लाल-दाईकेँ ललना लाले लाल लगैत छथि
लाली अपन माएकेँ चोरा कs नुकाबैत छथि
छैन आँखिमे हिनकर काजरक बिजुडिया
माइयोसँ सुन्नर झिलमिल झलकैत छथि
लटकल माथपर सुन्नर लट हिनकर
देखियौंह चंद्रमाकेँ आब ई लजाबैत छथि
सुनि-सुनि बहिना सब हिनकर किलकाडि
कियो खेलाबैत कियो हिनका झुलाबैत छथि
रंग-रूप चाल-चलन सबटा निहाल छैन
मुस्कीसँ इ तँ अपन 'मनु'केँ लुभाबैत छथि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या - ११
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