गजल-1.52
डरि डरि कऽ मरनाइ केहन
मरि मरि कऽ जीनाइ केहन
निज शोणितसँ पिच्छर जखन
सुखलपर खसनाइ केहन
बौका बनल माँग करबै
लूटिपर बजनाइ केहन
भीड़सँ पतनुकान धेने
असगर तँ नचनाइ केहन
प्रतियोगिता देत नै जे
हारिपर हँसनाइ केहन
मुँहपर तँ बाजल किओ नै
पीठपर कहनाइ केहन
रहि सकल नै मोनमे हम
भूपर तँ रहनाइ केहन
प्रेमो "अमित " नै कऽ सकलै
द्वेषे तँ करनाइ केहन
2212-2122
मुस्तफइलुन-फाइलातुन
बहरे-मुजास
अमित मिश्र
डरि डरि कऽ मरनाइ केहन
मरि मरि कऽ जीनाइ केहन
निज शोणितसँ पिच्छर जखन
सुखलपर खसनाइ केहन
बौका बनल माँग करबै
लूटिपर बजनाइ केहन
भीड़सँ पतनुकान धेने
असगर तँ नचनाइ केहन
प्रतियोगिता देत नै जे
हारिपर हँसनाइ केहन
मुँहपर तँ बाजल किओ नै
पीठपर कहनाइ केहन
रहि सकल नै मोनमे हम
भूपर तँ रहनाइ केहन
प्रेमो "अमित " नै कऽ सकलै
द्वेषे तँ करनाइ केहन
2212-2122
मुस्तफइलुन-फाइलातुन
बहरे-मुजास
अमित मिश्र
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