभ पाँतिमे एगारह टा दीर्घ अछि।

तेसर आ चारिम शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु अतिरिक्त छूटक अधारपर अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

गजल



नै हेतौ तोहर निबाह गे कनियाँ
दुनियाँ छै बड़का कटाह गे कनियाँ

जेबीकेँ गर्मी रहै नै दुनियामे
नै हो एते गौरबाह गे कनियाँ

भेलौ तोरा रोग बस धनौंधीके
संबंधो सभ लेभराह गे कनियाँ

खाली साढ़े तीन हाथके धरती
अनचिन्हारे छौ गबाह गे कनियाँ

निरगुण अनचिन्हार गाबि रहलै बड़
छै चलती बेरक उछाह गे कनियाँ

सभपाँतिमे 22+2221+2122+2मात्राक्रम अछि
दोसर शेरक पहिल पाँतिमे एकटा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 12 अक्टूबर 2014

गजल

गजल-2.40

हमरा घुटि घुटि कऽ मरनाइ सिखा दिअ
बस हमरा प्रेम करनाइ सिखा दिअ

काजक बोझसँ उदासी बढ़ि रहलै
हँसि हँसि जिनगी सुधरनाइ सिखा दिअ

मोनक अन्हार मेटायब कठिन नै
ज्ञानक बाती लऽ जरनाइ सिखा दिअ

ताकत लिअ अपन अधिकारक खातिर
सब विघ्नसँ आब लड़नाइ सिखा दिअ

जा धरि चलतै अपन अभिनय ता धरि
दुख तजि सुख सबसँ हरनाइ सिखा दिअ

2222-1221-122

गजल

एमरीक पूजा जोड़ पकरने छै
गाम गाम मैयाकेँ पसारने छै

एक दोसरामे होड़ छैक लागल
सभक बुद्धिकेँ के आबि जकरने छै

पाठ माइकसँ छकरैत आँखि मुनि सभ
अपन घरक माएकेँ तँ बिसरने छै

एक कोणमे छथि चूप मूर्त मैया
लोक नाच गाजा  भाँग दकरने छै

'मनु' किछो जँ  बाजल आँखि खोलि कनिको
लोक ओकरेपर गाल छकरने छै

(मात्रा क्रम : २१-२१-२२/२१-२१-२२)
© जगदानन्द झा 'मनु'   

गजल


करेजामे हमर साजन आबि गेलै
मनक सभ तार बटगबनी गाबि गेलै

हुनक मुस्कीसँ सगरो दुनियाक सम्पति
करेजा जानि नै कोना पाबि गेलै

बलमकेँ दर्द जानि कए मोन कनिको
कतेक दुख अपन चट्टे दाबि गेलै

बनेलहुँ अपन जखनसँ संगी बलमकेँ
जिला भरि केर लोकक मुँह बाबि गेलै

बसने छलहुँ मन मंदिरमे जिनक छबि
दया भगवानकेँ ‘मनु’ ओ पाबि गेलै             

(बहरे करीब, मात्रा क्रम : १२२२-१२२२-२१२२)

© जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

गजल

ब्रम्हसँ बेसी छागर उताहुल
हाथसँ बेसी आँचर उताहुल

मोन बहकि गेलै कोहबरमे
ठोरसँ बेसी आखर उताहुल

प्रेम मिलनमे नै छोट नमहर
धारसँ बेसी सागर उताहुल

घोघ कहैए एना सजू जे
दोगसँ बेसी बाहर उताहुल

रूप हुनक अनचिन्हारे सनकेँ
आँखिसँ बेसी काजर उताहुल

सभपाँतिमे 21+1222+2122 मात्राक्रम अछि।
मक्तामे एकटा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि
"ब्रम्हसँ बेसी छागर उताहुल" ई एकटा मैथिली लोकोक्ति अछि।

बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

गजल

मोन एखनो पारै छी अहीँकेँ
बाट एखनो ताकै छी अहीँकेँ

भावमे बहकि हम संगी सभक लग
बात एखनो बाजै छी अहीँकेँ

आब नै रहल कोनो हक अहाँपर
जानितो गजल गाबै छी अहीँकेँ


दीप जे जरा गेलहुँ नेहकेँ से
नित इयादमे बारै छी अहीँकेँ

प्रेम भेल नै कहियो बूढ कुन्दन
साँस साँसमे चाहै छी अहीँकेँ

मात्राक्रम : 212-1222-2122

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

हियामे उमंगक अगबे लहर छै
बुझा गेल ई त प्रेमक असर छै

धरकि अछि रहल धरकन बड्ड जोरसँ
रहल आब किछु नै बाँकी कसर छै

मजा एहि जादूकेँ खूब अनुपम
सजा मीठ सनकेँ जेना जहर छै

गजल पर गजल कहलहुँ ओकरा पर
मुदा बादमे बुझलहुँ बेबहर छै

पहिल बेर कुन्दन ई बात जानल
किए प्रेम सुच्चा जगमे अमर छै

मात्राक्रम : 122-122-22-122

© कुन्दन कुमार कर्ण

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

गजल

बड़का बड़का दाबी छै
हम पंडित ओ पापी छै


हपसै सभ निकगर भोजन
हमरे लागल जाबी छै

हम्मर नूआ सस्ता सन
हुनकर नूआ दामी छै

खुलबे करतै ताला ई
हमरा लग ओ चाभी छै

अन्हारक संगे डिबिया
असगर बैसल बाती छै

सभ पाँतिमे 222+222+2 मात्राक्रम अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 6 अक्टूबर 2014

अपने एना अपने मूँह-30

सितम्बर २०१४मे अनचिन्हार आखरपर कुल ११टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--

अमित कुमार मिश्र ओ राम कुमार मिश्रजीक १-१टा पोस्टमे १-१टा गजल आएल।
कुंदन कुमार कर्णजीक ३टा पोस्टमे २टा गजल आ १टा बाल गजल आएल।
आशीष अनचिन्हारक ६टा पोस्टमे- १टा भक्ति गजल, ४ टा गजल आ १टा अपने एना अपने मूँह अछि।

रविवार, 5 अक्टूबर 2014

गजल

बितलै राति भेलै भोर गे बहिना
रहि गेलै पियासल ठोर गे बहिना

आसक नामपर खेपल अपन जीबन
के पोछत हमर दुख नोर गे बहिना

रहलहुँ राति भरि उसनैत अपनाकेँ
साँचे दुखमे छै बड़ जोर गे बहिना

गुड्डी बनि छलहुँ उपरे उपर सदिखन
के तोड़लकै नेहक डोर गे बहिना

अनचिन्हार देलक किछु निशानी आ
दुनियाँ लागै बस अंगोर गे बहिना

सभ पाँतिमे 2221+2221+222 मात्राक्रम अछि,
तेसर, चारिम आ मक्तामे 1-1टा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

गजल

गजल-2.30

जतेक छल भाव हमरा लग आइ पसारि देने छी
अपन करेजासँ जनमल सब परत उघारि देने छी

गलत-सही केर झगड़ा सब ठाम पड़ल अधूरे अछि
जतेक छल फूसि लफड़ा सब आगि पजारि देने छी

खुशीक मैडल सिनेहक ओलम्पिकमे कमे भेटय
इएह कारण अपन नस-नस दुखसँ गछारि देने छी

हमर लिखल गीत हमरे काटैत रहैत अछि मीता
अपनहि घरमे अपन जीवनकेँ दुतकारि देने छी

अहाँक नैनक नशा बड बेहोश कऽ राखि देने अछि
अहाँ तँ पाथर हियाकेँ पलमे चुचकारि देने छी

1212-2122-2211-2122-2

शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

गजल

अहाँ गोर हम कारी छी
मुदा एक टा प्राणी छी

सजत रूप नै हमरा बिनु
अहाँ देह हम सारी छी

रहब नै अलग कखनो जुनि
अहाँ ठोर हम लाली छी

चलत साँस नै एको छन
अहाँ माँछ हम पानी छी

कहू आर की यौ कुन्दन
अहाँ फूल हम माली छी

मात्राक्रम : 1221-2222

© कुन्दन कुमार कर्ण

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

गजल

करै छी अहाँ पर विश्वास हे मैया
कऽ दिअ ने हमर पूरा आश हे मैया

चढायब चरणपर अड़हूल नित ललका
करब हम अहीँकेँ उपवास हे मैया

हरू कष्ट जग जननी पूत बुझि हमरा
करू दर्द मोनक सभ नाश हे मैया

जियब एहि जगमे ककरा भरोसे हम
शरणमे त अप्पन दिअ बास हे मैया

रहब भक्तिमे डूबल राति दिन कुन्दन
रहत साँसमे जा धरि साँस हे मैया

मात्राक्रम : 122-122-221-222

© कुन्दन कुमार कर्ण

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

गजल

भक्ति गजल

जय दुर्गा जय काली जय भगवति जय जय
अबियौ हाली हाली जय भगवति जय जय

अड़हूलक कोंढ़ी लेने जगता भगता
मालिन संगे माली जय भगवति जय जय

सोभै लहठी नथिया टीका सेनूर
तैपर बड़का बाली जय भगवति जय जय

रुनझुन बाजल पायल हुनकर साँझहिमे
पसरल भोरक लाली  जय भगवति जय जय

खनमे ब्रम्हाणी रुद्राणी  खनमे
संहारी कंकाली जय भगवति जय जय

सभ पाँतिमे 222+222+222+22 मात्राक्रम अछि

तेसर शेरक अंतिम अक्षरकेँ संस्कृत छंद शास्त्रानुसार दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि
चारिम शेरमे लयक दृष्टिसँ आर मेहनति चाही
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 29 सितंबर 2014

गजल

दुख अपने लग राखै छी
सुख सभमे हम बाँटै छी

सभकेँ बुझि अप्पन सदिखन
हँसि-हँसि जिनगी काटै छी

पापसँ रहि अलगे बलगे
धर्मक गीतल गाबै छी

मैथिल छी सज्जन छी हम
मिठगर बोली बाजै छी

कुन्दन सन गुण अछि हमरा
मिथिलाकेँ चमकाबै छी

मात्राक्रम : 2222-222

© कुन्दन कुमार कर्ण

रविवार, 28 सितंबर 2014

गजल


एम्हर नोरक टघार आँगनमे
ओम्हर सुखके पथार आँगनमे

ई तोहर ई हमर रहत बुझि ले
भेलै एहन विचार आँगनमे

की लेबै आ कतेक लेबै दाइ
देखू पसरल बजार आँगनमे

नगदी भेलै जखन कने बेसी
दौगल एलै उधार आँगनमे

सगरो दुनियाँसँ बचि कऽ एलहुँ हम
लागल कसगर लथार आँगनमे

सभ पाँतिमे 22+2212+1222 मात्राक्रम अछि

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

गजल

बीतल दिन जखन मोन पडै छै
आँखिसँ बस तखन नोर झरै छै

छोडब नै कहै संग अहाँकेँ
लग नै आउ से आब कहै छै

ओकर देलहा चोटसँ छाती
एखन धरि हमर दर्द करै छै

जिनगीमे लगा गेल पसाही
धधरामे हिया कानि जरै छै

के बूझत दुखक बात हियाकेँ
कुन्दन आब कोना कँ रहै छै

मात्राक्रम : 222-1221-122

© कुन्दन कुमार कर्ण

शनिवार, 20 सितंबर 2014

गजल

ने बेटा ने पोता ने बेटी बुढ़ौतीमे
देखै छी खाली उकटा पैंची बुढ़ौतीमे

लोटा लाठी टूटल दरबज्जा चुनौटी आ
करिया कुक्कुर संगे छै दोस्ती बुढ़ौतीमे

डबरा डुबरी पोखरि झाँखरि खेत गाछी संग
चलि गेलै हम्मर सोहक पौती बुढ़ौतीमे

घुरि घुरि एना हमरा देखैए समाजक लोक
जेना फेरो हेतै घटकैती बुढ़ौतीमे

की खेबाके इच्छा अछि से कहि दिऔ झटपट
झड़कल सन संतानक अपनैती बुढ़ौतीमे


सभ पाँतिमे 222+222+222+1222 मात्राक्रम अछि
तेसर आ चारिम शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु छूटक तौरपर लेल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 15 सितंबर 2014

अपने एना अपने मूँह-29

मास अगस्त-२०१४मे अनचिन्हार आखरपर कुल १३ टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--

कुन्दन कुमार कर्णजीक ३टा पोस्टमे २टा गजल आ एकटा हुनक अपने स्वरमे गाएल गजलक विडीयो अछि।
जगदानंद झा मनुजीक २टा पोस्टमे १टा गजल आ १टा भक्ति गजल अछि
अमित मिश्र आ रामकुमार मिश्रजीक १-१टा पोस्टमे १-१टा गजल अछि
गजेन्द्र ठाकुरजीक १टा पोस्टमे विदेह भाषा सम्मान संबंधी विवरण अछि।
आशीष अनचिन्हारक कुल ५टा पोस्टमे ३टा गजल, १टा भक्ति गजल आ १टा अपने एना अपने मूँह अछि

शनिवार, 13 सितंबर 2014

गजल

गजल - 11

सहसह लोकक भीड़ देखल हम
सुच्चा लोकक लेल बेकल हम​

कटुता क्रोधक उमर बढ़लै टा
नेहक देखल लाश जेकल हम​

माहुर मीझर गप्प गीजै छथि
माहुर गप्पक टीस सेकल हम

बलगर शोणित पीबि मोटेलै
अबला श्राद्धक पात फेकल हम

जीयब निकहा दिनक आशामें
आशक सिम्मर फ़ूल सेबल हम​

सभ पाँतिमे मात्राक्रम –2222-21-222

© राम कुमार मिश्र

गजल

"ग"सँ गंगा "ग"सँ गजल छै
आखर आखर विमल छै

"ग"सँ गीता "ग"सँ गजल छै
वेदक संगे रचल छै

"ग"सँ गाए "ग"सँ गजल छै
पाथर पाथर महल छै

"ग"सँ गायत्री रटल हम
अनका धरिकेँ बुझल छै

"ग"सँ गामा संग गाँधी
दुष्टक गर्वो टुटल छै

सभ पाँतिमे 2222+122 मात्राक्रम अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

गजल

बाल गजल


पढबै लिखबै चलबै नीक बाटसँ
आगू बढबै अपने ठोस आंटसँ

संस्कृति अप्पन कहियो छोडब नै
अलगे रहबै कूसंगत कऽ लाटसँ

फुलिते रहबै सदिखन फूल बनि नित
डेरेबै नै कोनो चोख कांटसँ

हिम्मत जिनगीमे हेतैक नै कम
चलबै आगू बाधा केर टाटसँ

बच्चा बुझि मानू कमजोर नै यौ
चमकेबै मिथिलाकेँ नाम ठाटसँ

मात्राक्रम: 2222-2221-22

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

गजल-2.28

अपनेक इतिहास लेल हम खतरनाक छी
अपनेक कथनसँ तँ हम अधसिझल सन पाक छी

कविता पढ़ू वा पढ़ू भजन गजल शायरी
आखरक मंथनसँ निकलि चुकल कटु वाक छी

निज चेतना जागले रहल चरम नीन धरि
जेतै कखन खेल पलटि बड खतरनाक छी

हमरा-अहाँमे प्रियतम फरक एतेक अछि
सुन्दर विदा छी अहाँ तँ हम हाक-डाक छी

ई जग दुखक सिन्धु अछि भरल अमित आगि धरि
चलि आउ सखि जीबि लिअ जँ नीक तैराक छी

2212-2121-212-212
अमित मिश्र

सोमवार, 1 सितंबर 2014

गजल

गहूमो नै भेलै धानक पछाति
उदासल खेतो खरिहानक पछाति

गबैए माए समदाउन उदासी
बहुत कानै सेनुरदानक पछाति

अकासक कोना कोना टेबि हम
पहुँचबै सूरज धरि चानक पछाति

बचा रखिहें कनियों अमरित गे बहिना
नै देतौ बेटा विषपानक पछाति

बिसरि जेबै जकरा तकरा तँ हम

इयादो करबै शमसानक पछाति

सभ पाँतिमे 1222+2222+12 मात्राक्रम अछि।
मतला सहित आन पाँति सभक अंतमे एकटा अतिरिक्त लघु लेबाक छूट लेल गेल अछि

शनिवार, 30 अगस्त 2014

गजल

गजल- 2.26
हम बाढ़िक मारल-झमारल छी
परजातंत्रक सुखसँ बारल छी

जुनि कोड़ब सखि भावना कहियो
स्मृतिमे पुरना लाश गाड़ल छी

ई जग हारय आबि हमरा लऽग
अपने मोनक तर्कसँ हारल छी

किछु नै हमरा लऽग किओ बाजय
सत्यवादक अवगुणसँ छारल छी

हम नै छी कवि ने गजल वक्ता
बस शब्दक धधरा पजारल छी

2222-2122-2

अमित मिश्र

Dard Monak Ahake Kahab Ham Kona

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

गजल


नै अहाँ केर बिसरी नाम हे भगवन
होइ कखनो अहाँ नै बाम हे भगवन

सुख कि भेटे  दुखे जीवनक रस्तापर
संगमे रहथि सदिखन राम हे भगवन

हम बनेलौं सिया मंदिर अपन मनकेँ
आब कतए अहाँकेँ ठाम  हे भगवन

आन नै आश कोनो बचल जीवनकेँ
अपन दर्शनकटा दिअ दाम हे भगवन

‘मनु’ अहाँकेँ करैए जोड़ि कल विनती
तोड़ि फेरसँ तँ अबियौ खाम हे भगवन

(बहरे मुशाकिल, मात्रा कर्म – २१२२-१२२२-१२२२)

© जगदानन्द झा ‘मनु’
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों