मछगिद्ध जँ माछ छोड़ए तँ डर मानबाक चाही
आदमी जँ नेता भए जाए तँ डर मानबाक चाही
बेसबा खाली देहे टा बेचैत छैक अभिमान नहि
लोक अस्वभिमानी हुअए तँ डर मानबाक चाही
सभ के छै बूझल शेर केखनो नहि खाएत घास
जँ बीर अँहिंसक बनए तँ डर मानबाक चाही
सीमा केर रक्षा करैत जे मरथि सएह बिजेता
माए बेचि जँ रण जितए तँ डर मानबाक चाही
सम्मानक रक्षा करब उद्येश्य अछि गजल केर
जँ ओकर उद्येश्य बिझाए तँ डर मानबाक चाही
**** वर्ण---------19*******
बहुत सही कह रहे हैं आप
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