गजल-1.42
मैथिली मिथिला कानि रहल छै
दुख भितरिया सब जानि रहल छै
माँटि भरि पोखरिमे महल बनल
कागतेपर सब आनि रहल छै
सूखि गेलै दुषित नदी भरल
माँछ गर्दामे छानि रहल छै
राज नै भाषा मरि कऽ बचल छै
भोज खा मंचसँ फानि रहल छै
पैघ छै देहक साधने घटल
छोट चादर बड तानि रहल छै
2122-2212-12
अमित मिश्र
मैथिली मिथिला कानि रहल छै
दुख भितरिया सब जानि रहल छै
माँटि भरि पोखरिमे महल बनल
कागतेपर सब आनि रहल छै
सूखि गेलै दुषित नदी भरल
माँछ गर्दामे छानि रहल छै
राज नै भाषा मरि कऽ बचल छै
भोज खा मंचसँ फानि रहल छै
पैघ छै देहक साधने घटल
छोट चादर बड तानि रहल छै
2122-2212-12
अमित मिश्र
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