चुप्प रहत मनुख गिद्दर भुकबे करतैक
निर्जीव तुलसी चौरा कुकुर मुतबे करतैक
जँ केकरो वीरता सीमित रहि जाए गप्प धरि
तँ दुश्मनक लात छाती पर पड़बे करतैक
विद्रोह आ अधिकार के अधलाह के बुझनिहार
आइ ने काल्हि अपटी खेत मे मरबे करतैक
बसात पर बसात दैत रहू क्रांतिक आगि के
नहुँए-नहुँ सही कहिओ धुधुएबे करतैक
लिखैत रहिऔ विद्रोहक गजल अनचिन्हार
कहिओ तँ केओ ने केओ एकरा गेबे करतैक
**** वर्ण---------18*******
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