हमरा इ सूचित करैत बड्ड नीक लागि रहल अछि जे " अनचिन्हार आखर"द्वारा स्थापित पुरस्कार " गजल कमला-कोशी-बागमती-महानंदा" पुरस्कारक पहिल चरण ( मास जूनक लेल ) पूरा भए गेल अछि। मास जूनक लेल दीप नारायण "विद्यार्थी"क एहि रचना के चयन कएल गेलैन्हि अछि। हुनका बधाइ।
ग़ज़ल
घुस जाल-फरेब तिलक-दहेज़ उत्पिरण अत्याचार नहि बदलल
समूचा संसार बद्लिगेल आखिन धरि बिहार नहि बदलल
जाती-पांतिक भेद नहि बदलल समाजक आधार नहि बदलल
कोषिक धार बदलिगेल मित! जिवन धार नहि बदलल
महाभारत भेल"यातोधर्मस्तातो जय:"कहल जैत छै मुदा
छल-प्रपंच आ भाई-भाई मे वैमनास्यक बिचार नहि बदलल
हजारो द्रोपदी"दुःख हरहूँ द्वारिकानाथ"के रट लगौने छथि
आखी फारीक'देखियौंन करोड़ो पांडवक सुख-संसार नहि बदलल
सूरज नहि हम अन्हारक बिरोधी छी तें मन मे कचोट शेष अछि
पुर्निमाक रति पर"दीपक"आमावासयाक अन्हार नहि बदलल
बधाइ हुअए विद्यार्थी जी..
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