"जनकपुर ललित कला
प्रतिष्ठान" द्वारा बर्ख 2013 (दिस.मे)
श्री राम भरोस
कापड़ि "भ्रमर"जीक
कथितजल संग्रह- "अन्हरियाक चान" प्रकाशित भेल अछि। पोथीक
भूमिकामे भ्रमरजी स्वीकार करै छथि
जे गजलक व्याकरणपर ओ गजल नै
लिखने छथि संगे-संग ओ
समीक्षककेँ सेहो हिदायत देने छथिन्ह जे ओ
व्याकरणक तराजूपर ऐ गजल
सभकेँ नै तौलतथि। एकर मने ई
भेल जे भ्रमरजी अपने मानै छथि
जे हुनक गजल
"अजाद गजल " आ
समीक्षक तँ अजाद
गजलक समीक्षा करबाक लेल
स्वतंत्र छथि। संगे-संग भ्रमरजी भूमिकाक समीक्षा करबाक लेल
कोनो प्रतिबंध नै लगेने
छथि तँए समीक्षक भूमिकाक समीक्षा करबाक लेल
सेहो स्वतंत्र छथि।ओना
भ्रमरजी
गजलमे
व्याकरणक
मजूगत
स्थितिसँ
परिचित
छथि
आ
तँए
ओ
अपन
सीमाकेँ
देखार
केलाह
जे
की
स्वागत
योग्य
गप्प
अछि।
तँ
चलू
शुरू
करी
भ्रमरजीक
अजाद
गजलक
समीक्षा
आ
तकर
बाद
हिनकर
भूमिकापर।
अजाद
गजलक
कान्सेप्ट---
जखन
कोनो
भाषामे
कोनो
खास
विधाकेँ
करीब
500-600 बर्ख
भ'
जाइत
छै
तखन
ओइमे
परिवर्तन
जरूरी
भ'
जाइत
छै।
उर्दू
गजलकेँ
(जँ
भारतीय
फारसी
गजलकेँ
जोड़ि
देखी
तँ)
करीब
500-600 बर्ख
भेल
छै
तँए
1960-70केँ
दशकमे
उर्दूमे
अजाद
गजल
आएल।
एकर
मतलब
कहल
गेलै
जे
गजलमे
बहर
कोनो
जरूरी
नै
हँ
काफिया
भेनाइ
आवश्यक
अछि
( बिना
रदीफकेँ
सेहो
गजल
होइ
छै
से
धेआन
राखब
जरूरी)। ओनाहुतो
बिना
काफियाकेँ
गजल
नै
होइत
छै
से
सभ
जनै
छथि।
जँ
ऐ
अधारपर
देखी
तँ
भ्रमरजी
बहुत
रास
कथित
गजल
फेल
भ'
जाइत
अछि
मने
भ्रमरजीक
कथित
अजाद
गजल
सेहो
अजाद
गजल
कहबा
योग्य
नै
अछि।
किछु
उदाहरण
देखू--
पोथीक
पहिल
कथित
अजाद
गजलक
पहिल
दू
पाँति
एना
अछि---
ई
जनक
केर
नगरी
अपन
गाम
थिक
ई
मिथिला
बैदेहीक
अपन
गाम
थिक
मने
काफिया
गायब।
जँ
काफिया
गाएब
तँ
तँ
गजल
नाम्ना
विधे
गाएब।
खएर
एहन-एहन दोष ऐ पोथीक गजल संख्या -4,5,6,9,12,14,20,22,23,24,28,29,32,33,34,35,36,39,41
मे
भेटत।
ओना
आन
गजलमे
किछु
ढ़ग
तँ
छै
जकरा
काफिया
नै
बल्कि
तुकांत
कहब
बेसी
समीचीन।
ईहो
मोन
राखब
जरूरी
जे
ऐ
पोथीमे
कुल
44टा
गजल
अछि।
जँ
हम
नेपालीय
परिसरक
हिसाबसँ
ऐ
पोथीकेँ
देखी
तँ
हमरा
ई
कहबामे
कोनो
संकोच
नै
जे
राजेन्द्र
विमल
जीक
गजलकेँ
अजाद
गजलक
श्रेणीमे
तँ
राखल
जा
सकैए
मुदा
भ्रमरजीक
गजल
तँ
अजादो
गजलमे
स्थान
पेबाक
योग्य
नै
अछि।
सोंझ
तरहें
कही
तँ
भ्रमरजीक
ऐ
पोथीमे
संकलित
सभ
रचना
आन
विधा
तँ
भ'
सकैए
मुदा
गजल,
कथित
गजल
वा
अजाद
गजल
केखनो
नै
भ'
सकैए।
मुदा
जत'
भ्रमरजी
अपन
गजल
महँक
दोष
स्वीकार
करबाक
हिम्मति
राखै
छथि
ओतए
विमलजी
अपन
गलतीकेँ
स्वीकार
करबासँ
हिचकै
छथि।ई
चारित्रिक
अंतर
दूनू
गोटमे
छनि
से
जिनगी
भरि
रहतनि
तकर
कोनो
गारंटी
हमरा
लग
नै
अछि।
तँ
आउ
आब
पोथीक
भूमिकापर—
चूँकि
व्याकरणपर
हमरा
नै
जेबाक
अछि
तँ
देखू
भ्रमरजीक
किछु
बिंदु--
1)
भ्रमरजी
अपन
भूमिकामे
लिखै
छथि
जे
" हमरा
एखनो
धरि
पना
नै
अछि,
हम
कतेक
गजल
लिखने
छी।
साढ़े
चारि
दशकक
साहित्यिक
यात्रामे
कतेको
गजल
लिखाएल
हएत...."
यौजी
सरकार,
जखन
अहाँकेँ
अपने
गजलक
संख्याक
बारेमे
नै
बूझल
अछि
तखन
घर-आँगन, स'र-समाज, देश-विदेशक
आँकड़ाक
संबंधमे
अहाँकेँ
की
बूझल
हएत।
भ्रमरजीक
उपरोक्त
कथन
मात्र
दंभ
भरबाक
लेल
अछि।
मनुख
मात्र
सभ
चीजक
हिसाब-किताब रखैए। भ्रमरजी
सेहो
रखने
हेता
मुदा
हिनका
तँ
अपना-आपकेँ सुपरमैन
कहेबाक
छनि
तँ
लगा
देलखिन
अज्ञात
संख्याकेँ
जोर
जे
हमरा
अपन
गजल
संख्या
तँ
पते
नै
अछि
मने
एते
लिखलहुँ
जे.......................
मोन
पाड़ू
आइसँ
30
बर्ख
पहिने
धरि
जड़ल
जुन्ना
सन
ऐंठल
दू-चारि बिग्घा
खेत
बला
सभ
सेहो
कहै
छलै
जे
हमरा
तँ
अपन
खेतो
ठीकसँ
नै
देखल
अछि।
मिला
लिअ
भ्रमरजीक
विचार।
2)
भ्रमर
जी
फेर
ओहीमे
लिखै
छथि
जे
" एहि
बीच
हमरा
मोनमे
आएल
जे
गजल
जे
काव्यविधामे
बेछप
रूपें
रहेत
अछि.............."
यौजी
सरकार
की
ब्रम्ह
बाबा
रातिमे
अहाँकेँ
सपना
देला
जे
उठ
बच्चा
काव्य
गगनमे
गजले
टा
बेछप
विधा
छै।
आ
जँ
सत्ते
सपना
आएल
तँ
पहिने
किएक
ने
आएल।
ऐ
पोथीमे
सभसँ
आपत्तिजनक
बात
ई
अछि
जे
प्रस्तुत
पोथीमे
"बाल-गजल" तँ संकलित
अछि
मुदा
बाल
गजलक
संदर्भमे
कोनो
चर्चा
नै
बेटैत
अछि।
ज्ञात
हो
कि
मात्र
2012सँ
मैथिली
बाल
गजल
शब्दावली
प्रचलित
अछि।
अनचिन्हार
आखर
ओ
विदेहक
संयुक्त
प्रयासक
प्रतिफलन
अछि
ई
बाल
गजल
मुदा
भ्रमर
जी
बाल
गजलक
संबंधमे
कोनो
चरचा
नै
केने
छथि।
जेना
चरचा
केलासँ
छोट
भ'
जेता
तेना।
ओनाहुतो
हम
ऐ
प्रसंगकेँ
अनचिन्हार
आखर
ओ
विदेहक
लोकप्रियतासँ
जोड़ि
क'
देखैत
छी।
ओना
भ्रमरजी
प्रस्तुत
पोथीक
बाल
गजलकेँ
तेना
सेट
केने
छथि
भूमिकाक
संदर्भमे
जेना
बुझाइत
हो
जे
ओ
मिथिला-मिहिरेक
जमानासँ
बाल
गजल
लिखैत
होथि।
इतिहासकेँ
भ्रमित
करैत
ई
पोथी
केक
सफल
हएत
से
कहब
मोश्किल।
हँ
एतेक
कहब
कोनो
मोश्किल
नै
जे
ई
पोथी
मात्र
राजेन्द्र
विमलजीक
प्रतिद्वंदितामे
निकलल
अछि।
आ
मात्र
ऐ
दुआरे
जे
नेपालमे
विमल
जीक
बाद
हमरे
नाम
हुअए।
ओना
हमरा
ई
कहबामे
कोनो
दिक्कत
नै
जे
विमलजीक
पोथी
नीक
छनि
भ्रमरजीक
अपेक्षामे।
जे
पाठककेँ
ई
पोथी
पढ़बाक
इच्छा
हो
से
ऐ
लिंकपर
आबि
क'
पढ़ि
सकैत
छथि--
https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Bhramar_Gajal.pdf?attredirects=0&d=1
तकरा
बाद
भ्रमरजीकेँ
साहसकेँ
धन्यवाद
दिऔन
कारण
ओ
स्वयं
ऐ
पोथीक
पी.डी.एफ उपल्बध
करेने
छथि।
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