जिनगीक गीत अहाँ सदिखन गाबैत रहू।
एहिना इ राग अहाँ अपन सुनाबैत रहू।
ककरो कहै सँ कहाँ सरगम रूकै कखनो,
कहियो कियो सुनबे करत बजाबैत रहू।
खनकैत पायल रातिक तडपाबै हमरा,
हम मोन मारि कते दिन धरि दाबैत रहू।
हमरा कहै छथि जे फुरसति नै भेंटल यौ,
घर नै, अहाँ कखनो सपनहुँ आबैत रहू।
सुनियौ कहै इ करेजक दहकै भाव कनी,
कखनो त' नैन सँ देखि हिय जुराबैत रहू।
------------- वर्ण १७ ---------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें