मालक खातिर तँ माल-जाल बनल लोक
देखाँउसक खातिर कंगाल बनल लोक
भूखक दर्द होइत छैक प्रकाशो सँ तेज
देखू पेटक खातिर दलाल बनल लोक
वृत तँ टूटल मिलल समानांतर रेखा
देखू बिनु कागजीक प्रकाल बनल लोक
सत्त-सत्त ने रहल ने रहल फूसि-फूसि
अपने लेल अपने जंजाल बनल लोक
उपर सँ गंगा घाट भीतर मोकामा घाट
एतए नुनिआएल देबाल बनल लोक
**** वर्ण---------16*****
बहुत सुन्दर गजल शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मेरे मित्र सवाई सिंह राजपुरोहित के जन्मदिन पर विशेष पोस्ट पर आपका स्वागत है ..