उधियाइत बसात चुप्पे रहू
पदुराइत बसात चुप्पे रहू
चारू दिस पसरि रहल छै धुआँ
उड़िआइत बसात चुप्पे रहू
कुंठा खूब लहलहाइत रहल
किकिआइत बसात चुप्पे रहू
मुस्काएत ओ अहूँपर कने
ठिठिआइत बसात चुप्पे रहू
उठतै घोघ बस कने कालमे
चकुआइत बासत चुप्पे रहू
सभ पाँतिमे 2221+ 2122+12 मात्राक्रम अछि।
ई गजल अनचिन्हार आखरमे सरल वार्णिक बहरमे प्रकाशित भेल अछि।
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