प्रेम-गाछ पर बैसल वो चिड़ै , कुन दिशा में उड़ि गेलई
मोनक बात मोने में रहिके अंकुरित भकअ गड़ि गेलई ।
दूर उड़ान हरि लेलक प्राण, हर्खक बरखी लागै भय गेल
बनिके ठूठ ठाड़े मोन रहिगेल, हरियर फ़ुनगी झड़ि गेलई ।
मन उपवन छल स्वच्छ सुवासित चाहक छाया बड गंभीर
हॄदयक वेदना सं तप्त त्रस्त, सुखायलओ जड़ि जड़ि गेलई ।
कानै आंखि दुनु झड़ि झड़ि, ककरा सं कहब ई प्रेमक पीड़
प्रेयसी प्रेम पीड़ित प्रियतम के अनंत पीड़ा में छोड़ि गेलई ।-
भास्कर झा 31/01/2012
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