खण्ड-2
गजल कोना कहल जाइत छैक? आब एहि प्रश्न पर चली। सभसँ पहिने जे
शाइरी सदिखन कहल जाइत छैक लिखल नहि (कारण अहाँ उपर पढ़ि चुकल छी)। आब अहाँ एकरा अरबी प्रकिया मानि
मूँह नहि घोकचा लेब। हिन्दु धर्मक चारू वेद
लिखल नहि कहल-सुनल गेल छैक। आ शाइरी सेहो वेदे जकाँ कहल जइत छैक। शाइरी विशुद्ध
रुपसँ उच्चारण पर निर्भर अछि (मुदा लिखित रूपक रक्षा करैत आ किछु छूट लैत)। तँए गजल
कहल जाइत छैक लिखल नहि (जाहि गजलमे कोनो प्रकारक नियम शैथिल्य वा छूट नै लेल जाइए तकरा
अहाँ “गजल लिखल छी” कहि सकै छियै)। मुदा विस्तृत विवरण देबासँ पहिने गजलमे प्रयुक्त
परिभाषिक शब्दावलीक संक्षिप्त परिचय प्राप्त करी--
1) लघु वा ह्रस्व लेल उर्दूमे लाम अक्षरक प्रयोग कएल जाइत छै।
लाम देवनागरीक “ल” वर्णक बराबर भेल। ई पहिल
छोट इकाइ भेल। देवनागरीक अ, इ, उ, ऋ, लृ आदि ह्रस्व स्वर भेल।
2) दीर्घ- एकरा उर्दूमे काफ कहल जाइत छै आ मैथिलीमे दीर्घ। काफ
सेहो उर्दूक अक्षर थिक आ ई देवनागरीक “क” वर्णक
बराबर छै।। देवनागरीक आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ. अं. अः आदि दीर्घ स्वर भेल। ई दोसर छोट
इकाइ भेल (एहि ठाम ईहो कहब उचित जे हम नुक्ताक प्रयोग नै करै छी आ उर्दूमे जे दूटा
काफ छै से एना लिखल जाइत छै.. काफ़, का़फ़। आब ई दीर्घ सूचक कोन काफ थिक से हमरो नै
पता)। भ' सकैए जे लाम आ काफ दूनू अक्षरक प्रयोग मात्र हल्लुक ओ भारी स्वरक जानकारी
लेल देल गेल हो जेना कि संस्कृतमे 'ल' लघु आ 'ग' गुरु केर सूचक अछि। एकै शब्दमे जँ
लघु केर बाद दोसरो लघु आबए तँ ओकरा दीर्घ मानि लेल जाइत छै (कोन-कोन अवस्थामे तकर विवरण
आगू बहरक प्रकरणमे भेटत)।
(एहिठाम 1 मने ह्रस्व आ 2 मने दीर्घ भेल।(केओ-केओ दीर्घ लेल +
आ लघु लेल - केर प्रयोग करै छथि। संस्कृतमे I दीर्घ
लेल आ U लघु लेल चिन्ह अछि।) लघु= ह्रस्व, दीर्घ =गुरु)।
3) जुज--लघु आ दीर्घकेँ आपसमे जोड़लासँ जुज बनैत छै ।
4) अज्जा- जुज केर बहुवचन अज्जा होइत छै।
5) रुक्न --कोनो मात्राक्रम केर शाब्दिक (मुदा अर्थहीन) नामकेँ
रुक्न कहल जाइत छै, जेना दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ लेल “फाइलुन”, ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ लेल “मफाईलुन” इत्यादि। रुक्न अज्जाक बहुवचन भेल संस्कृतमे
एकरा “यमाता”, “जगण”, “मगण” आदि सन बूझू।
6) अर्कान--रुक्न केर बहुवचन अर्कान भेल जेना-फाइलुन + मफाईलुन...इत्यादि।
7) बहर- अर्कानक संगठित आ निश्चित रुपकेँ बहर कहल जाइत छै। एकरा
मीटर सेहो कहल जाइत छै। जेना कोनो पाँतिमे फऊलुन (122) केर समान प्रयोगसँ बहरे मुतकारिब
बनैत छै।
8) शेर—एक-समान रदीफ आ भिन्न-भिन्न काफियासँ सजल दू पाँति जाहिमे
कोनो विचार एहन विचार जे ओही दूनू पाँतिमे शुरू भए खत्म भए जाइत हो एवं कोनो बहरसँ
युक्त हो शेर कहाबैत अछि। कतेको मैथिलीक विद्वान शेर मने चरण कहै छथि मुदा संस्कृत
परंपरानुसार पाद वा चरण मने पाँति भेलै।
9) मिसरा मने पाँति भेल
10) मिसरा-ए-उला --शेरक पहिल पाँतिकेँ मिसरा-ए-उला कहल जाइत
छै। ई पाँति कोनो तथ्यक स्थापना करैत छै।
11) मिसरा-ए-सानी शेरक दोसर पाँतिकेँ मिसरा-ए-सानी कहल जाइत
छै। अइ पाँतिसँ पहिल पाँतिक देल गेल तथ्यक समर्थन कएल जाइत छै।
12) अशआर--शेरक बहुवचन अशआर भेल।
13) गजल--मतला युक्त किछु शेरक संग्रह गजल कहाबैत अछि। गजलमे
अलग-अलग शेर होइत छै मुदा रदीफ आ काफियाक स्वर एवं बहर एकै हइत छै।
14) मतला- गजलक पहिल
शेर जाहि महँक दूनू पाँतिमे रदीफ आ काफिया हो तकरा मतला कहल जाइत छै। बिना रदीफ बला
गजलमे मतलाक दूनू पाँतिमे काफिया हेबाक चाही।
15) हुस्ने मतला- मतलाक बाद जँ दोसर मतला हो तकरा हुस्ने मतला
कहल जाइत छै। बहुत लोक हुस्ने मतलाकेँ मतला-ए-सानी सेहो कहैत छथि।
16) जँ हुस्ने मतलाक बादो मतला आबए तँ ओकरा मतला-ए-सालिस कहल
जाइत छै।
17) जँ मतला-ए-सालिसकेँ बाद मतला आबए तँ ओकरा मतला-ए-राबे कहल
जाइत छै। ऐकेँ बाद जे मतला अबे छै तकर आर नाम सभ छै मुदा हमरा पता नै अछि।
18) रदीफ- मतलाक दुनू पाँतिमे अंतसँ उभयनिष्ठ शब्द वा शब्द समूहकेँ रदीफ
कहल जाइ छै।
19) काफिया--मने स्वर साम्य युक्त तुकान्त चाहे ओ वर्णक स्वरसाम्य
हो की मात्राक स्वरसाम्य। रदीफसँ पहिने जे स्वर साम्य युक्त तुकान्त होइत छैक तकरा
काफिया कहल जाइत छैक। आ ई रदीफे जकाँ गजलक हरेक शेरक (मतला बला शेरकेँ छोड़ि) दोसर
पाँतिमे रदीफसँ पहिने अनिवार्य रुपें अएबाक चाही। काफिया दू प्रकारक होइत छैक (क) वर्णक
स्वरसाम्य आ (ख) मात्राक स्वरसाम्य। अइसँ बेसी वर्णन आगू काफियाक खंडमे भेटत।
20) गैर मुरद्फ गजल--जाहि गजलक मतलामे रदीफ नै हो तकरा गैर मुरद्फ गजल कहल जाइत छै। ऐ ठाम ई मोन राखू
जे बिना रदीफक तँ गजल भए सकैए मुदा बिना कफिया गजल नै हएत।
21) मकता- गजलक अंतिम शेर जाहिमे शाइर अपन नाम-उपनामक प्रयोग केने होथि तकरा “मकता” कहल जाइत छै।
आब अहाँ सभ बूझि सकै छिऐ जे ह्रस्व आ दीर्घ केर संयोगसँ जुज
बनैत छै, जुजसँ अज्जा, अज्जासँ रुक्न, रुक्नसँ अर्कान, अर्कानसँ बहर, कोनो एक रंगक
बहरसँ बनल दूटा पाँतिकेँ शेर कहल जाइत छै आ एक समान बहरक किछु शेरक समूहकेँ गजल कहल
जाइत छै।
22) एकटा कोनो गजलमे जे शेर सभसँ बेसी नीक आ प्रभावी होइत छै
तकरा हासिल-ए-गजल (हासिले गजल) कहल जाइत छै।
23) तक्तीह- मात्राक गिनती करब तक्तीह भेल। ऐसँ ई पता लगाएल जाइत छै जे कोनो
गजल बहरमे छै की नै।
24) वज्न --ओजन मने भार। कोनो शब्द वा पाँतिक मात्राक्रमकेँ
वज्न कहल जाइत छै।
25) अज्जा-ए-रुक्न--कोनो पाँतिकेँ रुक्नक हिसाबसँ तोड़ला पर अज्जा-ए -रुक्न भेटैत छै। जेना—
असगर जनम लेलहुँ असगरे जी रहल
ऐ पाँतिकेँ रुक्नक हिसाबें तोड़बै तँ” मफऊलातु-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
“भेटत (असगर जनम= मफऊलातु, लेलहुँ असग= मफऊलातु आ रे जी रहल = मुस्तफइलुन । मने ऐ पाँतिमे
तीनटा अज्जा-ए-रुक्न छै। (ई पाँति अमित मिश्रा जीक छन्हि)
26) कोनो शेरक दूनू पाँतिकेँ छह खण्डमे बाँटल जाइत छै--
a) सदर--पहिल पाँतिक पहिल खण्डकेँ सदर कहल जाइत छै। मने पहिल
पाँतिक शुरूआत सदर भेल।
b) हश्व--सदर केर बाद बला खण्डकेँ हश्व कहल जाइत छै। हश्व मने
विकास, वस्तुतः पाँतिमे निहित भावनाक विकास एही खण्डमे होइत छै।
c) अरूज--पहिल पाँतिक अन्तिम खण्डकेँ अरूज कहल जाइत छैक। अरुज
मने उत्कर्ष, वस्तुतः भावनाक उत्कर्ष एही खण्डमे हइत छै।
d) इब्तदा--शेरक दोसर पाँतिक पहिल खण्डकेँ इब्तदा कहल जाइत छै।
इब्तदा मने सेहो प्रारंभे होइत छै मुदा सदर आ इब्तदा दुन्नूमे ई अंतर छै जे सदर कोनो
विचार भए सकैए मुदा सदरक समर्थनमे आएल प्रारंभकेँ इब्तदा कहल जाइत छै।
e) हश्व--दोसर पाँतिक बिचलका भागकेँ पहिनेहे जकाँ हश्व कहल जाइत
छै।
f) जरब--दोसर पाँतिक अन्तिम खण्डकेँ जरब कहल जाइत छै। जरब मने
अन्त।
उदारहरण लेल अमित मिश्र जीक एकटा शेर देखू--
हमर मुस्की/सँ हुनका आ/गि लागल यौ (1222/1222/1222)
हुनक कनखी/सँ तऽरका आ/गि लागल यौ (1222/1222/1222)
हमर मुस्की--सदर
सँ हुनका आ --हश्व
गि लागल यौ--अरूज
हुनक कनखी--इब्तदा
सँ तरका आ--हश्व
गि लागल यौ--जरब
ई तँ छल तीन रुक्न बला शेर तँ मामिला फरिछा गेल मुदा कम-बेसी
रुक्न बला लेल एना मोन राखू--
1) जँ शेरक हरेक पाँतिमे दूटा रुक्न छै तँ ओहिमे हश्व नै होइत
छै खाली सदर, अरूज, इब्तदा आ जरब होइत छै।
2) जँ शेरक हरेक पाँतिमे तीनटा रुक्न छै तँ पूरा शेरमे दूटा
हश्व हेतै आ एक-एकटा सदर, अरूज, इब्तदा आ जरब हेतै। उपरका उदाहरण तीनेटा बला रुक्न
पर अछि।
3) जँ शेरक हरेक पाँतिमे चारिटा रुक्न छै तँ पूरा शेरमे चारिटा
हश्व हेतै आ एक-एकटा सदर, अरूज, इब्तदा आ जरब हेतै।
4) जँ शेरक हरेक पाँतिमे पाँचटा रुक्न छै तँ पूरा शेरमे छह टा
हश्व हेतै आ एक-एकटा सदर, अरूज, इब्तदा आ जरब हेतै।
5) जँ शेरक हरेक पाँतिमे छह टा रुक्न छै तँ पूरा शेरमे आठ टा
हश्व हेतै आ एक-एकटा सदर, अरूज, इब्तदा आ जरब हेतै।
एतेक देखलाक बाद ई बुझना जाइत अछि जे कोनो शेरक पहिल पाँतिक
पहिल रुक्न “सदर “भेल आ अंतिम रुक्न “अरुज “भेल आ बचल बीच बला रुक्नकेँ “हश्व “कहल
जाइत छै। तेनाहिते कोनो शेरक दोसर शेरक पहिल रुक्नकेँ “इब्तदा “कहल जाइत छै आ अंतिम
रुक्नकेँ “जरब “आ बीचमे बचल रुक्नकेँ “हश्व “कहल जाइत छै। आब एनाहिते एक पाँतिमे जतेक
रुक्न हो तकरा बाँटि सकै छी। मुदा शेरक ई बाँट बखरा मात्र वर्णवृत बलामे नै लागत। उदाहरण
लेल मानू जे अहाँ 2222112121 बला मात्रा क्रम
लेलहुँ। मुदा ई मात्रा क्रम किनको लेल 222-2112-121
भऽ सकैए आ ऐमे ओ तँ किनको लेल 22-2211-2121 सेहो भऽ सकैए । आब लोक घनचक्करमे पड़ता
जे ऐमे कोन तरहँसँ छह भागमे बाँटी। तँए हमर ई स्पष्ट मानब अछि जे जा धरि मैथिलीक अपन
निज मात्राक्रम नै हो ताधरि ई नियम मात्र अरबी बहरमे प्रचलित मात्राक्रम जेना122+122+122
वा 2122+2122+2122 आदि सभपर लागत। सरल वार्णिक बहरमे सेहो ई नियम नै लागत।
27) शाइरी- अशआर कहबाक प्रक्रियाकेँ शाइरी कहल जाइत छै।
28) शाइर--शाइरी करए बलाकेँ शाइर कहल जाइत छै। हिंदीमे शायर
कहल जाइत छै मुदा मूल रूपसँ “शाइर” छै मोन पाड़ू फिल्म “कभी-कभी” केर गीत “मैं पल दो
पल का शाइर हूँ” ।
29) मोशायरा--जतए शाइर सामूहिक रूपें श्रोताक सामने शाइरी कहैत
हो ओकरा मोशायरा कहल जाइत छै। मोशाइरामे गजल वा किछु कहबासँ पहिने मंचपति केर आज्ञा
लेल जाइत छै आ तकर बाद शाइर श्रोता वर्गकेँ कहै छथिन “समाद फरमाएँ” | ऐ “समाद फरमाएँ”
केर मैथिलीकरण “सुनल जाए” रूपमे भऽ सकैए। श्रोता वर्गसँ इरशाद-इरशाद केर ध्वनि संग
शाइर अपन रचनाक पाठ शुरु करै छथि। बेसी काल शाइर जखन पहिल पाँति पढ़ै छै तखन दोसर पाँति
कहबाक लेल “इरशाद-इरशाद” कहल जाइत छै आ दोसर पाँति पूरा होइते बाह-बाह। इरशाद केर मैथिलीकरण
“जरूर” भऽ सकैए (ओना जरूर सेहो अरबिए समूहक शब्द छै)। ऐठाम ई कहब बेसी जरूरी जे उर्दू
सभहक मोशयारामे काफिया खत्म होइते बाह-बाही शुरू भऽ जाइत छै आ तै लेल किछु मैथिल श्रोताकेँ
सिकाइत छनि जे पूरा नै सुनि पेलहुँ। मुदा धेआन देबाक बात ई छै जे काफियाक बाद तँ रदीफ
होइ छै जे की पूरा गजलमे एकै रहैत छै तँए काफियाक बादे बाह-बाही ओ सभ शुरू कऽ दैत छै।
मैथिलीमे एखन ऐ परंपराकेँ आबऽमे किछु दिन समय लगतै।
30) तहत आ तरन्नुम--मोशायरामे शाइर दू रूपें शाइरी पढ़ैत छथि।
पहिल भेल वाचन क्रिया द्वारा जेना कविता सुनाएल जाइत छै आ दोसर भेल गायन द्वारा। वाचन
प्रक्रियाकेँ “तहत “कहल जाइत छै आ गायन प्रक्रियाकेँ “तरन्नुम कहल जाइत छै। ओना भारतमे
सभसँ पहिने ॠगवेद भेलै जकर पाठ कए जाइत छलै मने तहत जकाँ बादमे सामवेद बनलै मने गेबा
योग्य मने तरन्नुम। ओना किछु अतिवादी “तहत” केँ नीक मानै छथि तँ किछु “तरन्नुम” केँ
मुदा हमर स्पष्ट मानब अछि जे मानव सदिखन विविधता चाहै छथि। मानव अपन मनोस्थितिकेँ हिसाबें
केखनो तहत बलापर बाह-बाह करै छथि तँ केखनो तरन्नुम बलापर । कहबाक मतलब जे एकै मानव मनोस्थिति बदलैत देरी पाठ भिन्नता सेहो
चाहै छै तँए तहत आ तरन्नुम केर झगड़ा हमरा हिसाबे बेकार। लक्ष्य मात्र रस, आनंद, परमानंद…
मोशायरामे तहत आ तरन्नुम दूनूमे सुनाएल शेरकेँ संचालक तहतमे
कहि कऽ बात श्रोता-दर्शक धरि दोबारा पहुँचाबै छै। ओना ई सत्य जे किछु शाइर तरन्नुम
केर नामपर चुटकुलाबाजीक प्रचलन कऽ रहल छथि जे की सर्वथा गलत अछि। तरन्नुम खराप नै तरन्नुम
केर नामपर किछु कऽ लेब से खराप भेल। जखन शाइर मोशायरामे अपन शेर सभ प्रस्तुत
करै छथि तखन दू तरहँक प्रतिक्रिया होइत छै श्रोता मध्य। पहिल तँ जँ श्रोताकेँ शेर नै
नीक लगलै तँ ओ चुपचाप सूनि लै छथि आ दोसर जे जँ श्रोताकेँ शेर नीक लगलै तँ ओ “बाह-बाह-बाह-बाह”
शब्द समूहसँ शाइरक मनोबल बढ़बै छथि। ओना ऐठाम ई कहब बेजाए नै जे उर्दू गजलक नीक-नीक
मोशायरा सभमे तालीक प्रचलन अछि मुदा पारंपरिक तौरपर बाह-बाह छै। ऐठाम आर किछु गप्प
जखन मोशायरामे नात वा मनकतब कहल जाइत छै तखन ताली आ बाह-बाह पूरा-पूरी निषिद्ध भऽ जाइत
आ तकरा बदलामे सुभान-अल्लाह केर उच्चारण होइत छै। ऐठाम ईहो बूझबाक गप्प थिक जे मोशयरामे
जखन नात पढ़ल जाइ छै तखन शाइरकेँ जँ श्रोता दिससँ पाइ वा अन्य धन भेटै तँ ओ मान्य छै
आ ओइमे कोनो आपत्ति नै मुदा गजल आ आन विधा कालमे कोनो शाइर एहन पाइ वा धन नै स्वीकारथि।
जँ स्वीकारता तँ ई नियमक विरुद्ध मानल जाइत छै। जे शेर नीक लागए आ अहाँ ओकरा दोबारा
सुनए चाहैत छी तँ ताहि लेल “फेरसँ कहू” एहन वाक्यक प्रयोग करू। उर्दूमे एकरा “मुकर्रर
“कहल जाइत छै मुदा मैथिलीमे” फेरसँ कहू” एहन वाक्यक प्रयोग हेतै। “दोसर बेर कहियौ”
वा “दोबारा कहियौ” एनाहुतो कहल जा सकैए।
31) इल्मे अरूज- मने अरबी छंद शास्त्र
32) अरूजी- मने अरबी छंद शास्त्रक ज्ञाता।
33) इस्लाह गुरु-शिष्य परंपराक
अंतर्गत शाइरी सिखनाइ। केखनो काल कोनो गजलकेँ अरूजीसँ ठीक कराएबकेँ इस्लाह सेहो कहल
जाइत छै। ओना मैथिलीमे साहित्यकार सभ अपन ज्ञानक पोटरी संदूकमे बान्हि कऽ धऽ दैत छथि
जे कहीं हमर ज्ञान दोसर लग नै चलि जाए। कुंठा एतेक जे ओ अपन संतानोकेँ ऐ ज्ञानसँ दूर
राखै छथि। मैथिलीक उल्टा इस्लाह परंपरामे बाप द्वारा गर्वपूर्वक संतान सभकेँ शाइरी
सिखाएल जाइत छलै आ छै।
34) सौती मोशायरा- ई मोशायरा साधारण मोशायरासँ अलग अछि। पहिने
बूझी जे ई सौती मोशयरा की थिक। अरबी-फारसी-उर्दूमे शाइर सभकेँ बहरक ट्रेनिंग लेल ई
सौती मोशायरा केर आयोजन कएल जाइत छै। ऐ मोशायरामे जे गजल देल जाइत छै ताहिमे अर्थकेँ
कोनो प्रधानता नै रहै छै बस खाली बहर, काफिया आ रदीफ रहबाक चाही। जेना की एकटा उदाहरण
देखू---
उठैए चलैए खसैए तँ ओ
हँसैए मरैए गबैए तँ ओ
छलै आब बुड़िबक बहुत सभ मुदा
हुनक पाँचटा सन लगैए तँ ओ
पहिने ऐ दूटा शेरक मात्रा क्रम देखी ई मात्रा क्रम अछि लघु-दीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घ
आब कने पहिल शेरकेँ देखू कोनो खास अर्थ नै निकलि रहल छै ऐ शेरक।
तेनाहिते दोसर शेर तँ आर गड़बड़ अछि। मुदा इएह गड़बड़ी सौती मोशायरा लेल चाही। जँ सौती
मोशायरामे एकौटा एहन शेर आबि गेल जकर कोनो सार्थक मतलब निकलि रहल छै तँ ओ सौती मोशायरा
लेल उपयुक्त नै। मुदा ऐठाम ई धेआन राखब बेसी जरूरी जे मैथिलीमे बाल गजल सेहो अछि आ
बाल गजलमे किछु शेर एहनो भऽ सकै छै जकर कोनो अर्थ नै होइक। कारण बच्चाकेँ अर्थसँ मतलब
नै रहै छै। देखने हेबै जे माए वा आन कोनो संबंधी बच्चाकेँ उठा कऽ “अर्रररररररररररररररररररररर”
बजै छै आ बच्चा खुश भऽ कऽ हँसै छै तँए बाल गजलमे खूब लय ओ आंतरिक सुआद चाही।
35) तरही मोशायरा--ई एक तरहँक आयोजन थिक जैमे कोनो प्रसिद्ध
शाइरक कोनो गजलक एकटा कोनो पाँति दऽ देल जाइत छै। रदीफ ओ काफिया पुरने गजल जकाँ रहबाक
चाही। आब आन गजलकार सभ एही हिसाबसँ गजल लीखि मोशायरामे प्रस्तुत करै छथि। जे पाँति
देल जाइत छै तकरा “तरह-ए-मिसरा” कहल जाइत छै। तरह-ए-मिसरा केर प्रयोग मतलामे नै हेबाक
चाही मने मतला नव गजलकारक अपने मूल रहै छै। सौती मोशायराक बाद गजलकारक ट्रेनिंग लेल
तरही मोशायरा बहुत प्रभावी होइत छै। अनिचिन्हार आखरपर प्रस्तुत “गजलक इस्कूल” तरही
मोशायरासँ अलग अछि। तरही मोशायरामे देल पाँतिक काफिया रदीफकेँ ओइ गजलक “जमीन” कहल जाइत
छै। जँ अहाँ कोनो शाइरक काफिया रदीफ आ बहर लऽ कऽ नव गजल कहबै तँ ओकरा अमुक गजलक जमीनपर
कहल गजल कहल जाइत छै।
आब उपरकामेसँ किछु प्रमुख पारिभाषिक शब्दावलीक विस्तृत विवरण
देखी—
जेना की अहाँ सभ बुझैत छी गजल किछु शेरक संग्रह होइत छैक (कमसँ
कम पाँच आ बेसीसँ बेसी कतबो)। किछु लोकक मोताबिक जँ सत्रहसँ बेसी शेर देबाक हुअए तँ
फेरसँ एकटा मतला कहू आ शेर कहैत चलू। आ एना दूगजला, तीनगजला, चौगजला होइत रहत। वर्तमानमे
मात्र पाँच, छह, या सात शेर बला गजल बेसी प्रचलित अछि। ओना गजलक संबंधमे ईहो धेआन राखब
जरूरी जे प्राचीन गजलगो गजलमे ताक (विषम) संख्या रखैत छलाह जेना 5, 7,9 आदि। एकर कारण
ई कहल जाइत अछि जे पहिने गजलक विषय विरह युक्त प्रेम छल तँए जुफ़्त (सम) के छोड़ि ताक
(विषम) के प्राथमिकता देल जाइत छलै। मुदा आधुनिक गजलगो एहि रुढ़िके तोड़ि देने छथि।
आब ई बूझी जे शेर की थिक। शेर सदिखन दू पाँतिक होइत छैक आ शाइर जे कहए चाहैत अछि ओ
दुइये पाँति मे खत्म भए जेबाक चाही, अन्यथा ओ गजलक लेल उपयुक्त नहि। आ एहन-एहन गजल
जकर हरेक शेरमे अलग-अलग बात कहल गेल हो ओकरा “गैर मुसल्सल” गजल कहल जाइत छैक। किछु
गजल एहनो होइत छैक जकर हरेक शेर एकै विषय पर रहैत छैक। एहि प्रकारक गजलके “मुसल्सल”
गजल कहल जाइत छैक, मुदा “मुसल्सल” गजल बेसी नीक नहि मानल जाइत छै। उर्दूमे पाँतिकेँ
“मिसरा” कहल जाइत छैक। शेरक पहिल पाँतिकेँ “मिसरा-ए-उला” आ दोसर पाँतिकेँ “मिसरा-ए-सानी”
कहल जाइत छैक। शेरक किछु उदाहरण देखू---
अला हुब्बी बेसेहने की फ़ सबहीना
वला तब्की ख़मूरल अन्दरीना
अर्थ रे साकी सुन, पेआला उठा कए हमरा एतेक भोरक बचल शराबक पेआला
दे की जाहिसँ अन्दरीना (अन्दरीना सीरीया देशक एकटा जगहक नाम अछि)मे एकौ ठोप शराब नहि
बचै।
(भाषा- अरबी, शाइर उमरु-बिन-कुलसूम अत़गलबी)
अगर आ तुर्के शीराजी बदस्त आरद दिलेमारा
बखाले हिन्दुवश बख़शम समरकन्दो बुखारा रा
अर्थ जँ ओ सुन्दरि महबूब हमर करेज चोरा लेथि तँ हम हुनकर एकटा
तिलबा पर समरकंद आ बुखारा सनसन देश हुनका दए देबैन्ह।
(भाषा- फारसी, शाइर हाफ़िज शीराजी)
उनके आ जाने से आ जाती है मुँह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
(भाषा- उर्दू, शाइर गालिब)
बाट तकैत दिन बीति जाएत बुझलिऐ
आस तकैत जिनगी बिताएत बुझलिऐ
(भाषा- मैथिली, शाइर गजेन्द्र ठाकुर)
ओ बिसरि गेलै किए
प्रेम हेरेलै किए
(भाषा-मैथिली, शाइर अमित मिश्र)
हमर मुस्कीक तर झाँपल करेजक दर्द देखलक नहि इ जमाना।
सिनेहक चोट मारूक छल पीडा जकर बूझलक नहि इ जमाना।
(भाषा- मैथिली, शाइर ओमप्रकाश)
बेदरदिया नहि दरदिया जानै हमर
टाकासँ जुल्मी प्रेम केँ गानै हमर
(भाषा- मैथिली, शाइर जगदानंद झा “मनु” )
एक झोंका पवनकेँ गुजरि गेल देखू
मोन मारल सिनेहक सिहरि गेल देखू
(भाषा- मैथिली, शाइर राजीव रंजन मिश्र)
न कम सम बहुत नहि समावेश चाही
सधेने चली बेश ऋण शेष चाही
(भाषा- मैथिली, शाइर विजय नाथ झा)
टूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूखल छी तँइ गजल कहै छी
(भाषा- मैथिली, शाइर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल)
रहू कमल सन सदा सुवासित
बनू मनोहर हवा सुवासित
(भाषा- मैथिली, शाइर योगानंद हीरा)
जँ उपरका शेर सभके देखबै तँ पता लागत जे ई सभ दुइये पाँतिके
छैक आ जे बात कहल गेल छैक से पूरा-पूरी छैक। संगे-संग दूनू पाँतिक छंद (मात्राक्रम)
एकै छै। इएह भेल शेर। गजलसँ जुड़ल किछु आर पारिभाषिक शब्द आगू देल जा रहल अछि। बिना एकरा बुझने गजल नहि बुझल जा
सकैए।