गजल-1.65
जगमे तँ सब दोषी मुदा दोष नै दी
नाँगर कहै आँगन बहुत टेढ़ छै जी
टूटल महल फाटल वसन सी सकब हम
कोना कऽ फाटल कोढ़ टूटल हिया सी
छै शहर भरिमे गजब डर आइ पसरल
कानै हवा लागैछ फेरो जरल धी
सबकेँ कहै छी चोर सब ठाम घपला
छथि चोर सजनी अपन बाजू करब की
ऐना सदति देखैत छी आ सजै छी
निज मोनमे यौ भाइ देखै कहाँ छी
टाका बनल छै काल सुखमे "अमित" के
छै रीत एहन पाइ खातिर मरै छी
2212-2212-2122
अमित मिश्र
- मुखपृष्ठ
- अनचिन्हार आखरक परिचय
- गजल शास्त्र आलेख
- हिंदी फिल्मी गीतमे बहर
- भजनपर गजलक प्रभाव
- अन्य भारतीय भाषाक गजलमे बहर
- समीक्षा/आलोचना/समालोचना
- गजल सम्मान
- गजलकार परिचय शृखंला
- गजलसँ संबंधित आडियो/वीडियो
- विश्व गजलकार परिचय शृखंला
- छंद शास्त्र
- कापीराइट सूचना
- अपने एना अपने मूँह
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- अर्चा-चर्चा-परिचर्चा
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- शेर जे सभ दिन शेर रहतै
रविवार, 30 जून 2013
गजल
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गजल,
amit mishra
गजल
गजल-1.64
दरद नुकाएब बहुत कठिन छै
नोर सुखाएब बहुत कठिन छै
खूब जलन जीवनमे हो मगर
आगि लगाएब बहुत कठिन छै
बदलल युगमे बदलल छै नजरि
लाज बचाएब बहुत कठिन छै
लोक सगर पूरि रहल छै मुदा
सपन पुराएब बहुत कठिन छै
आगि मिझाओत 'अमित' महलकेँ
द्वेष मिझाएब बहुत कठिन छै
2112-2112-212
अमित मिश्र
दरद नुकाएब बहुत कठिन छै
नोर सुखाएब बहुत कठिन छै
खूब जलन जीवनमे हो मगर
आगि लगाएब बहुत कठिन छै
बदलल युगमे बदलल छै नजरि
लाज बचाएब बहुत कठिन छै
लोक सगर पूरि रहल छै मुदा
सपन पुराएब बहुत कठिन छै
आगि मिझाओत 'अमित' महलकेँ
द्वेष मिझाएब बहुत कठिन छै
2112-2112-212
अमित मिश्र
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amit mishra
शुक्रवार, 28 जून 2013
गजल
गजल-६०
प्राण टांगल रहत सजना पाती लिखब
नेह बान्हल रहत सजना पाती लिखब
जा क' परदेस जुनि हमरा बिसरब अहाँ
आश लागल रहत सजना पाती लिखब
बाट जोहब अहाँके बनि जोगन पिया
नैन थाकल रहत सजना पाती लिखब
स्वागतक लेल चौकठि ओगरने रहब
हार गांथल रहत सजना पाती लिखब
आंखि काजर सजल केशो गुहने रहब
ठोढ़ रांगल रहत सजना पाती लिखब
दिन अहाँ बिन हमर रहतै रूसल दुखी
राति जागल रहत सजना पाती लिखब
देशमे छी " नवल " चाहे परदेसमे
मोन तागल रहत सजना पाती लिखब
*फाइलातुन+मफाईलुन+मुस्तफइलुन / मात्रा क्रम : २१२२-१२२२-२२१२
(तिथि-२३.०६.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
प्राण टांगल रहत सजना पाती लिखब
नेह बान्हल रहत सजना पाती लिखब
जा क' परदेस जुनि हमरा बिसरब अहाँ
आश लागल रहत सजना पाती लिखब
बाट जोहब अहाँके बनि जोगन पिया
नैन थाकल रहत सजना पाती लिखब
स्वागतक लेल चौकठि ओगरने रहब
हार गांथल रहत सजना पाती लिखब
आंखि काजर सजल केशो गुहने रहब
ठोढ़ रांगल रहत सजना पाती लिखब
दिन अहाँ बिन हमर रहतै रूसल दुखी
राति जागल रहत सजना पाती लिखब
देशमे छी " नवल " चाहे परदेसमे
मोन तागल रहत सजना पाती लिखब
*फाइलातुन+मफाईलुन+मुस्तफइलुन / मात्रा क्रम : २१२२-१२२२-२२१२
(तिथि-२३.०६.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५९
लाजसँ लाल भेलौं अहाँ
आँचरिमे नुकेलौं अहाँ
सुनु धड़कै करेजा कते
सोझसँ कात भेलौं अहाँ
लाजसँ लोल दबने मुदा
आंखिसँ बाजि गेलौं अहाँ
कारी आंखि काजर सजल
जानसँ मारि देलौं अहाँ
सुनि "नवलक" सिनेहक गजल
जगके छोड़ि एलौं अहाँ
>बहरे मुक्तबिज/मात्रा क्रम :२२२१+२२१२
(तिथि:२२.०६.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
लाजसँ लाल भेलौं अहाँ
आँचरिमे नुकेलौं अहाँ
सुनु धड़कै करेजा कते
सोझसँ कात भेलौं अहाँ
लाजसँ लोल दबने मुदा
आंखिसँ बाजि गेलौं अहाँ
कारी आंखि काजर सजल
जानसँ मारि देलौं अहाँ
सुनि "नवलक" सिनेहक गजल
जगके छोड़ि एलौं अहाँ
>बहरे मुक्तबिज/मात्रा क्रम :२२२१+२२१२
(तिथि:२२.०६.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल
गजल-५८
नव बरखमे नव प्रतिज्ञा हम करै छी अहूँ करू
देहक सभ दुर्गुणक ह्त्या हम करै छी अहूँ करू
लोभक लोमड़ि द्वेषक दैता चुगली निंदा रीत भेलै
सभ कुरीतिक शुरू अवज्ञा हम करै छी अहूँ करू
निर्धनता अज्ञानक पसरल कारी राति डेराओन
जान-दीपसँ दूर अन्हरिया हम करै छी अहूँ करू
मैथिल छी त' मैथिली बाजू लाज किए संकोच कथीक
माए मैथिलीक मानक रक्षा हम करै छी अहूँ करू
मिथिलाक ओ गौरव पुनि चलू "नवल" आपस आनी
वैदेहीक सभ पूड़ सेहन्ता हम करै छी अहूँ करू
>आखर - २० / (तिथि: १४.०४.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
नव बरखमे नव प्रतिज्ञा हम करै छी अहूँ करू
देहक सभ दुर्गुणक ह्त्या हम करै छी अहूँ करू
लोभक लोमड़ि द्वेषक दैता चुगली निंदा रीत भेलै
सभ कुरीतिक शुरू अवज्ञा हम करै छी अहूँ करू
निर्धनता अज्ञानक पसरल कारी राति डेराओन
जान-दीपसँ दूर अन्हरिया हम करै छी अहूँ करू
मैथिल छी त' मैथिली बाजू लाज किए संकोच कथीक
माए मैथिलीक मानक रक्षा हम करै छी अहूँ करू
मिथिलाक ओ गौरव पुनि चलू "नवल" आपस आनी
वैदेहीक सभ पूड़ सेहन्ता हम करै छी अहूँ करू
>आखर - २० / (तिथि: १४.०४.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५७
कौआ जँ कोइली बनि कूकत के कुचरत के देत सनेश
सभके मोजर सभक खगता अपना मे छै सभ विशेष
परतर गाम-शहरमे की अपन-अपन शोभा सभके
जतए रही से कर्मभूमि थिक देश कथी आ की परदेस
ठाढ़ केने छी हृदयक सीमा नेहक बखरा बाँट केलहुँ
अपने नै आनो सभ थूकत अपनामे जँ करब कलेश
क छोडू कर्त्तव्य बिसरलहुँ "अ" पढ़लौं अधिकार अबैए
कर्मठतामे सभसँ पाछू अगुआ बनि जे दए उपदेश
एक चुनावक खेल छै सभटा एक बेर बस कुर्सी चाही
एक घोटाला हमरो नामे हमहूँ रंकसँ बनब नरेश
एहन व्यवस्था देख रहल छी लोकतंत्रमे आब "नवल"
ककरो भूखे अंतरी सटकल किओ करैए खूब निंघेष
>आखर - २२ (तिथि: १५.०३.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
कौआ जँ कोइली बनि कूकत के कुचरत के देत सनेश
सभके मोजर सभक खगता अपना मे छै सभ विशेष
परतर गाम-शहरमे की अपन-अपन शोभा सभके
जतए रही से कर्मभूमि थिक देश कथी आ की परदेस
ठाढ़ केने छी हृदयक सीमा नेहक बखरा बाँट केलहुँ
अपने नै आनो सभ थूकत अपनामे जँ करब कलेश
क छोडू कर्त्तव्य बिसरलहुँ "अ" पढ़लौं अधिकार अबैए
कर्मठतामे सभसँ पाछू अगुआ बनि जे दए उपदेश
एक चुनावक खेल छै सभटा एक बेर बस कुर्सी चाही
एक घोटाला हमरो नामे हमहूँ रंकसँ बनब नरेश
एहन व्यवस्था देख रहल छी लोकतंत्रमे आब "नवल"
ककरो भूखे अंतरी सटकल किओ करैए खूब निंघेष
>आखर - २२ (तिथि: १५.०३.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५६
लोभ छोडू द्वेष भागत
नेह बाँटू नीक लागत
सच जँ बाजब मान भेटत
फूसिकें सभ लोल दागत
मैथिली भाषा अपन अछि
मैथिलक बड़ पैघ तागत
एकता मैथिल जँ राखब
सुतल मिथिला फेर जागत
फेर हँसती मैथिली माँ
नवल नव-विश्वास जागत
*फाइलातुन+फाइलातुन / मात्राक्रम-२१२२+२१२२
(तिथि-१३.०३.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
लोभ छोडू द्वेष भागत
नेह बाँटू नीक लागत
सच जँ बाजब मान भेटत
फूसिकें सभ लोल दागत
मैथिली भाषा अपन अछि
मैथिलक बड़ पैघ तागत
एकता मैथिल जँ राखब
सुतल मिथिला फेर जागत
फेर हँसती मैथिली माँ
नवल नव-विश्वास जागत
*फाइलातुन+फाइलातुन / मात्राक्रम-२१२२+२१२२
(तिथि-१३.०३.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५५
माथसँ घोघ ससरल जाए
चन्ना लाजहि सकुचल जाए
कजरायल नैना मधुशाला
मातल मोन बह्सल जाए
रूपक जालमे ओझराएल
बाट बटोही बिसरल जाए
माथक टिकुली ठोढ़क लाली
देखि अयना चनकल जाए
हाथक चूड़ी कंगना खनकै
सौंस करेजा दरकल जाए
आंखिसँ पीलौं "नवल" नेह जे
सगरो देह पसरल जाए
>आखर-११ (तिथि-२५.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
माथसँ घोघ ससरल जाए
चन्ना लाजहि सकुचल जाए
कजरायल नैना मधुशाला
मातल मोन बह्सल जाए
रूपक जालमे ओझराएल
बाट बटोही बिसरल जाए
माथक टिकुली ठोढ़क लाली
देखि अयना चनकल जाए
हाथक चूड़ी कंगना खनकै
सौंस करेजा दरकल जाए
आंखिसँ पीलौं "नवल" नेह जे
सगरो देह पसरल जाए
>आखर-११ (तिथि-२५.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५६
लोभ छोडू द्वेष भागत
नेह बाँटू नीक लागत
सच जँ बाजब मान भेटत
फूसिकें सभ लोल दागत
मैथिली भाषा अपन अछि
मैथिलक बड़ पैघ तागत
एकता मैथिल जँ राखब
सुतल मिथिला फेर जागत
फेर हँसती मैथिली माँ
नवल नव-विश्वास जागत
*फाइलातुन+फाइलातुन / मात्राक्रम-२१२२+२१२२
(तिथि-१३.०३.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
लोभ छोडू द्वेष भागत
नेह बाँटू नीक लागत
सच जँ बाजब मान भेटत
फूसिकें सभ लोल दागत
मैथिली भाषा अपन अछि
मैथिलक बड़ पैघ तागत
एकता मैथिल जँ राखब
सुतल मिथिला फेर जागत
फेर हँसती मैथिली माँ
नवल नव-विश्वास जागत
*फाइलातुन+फाइलातुन / मात्राक्रम-२१२२+२१२२
(तिथि-१३.०३.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
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पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५५
माथसँ घोघ ससरल जाए
चन्ना लाजहि सकुचल जाए
कजरायल नैना मधुशाला
मातल मोन बह्सल जाए
रूपक जालमे ओझराएल
बाट बटोही बिसरल जाए
माथक टिकुली ठोढ़क लाली
देखि अयना चनकल जाए
हाथक चूड़ी कंगना खनकै
सौंस करेजा दरकल जाए
आंखिसँ पीलौं "नवल" नेह जे
सगरो देह पसरल जाए
>आखर-११ (तिथि-२५.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५४
अनकर कहल मानब कते
खा-खा ठेस कानब कते
बस किछु दिनक जिनगी त' नै
दिन जिनगीक गानब कते
छोडू पुरनका राग सभ
ऐ सिट्ठीसँ र'स छानब कते
बिनु साधनक की साधना
थूकसँ सातु सानब कते
चाही अपन अधिकार जे
माँगू "नवल' ठानब कते
>बहरे मुक्तबिज/मात्रा क्रम : २२२१-२२१२
(तिथि-१७.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
अनकर कहल मानब कते
खा-खा ठेस कानब कते
बस किछु दिनक जिनगी त' नै
दिन जिनगीक गानब कते
छोडू पुरनका राग सभ
ऐ सिट्ठीसँ र'स छानब कते
बिनु साधनक की साधना
थूकसँ सातु सानब कते
चाही अपन अधिकार जे
माँगू "नवल' ठानब कते
>बहरे मुक्तबिज/मात्रा क्रम : २२२१-२२१२
(तिथि-१७.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५३
जे बुड़िबक छल अलबत यौ
तकरे भेटल बहुमत यौ
जनता फेर ठकेलै सभ
गेलै व्यर्थहि जनमत यौ
धन जनताक लुटा रहलै
जनतो छै चुप सहमत यौ
शोषण पाँच बरख चलतै
जनता कानत कलपत यौ
धर्मक दैत दुहाई ओ
जे नहि धर्मसँ अवगत यौ
नेता बनल कतेको कहि
दुर्दिन देशक बदलत यौ
लागै गप्प "नवल" एहन
टिटही टेकल पर्वत यौ
*मफऊलातु + मफाईलुन / मात्राक्रम-२२२१+१२२२
(तिथि-१३.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
जे बुड़िबक छल अलबत यौ
तकरे भेटल बहुमत यौ
जनता फेर ठकेलै सभ
गेलै व्यर्थहि जनमत यौ
धन जनताक लुटा रहलै
जनतो छै चुप सहमत यौ
शोषण पाँच बरख चलतै
जनता कानत कलपत यौ
धर्मक दैत दुहाई ओ
जे नहि धर्मसँ अवगत यौ
नेता बनल कतेको कहि
दुर्दिन देशक बदलत यौ
लागै गप्प "नवल" एहन
टिटही टेकल पर्वत यौ
*मफऊलातु + मफाईलुन / मात्राक्रम-२२२१+१२२२
(तिथि-१३.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५२
मिथिलोमे रहल नै बास मैथिलीकें
टूटल जा रहल छै आश मैथिलीकें
कहियो मैथिली नै हिचकि-हिचकि कानल
देखू पलटि सभ इतिहास मैथिलीकें
चन्दा अमर यात्री सदति सभ शरणमे
विद्यापति सनक छल दास मैथिलीकें
सभके ठाम देलौं भेल मान सभके
भेटल अछि किए वनवास मैथिलीकें
बाजब-पढ़ब सदिखन मैथिली लिखब हम
जागत "नवल" पुनि विश्वास मैथिलीकें
>मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२१२२
(तिथि: ०५.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
मिथिलोमे रहल नै बास मैथिलीकें
टूटल जा रहल छै आश मैथिलीकें
कहियो मैथिली नै हिचकि-हिचकि कानल
देखू पलटि सभ इतिहास मैथिलीकें
चन्दा अमर यात्री सदति सभ शरणमे
विद्यापति सनक छल दास मैथिलीकें
सभके ठाम देलौं भेल मान सभके
भेटल अछि किए वनवास मैथिलीकें
बाजब-पढ़ब सदिखन मैथिली लिखब हम
जागत "नवल" पुनि विश्वास मैथिलीकें
>मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२१२२
(तिथि: ०५.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५१
एलै घोर कलयुग हरत अन्हार के
सभटा बदलि गेलै नियम संसारकें
पछ्बा रीत अबिते भेल सभकिछु खतम
चरित्र के हनन आ पतन संस्कारकें
साहित्येसँ छै शोभा समाजक अपन
साहित्यक त' काजे सृजन श्रृंगारकें
बिलटत सभ कला सेहो कलाकार सन
भेटत मान जाधरि नै कलाकारकें
मायसँ मोह आ ने मातृभूमिसँ मुदा
सभ बैसल करू गप अपन अधिकारकें
बाजब "नवल" हमहूँ बेर एतै जहन
सय सोनारकें आ एक लोहारकें
>बहरे कबीर/मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२२१२
(तिथि: ०२.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री
एलै घोर कलयुग हरत अन्हार के
सभटा बदलि गेलै नियम संसारकें
पछ्बा रीत अबिते भेल सभकिछु खतम
चरित्र के हनन आ पतन संस्कारकें
साहित्येसँ छै शोभा समाजक अपन
साहित्यक त' काजे सृजन श्रृंगारकें
बिलटत सभ कला सेहो कलाकार सन
भेटत मान जाधरि नै कलाकारकें
मायसँ मोह आ ने मातृभूमिसँ मुदा
सभ बैसल करू गप अपन अधिकारकें
बाजब "नवल" हमहूँ बेर एतै जहन
सय सोनारकें आ एक लोहारकें
>बहरे कबीर/मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२२१२
(तिथि: ०२.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-५०
जिनगी भरि बस व्यर्थक चिंता
मरितहुँ लागल स्वर्गक चिंता
अन्नक खगल छै निर्धन चिंतित
करए धनिकहो अर्थक चिंता
पहिलुक भेटिते दसकें ललसा
दस पुरिते शुरू शतकक चिंता
बहुअक छथि बिआहल सभ मारल
काँचकुमारकें घटकक चिंता
आशा फ'रक सभके छै लागल
ककरो "नवल" नै कर्मक चिंता
*मात्रा क्रम: २२२+१२२+२२२
(तिथि-३१.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
जिनगी भरि बस व्यर्थक चिंता
मरितहुँ लागल स्वर्गक चिंता
अन्नक खगल छै निर्धन चिंतित
करए धनिकहो अर्थक चिंता
पहिलुक भेटिते दसकें ललसा
दस पुरिते शुरू शतकक चिंता
बहुअक छथि बिआहल सभ मारल
काँचकुमारकें घटकक चिंता
आशा फ'रक सभके छै लागल
ककरो "नवल" नै कर्मक चिंता
*मात्रा क्रम: २२२+१२२+२२२
(तिथि-३१.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-४९
हुनका संग लिअ' बढू आगाँ जे छथि अभियानक पक्षमे
चलू करै छी नव पहल पुनि नव-क्रांतिक उपलक्षमे
नमन करैत छी हुनका जे संग चलथि बनि सहभागी
हुनको भ्रम के दूर करब जे सभ छथि ठाढ़ विपक्षमे
चलू करी अनुपालन हुनकर जे छथि ज्ञानक अगुआ
पछुवाएल छथि जे अज्ञाने तनिको आनब समकक्षमे
कर्मठ छै जे कर्मभूमिमे हारत-जीतत हएत सफल
ओ की जानै मोल एकर जे बस गप छाँटै सूतल कक्षमे
"नवल" नाच नै आबै जकरा तकरा लै सभ अंगने टेढ़
घुरबाक लूरि ने जकरा से त्रुटि तकबे करतै अक्षमें
*आखर-२२ (तिथि-३०.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
हुनका संग लिअ' बढू आगाँ जे छथि अभियानक पक्षमे
चलू करै छी नव पहल पुनि नव-क्रांतिक उपलक्षमे
नमन करैत छी हुनका जे संग चलथि बनि सहभागी
हुनको भ्रम के दूर करब जे सभ छथि ठाढ़ विपक्षमे
चलू करी अनुपालन हुनकर जे छथि ज्ञानक अगुआ
पछुवाएल छथि जे अज्ञाने तनिको आनब समकक्षमे
कर्मठ छै जे कर्मभूमिमे हारत-जीतत हएत सफल
ओ की जानै मोल एकर जे बस गप छाँटै सूतल कक्षमे
"नवल" नाच नै आबै जकरा तकरा लै सभ अंगने टेढ़
घुरबाक लूरि ने जकरा से त्रुटि तकबे करतै अक्षमें
*आखर-२२ (तिथि-३०.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
खोजबीनक कूट-शब्द:
गजल,
पंकज चौधरी (नवलश्री)
गजल
गजल-४८
प्रीत बनि क' हियामे रहबे करब हम
बनि नेह शोणितमे बह्बे करब हम
वेग मोडू बसातक हमर पएर छोडू
बसातक संगे-संग बहबे करब हम
किए बिसरैमे लागल छी हमरा अनेरे
छाँह बनि अहाँ संग रहबे करब हम
नै बुझलहुँ अहीं त' दोख अनकर कथी
ई तिरस्कारक तीर सहबे करब हम
छै किछु दिन लेल जिनगी तकर मोहे की
रेतीक भवन बनि ढहबे करब हम
मिठ लागत की क'रू तकर परवाह नै
जे सच छै उचित छै कहबे करब हम
अहाँ घोंटी गरल बूझि की पीबी सुधा कहि
"नवल" नेह-छाल्ही त' मह्बे करब हम
*आखर-१६ (तिथि: २८.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
प्रीत बनि क' हियामे रहबे करब हम
बनि नेह शोणितमे बह्बे करब हम
वेग मोडू बसातक हमर पएर छोडू
बसातक संगे-संग बहबे करब हम
किए बिसरैमे लागल छी हमरा अनेरे
छाँह बनि अहाँ संग रहबे करब हम
नै बुझलहुँ अहीं त' दोख अनकर कथी
ई तिरस्कारक तीर सहबे करब हम
छै किछु दिन लेल जिनगी तकर मोहे की
रेतीक भवन बनि ढहबे करब हम
मिठ लागत की क'रू तकर परवाह नै
जे सच छै उचित छै कहबे करब हम
अहाँ घोंटी गरल बूझि की पीबी सुधा कहि
"नवल" नेह-छाल्ही त' मह्बे करब हम
*आखर-१६ (तिथि: २८.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
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पंकज चौधरी (नवलश्री)
बाल गजल
बाल गजल-२४
दू टा बस सोहारी चाही
माँ कम्मे तरकारी चाही
पुरना छिपलीमे नै खेबौ
हमरो नवका थारी चाही
हमहूँ जेबै इसकुल बाबू
पूरा सभ तैयारी चाही
हाटसँ आनू पोथी-बस्ता
मौजा-जूता कारी चाही
इसकूलक जलखैमे हलुआ
पूरी आ तरकारी चाही
छीटब बीया गाछो रोपब
आँगन लग फुलवारी चाही
"नवल"सँ नै हम लट्टू माँगब
हमरो कठही गाड़ी चाही
>मात्रा क्रम : आठ टा दीर्घ सभ पांतिमे
(तिथि-२२.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
दू टा बस सोहारी चाही
माँ कम्मे तरकारी चाही
पुरना छिपलीमे नै खेबौ
हमरो नवका थारी चाही
हमहूँ जेबै इसकुल बाबू
पूरा सभ तैयारी चाही
हाटसँ आनू पोथी-बस्ता
मौजा-जूता कारी चाही
इसकूलक जलखैमे हलुआ
पूरी आ तरकारी चाही
छीटब बीया गाछो रोपब
आँगन लग फुलवारी चाही
"नवल"सँ नै हम लट्टू माँगब
हमरो कठही गाड़ी चाही
>मात्रा क्रम : आठ टा दीर्घ सभ पांतिमे
(तिथि-२२.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
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बाल गजल
बाल गजल-२३
दीदी जँ चढ़ि गेल कनहा-गाछी चट द' रूसल कोरा लए
चुल्लरि भेटिते दोसर बहन्ना कानल आब कटोरा लए
झिल्ली-कचरी घिरनी-फुकना बाबू गेलनि हाटसँ आनए
साइकिलक घंटी बजिते दौगल दलान पर झोड़ा लए
बैसल सभ झोड़ा घेरने अपन-अपन अनमाना लेल
जे अनूप से बाँटि क' खेलक बँझि गेल मारि अंगोरा लए
आँगन नीपल अरिपन पाड़ल आइ फेर छै पूजामानी
आसन परमे त' पंडितजी बैसल ओ औनेलै बोरा लए
घड़िघंटा आ शंख बाजि गेल चौरठ आ परसादी भेटतै
"नवल" नञि लेतै एकटा लड्डू मुँह फुलेलक जोड़ा लए
*आखर-२२ (तिथि-१४.०२.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
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सोमवार, 24 जून 2013
गजल
गजल
हम हाल की कहौँ आब बेहाल अछि
बड्ड कठिनसँ बीतल ई साल अछि
जानि नै मृत्यु हाएत केहन हमर
जीबैत जिनगी बनल जंजाल अछि
भ्रष्ट्राचारक गप्प जुनि करु भाइ यौ
नेता अफसर घूसलऽ नेहाल अछि
खूब मजा करु जा धरि अछि जिनगी
काल्हि लऽ जेबाले बैसल उ काल अछि
साँच बाजनिहार नै अछि कोनो ठाम
यौ फूसिक व्यापारमे बड्ड माल अछि
कलपै कानै भीतरे भीतर 'मुकुन्द'
प्रेममे सभक होएत ई हाल अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 14
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
हम हाल की कहौँ आब बेहाल अछि
बड्ड कठिनसँ बीतल ई साल अछि
जानि नै मृत्यु हाएत केहन हमर
जीबैत जिनगी बनल जंजाल अछि
भ्रष्ट्राचारक गप्प जुनि करु भाइ यौ
नेता अफसर घूसलऽ नेहाल अछि
खूब मजा करु जा धरि अछि जिनगी
काल्हि लऽ जेबाले बैसल उ काल अछि
साँच बाजनिहार नै अछि कोनो ठाम
यौ फूसिक व्यापारमे बड्ड माल अछि
कलपै कानै भीतरे भीतर 'मुकुन्द'
प्रेममे सभक होएत ई हाल अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 14
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
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Bal Mukund Pathak
गजल
गजल
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
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रविवार, 23 जून 2013
गजल
गजल @ कुन्दन कुमार कर्ण
जीनगी एक वरदान छी
र्इश्वरक देलहा दान छी
सोच राखू नम्हर मोनमें
जीनगी सुनर सम्मान छी
हटिक नै, डटिक जियबै जखन
जीनगी तखन गूमान छी
खेल बूझब जखन एकरा
जीनगी तखन आसान छी
कर्म पथपर चलू नित समय
कर्म मानवक पहिचान छी
बाट बाटपर बूझी चलू
जीनगी एकटा ज्ञान छी
कथन 'कुन्दन' कहैछै अपन
जीनगी दू दिनक चान छी
२१२-२१२-२१२ (फाइलुन-तीन बेर)
बहरे-मुतदारिक
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© www.facebook.com/kundan.karna
जीनगी एक वरदान छी
र्इश्वरक देलहा दान छी
सोच राखू नम्हर मोनमें
जीनगी सुनर सम्मान छी
हटिक नै, डटिक जियबै जखन
जीनगी तखन गूमान छी
खेल बूझब जखन एकरा
जीनगी तखन आसान छी
कर्म पथपर चलू नित समय
कर्म मानवक पहिचान छी
बाट बाटपर बूझी चलू
जीनगी एकटा ज्ञान छी
कथन 'कुन्दन' कहैछै अपन
जीनगी दू दिनक चान छी
२१२-२१२-२१२ (फाइलुन-तीन बेर)
बहरे-मुतदारिक
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कुन्दन कुमार कर्ण,
गजल
मंगलवार, 4 जून 2013
गजल
गजल
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नजरिमें नजरि तऽ मिलाक देखू
दीप नेहके तऽ जराक देखू
दिल अखन कली अछि प्रिय अहाँकें
ओ कली अहाँ तऽ खिलाक देखू
चेहरा अहाँक चमैक जेतै
आँखिमें अहाँ तऽ बसाक देखू
दोहराक भेटत नहि जवानी
मोनमें उमंग जगाक देखू
बरसि पडत सावन जीनगीमें
हमर लेल रूप सजाक देखू
२१२-१२११२-१२२
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© कुन्दन कुमार कर्ण
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कुन्दन कुमार कर्ण,
गजल
रविवार, 2 जून 2013
गजल
हम जँ पीलहुँ शराबी कहलक जमाना
टीस नै दुख करेजक बुझलक जमाना
भटकलहुँ बड्ड
भेटेए नेह मोनक
देख मुँह नै करेजक सुनलक जमाना
लिखल कोना कहब की की अछि कपारक
छल तँ बहुतो मुदा सभ छिनलक जमाना
दोख नै हमर नै ककरो आर कहियौ
देख हारैत हमरा
हँसलक जमाना
दर्द जे भेटलै बूझब नै कनी 'मनु'
आन अनकर कखन दुख जनलक जमाना
(बहरे असम, मात्रा क्रम :
२१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
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जगदानन्द झा 'मनु'
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