एहि लाइलाज बेमारीक की हाल हेतै
इ स्वेछाचारी-चारणीक की दलाल हेतै
हरेक समय बितैए दुख आ दर्द मे
गरीब लेल नव पुरान की साल हेतै
नौकरी उड़िआ गेलै बालु जकाँ देश सँ
आब किएक केओ काज मे बहाल हेतै
अहुरिआ कटैत लोक डूबल नोर मे
ओ तँ नोरे पीबि मँगनी मे हलाल हेतै
धैरज धरु प्रतीक्षा करु अनचिन्हार
मरब तँ नीक जिनगी तँ जंजाल हेतै
**** वर्ण---------15********
मुझे मैथिली नहीं आती लेकिन ब्लॉग और रचनाएँ अच्छी लगीं - कुछ समझा भी - ग्रामीण अंचल की खुशुबू अलग ही होती है - पढ़कर सुकून मिला
जवाब देंहटाएंआशीषजी,
जवाब देंहटाएंअपनेक गज़ल हमरा अनचिनन्हा नहि बुझाए। आपबीती लागल। एक समय मे हमहु लिखने छलहुँ,
"दुखःक ठोर पर हँसी कोना भेटत ?’
जेकरा भाग्ये मे लिखल अछि दुख,
ओकरा खुशी कोना भेंटत ?
जे नहि बेचलक अपन आत्मा कें,
ओकरा नौकरी कोना भेंटत ??"