अहाँ तँ सभटा
बुझैत छी हे माता
सुमरि अहाँकेँ
कनैत छी हे माता
दीन हीन हम नेना
बड़ अज्ञानी
आँखि किए अहाँ
मुनैत छी हे माता
अहाँ तँ जगत जननी छी भवानी
तैयो नहि किछु
सुनैत छी हे माता
श्रधाभाव किछु
देलौं अहीँ हमरा
अर्पित ओकरे करैत
छी हे माता
नहि हम जानी किछु
पूजा-अर्चना
जप तप नहि जनैत छी हे माता
जगमे आबि ओझरेलहुँ एहेन
अहाँकेँ नहि
सुमरैत छी हे माता
छी मैया हमर हम
पुत्र अहीँकेँ
एतबे तँ हम बजैत
छी हे माता
(सरल वार्णिक बहर,
वर्ण-१३)
जगदानन्द झा 'मनु'
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