मैथिलीकेँ नुकेलासँ किछु नै हएत
उर्दूसँ खिसिएलासँ किछु नै हएत
समां लिअए सभकेँ, भाषा ओ बढ़त आगू
किनको हल्ला मचेलासँ किछु नै हएत
बुत्ता हुअए तँ खोंट अपनामे ताकू
छुच्छे आँगुर चमकेलासँ किछु नै हएत
जँ कवि छी जनमानसक कविता लीखू
प्रीतमक आँचरमे ओझरेलासँ किछु नै हएत
जँ बदलाव चाहैत छी, आगाँ बढ़ू "रौशन"
बाट अनकर जोहलासँ किछु नै हएत
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